बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४०
मन हरि लियो माधुरी मूरति चितै नयन की कोर॥
पकर्यो तेहि हिरदय उर-अंतर प्रेम-प्रीति के जोर।
गए छंड़ाय छोरि सब बंधन दै गए हँसनि अंकोर[१]॥
सोवत तें हम उचकि परी हैं दूत मिल्यो मोहिं भोर।
सूर स्याम मुसकनि मेरो सर्वस लै गए नंदकिसोर॥१४६॥