भ्रमरगीत-सार/१४५-मधुप! रावरी पहिचानि
बास रस लै अनत बैठे पुहुप को तजि कानि॥
बाटिका बहु बिपिन जाके एक जौ कुम्हलानि।
फूल फूले सघन कानन कौन तिनकी हानि?
कामपावक जरति छाती लोन लाए आनि।
जोग-पाती हाथ दीन्हीं बिप चढ़ायो सानि॥
सीस तें मनि हरी जिनके कौन तिनमें बानि[१]।
सूर के प्रभु निरखि हिरदय ब्रज तज्यो यह जानि॥१४५॥
- ↑ बानि=वर्ण, आभा, कांति।