भारतेंदु-नाटकावली/७–नीलदेवी (दूसरा दृश्य)

भारतेंदु-नाटकावली
भारतेन्दु हरिश्चंद्र, संपादक ब्रजरत्नदास

इलाहाबाद: रामनारायणलाल पब्लिशर एंड बुकसेलर, पृष्ठ ६०७ से – ६०९ तक

 

दूसरा दृश्य
स्थान––युद्ध के डेरे खड़े हैं
(एक शामियाने के नीचे अमीर अबदुश्शरीफ़ खाँ सूर बैठा
है और मुसाहिब लोग इर्द-गिर्द बैठे हैं)

शरीफ––(एक मुसाहिब से) अबदुस्समद! खूब होशियारी से रहना। यहाँ के राजपूत बड़े काफिर हैं। इन कमबख़्तों से खुदा बचाए। (दूसरे मुसाहिब से) मलिक सज्जाद! तुम शब के पहरों का इंतिजाम अपने जिम्मे रखो, ऐसा न हो कि सूरजदेव शबखून मारे। (काजी से) काजी साहब! मैं आपसे क्या बयान करूँ, वल्लाही सूरजदेव एक ही बदबला है। इहातए पंजाब में ऐसा बहादुर दूसरा नहीं।

काजी––बेशक हुजूर! सुना गया है कि वह हमेशा खेमों ही में रहता है। आसमान शामियाना और जमीन ही उसे फर्श है। हजारों राजपूत उसे हर वक्त घेरे रहते हैं।

शरीफ––वल्लाह तुमने सच कहा, अजब बदकिरदार से पाला पड़ा है, जान तंग है। किसी तरह यह कमबख़्त हाथ आता तो और राजपूत खुद बखुद पस्त हो जाते।

एक मुसाहिब––खुदावंद! हाथ आना दूर रहा, उसके खौफ से अपने खेमे में रहकर भी खाना-सोना हराम हो रहा है।

शरीफ––कभी उस बेईमान से सामने लड़कर फतह नहीं मिलनी है। मैंने तो अब जी में ठान ली है कि मौका पाकर एक शब उसको सोते हुए गिरफ़्तार कर लाना। और अगर खुदा को इस्लाम की रोशनी का जल्वा हिंदोस्तान ज़ुल्मतनिशान में दिखलाना मंजूर है तो बेशक मेरी मुराद बर आएगी।

काजी––इन्शा अल्लाह तआला।

शरीफ––कसम है कलामे शरीफ की, मेरी ख़ुराक आगे से इस तफक्कुर में आधी हो गई है। (सब लोगों से) देखो, अब मैं सोने जाता हूँ, तुम सब लोग होशियार रहना।

(गजल)
(उठकर सबकी तरफ देखकर)

इस राजपूत से रहो हुशियार खबरदार।
गफलत न जरा भी हो खबरदार खबरदार॥
ईमाँ की कसम दुश्मने जानी है हमारा।
काफिर है य पंजाब का सरदार खबरदार॥
अजदर है भभूका है जहन्नुम है बला है।
बिजली है गजब इसकी है तलवार खबरदार॥

दरबार में वह तेगे शररबार न चमके।
घरबार से बाहर से भी हर बार खबरदार॥
इस दुश्मने ईमाँ को है धोखे से फँसाना।
लड़ना न मुकाबिल कभी जिनहार खबरदार॥

[सब जाते हैं