भारतवर्ष का इतिहास/४३—मुग़लराज की घटती
(सन् १७०७ ई॰ से १७४८ ई॰ तक)
२—औरङ्गजेब का बड़ा बेटा बहादुर शाह के नाम से अपने बाप के सिंहासन पर बैठा परन्तु केवल पांच बरस राज करने पाया था कि परलोक सिधारा । उसकी मृत्यु के पीछे सात बरस के समय में तीन सम्राट हुए। राज्य क्या था कठपुतलियों का खेल था; क्योंकि दरबार के उमराव लोग ऐसे शक्तिमान हो गये थे कि जिसे चाहते थे गद्दी पर बैठाते थे और जिसे चाहते थे गद्दी से उतार कर मरवा डालते थे। औरङ्गजेब की मृत्यु के बारह बरस पीछे अर्थात सन् १७१९ ई॰ में मुग़ल घराने का एक सम्राट जिसका नाम महम्मद शाह था सिंहासन पर बैठा और ३० बरस अर्थात सन् १७४८ ई॰ तक नाम मात्र का सम्राट रहा।
३—औरङ्गजेब की मृत्यु के पीछे किसी बड़े सूबे का सूबेदार दिल्ली के सम्राट का दबाव न मानता था और आप ही वहां का हाकिम और राजा बन बैठा था। सूबेदार सम्राट को कुछ रुपया भेजते रहते थे परन्तु जो जो चाहता था सो भेजते थे। दिखाने को यह लोग अभी तक सम्राट के आधीन थे परन्तु असल में सम्राट केवल दिल्ली का बादशाह था।
४—जिस भांति सूबेदार सम्राट की आधीनता से निकल गये थे उसी भांति नवाब सूबेदारों की आधीनता से निकल गये थे; यद्यपि अभी तक सूबेदारों के आधीन कहलाते थे। इनमें से बड़े बड़े सूबेदार और नवाब यह थे; उत्तरीय भारत में अवध का सूबेदार, और बङ्गाल और बिहार का नवाब, और दखिन में हैदराबाद का सूबेदार जो निज़ामुल-मुल्क कहलाता था, और करनाटक का नवाब।