भारतवर्ष का इतिहास/४२—शिवाजी की बढ़ती
मरहठे।
१—मरहठे भारत के उस पहाड़ी हिस्से में रहते थे जिसे अब बम्बई हाता कहते हैं। यह लोग डील डौल में छोटे, बदन के पुष्ट, बीर और स्वभाव में सीधे साधे थे। इनका देश पहाड़ियों से पटा पड़ा था। उस समय सड़कें न थीं और पहाड़ियों पर घने बन थे। लगभग हर पहाड़ की चोटी पर एक गढ़ था; और हर गढ़ का एक सरदार था जो आस पास के गावों का हाकिम था। बहुत दिनों तक यह सरदार दखिन के मुसलमान सुलतानों के आधीन थे और उनको कर देते रहे। केवल इतना ही नहीं परन्तु उनके साथ होकर मुग़ल सम्राटों की सेना से युद्ध भी करते थे। शिवाजी ने उन सब को मिलाकर एक बली जाति बना ली।
२—शिवाजी शाहजहां की राजगद्दी की साल सन् १६२७ ई॰ में पैदा हुआ था। उसका बाप बीजापुर के दरबार में नौकर था। बाप नौकरी में था, शिवाजी पूने में पल रहा था। लिखना पढ़ना तो पण्डितों और ब्राह्मणों का काम समझा जाता था इस कारण शिवाजी को नहीं सिखाया गया; अलबत्ता शस्त्र विद्या की सब कलायें सिखाई गईं, जैसे घोड़े पर चढ़ना, तीर चलाना, कुश्ती लड़ना, बल्लम चलाना इत्यादि। उसको प्राचीन हिन्दू सूर बीरों के चरित याद थे। और उसकी अभिलाषा थी कि मैं भी उनकी भांति काम करके नाम और उन्नति प्राप्त करूं।
३—मरहठे सरदारों की यह रीति थी कि जब अवसर पाते थे तो अपने पहाड़ी गढ़ों से उतर कर नीचे के इलाक़ों में लूटमार करने लगते थे।
शिवाजी बहुधा इनके साथ जाया करता था और बीस बरस की अवस्था में आप एक झुण्ड का सरदार बन गया था। उसने पहले पुरन्धर का गढ़ लिया और फिर एक एक करके और गढ़ जीत लिये; हथियार और सामान और रुपया इकट्ठा किया और उसका नाम दूर दूर तक फैल गया।
४—होते होते बीजापुर के सुलतान को भी उससे डर लगने लगा। उसने शिवाजी से युद्ध करने के लिये अपने सेनापति अफ़ज़ल खां को भेजा। शिवाजी ने कहला भेजा कि मुझ में खां साहब का सामना करने की शक्ति कहां है; अगर वह शस्त्र छोड़ कर अकेले मुझसे मिलैं तो मैं उनकी आधीनता स्वीकार करने को तैयार हूं। अफ़ज़ल खां के जी में कुछ संदेह न हुआ। वह सब सेना और अरदली के सवार पीछे छोड़ गया और पतली मलमल का बस्त्र पहन कर ख़ाली एक आदमी अपने साथ लेकर शिवाजी से मिलने चला। इधर यह जवान मरहठा सरदार दावघात का पक्का, ऊपरी बस्त्र के नीचे कवच पहने हुए था; मुट्ठी में बिछुवा और बांह में कटार छिपी हुई थी। अफ़ज़ल खां जो उससे मिलने को बढ़ा तो शिवाजी बाघ की भांति उस पर टूट पड़ा। पहले बिछुवा उसके पेट में घुसेड़ दिया फिर कटार से उसे मार डाला। शिवाजी के सैनिक जो पासही पेड़ों की आड़ में छिपे थे निकल कर मुसलमानों पर टूट पड़े। मुसलमान कुछ लड़ाई के लिये तैयार हो कर तो आये ही न थे हार कर भाग गये।
५—शिवाजी ने सारे देश को रौंद डाला और सारे दखिन का महाराजा बन गया। लगभग सब छोटे मोटे मरहठे सरदार और राजा उसके आधीन और सहायक हुए। यह मुसलमानों का बैरी था और उन्हें उसने जता दिया कि मैं गौ और ब्राह्मणों की रक्षा के लिये युद्ध करता हूं। यह वह समय था कि जब दखिन के मुसलमान बादशाह औरङ्गजेब की सेना से युद्ध कर रहे थे। उनको इतना अवकाश न था कि अपने बल को इकट्ठा करके शिवाजी को पराजित करने में लगते। परिणाम यह हुआ कि शिवाजी सबल होता गया और बीजापुर के सुलतान को उससे यह सन्धि करनी पड़ी कि अब से शिवाजी पश्चिमीय समुद्रतट का राजा माना जाय।
६—अब औरङ्गजेब भी सम्राट के पद पर पहुंच चुका था। इस मरहठे सरदार की बढ़ती को देखकर यह भी डरा और एक बहुत बली सेना देकर शाइस्ता खां को जो दखिन का सूबेदार था उसको परास्त करने के लिये भेजा। शाइस्ता खां इस भारी सेना को लेकर पूना में घुस गया। शिवाजी ने देखा कि ऐसे बली बैरी से खुले मैदान में लड़कर बिजयी होना तो असम्भव है। इस कारण उसने बैरागियों का भेस बना लिया। उसके साथ बीस जवान और थे; उन्हों ने भी यही भेस बना रक्खा था। शिवाजी उन बीसों साथियों के साथ एक रात पूना में घुस गया और जिस घर में शाइस्ता खां ठहरा था उस में घुस कर उसे मारही लिया था पर वह खिड़की की राह कूद कर निकल गया। शिवाजी उसके पीछे दौड़ा और एक हाथ तलवार का जो मारा तो उसकी अंगुलियां कट कर गिर गईं। मरहठे जिस भांति आये थे उसी भांति लौट गये परन्तु शाइस्ता खां ऐसा डरा कि पूना छोड़ कर चला गया। अब शिवाजी निडर जहां चाहता था जाता था और देश जीत कर अपना राज बढ़ाता रहा।
७—इसके पीछे कुछ सैनिक लेकर शिवाजी पश्चिमीय तट के धनी बन्दरगाह सूरत में पहुंचा; छः दिन तक नगर को लूटा। यहां अंगरेजों की कोठी थी। उन्हों ने उसकी बड़ी सावधानी से रक्षा की और शिवाजी को पास न आने दिया।
८—औरङ्गजेब ने फिर उसे दबाने को एक बड़ी भारी सेना भेजी। इस बार शिवाजी ने सन्देसा भेजा कि जो बादशाह मेरा कुछ राज मेरे पास रहने दे और मुझे अपनी सेना में कोई ऊंची पदवी दे तो मैं उसकी आधीनता स्वीकार करने को तैयार हूं। औरङ्गजेब ने यह बात मान ली। वह यह चाहता था कि जो किसी भांति शिवाजी मेरे हाथ आ जाय तो मैं उसे मरवा डालूं। शिवाजी दिल्ली पहुंचा और राज दरबार में हाज़िर हुआ परन्तु यहां उसके साथ ऐसा बुरा बरताव किया गया कि वह जान गया कि अब मेरा कुशल नहीं है। शिवाजी एक घर के भीतर बन्द होकर पड़ रहा और बीमारी का बहाना किया। उस घर की चारों ओर मोग़ल सैनिकों का पहरा था; फिर भी उसके साथी उसे कुशल पूर्वक एक सुरक्षित स्थान पर ले गये। निकालते समय उन्हों ने उसे एक टोकरे में बैठाकर ऊपर से मिठाई रख दी। पहरेवालों ने समझा कि यह केवल मिठाई का टोकरा है, इस कारण उन्हों ने कोई रोक टोक न की और यह निकल गया। क़ैद से निकलते ही शिवाजी ने दाढ़ी मोछ मुड़ा डाली गेरुवा बस्त्र धारण कर लिया, भभूत बदन पर मली; किसी ने न जाना कि यह कौन है; इस भांति शिवाजी फिर अपने देश में पहुंच गया।
९—औरङ्गजेब ने फिर उसको कितनी ही बार पकड़ने की चेष्टा की, बड़े बड़े लालच दिये, और बुलाया परन्तु वह उसके फंदे में न फंसा।
१०—अब शिवाजी राजगद्दी पर बैठा और वह मरहठों का राजा कहलाया। वह बड़ी भारी सेना लेकर दक्षिण की ओर चला; मदरास के पास आया परन्तु उस पर चढ़ाई नहीं की। उसने मैसूर और करनाटक के सब गढ़, जैसे जिंजी, बेलहोर, आरनी, बंगलौर और बिलहारी ले लिये; अठारह महीने के मुहिम के पीछे पूना लौट आया। जो देश उसने जीते थे उनके हाकिमों ने शिवाजी को चौथ अर्थात अपनी आमदनी का चौथा भाग देना स्वीकार किया।
११—इसके कुछ काल पीछे सन् १६८० ई॰ में शिवाजी की मृत्यु हुई। उस समय उसकी आयु ५२ बरस की थी। मरहठों में ऐसा बीर और बुद्धिमान सरदार दूसरा न था। उन दिनों के मरहठों के हाथ के चित्र जो मौजूद हैं उन में दिखाया गया है कि शिवाजी घोड़े पर चढ़ा चला जा रहा है और चावल फांक रहा है। अर्थात् उसे आराम के साथ खाने का भी समय नहीं मिलता था।
१२—शिवाजी के पीछे उसका बेटा सम्भाजी (शम्भुजी) बाप की गद्दी पर बैठा परन्तु उसमें बाप की योग्यता कुछ भी न थी। वह आलसी और निर्दयी था। औरङ्गज़ेब ने उसे थोड़े ही दिनों में पकड़ लिया और मरवा डाला।