भक्तभावन/कृष्णचंद्रजू के नखशिख

भक्तभावन
ग्वाल, संपादक प्रेमलता बाफना

वाराणसी: विश्वविद्यालय प्रकाशन, पृष्ठ २१ से – ३० तक

 

श्री गणेशायनमः

अथ श्री कृष्णचंद्रजू के नखशिख ग्रंथ

मंगलाचरण


बीन करवर हंस कलित बखानियत। कीरति तनैया सुरगावत मुनीसुरी।
धुनि रूप मुखचंद प्रसिद्धि प्रमानियत। जल जन माल मृदुलता विसवेसुरी।
ग्वाल कवि निगम पुरान की आधार कहे। सुन्दर तरंग करि सके को कवीसुरी।
बरने विशेष कवि पावत नहीं है थाह। संपति भरैया महाराधा जगदीसरी॥१॥

दोहा


श्री गुरु श्री जगदम्बिका। श्री पितु दया सुभाय।
तिनके चरन सरोज कों। वंदत शीश नवाय॥२॥

कवि विनय


कृष्णचंद महराज के। तनकी शोभ अपार।
सेष महेश गनेश विधि। नारद व्यास विचार॥३॥
गुन सागर महराज के। गावत मिले न पार।
सो छबि केसें कहि सके। अल्प बुद्धि व्यवहार॥४॥
लघुमति तू क्यों तरे। गुन छबि सागर पूर।
चढ़ि पपीलका पीठपें। क्यों पहुंचे मग दूर॥५॥
थोरि बुद्धि कवि ग्वाल की। गुन हरि के सु अनंत।
चित संकित अति होत है। किमि करिये बरनंत॥६॥
श्री गुरु सुकवि समूह की। चरन कृपाधरि शीश।
बरनत कछु कवि ग्वाल अब। पंथ पुराने दीश॥७॥
श्री जगदंबा की कृपा। ताकरि भयो प्रकाश।
वासी वृंदाविपिन को। श्री मथुरा सुखवास॥८॥
विदित विप्रवंदी विशद। बरने व्यास।
ताकुल सेवाराम को सुत। सुत कवि ग्वाल सुजान॥९॥

ग्रंथ संवत


वेद सिद्धि अहि रेनिकर'। संवत आश्विन मास।
भयो दशहरा को प्रगट। नख शिख सरस प्रकाश॥१०॥

कवित-चरन नख वर्णन


पानिप परस मंजु मुक्ता सरमाय। डूबे सिंधु अगम अदम गम कोर के।
तारे तेज वारे तेन कारे निसि तारे परे। दिवस हरारे रहे दुरि मुख मोर के।
ग्वाल कवि फवि फवि छवि जो छपा कर की। दवि दवि दूवरे कुमुद जिमि भोर के।
यातें जग परख नख मख मेन पचि सब। चख लख पद नख नवल किशोर के॥११॥

चरन वर्णन


कोहर में बिंब में बंधूकन में विद्रुम में। जावक जपा में, वह किसले अमंद के।
लाल में, गुलाल में, गहर गुल लालन में। लाली गुन पैक सो न तूल है सु छंद के।
ग्वाल कवि ललित लुनाई कोमलाई जैसी। तेसी है न कंज बीच ओ गुलाब फंद के।
नंद के करन, दुख द्वंद के हरन धन। असरन-सरन चरन नंद नंद के॥१२॥

कवित्त


मुनि जन मन अधार के अगार गुर काली नाम सीस के सिंगार चार साज के।
वेद औ पुरान शास्त्र तत्वन के तत्व तेज। सत्व को प्रमत्व दत्व मुकति समाज के।
'ग्वाल कवि' कमल कुलिस ध्वज अंकुसतें चिन्हित विचित्र रूप दूसरे निराज के।
शोभा के जहाज राज लोकन के ताज राज। पद जुगराज ब्रजराज के॥१३॥

चरन भूषन वर्णन


कैधों मंजु मुख के मंडन बनाये विधि। कंधों फल कल कुण्डल अनूप सुखमाके है।
कैधों जग मोहन के मंत्र के अधार पूरे। कैधौं मृदुध्वनि के वपुष छवि छाके है।
ग्वाल कवि द्वार ही तें आगम कहैया किधों। मातहिय कमल लिखैया किधौं ताके है।
कै| हेमकार कुल तारन निदान नीके। नूपुर नवल किधौं नंद के ललाके है॥१४॥

जंघा वर्णन


कैधौं विधि बागवान अधिक उतायल में। कदली उलटि धरे सीमा शोभ माल की।
कैधौं भुज उदर हृदय शीश मंदिर के। उदित अधार धरे मंदी जोति जाल की।
ग्वाल कवि कंधों सुरराज वन नंदनते। ओंथी धरि दीनी है सरो महा सुढाल की।
केधों केलि काल में कला निधि मुखीन कोये। मोदकी करनवारी जंघे नंदलाल की॥१५॥

नितम्ब वर्णन


केधों अघ उरघ शरीर मध्य भाग ताके करन प्रसिद्ध बुर्ज बने है सम्हाल के।
कैचों लंक भूपति विराजिवे के रंग गूढ़े। मजेदार जड़े नीलमनि जाल के।
ग्वाल कवि कधों कामिनी की केलिसमय में। तवसे मधुर मृदुदेन हारे ताल के।
कैधों पृष्ठ भाग को प्रभा के वृद्धि करिबे को। विधि ने बनाये हैं नितंब नंदलाल के॥१६॥

लंक वर्णन


गोल है अमोल है अजूबाहे अनुपम है। छाम है न थूल है न माफिक पसंद को।
रंग रंग रंग की रंगीली अति चटकीली। काछनी विराजे वर वानिक बुलंद को।
ग्वाल कवि चामी कर कोंधनी जड़ाऊ जोर। पोही स्याम पाट में समूह शोभ फंद को
ललित लुनाई सुरि समकत लूमि लूमि। लह लह लहकत लंक व्रजचंद को॥१७॥

काछनी वर्णन


मंजु मखमलतें मुलायम है मजेदार। साटन तें चिकनी चहूँधा एकतारे की।
रंगी रंग रंग के सुरंगन तें तेजदार। त्रोटन की ओट औ किनारी कोरकारे की।
ग्वाल कवि मोतिन की झालरे झिलत जामें। फौदनी खिलत वेश बादले पसारे की।
कटि कमनीयतें करत कल केलि ऐसी! काछनी कलानिधि कलासी कान्ह प्यारे की॥१८॥

लंक भूषन (करषनी) वर्णन


वामाकर कामी ढाल ढाल के तपाई तेज। बहुरि है सुनार सुख दया की।
हीरन ते मोतिन तें लालन ते पन्नन ते। जड़ित जड़ाक जोति जोतिन जितेया को।
ग्वाल कवि विविध बनाई बेल मीनन की। स्याम मखतूल में गुंथी है छवि छैया की।
कैसे कहे कौन कहि हारे है कवीश कुल। केसी कमनीय कटि कौंधनी कन्हैया की॥१९॥

नाभि वर्णन


अधिक अमोल गोल गहरी अडोल जैसी। तैसी है अझोल औ अतोल सुखभारी की।
तीस तीन कोटि देवतान के नहाइबे को। पुषकर पूरन की परभा पसारी की।
ग्वाल कवि चतुर निधान चतुरानन के। तात की उप सज कुई है उज्यारी की।
नोके नीकें नैनन नवीनता निहारीयत। नूरतें न मूंद नाभि नवल विहारी क॥२०॥

त्रिबलो वर्णन


कैंधों नाभि कूप कमनीय के किनारे पर। राधे ने बनाई है नसेनी नेह पासे की।
कैंधों तजवीज तेज तोल लोन लोकन की। तीन ही बनाई सीम अतुल मवासे की।
ग्वाल कवि कंधों पात बंधन कियो है दाम। ताकि परि गई है तकीरें रूपरासें की।
कैंधों महाराज मन मोहन मुकुन्द जू के। तन में तकाई परे त्रिबली तमासे की॥२१॥

रोमराजी वर्णन


कैंधों पुरहूत[] के परम पारचे को पान। तापे मृगमद की सुधारी धार ताजी है।
कैंधों निज स्वामी की भगति रसराज करी। रेख रूप ले वस्यो शरीर शोभ साजी है।
ग्वाल कवि कैधों नाभि कूप कमनीय पर। पाट स्याम डोर फैली दूर लौं दराजी है।
कैंधों रूप राशि राधावर के उदर पर। राजी राजी ह्वै करि विराजी रोमराजी[]है॥२२॥

उबर वर्णन


कैंधों पुरहूत की प्रकर्ष पनवारी जाके। परम पवित्र पान पूरन पसंद है।
कैंधों मन लाय के बनायो मैन रेजा एक। मखमल माखन सो मृदुल मुकुर है।
ग्वाल कवि कैधों एक पात अरवी कौ नीको। अजब अनूठो औ अनूपम असर है।
कैंधों विधि विटप विचित्रता के आलवाल। बानिक विशाल नंदलाल को उदर है॥२३॥

हृदय वर्णन


कैधों दल दीनन के दुःख को दलनहारी। दीरष दया जो ताको पितु है प्रकाज को।
कैधों दैत्य मारन निवारन अमर उर। ताके चितवन को ठिकानो गुन साज को।
ग्वाल कवि कैंधो भाव जोगो की गुफा है। ह्वै रह्यो प्रकाश तामें तेज के समाज को।
कैंधों बर बिमल कमल दल हूते मृदु। मंजुल हृदे है श्री मुकंद महाराज को॥२४॥

भृगुलता वर्णन


कैधों विप्र पायन पवित्र के पुआइबे कों। कारन विचित्र ब्रह्मांड के पसारे।
कंधों परिपूरन परम प्रभुता को पद। ताके पायबे को हैं सुपंजा भाव भारे में।
ग्वाल कवि केधों छवि ताकी छमता को इद। ताको है निशान तीन वर्ण के अखारे में।
कंधों सुख सुखमाको सुन्दर सता है भरी। भृगु की लता है कान्ह उर के किनारे॥२५॥

बक्षस्थल-चिन्ह वर्णन


पावे कौन पार पार दोसत अपार जाको। ऐसे पारावार की सुता है बैसबारी की।
सदन सुधा को कलानिधि सो सुधार्यो बधु। सुखमा खवासी करे हाजिर हुस्यारी की।
ग्वाल कवि जे तो जग जोवे जोतिजाको जोर। जननी मनंद की गुरयानी है उज्यारी की।
ऐसी रमारानी महारानी ठकुरानी ठोक। स्याम उर चिन्ह ह्र विराजे दुति न्यारी की॥२६॥

वनमा वर्णन


फूले फूल फूल तिन्हे फूल फूल लोने तोड़। रंग रंग की सुरंगत निहारी है।
सूत सूत रेसम रंगीन में रसाइन सों। गहकि गहकि गूंधी गूंघ को नियारी है।
ग्वाल कवि सौरभ समुद्र तें निकारी मनो। ललित लुनाई कोमलाई लहराई है।
बानिक विशाल वारों मोतिन की भाल जापें। ऐसी वनमाल नंदलाल उरषारी है॥२७॥

कर वर्णन


संपति सुजस सुत आयु औ पराक्रम के। लक्षन विलक्षन परे है रेखजाल के।
गुर गिरिराज धारि लेवे के अधार पाछे। मानसुरराज के न सैयाकंस भाल के।
ग्वाल कवि अज की सहायक खैया मूर। भोजन करैया सुख दैया गोपग्वाल के।
कंज है न कोमल गुलाब में न गुन ऐसें। जैसे जुग पानि है सुजान श्री गुपाल के॥२८॥

कवित्त


होत ही प्रभात प्रात मठा को मथत जब। मचलि मथानि गहि माखन चख्यो करो।
सांकरी गली में रोकि रोकि ब्रजबालन के। कुचको परस रस हेतहु लख्यो करो।
ग्वाल कवि तंदुल सुदामा में चवाये जाते। तीन लोक बकसि सुभाव ही लख्यो करो।
वेई हाथ आपने सुनो हो ब्रजनाथ नाथ। जानिके अनाथ मेरे माथ पें रख्यो करो॥२९॥

लकुट वर्णन


काढी काप तरु में तें सूधी मजबूत देखि। चाही विश्व कर में खराद खुसखासा है।
चापी कर तारन के जाल करि रंगत पें। चिंतामनि जड़ित वृन्दावन को वासा है।
ग्वाल कवि नंद के लडाइते कुंवर जू को। लकुट लड़ेतो ताकी ताक्यो में तमासा है।
मानो श्री सनेह को समर एक चोबदार। ताके पानि मंजुल में अद्भुत आसा है॥३०॥

बाँसुरी वर्णन


कैंधो चर अचर वसीकर करन वारो। मंत्र लिखि जंत्र सिद्धि कियो तीरथन में।
कैंधो छहराग और रागिनी सुतीसन के। वासको सदन रंग्यो सात हू स्वरन में।
ग्वाल कवि कैधों शिव सनक समाधान को भेदन करैया सरशोच देख्यो मन में।
कैंधो सुधा नद के प्रवाह को वहन हारो। बेनु श्री बिहारी को बजत वृन्दावन में।३१

भुज वर्णन


कैधों भल विमल कमल जुग जोइयत। सुन्दर है नाल अति सुखमा समाज की।
कैधों ब्रजबालन के गोरे गरे डारिबैंकों। मोहनी की फांस द्वै मदन गढ़राज की।
ग्वाल कवि कैधों भवसागर उतारिबे की। वल्ली है बुलंद बिधि भक्तन के काज की।
कैधों चार चाकते भवाय के उतारी भली। भावती भुजा है महाराज व्रजराज की॥३२॥

कवित


कैधों ब्रह्मांड के अरबंडल पराक्रम की। वासनी अनोखी ये भरी है सुभ काज की।
कैधों बेस विदित विशाल है तमाल तेज। तातें रही लतिका लटिकि लोने साज की।
ग्वाल कवि कैधों दीन दुःखन के दंडिबे को। दंड है अभे के सींवा सुखमा दराज की।
कैधों चार चाकते भवाय के उतारी भली। भावती भुजा है महाराज ब्रजराज की॥३३॥

कंठ वर्णन


वाकी धुनि में तें एक धुनि हो प्रतीत होत। ताहू में न प्रीत बहु सुने उलहत है।
याको धुनि सुनी मुनि मेरु के प्रवासी मोहे। बरन बरन मृदु माधुरी लहत है।
ग्वाल कवि वापें कोऊ भूषनन जेब देत। यापे भले भूषन को जेब उमगत है।
कारन करन कान्ह करुना निधानजू को। कंठ कमनीय कंबु कुल तें कहत है॥३४॥

कवित्त


परा पस्ययंती मध्यमाते मिली मौज़ भरी। वैखरी विचित्रित अधार वेद चारि को।
प्रतिभा प्रकाश परिपूरन करनहार। शीशधर दोऊ को मध्यस्त हितभारी को।
ग्वाल कवि मधुर सुधाहूँ ते सरस सुर। ताकी करें चाह सुर नाग नर नारी को।
भूषित करत निज भूषन कों भूषित है। पूषित प्रभान गोल ग्रीव गिरधारी को॥३५॥

कंठ भूषन वर्णन


कारन करन कुल कलस कलानिधि को। नंद को कुंवर कान्ह करना को कंद है।
ताके ग्रीव गोप ओप गहनो जग्यो है जोर। जड़ित बड़ाव जात रूप में बुलंद है।
ग्वाल कवि हीरन की पाँखुरी पहुंषा चारु। ताके बीच लागयो एक नीलम अमंद है।
मानो स्याम कंबु पाय पूजि के चढ़ायो काम। पुण्डरीक तापें आइ बैठ्यो अलिनंद है॥३६॥

पीठ–बोटी वर्णन


खेले खोरि साँकरी में बौकरी चितोन चारु। ताकरी पे काँकरी चलाह छवि छाये है।
फूलन के फौंदना फिरावत है फूल-फूल। उलमि उलमि फांद फांदत सुहाये है।
ग्वाल कवि सावरे सुजान जू की पीठि पर। हेम शबिया के झुण्ड चोटी में लगाये है।
मानो नीलमनि की शिला पें रविजा की धार। तापें मदनेश फूल चम्पा के चढ़ाये है॥३७॥

चितुक वर्णन


कैधों स्याम मनि की बनाई है विरंचि बेस। गिदुक खिलौना कामदेव सुखदानि को।
कैधों श्री किशोरी के सनेह नभमारग में। धायेब को गुटका असित अखरानि को।
ग्वाल कवि कैधों एक विकसित इंदोवर। ताके तरे शालिग्राम प्रगट कलानिको।
कैधों चारु चमक चमकत चहुँदिसतें। चेन को चबूतरा चिबुक चक्र
पानिकों॥३८॥

अधर वर्णन


कोहर से बिंब से कहें तों आदि पीरे हरे। पकि पकि पाछे तें सुरंग रंग धारो है।
विद्रुम से वरने तो जल के परस सेत। बन्धु जीव कहे तो संकट करारो है।
ग्वाल कवि वे तो है अनित्य में अरुन नित्य। सुधा तें सरस रस तामे आनि ढारो है।
यातें महराज बजराज सिरताज आज। अधर तिहारो सो तिहारो ही निहारो है॥३९॥

कवित्त


प्रीत परिपूरन पवर्ग तें पियूख भरे। पतन करैया पोर विरहा झरक की।
सुन्दर सरस अति रवनो कपोलन की। ताप हुनि करे सीरे ठण्ड ज्यों बरफ की।
ग्वाल कवि रावरो अधर मन मोहनजू। सुखमा बढ़ाये बन्धु सधर तरफ की।
मानह लखारी रामदेव जू के लिखवे को। धरी स्याम कानद पे सरप सिंगरफ की॥४०॥

दशन वर्णन


कैधों पंचबान बाजवान ने बनाई बेस। कुन्द कलिकान की अवलि सरसात है।
कैधों मुख चार चारु जोहरी बिचार करि। होरे के कनीन की बनाई पूर पांत है।
ग्वाल कवि कैघों तके तारागन तेज वारे। तिनको कतारे भांत भांत ही सुहात है।
कैधों दीह दमक दमकत दिसान दौरि। दसन दमोदर के हाँस में दिखात है॥४१॥

कवित्त


कैधों पके दाड़िम के बीज परिपूरन है। परम पवित्र प्रभापुञ्ज लमकत है।
कैधों भूमि सुत के अनेक जारे तेजवारे। बाँधिके कतारें झलाझल झमकत है।
ग्वाल कवि कैधों पंचवान जौहरी की जोर। ललित ललाई लिये मनि चमकत है।
कैधों वृषभानु की लड़ैती प्रान प्रीतम के। पान पीक पाजे पे दसन दमकत है॥४२॥

कवित्त


कैधों ओज अद्भूत अनेक अंग धारिकरि। आभा आनि बैठी कहो कौन पें नखी परें।
कैधों बेस बीजुरी की कौंधन कलासी होत। ऐसे यह मेघन की मेघ पें रखी परें।
ग्वाल कवि कैधों शर्द राका के कलानिधि की। कौमुदी हतो सोना चकोर चखी परें।
कैधों स्याम सुन्दर सुजान की हंसन माहि। दसन अनूपन की लसन लखी परे॥४३॥

रसना वर्णन


कैधों बट पल्लव परम परमाते पूर। तामें मुकताहल की भालदुति न्यारी की।
कैधों कोकनद को अमल दल भल एक। तापें चेंहू कोर कली कुन्द उजियारी की।
ग्वाल कवि कैधों बाक बानी के विराजिबे को। आसन अनूपकोर होरन हजारी की।
कैधों दशनावलि में रसना रसीली अति। राजे रमनीय ऐसी रसिक बिहारी की॥४४॥

कवित्त


वह तो असित रूप लसितन नेको ताको। यह तो ललित छबि सहित दिखाय है।
पाहन कठोर वह कोमल अमल यह। वह तो अचल यह चलन सुभाय है।
ग्वाल कवि वातें जातरूप की जंचाई होत। याते षटरस के सवाद जाने जाय है।
नंद महाराज के सपूत ब्रजराज जू की। रसना कसौटी पर ये गुन सिवाय है।४५।

मुख सुवास वर्णन


पारिजात जातहू न नरगिस छात हू न। चंपक फुलात हूँ न सरसिज ताब में।
माधवी न मालती में, जूही में न जोयत में। केतको न केवड़ा की लपट सिताब में।
ग्वाल कवि ललित लवंग में न बेलन में। चंदन कपूर में न केसर हिताब में।
सेवती गुलाब में न, अतर अदाव में न। जैसी है सुवास कान्ह मुख-महताब में॥४६॥

हास्य वर्णन


कैधों श्री महीप मदनेश जू को एक सर। नील उत्तपल जाको विमल विकास है।
कैधों नंद जसुधा की जोद चहुँ कोर माँहि। भरिबे को विविध विनोद को विलास है
ग्वाल कवि कैधों पीन पंगत प्रवीनन की। तामें प्रेम पूरिबे को परम प्रकास है।
कैधों ब्रजनाथ नाथ श्रीबिहारी लालजू को। विदित विचित्र होत मंद मंद हास है॥४७॥

कवित्त


कैधों शोक शंका गास क्रोध औ उदासी आरि। ताके मारिबे को मंजु कारन बुलंद है।
कैधों चित्त चूर को करन हार चिंता ताहि। तुरत उचाटिबे को इलम अमंद है।
ग्वाल कवि कैधों मात जसुदा औ नंदजू के। मन करखन को सघन फांस फंद है।
कैधों बनितान के वसीकरन करिबे कों। बाँके श्री बिहारी जू को हास मंद मंद है॥४८॥

कवित्त


मासा है न एको जाके चिंता चहुँ ओरन में। नंद श्रीजसोमति के दिल को दिलासा है।
लासा है सनेह कोन छूटे चेप चपकन। त्रास तूल तुंगन को करत निरासा है।
रासा है रतन रस रंगन को ग्वाल कवि। रिस सी बटेर के विनासिबे को वासा है।
वासा है विनोद को मवासा है सुगंधन को। हाँसा है गुविंद को त्रिलोक को तमासा है॥४९॥

नासिका वर्णन


केते कवि कीरसी कहत कमनीय[] याकों। केते कहे छवि तिल फूल के वदन की।
दोऊ में न कोऊ तूल एक वंक सूल सम। दूजी में न गंध है मलिंद मरदन की।
ग्वाल कवि यह तो सुढार औ सुगंध कोस। को राके बखान शोभ शोभा के सदन की।
नीलकंज कलिकासी नित ही निहारीयत। नासिका न मूंदनी की नंद के नंदन की॥५०॥

कपोल वर्णन


कैधों नीलमनि के सुमंडल बनाय राखे। कैधों दल दीखे नील कमल विशाल के।
कैधों गल गेहूँआ[] धरे है लोल रेसम के कैधों जग दृष्टि थिरा चौंतरे सुढाल के।
ग्वालकवि कैधों प्रेम हेम की कसोटी सोहे। कैधों न्यारे ब न्यारे है कि नील ताल के।
कैधों स्याम धन के अदोल है अबोल ठौना। कैधों अनमोल है कपोल नंदलाल के॥५१॥

कर्ण (कान) वर्णन


कैचों श्री महीप मन जू के चोबदार चारु। शब्द शिरदारन की अर्ज के करन है।
कैधों शंबरारि के सरोज नील सरसाये। तामे गज पुञ्जन को पहुंचे करन है।
ग्वाल कवि केधों तपसीन की गुफा के द्वार। मंजु महारावदार कलित करन है।
कैधों कल कुण्डल की कांति के करन वारे। नंद के दुलारे कान्ह रावरे करन है॥५२॥

कर्ण भूवन वर्णन


शेष सनकादिक महेस व्यास देव जू लौं। गावत अनंत गुन ग्यान के पसारे में।
विधि के विचार हू में माया है अपार जाकी। कोस के सम्हार चढ़ि मोह अनियारे।
ग्वाल कवि कुण्डल जड़ाऊ जोर कानन में। जेवदे रहे हैं जसुमति के दुलारे में।
मानो नील कंज को कलीन में विराजे आय। साजे जुग रूप सूर सैल के अखारे पें॥५३॥

नेत्र वर्णन


मीन मृग खंजन खिस्यान भरे मैन बान। अधिक गिलान भरे कंज फल ताल के।
राधिका छबीली की छहर छवि छाक भरे। छैलताके छोर भरे भरे छबि जाल के।
ग्वाल कवि आन भरे सान भरे तान भरे। कछु अलसान भरे भरेमान भाल के।
लाज भरे लाग भरे लोभ भरे शोभ भरे। लाली भरे लाड़ भरे लोचन हैं लाल के॥५४॥

भृकुटी वर्णन


कैधों रमनीय रूप ऊपर वकारी वेस। कीनी महाराज कामदेव बलवंत की।
कैधों परिपूरन पियूष की पियालिन पें। बैठे अहिनंद करि वक्रताइ कंत की।
ग्वाल कवि कैधों द्रग द्वारे है बहारदार। तोप महराव स्याम मीनातें लसंत की।
कैधों सताके है नतेरा है होत जोहे रासी। सोहे मन मोहे वक्र भौहें भगवंत की॥५५॥

भाल वर्णन


पाटी नीलमनि की सी विधि ने बनाई बेस। ता इरिवरत्व रेख जगमग्यो जाल है।
अंगराज चंदन की खौरि को अधार अंग। सौरभ अपार ही को तखत विशाल है।
ग्वाल कवि आकृति अनूपम लखाई परे। मिलत कछूक शशि अरघ रसाल है।
भूरि भाल भाल को सु भूपति भलाई भर्यो। भान को भवन भगवंत जू को भाल है॥५६॥

भाल खौरि वर्णन


कैधों चारु चामीकर तारतें खचित एक। पाटी नीलमनि की बनाई विधि नाग पर।
कैधों बेल अमर अग्नि रही जालवारी। इन्दीवर दलभज मृदुता के बाग पर।
ग्वाल कवि कैधों वृषभान नंदनी को दुति। लपटि रही है लखि स्यामता मदाग पर।
कैंधों अंग राग को रही है जाग खौरी खासी। रसिक गुविंदजू तिहारे भाल भाग पर॥५७॥

मुख मंडल वर्णन


जाके आगे आइबे कों मुकुर मुकुर जाय। भयो बेउकर पातें सह्यो दारा दुःख को।
रूप हू को रूप के तो रूपे जो रति को भरि। मंडल अनूप है अनंत अति सुख को।
ग्वाल कवि मंजुल मवासो मंत्र मोहिवे को। जंत्र जग जोहिये कों मालिक वपुष को।
कंजन की आकर कहा करि सकेगी सरि चाकर सो चन्द ब्रजचन्द तेरे मुख को॥५८॥

केश वर्णन


कैधों रूप तात पें सिवाल जाल जोइयत। आसित विशाल कामदेव जू के प्यारे है।
कैघों मखतूल नील तारन के पुञ्ज पूरे। कोमल अमल नील कंजहूँ ते भारे है।
ग्वाल कवि कैधों चार चौर गुज लख वारे। भौर से भुंकातें अपूरव निहारे है।
कैधों शोम सौरभ सरवारे नेह डारे वारे। प्यारे श्री ब्रजेश जू के केश घुंघराले है॥५९॥

मोर मुकुट वर्णन


माथे मनमोहन के मुकुट विराजे गोल। जामें गति लोलजा लगी कनीन कनिकी।
बीच बोच हारा के जड़ाऊ की तमक जैसी। तैसी चार चमक चमके लाल मनिकी।
ग्वाल कवि तापे मोर पंख की गारद कोर। जोर छवि हरित असित झलकनिकी।
मानो शशि सूर दोउ करत सलाह बैठे। ताते तहाँ चारो ओर चोकी बुध शनि की॥६०॥

गति वर्णन


माथे पे मुकुट मोर पंख को विराजे गोल। लोल कल कुण्डल लसनि मनि लाल की।
पौन के परस पीत पट उनि जेसी। तैसी झेत हिलन हिये पे बनमाल की।
ग्वाल कवि ग्वालन के संग में गऊन पाछे। गो रज गरक आछे अलक रसाल की।
ईसन की दावनि सतावनि गयंद वृंद। मंद मंद आवति अनूप नंदलाल की॥६१॥

सवैया


गल बांहि सखान के डारि गरे करें मीठि महा बतरावनी री।
अलके चिकनी झलकें रजमें ललके सुरभीनकी धावनि री।
कवि ग्वाल फिरावन फूल छरी फिर फांदनि में सतरावनि री।
उर में अब आनि अडी अलसी अलबेली गुंविंद की आवनि री॥६२॥

पोतपट वर्णन


कैधों पुखराज पुञ्ज सोहे शैल नीलम के। केषों चपला चमके स्याम घन पें।
कैधों रस अद्भुत लपेट्यो रसराज जूसों। कैधों फूल चंपक धरे तमाल घन में।
ग्वाल कवि राजे सुर गुढ ले मदन कैधों। कैधों हेम वर्ष लाजवर्त की शिलन में
कैधों दुति राधे की सरकि परी स्याम तामें। कैंधों पीतपट हे सलोने स्याम तन में॥६३॥

संपूर्ण मूर्ति वर्णन


पद कोकनद ओ कुलफ कंज कोश में है। जंध कदली सी लंक केहरी विसाल सो।
उदर सुपान नाभि कूप सी गंभीर गुरु। उर नवनीत पानि पल्लव रसाल सो।
ग्वाल कवि भुज लोल लतिका लहर दार। कंठ कल कंबु मुख नीलकंठ जाल सो।
केश स्याम चौर गौन गज सो सुगंध वारो। मुकुट शशी सो सब तन है तमाल सो॥६४॥

पंथ पूरनार्थ कवि वचन


सेवत नरन आश भरननि वित्त नित्त। सेवे कर्मो न जाहि जो रची सभा सुरेश की।
तिमिर अग्यान को विनास्यो चहे दीपन तें। ध्यावे क्यों न जाहि जाते दुति है दिनेश की।
ग्वाल कवि जाके गुन गन को कहे सो कोन। मौन वृत्ति धारि व्यास हारी मति रोश की।
त्यागी जग विषमन शिख शिख शिखभरी। लिख दिख नखशिख छवि ऋषिकेश की॥६५॥

  1. पुरहुत
  2. रोमराजिं
  3. मूलपाठ––कमनिय,
  4. गेहुँआ‌।