बिल्लेसुर बकरिहा  (1941) 
द्वारा सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

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(१२)

बिल्लेसुर को उस रात नींद न आई। वही रूप देखते रहे। बहुत गोरी है सोचते रामरतन की स्त्री की याद आई। सोलह साल की है सोचा तो रामचरन सुकुल की बिटिया की सूरत सामने आ गई। बड़ी-बड़ी आँखें होंगी, जैसी पुखराजबाई की लड़की हसीना की हैं। इस घर में आयेगी तो घर में उजाला छाया रहेगा। जिस कोठरी में बच्चे रक्खे जाते हैं, उसमें उसका सामान रहेगा। बच्चे दहलीज में रहेंगे। एक छप्पर डाल लेंगे, सब ऋतुओं के लिए आराम रहेगा।

एक दफ़ा भी बिल्लेसुर ने नहीं सोचा कि बकरी की लेंड़ियों की बदबू से ऐसी औरत एक दिन भी उस मकान में रह सकेगी।

सबेरे उठकर पड़ोस के एक गाँव में बज़ाज़ के यहाँ गये और कुर्त्ते का कपड़ा लिया, साफ़ा ख़रीदा गुलाबी रंग का, धोती एक ली। दरजी को कुर्ते की नाप दी। उसी दिन बना देने के लिए कहा। गाँव के चमार से जूते का जोड़ा ख़रीदा।

इधर यह सब कर रहे थे, उधर ताड़े रहे कि त्रिलोचन कहाँ हैं। तीसरे दिन त्रिलोचन घर से निकले। पहनावा और हाथ का डंडा देखकर बिल्लेसुर समझ गये कि जा रहा है, बातचीत करके कल इन्हें ले जायगा। चलने की दिशा देख कर अपने साधारण पहनावे से दूर-दूर रहकर, पीछा किया। त्रिलोचन बाबू के पुरवा के सीधे कच्ची सड़क छोड़कर मुड़े। बिल्लेसुर दूर पुरवा के किनारे खड़े होकर देखने लगे कि त्रिलोचन दूसरे गाँव के लिये पुरवा से बाहर निकलते न दिखे, तब बिल्लेसुर को विश्वास हो गया कि यहीं है। वे भी गाँव के भीतर गये। निकास पर एक आदमी मिला। बिल्ले[ ४१ ]सुर ने पूछा, "यहाँ श्यामपुर के त्रिलोचन आये हैं?" आदमी ने कहा, "हाँ, वहाँ रामनारायण के यहाँ बैठा है, ठग कहीं का। दोनों एक से, किसी का गला नाप रहे होंगे।"

बिल्लेसुर का कलेजा धक से हुआ। पूछा, "रामनारायण के लड़की-लड़के कुछ है?"

आदमी चौंककर बिल्लेसुर को देखने लगा, "तुम कहाँ रहते हो? तुम रामनागयण को नहीं जानते? उसके साले के लड़की लड़के! पूछो, ब्याह भी हुआ है?"

आदमी इतना कहकर आगे बढ़ा। बिल्लेसुर को बड़ी कायली हुई। वे उसी तरफ़ मन्नी की ससुराल को चले। मन्नी की सास से मिले। भली-बुरी सुख-दुख की बातें हुईं। बिल्लेसुर ने ढाढस बँधाया। कहा, ख़र्चा न हो तो आकर ले जाया करो। कहकर एक रुपया हाथ पर रख दिया। मन्नी अच्छी तरह हैं, कहा। उनकी लड़की की अच्छी सेवा होती है, मन्नी उसकी बड़ी देख-रेख रखते हैं। अब वह बहुत बड़ी हो गई है।

मन्नी की सास बहुत प्रसन्न हुईं। रुपया उठा लिया और पूछा, "घर बसा या नहीं। बिल्लेसुर ने जबाव दिया कि घर माँ-बाप के बसाये बसता है। मन्नी की सास ने कहा कि वे दस-पन्द्रह दिन में आयेंगी तब ब्याह की पक्की बातचीत करेंगी। बिल्लेसुर पैर छूकर विदा हुए।