प्रेमसागर
लल्लूलाल जी, संपादक ब्रजरत्नदास

वाराणसी: काशी नागरी प्रचारिणी सभा, पृष्ठ १७ से – २० तक

 

तीसरा अध्याय

फेर शुकदेवजी राजा परीक्षित से कहने लगे कि राजा कैसे गर्भ में आये हरी, और ब्रह्मादिक ने गर्भस्तुति करी औ देवी जिस भाँति बलदेवजी को गोकुल ले गई, तिसी रीति से कथा कहता हूँ। एक दिन राजा कंस अपनी सभा में आय बैठा, और जितने दैत्य उसके थे विनको बुलाकर कहा―सुनो, सब देवता पृथ्वी में जन्म ले आये हैं, तिन्होमें कृष्ण भी औतार लेगा। यह भेद मुझसे नारद मुनि समझाय के कह गये हैं, इससे अब उचित यही है कि तुम जाकर सब यदुबंसियों का ऐसा नाश करो जो एक भी जीता न बचे।

यह आज्ञा पा सबके सब दंडवत कर चले, नगर में आ ढूँढ़ ढूँढ़ पकड़ पकड़ लगे बाँधने, खाते पीते, खड़े बैठे, सोते जागते, चलते फिरते, जिसे पाया तिसे न छोड़ा, घेर के एक ठौर लाये और जला जला डबो डबो पटक पटक दुख दे दे सबको मार डाला। इसी रीति से छोटे बड़े भयावने भाँति भाँति के भेष बनाये, नागर नगर गाँव गाँव गली गली घर घर खोज खोज लगे मारने और यदुबंसी दुख पाय पाय देस छोड़ छोड़ जी ले ले भागने।

विसी समै बसुदेव की जो और स्त्रियाँ थीं सो भी रोहनी समेत मथुरा से गोकुल में आईं, जहाँ बसुदेवजी के परम मित्र नंद जी रहते थे। तिन्होंने अति हित से आसा भरोसा दे रक्खा। वे आनंद से रहने लगीं। अब कंस देवताओं को यों सताने औ अति पाप करने लगा तब विष्णु ने अपनी आँखो से एक माया उपजाई, सो हाथ बाँध सन्मुख आई। विससे कहा―तू अभी संसार में जा औतार ले मथुरापुरी के बीच, जहाँ दुष्ट कंस मेरे भक्तों को दुख देता है, और कश्यप अदिति जो बसुदेव देवकी हो ब्रज में गये हैं तिनको मूँद रक्खा है। छः बालक तो विनके कंस ने मार डाले अब सातवें गर्भ में लक्ष्मनजी है, उनको देवकी की कोख से निकाल गोकुल में ले जाकर इस रीति से रोहनी के पेट में रख दीजो कि कोई दुष्ट न जाने, और सब वहाँ के लोग तेरा जस बखानें।

इस भाँति माया को समझा श्रीनारायन बोले कि तू तो पहले जाकर यह काज करके नंद के घर में जन्म ले, पीछे बसुदेव के यहाँ औतार ले मैं भी नंद के घर आता हूँ। इतना सुनते ही माया झट मथुरा में आई और मोहनी का रूप बन बसुदेव के गेह में बैठ गई।

जो छिपाय गर्भ हर लिया, जाय रोहनी को सो दिया।
जाने सब पहला आधान, भये रोहनी के भगवान॥

इस रीति से सावन सुदी चौदस बुधवार को बलदेवजी ने गोकुल में जन्म लिया और माया ने बसुदेव देवकी को जो सपना दिया कि मैंने तुम्हारा पुत्र गर्भ से ले जाय रोहनी को दिया है सो किसी बात की चिंता मत कीजो। सुनते ही बसुदेव देवकी जाग पड़े और आपस में कहने लगे कि यह तो भगवान ने भला किया, पर कंस को इसी समै जताया चाहिये नहीं तो क्या जानिये पीछे क्या दुख दे। यों सोच समझ रखवालों से बुझाकर कहा, विन्होंने कंस को जा सुनाया कि महाराज देवकी का गर्भ अधूरा गया। बालक कुछी न पूरा भया। सुनतेही कंस घबराकर बोला कि तुम अब की बेर चौकसी करियो क्योंकि मुझे आठवेंई गर्भ का डर है जो आकाशबानी कह गई है।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले―हे राजा, बलदेवजी तो यों प्रगटे और जब श्रीकृष्ण देवकी के गर्भ में आए, तभी माया ने जा नंद की नारि जसोदा के पेट में बास लिया। दोनों आधान से थीं कि एक पर्व में देवकी जमुना नहाने गई। वहाँ संयोग से जसोदा भी आन मिली तो आपस में दुख की चरचा चली। निदान जसोदा ने देवकी को वचन दे कहा कि तेरा बालक मै रक्खूँगी अपना तुझे दूँगी। ऐसे वचन दे यह अपने घर आई औ वह अपने। आगे जब कंस ने जाना कि देवकी को आठवाँ गर्भ रहा तब जा बसुदेव का घर घेरा। चारों ओर दैत्यों की चौकी बैठा दी और बसुदेव को बुलाकर कहा कि अब तुम मुझसे कपट मत कीजो, अपना लड़का ला दीजो। तब मैंने तुम्हारा ही कहना मान लिया था।

ऐसे कह बसुदेव देवकी को बेड़ी औ हथकड़ी पहिराय, एक कोठे में मूँदकर ताले पर ताले दे निज मंदिर में आ मारे डर के उपास कर सो रहा, फिर भोर होतेही वहीं गया जहाँ बसुदेव देवकी थे। गर्भ का प्रकाश देख कहने लगा कि इसी यमगुफा में मेरा काल है, मार तो डालूँ, पर अपजस से डरता हूँ, क्योंकि अति बलवान हो स्त्री को हनना जोग नहीं, भला इसके पुत्र ही को मारूँगा। यों कह बाहर आ, गज, सिंह, स्वान और अपने बड़े बड़े जोधा वहाँ चौकी को रक्खे और आप भी नित्त चौकसी कर आवे, पर एक पल भी कल न पावे, जहाँ देखे तहाँ आठ पहर चौंसठ घड़ी कृष्ण रूप काल ही दृष्टि आवे। तिसके भय से भावित हो रात दिन चिंता में गँवावे।

इधर कंस की तो यह दसा थी उधर बसुदेव और देवकी पूरे दिनों महा कष्ट में श्रीकृष्ण ही को मनाते थे कि इस बीच भगवान ने आ विन्हें स्वप्न दिया और इतना कह बिनके मन का सोच दूर किया जो हम बेग ही जन्म ले तुम्हारी चिंता मेटते हैं, तुम अब मत पछिताओ। यह सुन बसुदेव देवकी जाग पड़े तो इतने में ब्रह्मा, रुद्र, इंद्रादिक देवता अपने बिमान अधर में छोड़, अलख रूप बन बसुदेव के गेह में आए, औ हाथ जोड़ जोड़ बेद गाय गाय गर्भ की स्तुति करने लगे। तिस समै विनको तो किसी ने न देखा पर वेद की धुनि सबने सुनी। यह अचरज देख सब रखवाले अचंभे रहे और बसुदेव देवकी को निहचै हुआ कि भगवान बेगही हमारी पीर हरैंगे।