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सातवां अध्याय
अपराध

हत्या, व्यभिचार और दूसरे कार्य जिन का जिक्र हमने पिछले अध्यायों में किया है अपराध ही हैं। परन्तु इस अध्याय में हम इन से भिन्न अपराधों की चर्चा किया चाहते हैं कि जो धर्म के नाम पर प्रायः होते रहते हैं।

इन में सब से प्रथम हम घरों में आग लगाने की बात कहेंगे। प्रायः ज्योतिषी और स्याने नामधारी भण्ड पाखण्डी लोग स्त्रियों को फुसला कर यह अपराध कराते हैं। स्त्रियों को सन्तान न होने पर बड़ी चिन्ता हो जाती है और प्रायः देखा गया है इस के लिये वे उचित अनुचित सभी उपायों को काम में लाते रहे हैं। इस प्रकार के अपराधों की भित्ति भी धार्मिक अन्धविश्वास ही है। ज़िला मुज़फ्फरनगर और सहारनपुर के इलाकों में प्रायः स्याने लोग यही नुसखा बताया करते हैं और बहुधा इन ज़िलों के दहातों में ऐसे काण्ड हुआ करते हैं। [ १०७ ]

सहारनपुर के ज़िले के एक गाँव में एक स्त्री के बच्चा नहीं होता था। स्त्री अग्रवाल वैश्य जाति की थी और सम्पन्न घर की थी। उसने स्याने को बुलाया, उसने हिसाब किताब देख भाल कर कहा किसी के छप्पर में आग लगा दे तो देवता प्रसन्न होकर पुत्र हो जायगा। उसने एक दिन अवसर पाकर दुपहरी में एक ग़रीब के झोंपड़े में आग लगा दी जिस ने आधा गाँव भस्म कर दिया। कई पशु और आदमी भी जल गये।

कुछ दिन पूर्व बुलन्दशहर को कोर्ट में एक नीच जाति की स्त्री ऐसे ही अपराध में गिरफ्तार की गई थी उसने एक स्याने के कहने से छः घरों में निरन्तर आग लगाई अन्त में पकड़ी गई और उसे दण्ड दिया गया।

एक इसी प्रकार की आग की घटना अनूपशहर के पास हमने स्वयं देखी थी कि जिस से सारा गाँव भस्म हो गया था उसमें ५ गायें, २ बैल, ६ पशुओं के बच्चे, २ स्त्रियाँ तथा १ बालक जल मरा था। अन्य नुकसान की गणना पृथक्।

बच्चों की चुपचाप हत्यायें भी प्रायः ऐसे मामलों में होती रहती हैं।

ज़िला मुज़फ्फरनगर के एक कस्बे में कुछ दिन पूर्व एक रोमाञ्चकारी घटना हो गई थी। वहाँ के एक सम्पन्न प्रतिष्ठित जैन परिवार में सन्तान नहीं होती थी। किसी स्याने ने स्त्री को बता दिया कि यदि वह छः खूनों में स्नान करे तो उसे पुत्र होगा। वह स्त्री और उसका पति श्वसुर आदि पूरा कुटुम्ब इस भयानक [ १०८ ]कार्य के लिये तैयार हो गया। उनका एक नौकर कम्बो जाति का था उसका छः वर्ष का एक पुत्र था। वह पाँच सौ रुपये लेकर अपने पुत्र को स्वयं मारने को तैयार हो गया। नियत समय पर घर के सब व्यक्ति एकत्रित हुए। लड़के के ज़ालिम बाप ने साग काटने के दरात से उसकी कर्दन काटना शुरू किया। और उस का खून निकाला गया। इसके बाद वह पिशाच उसकी लाश को जङ्गल में दफना आया। परन्तु इस भयानक काम से उसे जाड़ा बुख़ार जैसा चढ़ आया और वह थर थर कांपता बालक को दफना कर एक डाक्टर साहेब के पास गया और दवा मांगी। डाक्टर ने उसकी चेष्टाओं से सन्देह किया कि इस ने कोई काण्ड किया। उसने प्रथम तो कहा कि मेरा लड़का मर गया फिर सब बातें बयान कर दी। पुलिस में ख़बर की गई और लड़के का बाप, स्त्री, उसका पति आदि कई आदमियों का चालान हुआ। स्याने को भी पुलिस ने पकड़ा था। पर उसे इधर उधर के लोग सिफारिश करके छुड़ा लाये और वह नीच इस केस से बिलकुल ही बच गया। सेशन में केस चला। वहाँ से दो को फाँसी एक को काला पानी की सज़ा हुई। अपील में सब छूट गये सिर्फ उस बालक के पिशाच पिता को कालापानी हुआ।

ज़िले मेरठ में एक स्त्री अदालत में इस अपराध में लाई गई थी कि उसने एक ३ साल की बच्ची को ज़िन्दा गाड़ दिया था। उसे ज्योतिषी ने यह बता दिया था कि ऐसा करने से उसके बच्चे जो हो हो कर मर जाते थे अब न मरेंगे। [ १०९ ]

कुछ पेशेवर ठग आमतौर से साधुओं का वेश धरे घूमा करते हैं। जो धर्म पाखण्ड के नाम पर बड़ी बड़ी कारवाइयाँ कर गुजरते हैं।

एक क़स्बे मे एक सर्राफ़ के पास दो साधू आए। सर्राफ साधुओं का बड़ा भक्त था। साधुओं की उसने ख़ूब सेवा सुश्रूषा की, साधुओं ने कहा—बच्चा हम तुझ पर महाप्रसन्न हैं। तू जितना हो सके सोना लेआ हम दूना बना देगे। सर्राफ ने कहा—महाराज, पहिले चमत्कार दिखाइये। उन्होंने एक तोला सोना लेकर आग में रख दिया। उसमे एक तोला तांबा रख दिया। सर्राफ तो उनकी सेवा चाकरी में लगा और साधुओं ने ताम्बे के स्थान पर चुपके से सफ़ाई से १ तोला सोना रख दिया। जब गलजाने पर निकाला तो दो तोला सोना था। लाला जी लोटन कबूतर हो गये और तुरन्त साठ तोले सोना साधुओं के सामने ला धरा। साधुओं ने बराबर तांबा मिला उसे आग में रख दिया। और सफाई से सोना निकाल लिया। इस के बाद निश्चिन्ताई से लाला से कहा—बच्चा, सुलफा और रबड़ी हमारे वास्ते लाओ। लाला इस काम मे लगे और साधु चुपचाप चम्पत हुए।

एक साधु महाराज हाथ से धातु नहीं छूते थे, परन्तु सोना बना दिया करते थे। उनके पास कोई भस्म थी उसे चुटकी भर कर तांबे पर डाला और तांबा सोना बना। एक बार एक सेठ जी चक्कर मे आ गये। महीनों सेवा को और अन्त मे साधु को प्रसन्न किया। उन्होंने वचन दिया हम तुझे सोना बना देंगे। [ ११० ]उन्होंने उसकी स्त्री के गहने मंगवा लिये और अवसर पा चलते हुए। अन्त मे पकड़े गये।

एक साधु ने एक हलवाई भक्त से एक चिलम तम्बाकू मांग कर उसी के सामने भर कर पिया। कुछ देर बैठ चिलम वहीं उलट कर चल दिये। हलवाई ने देखा राख में सोना चम चमा रहा है। दौड़े और दण्डवत प्रणाम कर बाबा को ढूंढ लाए। महीनों सेवा की—टाल दूल करते रहे अन्त में लाला का २००)रु॰ का माल हथिया कर चम्पत हुए।

दो तीन साल पूर्व दिल्ली मे सब्जी मण्डी में एक वैश्य ब्यापारी ने दूसरी शादी की थी। परन्तु २।३ वर्ष बीतने पर भी उसके सन्तान नहीं हुई थी, उसे किसी मुसलमान स्याने ने बता दिया कि किसी बच्चे के खून से स्नान करले तो बच्चा होजायगा। उसने अपनी जिठानी के लड़के को मार डाला और घर मे ही उसे गाड़ दिया, पीछे बात खुल गई और मामला पुलिस में गया। स्त्री को सजा मिली।

सिकन्दराबाद में एक जैन स्त्री से बच्चे हो हो कर मर जाया करते थे। किसी स्याने ने कहा—तुझे मसान लग गया है, इस बार बच्चा हो जाय तो उसे ज़मीन में गाड़ देना, फिर सब बच्चे जिन्दा रहेंगे। उसने पैदा होते ही अपना बच्चा जमीन मे गाड़ दिया। दैवयोग से उसी समय एक कुम्हार वहाँ मिट्टी खोदने गया और बच्चा बरामद किया, मामला अदालत में गया और बड़ी दौड़ धूप से स्त्री रिहा कराई गई। [ १११ ]

अनूप शहर में एक स्त्री के सन्तान नहीं होती थी। किसी स्याने ने कहा कि किसी आदमी का खून चाट ले, उसने किसी पड़ौसी के बच्चे का हाथ काट खाया और खून पी गई। बहुत लोग इकट्ठे हुए, मगर मामला रफा दफा हो गया।

कुछ दिन पूर्व दिल्ली में एक भारी मामला होगया था, एक प्रसिद्ध वैद्यराज के पड़ोस में एक धनी लाला जी रहते थे। उनकी सुन्दरी स्त्री पर इनकी दृष्टि थी। वैद्य जी की स्त्री कुटनी का काम करती थी, वह दूसरी स्त्रियो को फँसा २ कर उनके पास ले आती थी। इस स्त्री को भी उसने फांसा। अतः वैद्य जी और इस स्त्री ने मिल कर सेठ जी को ठगने का षड्यन्त्र रचा। सेठ जी बीमार रहते थे। एक बार उन्हें देखने को वैद्य जी बुलाये गये। एक आदमी पहिले ही से ठीक कर लिया गया था—वह थोड़ी ही देर बाद वहां पहुंच गया। वैद्य जी ने अनजान की तरह पूंछा-तुम कौन हो; और क्या चाहते हो? उसने कहा महाराज, मैं बड़ा दुखी था—मेरा रोग किसी भांति आराम ही न होता था। अन्त में मैंने आत्मघात करने की सोची—और एक दिन बहुत सवेरे मैं उठ कर लालक़िले की फसील पर चढ़ गया, और चाहा कि कूद कर जान देदूँ, कि भैरों जी प्रकट हुऐ और कहा—ठहर, जान मत दे, यह औषध ले, इससे आधी खा, आराम हो जायगा। मैंने वह आधी दवा खाई और खाते ही अच्छा हो गया।

वैद्य जी ने चमत्कृत होकर कहा—वह आधी दवा कहां [ ११२ ]है? तब उसने वह दवा वैद्य जी को दी—उन्होंने वह गिरादी। इस पर उसने विगड़ कर कहा—वाह, यह आपने क्या किया? दवा—गिरा दी। तब वैद्यजी ने कहा, चिन्ता न करो, चलो—फिर भैरोंजी का आवाहन करे और औषध प्राप्त करें।

यह कह कर दोनो गये। लाला जी बड़े प्रभावित हुए। उनकी कुल्टा स्त्री ने उन पर और भी रंग चढ़ा दिया था। दूसरे दिन जब वैद्य जी फिर गये तो लाला ने बड़े उत्सुक होकर पूंछा—"कहो कल क्या देखा?"

उन्होंने कहा—भैरों ने साक्षात् दर्शन दिये, इस आदमी पर भैरों बाबा प्रसन्न हैं। और यह चाहे जिसको दर्शन करा सकता है।

लाला ने कहा—तब हमारा भी संकट काटना चाहिए। गरज उन दोनों पाखण्डियों ने लाला को उल्लू वना कर उस से १०।१२ हजार रु॰ झांसा। उनकी पत्नी इस काम में उनकी सहायक हुई। कई बार उन्होंने भैरों के दर्शन लाला जी को भी कराए। कुछ दिन व्यतीत होने पर भी जव लाला का रोग दूर न हुआ—उल्टा बढ़ता ही गया तो उन्होंने घबराकर कहा—अब क्या करना होगा। वैद्य जी ने अनुष्ठान के लिये ५०० रुपये और मांगे।

लाला के कोई सम्बन्धी आर्य समाजी थे। उन्हें इस बात फी कुछ सन्धि लग गई कि ये धूर्त लाला को ठग रहे हैं। उन्होंने पुलिस में इसकी इत्तला की—पुलिसने ५०० रु॰ के नोटों पर निशान करके उन्हें दिये कि जाफर वैद्य जी को दे दो। उन्होंने वैद्य जी को [ ११३ ]लाला के घर बुलाया और लाला को जल्द अच्छा करने का वचन ले कर वे नोट उन्हें दे दिये। वैद्य जी उन्हें ज़ेब में डाल ज्यों ही बाहर निकले कि पुलिस ने उन्हें धर लिया। मुकदमा चला। और वैद्य जी दिल्ली छोड़ ऐसे गायव हुए कि जैसे गधे के सिर से सींग। पुलिस देर तक उनका वारंट लिये फिरती रही।

बम्बई में एक सम्पन्न मारवाड़ी व्यक्ति एक स्त्री को मेरे पास लाया और कहा कि यह मेरी साली है। इसे बायगोले की बीमारी है। उस स्त्री ने बहुत कहने सुनने पर भी पेट नहीं देखने दिया, केवल नाड़ी देखकर ही दवा देने का अनुरोध करती रही। लाचार उसका बयान सुनकर ही औषधि व्यवस्था कर दी गई। कुछ दिन तक वह नित्य आता रहा और तेज़ से तेज़ दवा देने का अनुरोध करता गया। फिर वह एकाएक नहीं आया। दो तीन दिन बाद हमें मालूम हुआ कि वह पकड़ा गया है। उसी साली को गर्भ था। बच्चा पैदा होने पर उसके सिर में कील ठोककर उसे घड़े में रखकर गटर में डाल दिया। भंगी ने देखकर पुलिस में इत्तला की। पुलिस को देखते ही वे लोग घर से नासिक भाग गये। मार्ग में स्त्री को सन्निपात होगया। और वह पुलिस के सामने बयान देकर मर गई। वह व्यक्ति फौजदारी सुपुर्द हुआ।

बहुधा साधु लोग भले घर की बहू बेटियों को ले भागते हैं। आम तौर पर यह दोहा प्रसिद्ध है—

ना संता ब्याहन चढ़ें, ना सिर बांधें मौर।
करी कराई ले भगें, ये सन्तों के तौर॥

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एक साधु एक सद् गृहस्थ के यहाँ आता जाता था। घर के लोग उसकी बहुत आवभगत करते थे। घर में एक जवान कारी लड़की थी। एक जबान आवारागर्द उसका भाई था। इस भाई को सोना बनाने की विधि सिखाने का उसने झांसा दिया और इसे इस बात पर राज़ी कर लिया कि वह उस पापी के पास अपनी बहिन को फुसलाकर ले आवे। लड़के ने ऐसा ही किया। पीछे जब लड़की के व्याह की चर्चा उठी तो साधु ने कहा—यह लड़की हमारे साथ बिगड़ चुकी है, इसका ब्याह नहीं हो सकता। लोग बदनामी के डर से बहुत डरे, अन्त में भाई की सहायता से वह उसे लेकर भाग गया और अन्त में पकड़ा गया।

पशुओं से स्त्रियों का मैथुन करने की आज्ञा भी एक अद्भुत और भयानक धर्म की आज्ञा है। अश्वमेध यज्ञ में यजमान की स्त्री को घोड़े से मैथुन कराना पड़ता था, कहा जाता है कि एक राजा की रानी इस भयानक कर्म करने से मर गई थी। बहुधा साधु महात्माओं को इस प्रकार के कुकर्म करते देखा जाता है।

यहाँ हम विस्तार भय से अधिक न लिखकर इस विषय को समाप्त करते हैं।