तिलिस्माती मुँदरी
श्रीधर पाठक

इलाहाबाद: पंडित गिरिधर पाठक, पृष्ठ ३३ से – ३९ तक

 
अध्याय ५


दूसरे रोज़ सुबह को कंजरी उसे शहर के अंदर ले गई। तोता बदस्तूर उसके बाजू पर बैठा हुआ साथ गया। बहुत सी गलियों में गुज़रते हुए वह वहां पहुंचे जहां कि लौंडी-गुलामों का बाज़ार था। उस जगह बहुत से गुलाम एक बड़े बरामदे में ज़मीन पर बैठे हुए थे, और बीच में एक सफेद डाढ़ी वाला बुड्ढा एक कालीन पर बैठा हुआ हुक्का पी रहा था। सामने उसके हिसाब की किताबे यानी बही खाते और कलम दावात रक्खी हुई थीं। राजा की लड़की को कंजरी उसके पास ले गई और कान में उससे कुछ कहा। फिर लड़की को वह दालान के एक किनारे ले गई जहां कि बहुत सी लड़कियां, कोई गोरी और कोई काली, बैठी हुई थीं। उनके ऊपर एक तुंद-मिज़ाज बुढ़िया तैनात थी; वह राजा की लड़की के साथ एक तोता देख कर बहुत बड़बड़ाई, लेकिन कंजरी ने उससे कह दिया कि तोता और लड़की दोनों साथ बिकेंगे और कहा कि अगर लड़की न बिकी तो मैं शाम को आके उसको ले जाऊंगी और उसे बुढ़िया को सपुर्द कर आप चली गई।

उस बेचारी बच्ची को जब वह इस तरह पर गैरों के हाथ में छोड़ दी गई बहुत डर और रंज हुआ और ज़मीन के ऊपर दूसरे गुलाम बालकों के साथ ऐसी जगह बैठ गई जहां उसपर हर एक की नज़र न पड़े। तोते को उसने गोदी में बैठा के अपने कपड़े के अन्दर छिपा लिया इस डर से कि कोई उसे उससे ले न ले। कई शख्सों ने जो कि लौंडी ख़रीदने आये उसकी तरफ़ देखा और क़ीमत पूछी, लेकिन बुड्ढे ने जो दाम मांगा वह न दे सके। अख़ीर को एक बीबी जो


चिहरे से गुस्से वाली मालूम होती थी वहां होकर गुज़री" और राजा की लड़की को देख कर उस बुड्ढे के पास क़ीमत दरयात्फृ करने गई। जब यह उस निगहबान बुढ़िया ने देखा तो कहने लगी कि "मैं चाहती हूं कि यह बीबी तुझे न खरीदे क्योंकि यह शहर में सब से बदमिज़ाज औरत है। सिर्फ़ गये हत्फे की बात है कि इसने एक ग़रीब छोटी उम्र की हबशी लौंडी की अपने बुरे बरताव से ऐसी हालत कर दी कि वह उसके घर की चहार दीवारी डांक कर भाग जाने की कोशिश में ज़मीन पर गिर पड़ी और मर गई"। यह सुन कर राजा की लड़की बोली-"अजी, मिहर्बानी करके मुझे उसके हाथ मत बिकने देना"-बुढ़िया ने कहा कि “जहां तक मेरा बस चलेगा मैं ऐसा नहीं होने दूंगी, मगर वह बुड्ढा अगर चाहेगा तो बेच डालेगा" तब लड़की ने कहा-"ख़ैर, लेकिन इतना तो तुम मेरे लिए करना कि बग़ैर उस कंजरी के जाने हुए मैं इस औरत के हाथ न बिकने पाऊं, क्यों कि मैं ने एक दफ़ा उसकी और उसके सारे घर वालों की जान बचाई थी, इससे मुझे यकीन है कि वह मुझे उस बेदर्द औरत के पास न जाने देगी"-यह सब बात चीत तोते ने सुन ली और लड़की के लबादे के अन्दर से सिर निकाल के उसके कान में कहा कि “मैं अभी उड़ के जाता हूं और कंजरी को लाता हूं" और यों कह कर सीधा बाज़ार के दरवाज़े की तरफ़ उड़ा और वहां से मकानों के ऊपर होता हुआ शहर के उस फाटक पर पहुंचा कि जिसमें होकर वह सब आये थे। वहां से थोड़ी ही दूर पर उसने कंजरों का डेरा पाया। वह सीधा बुढ़िया कंजरी के पैरों के पास उतर के चोंच से उसके घांघरे का दामन खींचने लगा और फिर ज़मीन पर परों को फट-फटाता हुआ शहर के फाटक की तरफ़ चलने लगा और चुह-

चुहाअट मचाने और अपने सिर से हर तरह के इशारे करने लगा कि कंजरी उसके साथ चले। कंजरी समझ गई और उसके पीछे पीछे फाटक तक चली गई। तोता उसके आगे आगे उड़ता जाता था और कभी किसी जगह बैठ जाता था। यों वह बाज़ार तक पहुंचे और वहां क़दम ही रक्खा था कि उन्होंने उस बद मिज़ाज बीबी का राजा की लड़की का हाथ पकड़े हुए नाते देखा। लड़की बेचारी रोती आती थी और बाज़ार के फाटक के पास लोगों की भीड़ लग गई थी जो कि उस औरत को लानत देते थे और हल्यारी कहके तरह तरह के नाम रखते थे, और कहते थे कि अफ़सोस है यह लड़की इसके हाथ आ गई क्योंकि यह इसे ज़रूर मार डालेगी जिस तरह कि इतने और लौंडी गुलाम मार डाले हैं। जैसे ही राजा की लड़की ने, कंजरी को देखा एक बारगी अपने तई उस बद बीबी से छुड़ा कर कंजरी की गोदी में चली आई और उससे मिन्नत करने लगी कि उसे उस ख़ौफ़नाक औरत के हाथ न बिकने दे। कंजरी को रहम आया और उसने लड़की को दिलासा दी कि ऐसा नहीं होने पावेगा, लेकिन बीबी बोली-"मैं तो इसे ख़रीद भी चुकी हूं और क़ीमत भी दे चुकी हूं, देख यह रसीद है" और अपनी कुर्ती से एक टुकड़ा काग़ज़ को निकाल कर दिखलाने लगी कि तोता यकायक सारी भीड़ के ऊपर से उड़ता हुआ आकर झट उसके हाथ से कागज को छीन ले गया और सब की नज़रों से गायब हो क़रीब की एक मीनार में जा घुसा जहां उसने रसीद को छुपा दिया और फिर वहाँ से आकर बाज़ार के दरवाज़े के ऊपर बैठ गया जहां से कि वहां जो कुछ हो रहा था देख सके। इस वक्त शोरो गुल इतना बढ़ मया था कि कोतवाल जिसका मकान पास ही था सुन कर साथ अपने सिपाहियों के

वहां पर आन पहुंचा और दर्याफ करने लगा कि इस सब" झगड़े का क्या बाइस है। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ। उस बोबी ने कहा कि यह लड़की मैंने मोल ले ली है और कंजरी ने कहा-"नहीं, मैंने इसे नहीं बेचा," लोग जो वहां जमा थे कहते थे कि अफ़सोस है अगर इस बदज़ात हत्यारी ने लड़की को खरीद लिया है। कोतवाल ने सब को अपने सामने बुलवाया और उस बीबी से कहा-"अगर तुमने इस लड़कों को खरीद लिया है तो रुपयों की रसीद दिखलाओ"-वह बोली कि "रसीद मेरे हाथ से एक तोता छीन ले गया है और न जाने वह कहां उड़ गया है। कोतवाल ने कहा- मैं इस बात का यकीन नहीं कर सकता, और अगर तुम रसीद नहीं दिखला सकोगी तो मैं लड़की को कंजरी ही के हवाले कर दूंगा"। बीबी ने फिर वही कहा जो पहले कहा था, मगर सब बेफ़ायदा हुआ। जिन लोगों ने तोते को नहीं देखा था उन्होंने कुछ न कहा। बस लड़की कंजरी को मिल गई और वह बीबी बुरा मुंह बनाये अपने घर गई। उस वक्त उसका चिहरा और भी बुरा हो गया था क्योंकि लौंडी उसके हाथ से निकल गई और रुपया भी गया।

कोतवाल ने झगड़े का फ़ैसला ऐन अपने मकान के नीचे गली में किया था। जैसे ही कि लड़की कंजरी को दी गई कोतवाल के घर से एक काली लौंडी ने आकर कंजरी से कहा कि कोतवाल की बीबी साहिबा उससे कुछ कहना चाहती हैं। कंजरी लड़की को लिये हुए लौंडी के साथ भीतर गई और कोतवाल की बीबी के सामने पेश हुई। बीबी छज्जे पर अपनी लड़की के साथ जो उमर में राजा की लड़की के बराबर थी बैठी हुई थी। उसकी लड़की ने राजा की लड़की को देख लिया था और उसकी सूरत पर लुभा कर अपनी मां

से कहा था कि उसे ख़रीद ले। सौदा फ़ौरन हुआ। बीबी ने बहुत अच्छी क़ीमत लगाई और राजा की लड़की ने कोतवाल की बेटी और उसकी मां को सूरत शकल से इतना पसन्द किया कि कंजरी से कहा कि उसे उन्हीं के यहां बेच दे। कंजरी ने ऐसा ही किया और अपना रुपया लेकर रवाना हुई। और राजा की लड़की से कह गई कि "तू अच्छे लोगों के हाथों बिकी है और उनके यहां सुख से रहेगी"। उसके चले जाने के बाद दोनों लड़कियां छज्जे पर आके लोगों की भीड़ को जाते हुए देखने लगी कि तोता जो बाज़ार के दरवाज़े पर बैठा हुआ सब हाल देखता रहा था राजा की लड़की को छज्जे में देख उसके कंधे पर आ बैठा-कोतवाल की बेटी को यह देख कर बड़ा तअज्जुब हुआ, लेकिन राजा की लड़की ने जल्द तोते का सारा हाल सुना दिया और उसे अपने पास रखने की इजाज़त मांगी जो कि फ़ौरन मिल गई। दोनों लड़कियों में आपस में बहुत मुहबत हो गई और दोनों साथ, साथ बड़े सुख से रहने लगीं। एक ही साथ खेलती और खाती, एक ही सबक़ पढ़तीं, एक ही कमरे में सोती और हालांकि राजा की लड़की हक़ीक़त में कोतवाल की बेटी की लौंडी थी, उसके साथ बहन का सा बर्ताव किया जाता था। थोड़े दिनों के बाद राजा की लड़की ने अपना सारा असली किस्सा उसे सुना दिया, बल्कि तिलिस्माती मुँदरी का भेद भी बता दिया। एक मर्तबा रात के वक्त बाद खाने के तोते ने राजा की लड़की से कहा-“ऐ प्यारी, मैं समझता हूं कि बिहतर हो कि तेरे नाना को ख़बर कर दी जाय कि तू कहां है, वह तेरे लिए बहुत फ़िक्र करता होगा। कल सुबह मैं दोनों कौओं को जो रोज़ रात के वक्त पड़ौस के मंदिर के बुर्ज में आकर रहते हैं तेरे नाना के पास तेरी ख़बर देने को

भेजूंगा और यह भी पुछवाऊंगा कि तेरा नाना तेरे लिये क्या चाहता है"। राजा की लड़की ने कहा “अच्छा" और दूसरे रोज़ सवेरे ही एक ख़त लिख कर तोते के हाथ दिया। तोते ने उसे कौओं के हवाले किया और ताकीद कर दी कि बहुत जल्द उसे गंगोत्री पर जाके बुड्ढ़े योगी को दें और उसका जवाब लावें। बुड्ढ़ा योगी अपनी दोहती के बाबत सचमुच, बहुत फ़िक्रमन्द हो रहा था और चाहता था कि किसी तरह उसकी खबर मिले कि एक रोज़ शाम को दोनों कौए उसे नज़र आये और उन्होंने उसे लड़की की चिट्ठी दी। योगी ने पढ़ कर उसका जवाब लिख दिया। और कौए अपनी थकावट दूर करने को वहां एक दिन ठहर कर लाहौर की जानिब को फिर उड़ दिये और सीधे उन दोनों लड़कियों के रहने के कमरे के अंदर दाख़िल हुए। योगी की चिट्ठी यह थी-

"मेरी प्यारी दोहती, तुझे मैं ने कभी नहीं देखा लेकिन तेरी मां के इस दुनिया से चले जाने से मैं तुझे दुचंद प्यार करता हूं। मुझे बड़ी खुशी हुई कि तू इतनी तकलीफ़ो और ख़तरों के बाद खुशहाल है और नेक शख्सों के साथ है। तेरे लिये शायद यही बिहतर होगा कि तू अपनी नौ-उम्र सहेली के साथ जहां अब है वहीं रहे। लेकिन अगर कभी कोई बात ऐसी हो जावे कि जिससे तू वहां न रह सके और जिसमें तुझे तेरा वफ़ादार तोता सलाह और मदद न दे सके तो मेरे पास फ़ौरन फिर ख़बर भेजना"।

दोनों लड़कियां बड़ी खुशी से एक साथ रहने लगी और दोनों में बहुत मुहब्बत हो गई। कोतवाल और उसकी बीबी को भी लड़की का असली हाल मालूम हो गया कि वह एक राजा की बेटी है और वह उसके साथ निहायत मिहर्बानी और इज्ज़त से पेश आने लगे। लेकिन उन्होंने दोनों लड़कियों

से कह दिया कि यह सारा हाल बिलकुल पोशीदा रक्खें ताकि कश्मीर की रानी को लड़की की ख़बर न हो जावे कि वह इस बेचारी के पीछे फिर पड़े। और यह मस्लहत समझी गई कि राजा की बेटी चांदनी के नाम से पुकारी जावे जिस नाम से कि वह लौंडी के तौर पर ख़रीदी गई थी। कोतवाल की बेटी का नाम दयादेई था।