तिलिस्माती मुँदरी
श्रीधर पाठक

इलाहाबाद: पंडित गिरिधर पाठक, पृष्ठ ३९ से – ४७ तक

 

अध्याय ६

एक रोज़ जब कि दोनों लड़कियां दयादेई की मां के कमरे में बैठी हुई अपने सीने पिरोने के काम में लगी हुई थीं कोतवाल, जो राजा का दरबार करके लौटा था, वहां चला आया। उसके चिहरे पर उदासी और ग़म सा छाया हुआ था। उसकी बीबी ने दर्याप्फृ किया कि क्या माजरा है तो कहने लगा कि कश्मीर से एक बहुत बुरी ख़बर आई है-वह यह है कि अफ़वाह उड़ रहा है कि वहां के राजा की यकायक मौत हो गई है और रानी ने अपने छोटे बेटे को गद्दी पर बैठा के राज का इंन्तिज़ाम अपने हाथ में ले लिया है। बेचारी राजा की लड़की अपने बाप के मरने की ख़बर सुन कर बहुत रंजीदा और दुखी हुई और अपना ग़म छिपाने को कमरे के बाहर चली गई और उसे दिलासा देने के लिए दयादेई भी उसके पास उठ गई। थोड़े दिनों बाद जब कि कोतवाल की बीबी और यह दोनों लड़कियांँ कमरे की खिड़की के पास बैठी हुई थीं एक बड़ी भीड़ लोगों की गली में आती हुई नज़र आई और जब वह क़रीब आ पहुंची तो उन्होंने देखा कि ज़र्क बर्क कपड़े पहने हुए आदमियों का एक बड़ा गिरोह है, कुछ घोड़ों और ऊंटों पर सवार हैं और कुछ पैदल हैं। उनके दर्मियान एक सांडनी पर

कि जिस पर ज़री की झूल पड़ी हुई थी वह बदसूरत बब्बू था जो कि इस वक्त ज़ेवर से सब तरफ़ लदा हुआ था। हाथ में उसके सुनहली लिफ़ाफ़े में बन्द एक ख़त था। राजा की लड़की को उसे देख कर बहुत दहशत हुई और वह छिप गई जब तक कि वह काफ़िला वहां से निकल न गया। उस रोज़ जब कोतवाल घर आया पहले दिन से ज़ियादा सुस्त और, रंजीदा मालूम होता था और जब उसकी बीबी ने पूछा कि यह काफ़िला क्या था तो कहाकि कश्मीर की रानी का एलची आया हुआ है, यह उसी की सवारी थी। रानी ने एक बहुत सख्त़ ख़त लाहौर के राजा को लिखा है कि वह खिराज यानी कर दे, वरना लाहौर पर चढ़ाई की जावेगी; और कहा कि राजा ने गुस्से से उस ख़त को फाड़ कर ज़मीन पर फेंक दिया और एलची को हुक्म दिया कि लाहौर से चला जावे। अब दोनों तरफ़ से लड़ाई की तैयारी हो रही है।

कोतवाल की बीबी और दोनों लड़कियांँ अक्सर खिड़की से, फ़ौज में शामिल होने के वास्ते जाती हुई पलटनों को देखा करती थीं। उस वक्त कभी कभी तोता भी उनके साथ रहा करता था, क्योंकि हालांकि वह बुड्ढ़ा हो गया था उसे सिपाहियों की पलटन देखने का बड़ा शौक था और जब वह पलटन के ढोल और झांझ की आवाज़ सुनता अपने परों को फुला लेता और खुशी के मारे चीख़ उठता। एक रोज़ सब से आख़िरी पलटन के निकल जाने के बहुत देर बाद जब कि वह सूनी गली को देख रहे थे तोता एक सुस्त आवाज़ से कहने लगा-“मैं चाहता हूं कि इन सबजंगी जवानों की जो कि हमारे वास्ते लड़ने को गये हैं कुछ ख़बर मालूम हो,” और फिर यकायक खुश होकर बोला-"आह, मैं कैसा बेवकूफ़ हूं कि कौओं को बिलकुल भूल गया, कौए आसानी से सब ख़बर

ला सकेंगे" यों कह के फ़ौरन वहां से उड़ दिया और कौओं को ढूंढ कर उन्हें फ़ौज के पीछे, लड़ाई की ख़बर लाने को, रवाना किया।

इस के तीसरे दिन शाम को दोनों कौए खिड़की की राह भीतर आ दाख़िल हुए। थके हुए और डरे हुए से थे। राजा की बेटी ने उन्हें कुछ खाने को और पानी पीने को दिया। खा कर और सुस्ता कर, जो कुछ उन्होंने देखा था उसका बयान करने लगे। कहा कि "दोनों तरफ़ की फ़ौजों में बड़ी भारी लड़ाई हुई जिसमें कि लाहौर के राजा की हार हुई और उसकी फ़ौज भी तीन तेरह हो गई। अब रानी की फ़ौज लाहौर की तरफ़ आ रही है और कल यहां पहुंच जायगी"। राजा की बेटी ने यह हाल कोतवाल की बीबी से जब कहा तो वह बहुत रंजीदा हुई और घबराई और अपने खाविंद को जो कि उस वक्त कचहरी में था बुलवा कर सब हाल सुना दिया। जब कोतवाल ने पूछा कि उसे कैसे मालूम हुआ तो कह दिया कि "जादू के ज़ोर से दर्याफृ कर लिया, मगर मैं जियादा नहीं बतला सकती"। पहले तो कोतवाल ने उसका यकीन नहीं किया और समझा कि उसे सपना हुआ होगा; लेकिन जब देखा कि वह बहुत ख़ौफ़ कर रही है, उसकी बात को सच समझा। वह यह भी जानता था कि उसकी बीबी दाना और नेक है। वह फ़ौरन राजा की सभा में मशवरा करने को गया कि अब क्या करना मुनासिब है। वहां से वह बहुत देर बाद रात को वापस आया और यह ख़बर लाया कि यह सलाह तै पाई है कि अगर शिकस्त की अफ़वाह सच्ची है तो रानी की अताअत कबूल कर लेनी चाहिये ताकि शहर लुटने से बच जाय। कोतवाल ने यह ख़बर राजा की लड़की को फ़ौरन सुनाई और कहा कि “रानी की फ़ौज कल इस शहर पर कब्ज़ा कर

लेगी इस लिये तुम्हारा यहां रहना ख़तरे से ख़ाली नहीं। हम तुम्हें किसी हिफ़ाज़त की जगह भेजे देते हैं"।

जब कि कोतवाल की बीबी राजा की लड़की से बातें कर रही थी और राजा की लड़की अपने मिहर्बानों से जुदा होने के ग़म और खौफ से रो रही थी कोतवाल को राजा का बुलावा आया। राजा उस वक्त लड़ाई के मैदान से भाग कर अपने महलों में आ सभा के दर्मियान सुलह की शर्तों का बिचार कर रहा था। सभा बहुत थोड़ी देर तक रही और कोतवाल जल्द वापस आया और यह ख़बर लाया कि दुश्मन ने यह शर्त की है कि अगर इस वक्त उसे बहुत सा रुपया दिया जाय और आगे को खिराज देने का क़रार किया जाय तो शहर पर चढ़ाई न की जायगी। लेकिन रुपया जो मांगा था इतना ज़ियादा था कि वह तमाम शहर का ज़र, ज़ेवर और दूसरा असबाब देने से पूरा हो सकता था। कोतवाल कहने लगा कि "अपना सारा माल दे डालने से हम सब बिल-कुल ग़रीब हो जायंगे लेकिन हमारी जान और शहर बच जायगा"। इस बात को सुन कर दयादेई बोली--"तो ऐ पिता, चांदनी को अब दूसरी जगह भेजने की ज़रूरत नहीं है, यहां अब उसको कुछ खौफ़ न रहेगा"-यह सुन कर कोतवाल बहुत उदास हुआ और कहने लगा कि "हमारे सारे पड़ोसी जानते हैं कि हमने बहुत रुपया देकर एक लौंडी ख़रीदी है, इस लिये हमारे असबाब के साथ वह भी ले ली जायगी, क्योंकि माल के वास्ते शहर में हर एक घर की जब तलाशी होगी हम उसे घर के भीतर कहां छिपा सकेंगे और शहर के बाहर भी कहीं नहीं भेज सकते क्योंकि शहर को फ़ौज के सिपाही सब तरफ़ घेरे पड़े हैं"। इतना कह कर कोतवाल बाहर चला गया और उनका सोच उसकी बात को सुनकर

और भी बढ़ा। मगर तोता जो उनकी बात चीत सुनता रहा था अपनी बैठक से उतर कर राजा की लड़की के कंधे पर आ बैठा और उसका बोसा लेकर बोला "प्यारी रो मत, मुझे एक ऐसी जगह मालूम है जहां तू छिप सकती है। हमारे दोनों कौए बाग़ के पिछवाड़े वाले पुराने खंडहर में रहते हैं। इस खंडहर की एक मीनार साबित है उसकी चोटी पर जो एक छोटी कोठरी सी है उसमें तू छिप सकती है। लेकिन उसके जीने का निचला हिस्सा गिर गया है, इस लिए सिर्फ सिड्ढी के ज़रिये तू वहां पहुंच सकती है। मैं देखता हूं कि इस कमरे के सामान में कई एक रेशम की रस्सियां लगी हुई हैं, अगर यह हमारे मिहर्बान दोस्त इन में से कुछ रस्सियों की एक सिड्ढी बना दें तो दोनों कौए उसे लेकर मीनार की चोटी तक उड़ जायँगे- मैं तब उसका एक सिरा लटकती हुई सिड्ढी में लपेट के अटका दूंगा और दूसरा सिरा तेरी तरफ़ गिरा दूंगा लेकिन सिड्ढी इतनी हलकी बननी चाहिये कि कौए उसे उड़ा ले जा सकें"-राजा की लड़की ने यह सारी बात कोतवाल की बीबी से कह दी और वह तीनों जनी रस्सी की सिड्ढी बनाने लगी। तोता एक धागे का छोटा गोला अपने पंजे में लेकर मीनार के जीने की बची हुई सिढ्डियों में सब से निचली सिड्ढी तक उड गया और धागे के ऊपर के सिरे को थाम कर गोला उसने नीचे को छोड़ दिया और साथ ही आप भी उसके पीछे उड़ता हुआ नीचे उतर गया और उसे पंजों से उठा कर राजा की लड़की के पास ले गया और उसे बता दिया कि उसमें से कितना खुल गया था जिससे मालूम हो गया कि सिड्ढी में कितनी लम्बी रस्सी लगेगी। दयादेई छज्जे में बैठ कर गली की तरफ़ देखने लगी कि जब राजा के अफ़सर उस घर की तलाशो के वास्ते आवे उसे मालूम हो

जाय। लेकिन उन्हें बहुत से मकानों को पहले तलाशी लेनी थी और शाम का अंधेरा होने के पहले ही कोतवाल की बीबीं और राजा की लड़की ने रेशम की रस्सी से एक खासी काफ़ी लम्बी सिड्ढी बना ली जो इतनी मज़बूत थी कि लड़की का बोझा बरदाश्त कर सके। जैसे ही अंधेरा हुआ कोतवाल की बीबी और वह दोनों लड़कियांँ तोते के साथ पोशीदा तौर से बाग़ में गईं और वहां एक ऊंची जगह पर चढ़ गई जहां से कि मंदिर के खंडहर में पहुंच सकती थीं। जो कि बाग़ की चहारदीवार से बिलकुल मिला हुआ था। बाग़ में उन्हें एक लकड़ी की सिड्ढी मिल गई जिसके ज़रिये से वह बाग़ के बाहर उतर गई। तोते ने कौओं से पहले ही दिखवा लिया था कि बाग़ में कोई नहीं है और वह जगह सब तरह महफूज़ है। जब वह मीनार के नीचे पहुंचे राजा की लड़की ने रेशम की सिड्ढी जो कि उसने एक छोटी लकड़ी पर लपेट ली थी कौओं को दे दी और उन्हें उसे लेकर ऊपर उड़ जाने को कहा। दोनों कौओं ने दोनों सिरे लकड़ी के अपने पंजों में पकड़ लिये और ऊपर ले जाने की कोशिश की लेकिन हालां कि रेशम की रस्सी इतनी पतली थी सिड्ढी का एक बहुत छोटा बंडल बन गया था, तो भी उन बेचारी चिड़ियों के लिये वह बहुत भारी था इस से वह फटफटाती हुई नीचे आ पड़ीं। तोता उनको मदद देने चला, लेकिन वह ऐसा भद्दा उड़ने वाला था कि उन के बीच में आ गया और मुआमिला और भी बिगाड़ दिया। तब वह बड़े नाउम्मेद हो गये और बाग़ को लौटने ही को थे कि उन्हों ने एक बड़ी चीख़ ठीक अपने सिर के ऊपर सुनो और जो ऊपर को नज़र की तो देखा कि एक बड़ा परन्द बुर्ज की तरफ़ उड़ा जा रहा है और जाकर उसकी

चोटी पर बैठ जाता है। वह परन्द एक डरावनी शकल का उल्लू था। उसे देख कर तोता बोला "तिलिस्माती अंगूठी कहां है, मुझे दो" और राजा की लड़की से अंगूठी को छीन कर झट उल्लू के पास पहुंचा और अंगूठी उसे छुला दी जिस से उल्लू बड़ी हैरत में आया। तोते ने तब उसे तेज़ी के साथ हाकि माना आवाज़ से रेशम की सिड्ढी को मीनार की चोटी के ऊपर ले जाने का हुक्म दिया। उल्लू हुक्म को फ़ौरन बजा लाया और फिर बड़े अदब से सिर झुका कर कहने लगा- "कुछ और हुक्म?" "कुछ नहीं, सिवा इसके कि तुम रात भर मीनार पर पहरा दो और अगर कोई ख़तरे की बात नज़र नावे तो फ़ौरन हम को आगाह कर दो" तोते ने इतना कह कर उसे वहां से बरखास्त कर दिया-तोता तब उस रस्सी की सिड्ढी को टूटे जी़ने के नीचे के हिस्से तक ले गया और वहां उसने उसका एक सिरा एक कील से जो वहां गड़ी हुई थी लपेट दिया और दूसरा सिस नीचे ज़मीन पर गिरा दिया। राजा की लड़की और उसकी साथिनें वहां खड़ी थीं, उनसे अब उसने बिदा लो और उस रेशमी सिड्ढी पर आहिस्ता २ चढ़ कर ऊपर पहुंच गई-और फिर सिड्ढी को ऊपर खींच लिया। उसकी दोस्त साथिनें उसे उसकी तीनों चिड़ियाओं के साथ वहां छोड़ कर अपने मकान को वापस गईं। राजा की लड़की यह न देख सकी कि वह जगह कैसी है, अपने लबादे से जो कि साथ लाई थी बदन लपेट कर पड़ रही और जल्द ही उसे नींद आ गई-

सुबह के वक्त जब सूरज की किरनें दीवार के एक दरवाजे से उस कोठड़ी में पहुंची तब वह लड़की जागी और उसने देखा कि वह कोठड़ी छोटो और गोल है और उसके चारों ओर छज्जा है और एक तरफ़ उसके पत्थर के फर्श में

ज़ीने में उतरने को रास्ता है जिससे कि वह वहां चढ़ी थी-वह छज्जे पर जाने से डरती थी क्योंकि वहां से दिखलाई दे सकती थी और कोतवाल की बीबी और तोते ने उससे कह दिया था कि अगर उसे वहां कोई देख लेगा तो अच्छा न होगा इस लिये उसे वहां पर लोगों की नज़र से बचना चाहिये। कौए खाने की तलाश में गये हुए थे और तोता राजा की लड़की के साथ कुछ कलेवा कर के कि जिसके वास्ते पहले दिन वह कुछ चीज़ें लेता आया था, बाग़ में यह देखने को उड़ गया कि वहां क्या हो रहा है। वहां उस वक्त बड़ा हंगामा हो रहा था-राजा के अफ़सर कोतवाल के घर में क़ीमती चीज़ों की तलाश कर रहे थे। कोतवाल ने अपने तमाम सोने चांदी के ज़ेवर, जवाहिरात, नक़दी और जो कुछ उसके घर में क़ीमती माल था सब उनके सामने रख दिया था, उसके घोड़े घुड़साल से मंगाये जाकर सामने खड़े किये गये थे और सारे गुलाम और लौंडियां आंगन में एक पंगत में खड़ी की गई थीं कि अफ़सर जिनको पसन्द करें ले जायं। जो कुछ उन्होंने ले जाने लायक समझा उसे इकट्ठा कर के वह जा रहे थे कि एक लौंडी उनमें से कि जिन्हें वह ले जा रहे थे अफ़सरों से कहने लगी-"अजी, एक और लौंडी इस घर में कहीं छुपी हुई है वह हम सब से ज़ियादा क़ीमती है लेकिन इनको वह बहुत पसन्द है इस लिये इन्होंने उसे छुपा दिया है"-अफसरों ने पूछा “उसका नाम क्या है?"-लौंडी ने जवाब दिया "उसे हम तोते वाली कहते हैं, क्योंकि उस के पास हमेशा एक वाहियात बुड्ढा तोता रहता हैं" और तोते की तरफ़ हाथ कर के कहा- देखो तोता वह है और तोते वाली भी ज़रूर कहीं नज़दीक ही होगी”–उस लौंडी ने यह सब जलन के मारे बता दिया था-कोतवाल अफ़सरों से

कहने लगा-"मेरे यहां एक ऐसी लौंडी है तो सही, लेकिन मुझे मालूम नहीं वह कहां है, मेरा घर सारा खुला हुआ है तलाश कर लो"-यह बात सच थी कि उसे नहीं मालूम था कि राजा की लड़की उस वक्त़ कहां थी, उसकी बीबी ने उससे सिर्फ इतना ही कहा था कि वह एक महफूज़ जगह को चली गई हैं और ज़ियादा उसने सुनना नहीं चाहा था। अफ़सरों ने घर में उसे हर जगह तलाश किया लेकिन तलाशी फुजूल हुई। अख़ीर को उन्होंने कहा कि “वह भाग गई होगी और शायद जल्द ही पकड़ ली जायगी"-यों कहते हुए वह अपनी लूट का माल लेकर चले गये, सिवा चंद बुड्ढ़े गुलामों और लौंडियों के सारा असबाव और माल ले गये। जैसे ही वह चले गये दयादेई अपनी मां के पास दौड़ के बोली “ऐ मा, चांदनी अब तो आ सकती है?” उसकी मां ने जवाब दिया-"नहीं अभी वह जहांँ है वहांँ यहांँ से ज़ियादा बचाव से है-उसका यहांँ लाना तब तक मुनासिब नहीं जब तक कि दुश्मन की फ़ौज यहाँ से न चली जाय"-दयादेई यह सुन कर बड़ी उदास हुई, मगर कहने लगी-"अच्छा मुझे रोज़ रात को उसके पास हो आने दिया करो"-मां ने यह मंजूर कर लिया, लेकिन कहा कि जब कोई ख़तरा नज़र न आता हो तब तू ऐसा कर सक्ती है"। इसपर उसने जवाब दिया "अजी, वह प्यारी चिड़ियां निगहबानी रखेंगी, और हम पर यकायक हमला न हो सकेगा"-उसने तब राजा की लड़की को तोते के ज़रिये से एक रुक़्का भेजा कि "मैं अंधेरा होने पर तुझ से मिलने आऊंगी और साथ कुछ खाने की चीजें लाऊंगी"।