जायसी ग्रंथावली
मलिक मुहम्मद जायसी, संपादक रामचंद्र शुक्ल

वाराणसी: नागरीप्रचारिणी सभा, पृष्ठ २९४ से – ३१३ तक

 

आखिरी कलाम

पहिले नावें कर लीन्हा। जेइ लिउ दीन्ह, बोल मुख कीन्हा। दिन्हेसि सिर जो पागा। बिन्देसि कया जो पहि बागा ॥ सवार दिन्हेसि नयन जोति, उजियारा । दिन्हेसि देखें कहें संसारा ॥ दिन्हेसि स्टेशन बात जेहि सुनै । दिन्हेसि बुद्धि, ज्ञान बहु गुनै । दिन्हेसि नासिक लीजे बासा । दिन्हेसि मन सुगंध बिरासा॥ दीन्हेसि जीभ बैन रस भावै । दीन्हेसि भुगुति, साध सब रावै । दीन्हेसि दसन, सुरंग कपोला। दीन्हसि अंधेर जे ने लैबोला ॥ दीन्हेसि बदन सुरूप रंग, दिन्हसि माथे भाग । देख़ि दयाल, ‘मुहम्मद, सीस नाइ पद लाग ॥ १ ॥ दीन्हेसि कंठ बोल हि माहां । दीन्हेसि "जादंड, बल बाहर्ता । । दीन्हेसि हिथा भोग जेहि जमा। टीन्हेसि पाँच भूतआातमा ॥ दीन्हेसिम बदन सीत श्री घामू। दीन्हेसि सुक्ख नींद बिसरामू दीन्हेसि हाथ चाह जस कीलैं। दीन्हेसि कर पल्लव गहि लीजें । । दीन्हसि रहस कूद बह तेर ।। दीन्हेमि हरष हिया बह मेरा । दीन्हेसि बैठक आासन मारे । दीन्हसि दूत जो उठे सँभारें । दीन्हे मवै संपूरन काया । दीन्हेसि द चल क पाया ।। दीन्हेमि न नौ फाटका, दिन्हेसि दसवें दुबार । सो अस दानि ‘मुहम्मद, तिन्ह के हीं बलिहार ॥ २ ॥ । मरम नैन कर अँधेरे मा। लेहि विहरे संसार न सूझा। ॥ मरम खेवन कर बहिरं जीना। जो न , कि वीजे साना ॥ मरम जीभ कर 'गे पावा। साध मरे, पे निकर न लगवाँ । मरम बाहें के छले चीन्हा। जेहि बिधि हाथन्ह पाँगुर दीन्हा ॥ मरम कया की भेटा। नित चिरकट जो रहे लपेटा । मरम बैठ उठ तेहि से गुना। जो रे मिरिग करतूरी हाँ ॥ (?) मरम दाहोइ पार्टी के तेहिद * । अपाय भुईं चल बर्दा अति सूख दीन्ह बिधतेऔ सब सेवक ताहि । आापन मरम ‘मुहम्मद, अबहूँ सम्भ . कि नाहि ॥ ३ । (१) बागा = पहनावा, पोशाक। विरासा = विलास। रढूं = रंग जाते हैं। (२) र हम = ग्रानंद। मेर = मेल, भाँति । फटका = नव द्वार । (३) बिहॐ = फूटने पर । सान दी = इशारा कोजिए (तो सम) (धी) । निरकुट = चीथड़ा। विधात् = विधाता ने । आखिरी कलाम २५ भग श्रौतार मोर न सदी । तीस बरिस ऊपर कवि बदी । श्रावत उधत चार विधि ठानr। भा भूकंप जगत अकुलाना ॥ धरती दोन्ह बिधि लाई। फिरे के चक्र अकास रहट क नाइ । गिरि ’ हाला पहार मेदिनि तस । जस चाला चलनी भरि चाला। मिरित पवन डोला लोक ज्यों रा हिंडोला। सरग पताल खट । गिरि पहार परबत ढहि गए। मात कीच भए । सम्द्र मिलि धरती फाटि, लात भंहरानी । पुन्नि इ मया जी सिष्टि समानी ॥ जो अस खंभन्ह पाई , सहस जीभ गहिराई। । सो आम कीन्ह मुहम्मद, तोह आम बपुरे काहें सूरु () सेवक ताकर अहै। घाटी पहर फिरत ज रहे। प्रस घायसू लिए रात दिन धावै। सरग पताल द पि.रि आवे ॥ अचव धि संसारा दगधि नागि महें होइ गरा। तेहि के ॥ सो स बपूरे गहनें लीन्हा। श्र बरि वांवि चंडाले दीन्हा ॥ गा अलोप हो, भा गुंधियारा । दग्लै दिनदि सरग महें तारा । उवरों .थि नीन्सआप चपे। लाग सरग जिट कर थर कांपे 17 , ड के परे ज्ञान सब । तब होइ मोख गहन जौ छूटे ॥ ताकतें ए तरा, जो, सेवक अस नित ! बह न डरमि ‘मुहम्मद, काह रहसि निहचित ॥ ५ ता प्रस्तुति कीन्हि न जाई। कौने जीभ में कर्फ बड़ाई ? ॥ जगत पताल जो ते कोई। लेखनी बिरिख, समुद मसि होई!! लगे लिफ सिप्टि मिलि जाई। समद घटे, पैसे लिखि न सिराई ! सांचा सोइ और सब भूठे ढाबें न कतईं औोहि के रूठे आासु इबलीस हु नौ टारा। नारद होइ नरक महें पारा ॥ स सी दुइ कटक, कह3 लखि' घोरा। फरहें रोधि नील महें बोरा ॥ जी वकुछ सँवारा । पैठत पौरि बच गहि मारा। । शदाद (४) उधत नार = उद्धढ़तचार, उत्पात। अावत...कुलाना = ज्ञान पड़त। है, जिस दिन मलिक मुहम्मद पैदा हुए थे उस दिन भारी भूकंप आया था। भार्थी फिराया चाल दान्है= । = छलनी में डाला हु आा अनाज । पवन बट . पवन ख टोला खभन्ह = थत् पहाड़ों को (वरतो पहाड़ों से कीली कही गई है) । गहिरातें पर गहराई या पाताल में थामे हैं । (५) 1ध = तपता है । धरिचंडाले दोन्हा मुये = प्रवाद है कि चंद्र डोम या डालों के ऋगी हैं इसी से हण द्वारा बार बार सताए जाते हैं । । घु प = अंकार । ६) 'त = इकी करे। सिई =चुकेपुरा हो । इबलीस = फरिश्ता जो पीछे शैतान । = हथाजिसने इसराईल फर* मित्र का बादशाह के वंश वालों को शदाद सताया था । = , एक प्रतापी बादशाह शद्दाजिसने खुदाई का दावा किया था और बिहिश्त के नने अरम पर ' नाम का बाग बनवाया था । यह बाग हजरत में बारह कोस बा था । इसमें अनेक प्रकार के सुंदर २९६ आखिरी कलाम जो ठाकुर अस दारुभ, सेवक तहें निरदोख । करै ‘मुहम्मद, तौ पे होइहि मोख रतन एक बिधने अवतारा। नार्वे ‘मुहम्मद जग उजियारा ॥ चारि मीत चहें दिसि गजमोती। माँ दिपे मन मानिक जोती ! जेहि हित सिरजा सात समंदा । सातह दीप भए एक ठंदा ! तर पर चौदह भवन उसारे। बिख विच खंड बिखंड सँवारे ॥ धरती ग्री गिरि मेरु पहरा। सरग चाँद सूरज ग्री तारा ॥ सहस अठारह दुनिया सिदै। आावत जात " ।। जतरा कर जेइ नहिं लीन्ह जनम महें नाऊँ। तेहि कहूँ कीन्ह नरक महें टाऊँ। सो अस दैड न राखाजेहि कारन सब कीन्ह । दहें तुम काह्न मुहम्मदएहि पृथिवी चित दीन्ह ॥ ७ ॥ बावर साह खानपति राजा। राज पाट उन कहें त्रिदि साजा ॥ मलक मुलेमाँ कर मोहि दीन्हा । दल द्वनी ऊमर जस कीन्हा ॥ अली के र जस कीन्हेसि खड़ा । लीन्हेसि जगत समुद भरि डाँड़ा । बल हमजा कर जैस भारा। जो बरियार उठा तेहि मारा । पहलवान नाए सब शादी। रहा न कतहु बाद । करि वादी बड परताप नाप तप साहै। धरम के पंथ दई चिन बांधे । दरव जोरि सब काहुहि दिए । आापुन विरह ग्राउ जम लिए राजा होइ करेसवडि, जगत मर्ती राज । तब अस कहें ‘मुहम्मद कीन्हा कि काज मानिक एक पाएगें उजियारा । सैयद आसरप पीर पियारा ॥ जहाँगीर चिस्ती निरमरा। कुल जग महूँ दीपक त्रिधि धरा ॥ श्र निहंग दरिया जल माहाँ । बूड़त करें धरि काढ़त वाहाँ ॥ समुद माहें जो बोहति फिरई । लेने नार्वे सौतें होइ तरई तिन्ह पर हीं मुरीद, सो पी। सँवरत बिनु गुन लावे तीरू ॥ कर गति धरमपंथ देखरावा। गा भला तेहि मारग लाबा । जो आस पुरुषहि मन चित लावै । इच्छा पूजे , नास तुलावे ॥ जी चालिस दिन सेवे, बार बुहारै. । कह दरसन हाइ 'मुहम्मद, पाप जाइ सब ोड़ : & ॥ अनुपम वृक्ष और भवन थे । इसके तैयार हो जाने पर ज्योहीं वह इसके भीतर घुसेना चाहता था कि ईश्वर के कोष से दरवाजे पर ही उसके प्राण निकल गए । सेवक ताँ =अपने बंदों या में खेतों के लिये। निरदोख = अच्छे स्वभाव का, सुशील । (७) (र पर = नीचे ऊपर सारे = खड़े वि-ए, स्थापित किए (८) ऊमर = खलीफा उमर । पहलवान = योद्धा, वीर नाए == । भ काए शादी =पूरेबिलकुल । आउ जस के चायु भर की कीति । () निहंग = बिलबूल । बार = द्वार । आखिरी कलाम २७ जायस नगर मोर प्रस्थान । नगर क नार्वे आदि उदयान । तहाँ दिवस दस पहने जाएगें। आप बैराग बहुत सुख पाएगें। सख भा, सोचि एक दिन मान। श्रोहि बिनु जिवन मरन के जान ॥ नैन रूप सो गएड समाई ॥ रहा पूरि भर हिरदय छाई ॥ जहने देख तहब सोई। और न आाव दिस्टि तर कोई ॥ जामुन देखि देखि मन राखीं। दूसर नाहैि, सो कास भाखीं। प्राहि देखा सब जगत दरपन के लेखा। प्रापन दरसन ॥ अपने ककुत कारन, मीर पसारिन हाट । मलिक मुहम्मद बिहने, होइ निक सिन तेहि बाट 1१०। धूत एक मारत गनि गना। कपट रूप नारद करि चना। ‘न , माधि कहावे। तेहि लगि चले जौ गारी पावें !। नायें सT। भाव गाँदि आम मखकर भाँजा। कारिश । तेल Iल मग्ष माजा । परतहि दीठि ज़रत मोहि ‘ लेखे । दिनहैि म. ऑधियर मुग्व देखे ॥ लीन्हे चंग राति दिन रहई । परपंच कीन्ह लोगन मह चह कहादें भाइ बंधु महें लाई लाव। बाप पूत महें कहें मेहरी आस रैनि के प्रावै। तरड़ के पूरुख औोनवाबे ॥ मन मैली , के ठगि, ठठ न पायी काह । वर सबहि ‘मुहम्मद, अस जिन तुम पतियाहू 31११॥ अंग। चढ़ाव सूरी भारा। जाइ गहौ तब चंग अधारा 17 जो काह स, ग्रानि चिट। सनह मोर विधि कैसे टैं । आ देऊ उहै ले। पढ़ी पलीता न बरता कर , जा यह धुव नासिक हि लाशें। मिनती करें औी 2ि 2ि भागे । धरि बार्ड लट सीस चेकोरे । करि पाँ टर, गहि हाथ रोगे । तबहि अधिक मोहि होवे। ‘ सैंकोच छडह, छह !' कहि के रोने ॥ घरि बाहीं ले थवा उड़ानें। तासरे जो रास छोड़ावै । । है नरकी पापी, टेढ़ बदन औौ अखि । अ चीन्हत उहै 'मुहम्मद, भूट भरी सब सावि १। ।। ठग । (१० ) उदयानु = ‘जायस' का यही पुराना नाम वहाँ के लोग बतलाते हैं । सब अवध ) । मीर सरदार, यहाँ परमेश्वर। बिह= सबेरे, प्रातकाल । ही (११) धूत == । नारद = शैतान से नवें न सiधु = ईश्वर का नाम न जप । भाव गठि : पर ऐसा हाव दन।कर हाथ भाT मुह । से ऐसे ऐसे इशारे करती है। कारिख = काजल, मिस्सी, तेल आदि स्त्रियों का गार। ध रा लाई भगड़ा गाती । मेहरी = नी यर । लावै = ल है । , जरू । तरपड़ = । = है । नीचे ोन वावं कती कै टरीि - टग करके । (१२) लेक = । (अवधी) भारा = = चिमटेदगे । ले देउ = दे । भाला। चिह्न थवा उड़ावं ; । = धू धू करेयूके सखि = विश्वास वचन । दिलाकर बहे हुए है २९८ याखिरी कलाम से बरस छतीस जो भए। तब एहि कथा क ग्राखर कहे देख जगत धुंध कति माहाँ। उवत धूप धरि नाबत छाहाँ ।। यह संसार पवन कर लेग्ना । माँगत बदन नैन भरि देखा । लाभदिए बिनु भोग, न पानव । परिहि डाँढ़ जाँ पर वाउब ॥ राति क सपन जागि पछिताना । ना जान कब होइ बिहाना ॥ अस मन जानि बेसाहह सोई । मूर न घटेलाभ जेहि होई ॥ ना जानेई बाढ़त दिम जाई। तिल तिल है नाउ नियराई । स जिन जानेह बढ़त है, दिन प्रावत निवरात कहै सो वृ ि‘मुहम्मद, फिर न कहीं असि बात ।' जबहि ग्रंत तार परलै ना? ई। धरमी लोग रहै ना पाई ॥ जबही सिद्ध साधु गए पारा। तबहीं चले चोर बटपारा ॥ जाइहि मया मोह सब केरा। मच्छ रूप के झाझहि वेरा ! उटिहै वेद पुराना। दत्त सन दो कब्रिहि पथाना ॥ पंडित धू म बरन सूरु होइ जाई। कृन्न वरन सब सिटि दिखाई ॥ द! पुत्र दिसि उ जहाँ। पुनि फिरि ।इ अइहै तहाँ ॥ चढ़ि गदहा निकसे श्ररि जालु । हाथ खंड हो, मावे का । जो रे मिले तेहि मरेफिर फिरि आइ के गाज । सवही मार ‘हम्मत अड़िता राज १४ पुनि धनी याणयु दरवलेइ सब कोई ॥ कहूँ होई। उगिरे , भोर मोर' करि उठहैं भारो। महूँ कहैिं ॥ आयु प्रापू गारी ग्रम न कोड जाने मन मोहाँ । जो यह सँचा है तो कहाँ । श्र ति : रहस कूद अपने जिउ करहीं । मंति लेड लेइ घर भरहीं खनहि उतंग, खनहि फिर साँतो । निलहि ह लंब उठे बह भाँती ॥ पुनि एक ग्र तरज चढ़े भाई । नाचें ‘जारी' मैंने त्रिलाई ॥ ग्राहि । जो तेहि सोई के कॅ‘धे जि न कोईन मरे भक्खे ॥ सव संसार फिराइ ऑौ. लार्श्व गाहिरी । घात उनहूँ कहें लागिहि जात 1१५। । ‘हम्मद, बार न (१३) माँगत देखा = सबको मुँह से माँगते ही देखा । (१४) प्राई = ग्राहि आाएगा। रूहबड़ी मछलियाँ , मच्छ बेरा = जैसे छोटी मछलियों को पकड़कर खा जाती , वैसा ह व्यवहार मनुष्यों के है, बोच और हो जायगा। दत्त सत = दान सत्य। जला हुा। = 1 - = भोगेगा। रहिता = निर्जन, निकटक । ( दधा = बड खा। ज १५) झारी = सब के , = संचित कियाजुटाया। = समेटकरसहेजकर । वविल अल । सचसंति उतंग - उभार, जोर शोर । सांतो = शांति । ह लंब = हुल्लड़, हल्ला, हलचल । वे = फिरतो है । विलाई = बिल्लो । फिरा = फिरते हैं । उनहें हैं उनको भां । = प्राखिरी कलाम २९ र . लागे । पुमि मैका इल प्रायसु पाए। उन बहु भाँति मेघ बरसाए पहिले गारा । धरती संरग होझ उजियारा लागी ने पिरथिवीं जरें । पात्र पाथर सौ सौ मन के एक ए सिला । चलें डि घटि आवें मिला गोट तर छूट भारी। ढं रूख बिरुख सब झारी परत धमाकि धरति सब हालै । उधिरत उठे सरग लॉ सार्ग अधाधार भौंती । लागि रहै चालिस दिन राती जिया जंतु सब मरि , जित सिरजा संसार बोइ न रहै ‘महमद, होइ बीता संसार II१६। जिबरईल फरमान । श्राइ सिस्टि देखव मैदान जियत न रहा जगत ने ठा। सारा झोरि कचरि सध गा मरि गंधाहि, साँस नहि प्रावै ठे विगंधसडाइव आाब जाड़ देउसे करह बिनाती। कहब जाइ जस देखत भती जा सिस्टि जगत उजाड़े सून संसा दिसा उजा, सब मारा। कोइ न रहा नावें लेनिहा मार मौछ ज पर दी पार्टी 1 परे पिठानि न, दीखे मटी सून पिरथिवीं हो गई, दहें धरती सब लीप जेतनी सिस्टि ‘हम्भद, सवें इ जल दीप १७ , मकाईल पुनि कहब द लाई। बरस, मेघ पिरथिवीं जाई ॥ उनै मेघ भरि उहैिं पानी। गर िगरजि बरसह अतवानी झरी लागि चलिन दिन रात घरी न निकुसे एकढ़ गाँती छुटि गानि परलम की नाई । चढ़ा छापि संगरिर्दी दुनियाई व टहि पहारा। जल हु नि उमड़ न असरारा सून पिरविीं होइति, बुसे एतनि जो सिस्टि मुहम्मद, सो कहें गई हेराइ 1१८ इसराफीलहि फरमाए । हूं, संसार उ!ए दै मुन्ष सूर भरे जो साँसा । डोलै धरती, लत अकाता , । (१६) मैकाइल = मचाईल नामक रिश्ता । त्रुटि = जमकर गोट गोले । उधिरत उठे उड़ती या उचटती जाती है । (१७) जिबरईल फरिश्ता। क5, है । जल दीप नदी या समुद्र के बीच पड़ा मुनसrत टापू (१८) सेंकाईल = एक फरिश्ता। - वानी = (?)। निंबुले (मेह) मता निकलता है। लि = ठिलकर। असरा = लगातार (१९) इसराफोल एक फरिश्ता सू = तुरही बाजा (अरबी) o o आखिरी कलाम ज भुवन चौदहो गिरि मन डोला। जानौ बालि ऋलाव हिंडोला ॥ पहिले एन फूक जो आाई । ड नोच एक सम होइ जाई ॥ नदी नार हैं पाटी । अस होइ मिले ज्यों ठाढ़ो माटी ॥ सब। दूसरि "क जो गेरु उड़हैं । परबत समुद एक होइ हैं । चाँद सुरंज तारा घट टूटे। परतहि खंभ सेस घट फूटे !। तिसरे बजर महाउध, नस भुईं लेव महा । पूरय प0िॐ ‘महम्मद, एक रूप होइ जा 1१६। । आ जराइला •ह गि बोला। जी जहाँ लगि सवें लिया ॥ पहिले जि४ जिवरैल क लेई । लोटि जी काइल देई ॥ पुनि जि३ देइहि इसराफील ! तीनिह कहूँ मारै जराईलू काल फिरिस्तन केर जो होई । कोई न जारी, निसि असि होई ।। पुनि पुव जम ? सब जि लोन्हा। एकौो रहा ठाँचि जो दन्हा ? ॥ सुनि अजराइल आगे हो जाउव। उत्तर देवसीस भुई नाउब ॥ चाय हो करों व साई । की हम, की तुम, ऑौर न कोई ॥ जो जम ग्रान जिड लेत हैं, संकर तिनत कर जिड लेब । सो अवतरें 'महमद, देबु तजिउ देव !२०॥ पुनि फरमाए प्रायु गोसाई । तुम. टेड जिवाइहि नाहीं ॥ सुनि श्रायब पाछे कहें ढाए। तिसरी पौरि नाँधि नहि पाए। परत जीउ जब निसरन लागे। होझ बड़ कष्ट, घरों एक जागे ॥ प्रान देत वरै मन महाँ । उबत प धरि ावत 'बाहाँ । जस जिड देत मोहि दुख होई। ऐसे दर्जे हम सब कोई ॥ जौ जनत्यों अस व जिड़ देता। त जिर काह केर न लेता ॥ लौटि काल तिनहें कर होवें। श्राई नींद, निरक हो सो6 ॥ भंजन, गढ़न सँवारन, जिन खेल सब खेल । सब कहूँ टारि 'मुहम्मद, अब हो रहा अकेल ।२१। चालिस बरस जवजह होड़ जैहैं। औ हि मथा, पतेि सध ऐहैं । मया मोह के किरपा ग्राए। ।हि काहि आाष फरमाए ॥ संसार जो सिरजा ए मोर न कोई नहि लेता ॥ लपत लचता है। = । खंभ = स्तंभ रूप पर्वत । वजर = व। महाउब = मथाएगा। () ज़राईल फरिश्ता 1 पुति पूज़व = खुदा फिर पूछेगा । २० = मानवाला ाँचि जो दोहा = जिसको बना दिया । की हम को तुम - अब तो बस हम ह! या तुम हो । जम = यमराज जो पैगंबरी मजहबों में जराईल कहलाता है। हैं । तहूँ ८ न भी। (२१) टाए = ढह संकर = शंकरशिव जो महाकाल पड़ेगिर पड़े । उवत धूप छाहाँ = अंत समय में जब ज्ञान होता हैमृत्यु तब का अंधकार घेर लेता है। । आखिरी कलाम ३० तने पर सब सवह उठाव। पुल सरात कर पंथ रेंगावों ॥ पाछे जिए पूछों अब लेखा। नैन माहें जेता हीं देखा जस जाकर सरन मैं सुना। धरम प, गुन छौगुन गुना ॥ के निरल कौसर अवार्थों 1 पुनि जोउन्ह बैकुंठ पठाव मरन रॉजन घन होइ जस, जस दुख देखत लग । तस तब होइ ‘मुहम्मद, दिन दिन मान भाग ।।२२। । हिले जिaउवकाज । सेबक चारि । तिन्ह सब काजे पटाउस विराईल ग्रो मै काईल । सराफील औ अजराईल ॥ जिव रईल परथिवीं महूँ अाए। कहें । आाइ मुहम्मद गोहराए जिरईल जन ाड़ पुकारव। नाबें मुहम्मद लेत हैंाव ॥ हड़हैं जहाँ ना। कह3 लाख वोलिहैं एक ठा। । महम्मद ढ ढ़त रहै, क तक नहि पावै । फिरि के जाइ मारि गोह रावै । कहै ‘गोसाईं ! कहाँ है पावों। लाखन बोले जो रे बोलावणे ।। सव धरती फिरि आएऊँजहाँ नाव सो ले ऊँ ॥ २ लाखन उर्ट मुहम्मदलेहि कहें उत्तर देखें ?'।। जिबराइल पुनि आायस पावै । संघ जगत ठाँव सो पावे ॥ ास सुवास है जहाँ । नाव रसूल पुकरस तहाँ' लेड जिराइल फिरि सिरविीं पाए। सौंघत जगत टाँव सो पाए । उठहें मुहम्मद, होटू बड़ नेगी। देन जोहार बोलाबहि बेगी। बेगि तारे समेता। श्रावह साथ उगत तरत सब लता। ।। एतने कचन ज्योति मुख काढ़े । सुनत रसूल भए उठेि ठाढ़े जसच पाए लगि जीव मुकहि । अपने अपने पिंजरे ग्राए ॥ कइड ज् गन के सोवतउठे लोग मनो नागि । श्रम सब कहैं ‘मुहम्मद', नैन पलक ना लागि ।।२४। उठत उ मत कहें आलस लागे । नींद मेरी सोबत नहिं जागें । । पोढ़स बार न हम कहें एऊ। अबहिन अवधि श्राइ कब गएऊ। । जिवराइल राव कह पूकारी अनहूँनींद न गई म्हारी सोवत तुहि कइज्जु गबीते। ऐसे तो तुम मोहे, न चीत (२२) पुल सरत = वह पुल नि से कयामत के दिन सब जीवों को पार करना पडेगा और जो पुण्यात्माों के लिये खास चौड़ा और पापियों के लिये बाल दराबर पतले हो जायगा। । बसर = विहित स्वर्ग ) की एक नदी या चश्मा। = , ) का काज = एक जन गंजन, पीड़ाबलेश। (२३एक काम पर । गोहराए = पुकारा । मरि गोहरावे के बहुत पुकारता है । (अवधी ) के लिये । (२४) नेगो = प्रसाद या इनाम पानेवाले । जुहार देन = बंदगी उमत = उम्मत, पैगंबर के अनुयायियों का समूह । मुकहि पाए = कब्रों से छूट । पाए। पिंजरे = ग्रयत् शरीर । (२५) पढ़त = लेटते या गोते । बार = देर अबहिन = अभो ही; इतनी जल्दी । ३०२ आखिरी कलाम कइड करोरि बरस ? ईं प रे । उछहु न गि मुहम्मद खरे सुनि के जगत उठिहि सब झगे। जेतना सिरजा पुरुष नौ नःी ॥ गT नाँग उठहै संस1नैना २९ सव के ता कोइ न केहू तन हे, दिटि सरग सब केर। ऐसे जतन मुहम्मद, सिस्टि ' चले सत्र रि।।२५। । पुनि रसूल जह होइ मागे ' उम्मत चलि सब पाछे लाने ॥ अध गियान हो सब केरा। ऊंच नीच जहें होड़ मरा सवहीं जियत चहें संसारा । नैनन नीर चले असरारा ॥ सो दिन सेंदरि उमत सत्व वै । ना जाना था कस होवे। जो न रहै, तेहि का यह संगा ? मुख सूखे तेहि पर यह दंगा । जेहि दिन कहें नित करत डरावा। सोड़ दिवस अब आागे ग्रावा। जौ पे हमसे लेखा लेवा। का हम जहब, उतर का देवा ॥ एत सब सँवरि के मन महूँचहैं जाड़े सो भलि । पैगह पैग ‘मुहम्मद, चित्त रहै सव लि ।।२६। पुल सरात शनि होड़ शुभेरा । लेखा लेब उत सब केरा ॥ एक दिसि वैठि मुहम्मद रोइहैं । जिबरईल दूसर दिति होइहैं। । वार पार किय सूझत नाहीं। दूसर नाहि, को टेके बाहीं ? ! तीस सहस्त्र कोप क बाटा। ग्रस साँकरि जेहि चले न चाँटा । बारह में पतरा आम झीना। खड़ग धार से अधिक पैना । दोउ दिसि नरक बुड है भरे। खोज न पाउंव तिन्ह महें परे देखत काँपे ला जाँघा। सो पथ कैसे जै. है ॥ नत्रा तहाँ चलत सब परखव, को रे पू, को ऊन । अब हि को जान ‘मुहम्मद, भरे पाप औ पून २७ जो धरम होइईि संसारा। चमक बीज अस जाइहि पारा ॥ बहुतक जनों तुग भल धदृहैं । बहुतक जानु पडे हैं बहुतक चाल चले महें जइहैं । बहुतक मरि मरि पाँव उठहैं ! बहतक जान पखेरु उड़इहैं। पवन के नाई तेहि महें जइहै । बहतक जान रेंगह चाँटीबहैं माटी । । बहतक दाँत धरि । बहृतक । पीठ नरक फंड महें गिरहीं बहुतक रक्त महें परहीं । जेहि के जाँघ भरोस न होई। स पंथी निभरोसी रोई ॥ बरे = = खड़े । तारू = तालू में । नेहु तन = किसी की मोर । ऐसे जतन इस ढंग से, इस प्रकार ।' (२६) अस रारा = लगातार । चित्त झलि रहै = मन में बार बार जाया करता है । (२७) अभेरा = सामना । चाँटा = चींटी । खोज = पता, निशान । उन = त्रुटिपूर्णग्रोथ। (२८) बीज विजली । चाल चले महें = मनुष्य की साधारण चाल से । तरास = नास । मारीि कलाम ३० परे तरास जो नांघतकोइ रे वार, कोइ पार। कोइ तिर रहा ‘मुहम्मद, कोइ बूड़ा मझधार ॥२८। लोटि हंकारब वह तब भातू । तप कहें होइहि फरमान ॥ पुब कटक जेता है आावा। को सेवक, को बैठे खावा ? ॥ जेहि जस नाउ जियन में दीन्हा । तेहि तस संबर चाहों लीन्हा ॥ अब लगि राज देस कर भूजा। अब दिन आाइ लेखा कर पूजा ॥ छह मास कर दिन करों अंजू । आज क लेगें औ देखों साजू ॥ से चौराहै । बैठे श्रावै । एक एक जन के पूछि पकरावे ॥ नीर खीर हुरंत काबूब छानी। करब निनार दुध औौ पानी ॥ धरम पाप फरियाउब, गन औौगुन सब जोख़ । दुखी न होह ‘मुहम्मद, जोखि लेवें धरि जोख 1२है। । पुनि कस होहि दिसब छ मासू । सूरज आइ तपहि हो पास ॥ कें सउहैं। निरे रथ हाँहै । तेहि मच गू द सिर पार्क ।। बजरागिन अस लागे तैसे। बिलखे लोग पियासन से ॥ उने गिन प्रस व रसे घा। 2ज देह, जरि आवे चामू । जेड़ किट धरम कीन्ह माह तेह सिर पर छाहाँ । जग । किछ प्रावै धरमहि“ यानि पियंउब पानी। पाप बपुरहि छा, न पानी ॥ जो राजता सो काज न आावै। ॥ इहाँ क दीन्ह उहाँ सो पावै । जो लखपती - कहाईलहै न कौड़ी आधि । चौदह धजा ‘मुहम्मदठाढ़ करह सब बाँधि॥ ३ सवा लाख पंवर अपने पाए तेते । जे ते। अपने । एक रसून न छाहाँ। लेहि सिर माहाँ। बैठहि सबही धूप घामें दुखी उमत जेहि के सो का मानै सुख अवसेरी है । दुखी उमत तौ पुनि मैं दुखी । तेहि सुख होइ तौ पुनि में सुखी ॥ कहब रसूल कि आायस पाव। पहिले सेब धरी ले आावों ॥ होझ उतर ‘तिन्ह हीं ना चाहों। पी घाल नरक मढ़ बाह' ॥ (२६) तपे कहै तपग को (अवध)। संवर सामान, कमाई। भूजा भोग किया । से बह; सूर्य । एक एक ‘‘पकराने एक एक प्राणो से सवाल जबाव करके उसे पकड़ाए। मैं कहूँको । जोख तराजू । (३० ) संजतें सामने। गूद सिर पाक खोपडी का गदा पक जाता है । वैसे बैठे िबपुरहि बेचारे क। रजता राजत्व, राजापन । चौदह पाए आासन घजा चौदह ध्वजियों या बंधनों से । (३१) पाए या पर । अवसेरी दु:ख से व्य, चिंताग्रस्त । बाहौं फेक, डालू । ३०४ झाखिरी कलाम पाप पुन्नि है तखरी, होइ चाहत है पच । प्रस मन जानि ‘मुहम्मद, हिीं माने सोच (॥ ३१ ॥ जह श्रादम के पासा। ‘पिता ! तुम्हारि बहुत मोहि आासा ॥ उमत मोरि गाढ़े है परी। भा न दान ; लेखा का धरी ? ॥ दुखिया नूत होत जो आ है। सब दुख पे बाप सों क ॥ ‘बाप बाप के जो कयू खाँगे । तृमदि । मड़ि कासौं पुनि माँ ? ॥ तुम जटेर पुनि सबहिन्ह केरा । अहं संतति, मुख तुम्हरै हेरा । जेट जऔर जो कहेिं मिनती ठाकुर तबहीं सुनि, मिनती। 'जाइ देउ सो बिनवीं रोई । मुख दयाल दाहिन तोहि होई ॥ ‘कहह जाइ जस देखेर, हि होवें उदघाट । 'बहु दुख दुखी ‘मुहम्मद, बिधि : संकट तेढ़ काट' ! ३२ । 'सुनहु पूत . श्रापन दुख कहऊँ। हाँ अपने दुख बाउर रहकें । होइ कुछ जो आायमठेलेगें। दूत के कहे मु ख गाँ मेलेट ‘खिया पेट लागि सैंग धावा । काढ़ि विहिम्त से मैल मोढवा ॥ परजें जाड़ मेडल संसारा । नैन न सू, नि िआधियारा ॥ सकल जगत में फिर फिरि रोवा। जीउ अजान बाधि के खोवा !। भएँ उजियार पिथिवीं जइहाँ। औ गोसाईं ने प्रस्तुति कहिहाँ ॥ ‘लौटि मिले जौ हौवा पाई। तौ जउ कहें रज हो जा।ई । ‘तेहि हुत लाजि उठे , मुंह सकीं दरसाइ । न । ‘सो मुंह ले, ‘महम्मद बात कहों का जाड़' ? पुनि जेहैं मूसा क दोहाई। 'ऐ बंधु ! मोहि उपकरु भाई ॥ तुम कह बिबिना आायसु दीन्हा। तुम मेरे होइ बातें कीन्हा। उन्मत मोरि बहुत दुख देखा। भा न दान, माँगत है लेखा । ‘ब जौ भाइ मोर तुम अहौ। एक बात मोहि कारन कहीं। ‘तुम अस ठ बात का कोई। सोई कही बात जे हि होई ॥ गाड़े मीत ! कहीं का काहू ? । कहहु जाइ जेहि होइ निबाहू । ‘तुम संवार के जानg बाता। मई सुनि माया करें विधाता। मिनती करहु मोर ग्रुत सीस नाइ, कर जोरि’ । हा हा करें मुहम्मद ‘उमत दुखी मोरि' ॥ ३४ तखरी = तकडी, तराजू (पंजाबी) । (३२) गाढ़े = संकट में । धरी = धरिहि, धरेगी (अवध) । खाँगे= घटता है । जठेर = बड़ा जेठा, बुजुर्ग । उद्घाट > छुटकारा. उद्धर । (३३) बाउर = बावला। मैल प्रोढ़ावा . कलंक लगा दिया। भए = होने पर । तेहिद त = उसी से, उसी कारण। (३४) उपकरु = उपकार कर। ठटे = बनाए । बात जेहि होई = जिससे काम हो जाय । के जानह बाता = बात करना जानते हो । मकु = कदाचित्, शायद। मोर हुत = मेरी ओोर से । श्रावि गे कलाम ३० ५ 'मुनहु रसूल बात का कहीं। ही अपने दुख बाउर रहों ॥ ‘के के देखे बहु ढिठाई । मुंह गरुवाना खात मिठाई । 'पहिले मो दीन्हा कहें आाय । फर से मैं झगरा कीन्हा । ‘रोधि नील के डारेसि झुरा। फुर भा झूठ, झूठ भा छुरा ॥ ‘पुनि देखें बठि पठाएंगे। दो दिसि कर पंथ न पाए? । ‘मुनि जो मो कह दरसन भए । कोह नूर रावट होइ गएऊ । ‘भाँति अनेक मैं फिर फिर जाना । दावैन अंपा र के लीन्हेसि । ‘नरति वैन में देखों, कतm परे नहि मूति ‘रह लजाह, !वात कहीं का वनि' ?1 ३५ । महम्मद दौरि दौरि सवहीं पहूँ । जै हैं। उतर देइ सब फिरि बहहैं उत्तर पवयों ईसा कहिन त्रि कस ना कहत्यों। जो कि कहे के ॥ में जिर दान दियावा मुए मानुस बहुत जियाबा। श्री बहुगे । इब्राहिम कहकस ना कहत्यओं । बात कहे विन मैं ना रहयों मोस थे न ध जो खेला। सर रचि बाँधि अगिन मह मेला ॥ तहाँ अगिन - त भाई वारी । अपडर ड, न परहैि भारी ॥ नह कहिन, सब जब परले टावा। जग वह, नावा ॥ रखें बढि काह भार । ताह री, वे ओोडाउब जस में बने ‘हम्मद’, कहे आापन निस्तार ॥ ३६ ॥ सर्दी भार ग्रस ठेलि औोड़ा हाउब । पिरिफिरि कहब, उतर ना पाउब ॥ पृान रसूल हैं दरबारा। पंग मारि हें कब पुकारा। तें सब जानसि एक गोसाईं। कोई न आाध उमत के ताई ॥ जेहि सो कहीं स प होड़ है। उमत लाइ केह बात न मोर टांड़ केह न चाँड़ा। देखा दुखसबहो मोहि ड़ा , महैि अस नहीं लाग बरतारा। तोfह होइ भल सा३ निस्तारा जो दुख चहसि उमत कहें दीन्हा । सो सब मैं अपने सिर लीन्हा। (३५मुंह गरुवाना ) .मिठाई = कृपा की माँगते मुंह भिक्षा माँगते भारी हो गया है, अब और मुंह नहीं खुलता। * = का फरमिस्र बादशाह जिसने इसराईल की संतानों को बहुत सताया था और वे मूसा के नायकत्व भागे थे (जब मिस्र को सेना ने उनका गोध तब खुदा ने किया था उनके लिये तो नील नद या समुद्र का पानो हटा दिया था, पर भिली सेना के सामने उसे और बढ़ा दिया था) । रोधि = रोककर। फुर = 4 , सत्य ग। कोह तूर = वह पहाड़ रावट महल, जिसपर मूसा को ईश्वर की ज्योति दिखाई पड़ थीं। । जगमगाता स्थान । जापा, पुकारा हर : हर अवसर । दाँवन पर । पा = परदा, चोट । (३६) बहहै बलाएगा । सर = चिता। (३७) मार डाल ओोढ़ाउब = भार गुहम्मद पर ही डालेंगे । पैग मारि = अ।सन मारकर । केंद्र कोई (अवधी) चाँड़ = चाह, कामना। तहीं =तु ही। ऐंजन =पीड़ा, सांसत । ३०६ आखिरी कलाम लेखि जोखि जो अवैम रन गंजन दुख दाढ़ । सो सब सहै 'मुहम्मद, दुखी करहु जनि काह ॥ ३७ ॥ पुन रिसाइ के कहै गोसाई। फातिम कह डू रेंद्रट्हु दुनियाईं ॥ का मोसों उन नगर पसारा। हसन हु सैन कहीं को मारा। ढ़ है जगत कतना पैहैं । फिरि के जाइ मारि गोहहैं ॥ दुटि जगत दुनिया सव ग्राएगें। फातिम खोज कतईं ना पाएगें । घायल होझ, अहैं पुनि कहाँ। उठा नाद हैं धरती महाँ ॥ ‘म दे नैन सकल संसारा। बीबी उठे, करें निस्तारा। जो कोई देरी नैन उपारी । तेहि कह छार क धरि जारी॥ मायसु होहि देउ करनैन रहैं सब झांषि । एक ओर मुहम्मद, उमत मरै डरि काँपि ॥ ३८ उट्टिन बीबी तब रिस कह । हसन हुसेन दुवी संग लिहें ॥ ‘तें करता हरता सब जानसि। झूठे फ्रं रे नीक पहिचानसि ॥ हसन हुसेन दुवौ मोर वारे। दुनह यजीद कौन गुन मारे ? ॥ ‘पहिले मोर नियाब निबारू। तेहि पाछ जेतना संसारू । समुझे जोउ प्राणि महूँ दह। देह दादि तो चुप के रह । नहि त देर सराप रिसाई। मार्ग प्राहि अर्श जरि जाई ॥ बहु संताप उर्ट निजकैसर्फ़ सहैि न जाइ । वजह मोह ‘मुहम्मद, अधिक उठे दुख दाइ ॥ ! ३९ नि , रसूल कहें आयग्र होई | फातिम कद सपाबहु सोई॥ मार प्राहि आगे जरि जाई। तेहि पाछ श्राहि पठिताई ॥ ‘जो नहि बात क क’ विषादू । जन मोहि दन्ह परस्दू ।। जो बीबी बड़हि यह दोखू। ही में करों ' के मोख । उमा ॥ ‘नाहि त घालि नरक नह जाऐं। लौटि जिग्राइ गुएपर मार्क । ‘अनि खंभ देख ग्रागे । हार 'चह दिमि फेरि संरग लै लावाँ । झंगरन्ह मारोंलोह चटावों जत हिरकत होड़ तेरह लागे । तेहि पाछे वरि मार्गघालि नरक के कठ । बोबी क; ससुझावह, जौ रे उमत के जाँट ४० I () बीवी मुहम्मद साहब जिसके दो ६८फातिम = फातिमा, को कन्या लडके हसन श्रीर सैन करबला के मैदान में कष्ट से मारे गए और कोई बड़ा न हथा। मारि = बहुत (अवध) । गोहरहैं प्रकारेंगे । नाद = नाकाश = वाणौं । (३६) fकह, लिहें = किए लिए (अवध) । बारे = बालक, लड़क। दादि देह = इंसाफ करो अॐ = आसमान (का सबसे ऊँचा तबक) । दुख दाद =खदाह । (४०) जान मोहि..परसाद = ता समझो कि मैं प्रसन्न हो गया या मैंने बख्श दिया । लौटि = फिर फिर । हिरकर = सटते ही। कम = किनारे, तट पर । जो रे..चाँट = यदि तुम्हें अपनी उम्मत की इतनी चाह है। झाख़िरी कलाम ३०७ मुनि रसूल तलफत तह हैं । बीबिहि बार बार समुभे हैं । बोदी कहब, घाम कत सहए ?। कस ना बैटि छाह महें रहह ? ॥ ? सब बैठे छाड़ा । तुम कस तप बजर अस माहाँ ’ ॥ पंगबर कहब रसूल, छाँह का बैठीं ? । उमत लागि पहु नहि बैटर्न ॥ तिन्ह सब बाँधि धाम महमेले। का भा मोरे छाढ़ अकेले ॥ ‘सबहि तुम्हरे कोह जो मरे। समुझह जीउ, तबहि निस्तरे । ॥ ‘जो मोहि चहौ निवारहु कोह। तब बिधि करे उमत पर छोह । बहू दुख देखि पिता कर, वीबी समुझा जी3 । जाइ मुहम्मद बिनवा, ठापाग के गीड़ ॥ ४१ ॥ तब रसूल के कहें भ' माया। जिन चिता मानह, भइ दाया । जौ बीबी , अबहूँ रिसियाई: सबहि उमत सिर माह बिसाई । ॥ ग्र फातिम कह गि बोलावह। देह दाद तो उमत छोड़ावढ॥ फातिम माइ के पार लगाव । धरि यजीद दोजख मह गवा। अत कहा, धरि जान से मा। जिन देइ देइ पूनि लोटि पधारें । तस रब जेहि भ्हें गईि जाई। खन ख़ न मारें लीटि जियाई ॥ बजर अगिन जाब के छारा। लौट दहै जस दहै लोहारा ॥ मारि मारि घिसियार्थ, धर दोजख मह देव । जेतनी सिस्टि ‘मुहम्मद' सवह पुकारे लेव ॥ ४२॥ । पुनि सब उम्मत लेब बुलाई। हरू गरू लागब बहिराई निरखि रहौती काढ़ब छानो। करब निनार दूध औी पानी। ॥ पुन्दि न पाए बाप क पूत, न पूत क बाए। पाइहि तहाँ अपहि श्राप आइ परी। कोई न कोउ क धरहरि करी। । कागज काद्रि लेव सब ले खा। दुख सुख जो पिथथी महें देखा। पुन्नि लेखा पियाला माँगब। उतर देत उन पानी खराब ॥ नन क देखा वन क सुना। कहब, करब, औौगुन औौ गुना । हाथ, पाँव, , काया, त्रवनसीस ने । ख, औौ ग्राखि पाप न छपे ‘मुहम्मद, आड़ भरे सत्र साखि 1 ४३ ॥ देह क रोवाँ बैरी होइहैं । बजर बिया एहि जीड के गोइहैं । पाप पुन्नि निरमल । राखब पुनि, पाप के धोउब सब खोउब ॥ (४१) व ज र = ब न प । समझद जीड अपने जी में ढाढ़स बधो। पाग के गोड = गले में पगड़ी डालकरबड़ी अधीनता से । (४२) यजीद = जिसने हसन हुसैन को मारा था। गवा = गया। घिसियावें = घसीटते हैं। प्रका’ लेब = पुकार लेंगे । १४३) हरू = हलका, योछा । गरु = भारी, गंभीर । बहिराड लागव = निकलने लगेंगे । रनौती = रहन सहन, अात्ररण । निनार = न्याराअलग । धरहरि = धर पकड़सहायता। करी = करिहकरेगा । ३० ८ आखिरी कलाम जबरईल चलव पुनि कौसर पठउब अन्हवाई । जहाँ का निरल सब पावै । घुड़की देब देह सुख लगी। पलुहब उठि, सोवत अस जागी । खोरि _नहाइ धोइ “सब जूहूं । होई निबह पूनिऊ के । सब क सरोर (ास बसाई । चंदन के अस घानी आई ।॥ ठे सव आप पुनि सबै । सबहि नवी के पीछे बचे ॥ नविहि डि होइ हि सवहिबारह बरस क राह । सब घस जान ‘मुहम्मद, होझ बरस के राइ ।।४४ ॥ पुनि रसूल नेवतव जेवनारा। बहत भांति होइ हि परकारा ॥ ना अस देखा, ना अस सुना। जो सरहों तो है गुना दस ।। पुन अनेक बिस्तर तई डासब। बास सूम कपूर ने बासव ।। आास ज गि बोलाउच । औो संसद उमत सथ लेइ आाउद ।। ह पग डा’ कहें घायसू देइहें रसूल उमत लेइ सथा। परग परग पर नावत माथा ! 'प्रावह भीतर' गि बोलाउब। बिस्तर जहां तहाँ बैठाउत्र ॥ झारि बैठीपति ! उमत। सव , जोरि के एके के 'मुहम्मद, जान दुलह बराति ॥ ४५ ॥ मा पुनि जैवन कह प्रार्ध लाभै। सबके ग्रागे धरत न खाग I भाँति भाँति । जानब ना । कर देखब थारा पुनि दह केन प्रकारा फरमउव श्राप गामा बहुत । दख ॥ हान्ह से जवन म घु डारत । जभ पसारत दाँत उघारत ॥ ख देख3 नियाई कूचत बहत दख पाएछ । जेबॉएड ॥ खात ग्रब जिन लौटि कस्ट जिद करह। सुख सवाद औ इंद्री भरहू तह ऐसे जवनार भूत सेराई। बैटि अघाडउदर ना भाई ऐस करव पहुनाई, तब होइटूि - संतोख । दुखी न होह ‘मुहम्मद’ पोखि लेह फुर पोख 1४६। हाथन्ह से केह गौर न लेई । जोइ चाह मख ठे सोई ।। दत्त, जीभ, मख किट न डोलाउव। जस जस रुचि है तस तस खाउच ॥ जेस अन्न विन हर्च । तैस सिठाइ जौ कोऊ कौंचे। ॥ दू, चे पनपेगी। (४४) कीसर = स्वर्ग की एक नदी या चश्मा । बडकी = गोता । पहु- ढ र। (४५) ज .दस हूं तो Tर ग्रवगाहन करके। दंद्र द्वंद, प्रपंच । घाना = टकरता है। सरहोगुना = यदि सराहता उसका दस गुना (४६) तर्ट्स । लौटि हो । उदर ना भाई = यहाँ पेट नहीं है जिसे भरना पढ़ । फुर पोख = सूची संसार में =स्वर्ग में लीट आकर 1 सेराई = शीतल तुष्टि । (४७) तैस सिठाई ‘ऊढूं = कू चने पर वह वैसा ही सीटी सा नीरस लगता ह । आखिरी कलाम ३०९ एक एक परकार जो आाए। सत्तर सत्तर स्वाद सो पाए। जाड़े के पर जुड़ा । इच्छा पूजे ,खाई अघाई अनचाखे राते: फर, चाखा । सब अस लेइ अपरस रस चाखा । जलम जलम के भूख बुझाई। भोजन के साथ जाई जैवन प्रचवन होइ पुनि, पुनि होइहि खिलवान । मृत है कटार, पियह ‘मुहम्मदपान ।।४७। भरा एक तो अमत, बास कपूरा। तेहि कह रहा शराब तहुरा लागब भरि भरि देइ कोरा। पुष ज्ञान स भरे महोरा ॥ श्रोहि के मिटा भांति एक दऊँ। जलम न मानव होइ अब काह्न । सघु मतवार रहब होड़ सदा। रहस कूद सदा सरबदा । कह न खोवे जलम खुमारी। जनौ बिहान उठे भरि बारी। ततखन वासि बासि जनु बाला । घगे घरो जस लेब पियाला ।। सहि क ा सन सो मद पिया। नव श्रौतार भवा औ जिया।। फि; तोल, मया से, कहब ‘अपुन लेइ खाह। भा परसाद, ‘मुहम्मद, उ2ि बिहिस्त म“ह जाह ' ४८ । कब रसूल, बिहिस्त न जाऊँ। जौ लगि दरस तुम्हार न पाऊँ।। उघर न नैन तुमहंह विदु देखे । सबहि अबिरथा मोरे लेखे ? तीं ले बेहु बैकुंठ न जाई । जो लै तुम्हारा दरस न पाई ।। करु दीदार, देखों में टोही। तT है जीड जाइ सुख मोहीं ।। देखें दरए नैन भरि लेगें। सीस नाइ मै भुड कह देखें। जलम मोर सब था । पलु है जीड जो गोउ उभारा। लागा होड़ दयाल दिस्टि फिगवा । तोहि छाँईि मोहिं और न भावा ॥ कर सीस पाय भुइ लावों, जौ देखीं तोहि आख़ि । दरसन देखि ‘मुहम्मद, हिये भरीं तोरि ४९ा वि' । सुनहु रल ! होत फरमातु । बोल तुम्हार कोन्ह परमान ।। तहाँ हतलें जह हुते न ठाऊँ। पहिले रचेज मुहम्मद नई । सिटाइ = सीटी सा फीका लगता है । अपरस = अता ॥ जलम = जन्म टन, खरबूज आादि के तले बोज जो भोजन के पोछ दिए जाते हैं) । (४८) शराब तहुरा = शरबुक्तहुरास्वर्ग की महोर= हुआरा, मध। राजू मतवार = ग्रानंद से मतवा ना। बिहान बारी = मानो नित्य ह तक भरा है । प्याला मिल जाता परसाद = प्रसन्नता. कृपा। (४९) बिरथ =, = वृथा, व्यर्थ। जाई जाइहि, जायगा। पाई = पाइहैि, पाएगा। जाइ = उत्पन्न हो । जलम = जन्म । थारा = थाला लगाया जाता है। गीड उभारा = गर्दन ऊपर की, ऊपर द्रष्टि की। । हू ने = में था । हुतेड़ न ठाॐ = जहाँ कोई स्थान न था, (जिसमें पौधा ३१ आखिरी कलाम तुम बिनु अवह न परगट कीम्हऊ । सहस अठारह कहें जिउ दीन्हड ॥ चौदह खंड ऊपर तर राखेड़ें । नाद चलाड़ भेद बहु भाखेड़ें ।। चार दैिरिस्तिन बड़े औोताऊं सात वंड बैकुंठ संवाँरेखें । : सवा लाख पैगंबर सिरजेईं। कर करमृति उन्हह व बेधड़े । औौरन्ह कर भागे कत लेख । जेतना सिरजा को प्रोहि देखा । तुम तहें एसा सिरजा, श्राप के अंतरहत । देवह दरस 'मुहम्मद' ! ग्रापनि उमत समेत 1५०। सुनि फरमान हरण जिउ बाढ़ । एक पाँव से भए उ2ि ठाढ़े । झारि उमत लागी तब तारी। जेता सिरजा पुरुष । औौ नारी॥ लाग सबन्ह सटू दरसन हई। मोहि बिनु देख रहा न कोई ॥ एक चमतार हs उजियारा। पे बीड तेहि के चमकारा । t चाँद सुज पिहें बह जोती । रतन पदारथ मानिक मोती ।। सो मनि दिमें जो कोन्हि धिराई। पा सो रंग गात भर जाड़े ॥ मोह रूप निरमल होइ जाई। ऑौर रूप श्रोहि रूप समाई t ना अस बह देखा, ना केह श्रोहि भति । दरसन देखि मुहम्मद मोहि परे वह मति 1५१। दुइ दिन लहि वोउ मुधि न कुंभारे। बिनु सुवि रहे, नैन उघारे ॥ न तिसरे दिन जिनरैल जौ ग्राए। मदमाते सब आानि जगाए !! जे झिय भेदि सुदरसन राहे। परे पर लौटें जस माते ! सव अस्तुति है क. विमेखा । हम ऐस रूप कतई न देखा । अब सब गएड जलम दुख धोई। जो चाहिय हति पावा सोई !। अरु नितित जी विधि कीन्हा। जी पिय प्रापन दरमन दीन्हा। मन के जेति प्रास सब प्रजी। रही न कोई ग्रास गति दृजी ॥ मरन, गहन श्री परिहस, दुखदलिद्र सब भाग । सब सुछ देखि ‘, रहस 11५२ मुहम्मदकूद जिउ लाग । जिबराइल । ग्राड जोइदि कह ग्राय होइयह यूरिन्ह ग्रा पथ । उमर रसूद केर बहिराउव । सवार बिहिस्त पहुचाउब ! सात त्रिहिस्त विधिवें औौतारा। अंक अठई शदाद सवा । सो सब देव उमत हूँ बाँटी। एक बराबर सब कह पाँटी ॥ अबढ = अब तक। नाद : कलाम । कहि करीति = कर्तव्य बतलाकर। अंतरत = नोट में, अदृश्य । (५१) झारि = सारे, कुल । तारी लागी = टकटकी लग गई, पलकों का गिरना बंद हो गया सह = संमुख, साक्षातु : चमकार = चमत्कार, ज्योति । कोन्हि थिगईस्थिर रह सके । छपा सो रंग चाई = उनके शरीर पर उस ज्योति की छाप लग गई। (५२) लहि = तक है . परिहरा = ईष्र्या, डाह, कुढ़न (अवध) । रह = प्रानंद । (५३) अछरी अप्सरा। बहिराउव = निकालेंगेचलाएंगे। आखिरी कलाम ३११ खड़े एक एक कह डीन्ह निवासू । जगत लोक विरसे कविलागू चालिस चालिस ट्रें सोई। औ संग लागि बियाही जोई गौ सेवा कई अछरैन्ह केरी। एक एक जनि अहें सी सौ चेरी ऐसे जतन बियाहैं, बरियात ‘मुहम्मद बिहिस्त चले बिहंसात ५३। इतात कह धाए। चोल यानि उम्मृत पहिराए । पहिरहु दगल सुरंग रेंग राहे । करहु सोहाग जन३ मद माते चंद बदन औ कोकब मोहै ।। ताज कुलह सिर मुहम्मद सोहै हाइ खोरि अक्षस बनी बराता । नवी तंबोल खात मुग्व राता तुम्हरे फ्लेचे उमत सब् आनुबं। वो संवादूि बह भाँति बखानुझे गिरत मदमाते ऐहैं। चढ़ि के घोड़न कहें कुदर जिन भरि जलम बहुत हिय जारा। बैठि पाँव देश जमै ते पारा ॥ जैसे नबी सवारे, तैसे बने पुनि साज दूलह जतन ‘मुहम्मद, विहिस्त कर सुख राज !५४। माथे । औ पहिएं फूलन्ह बिनु गाँथे जतन होब असवारा । लिए बराते हैं संसारा गर्मीि रचि शुछरिन्ह कीन्द्र सिंगा। बास सुबास गूंज रसूल बियाहन एहैं। सब दुलहिन दुलह सहु । प्रारति करि सब आगे ऐहैं नंद सरोदन सब मिलि हैं दिरन्ह होझहि सेज बिछावन । सबहि कहें मिलिटू रावन बाजन बाऊँ विहिस्त दुबारा । भीतर गीत उठे झनकारा बनि बनि बैठो अछरीबैठि जोहैं कबिलास गिहि नाउ 'महम्मद, पूजे मन ास 1५५। जिबरईल पहिले से जे जाइ रसूल बिहिस्त नियरेहैं। लिहैं प्राठौ पंवरि द्वारा । ओौ पैठे लार्ग संकल लोग जब भीतर हैं। पाछे होझ रसूल सिधुहैं मिलि ट्रें नेवछाबरि करिहैं। सबके मुखेन्ह फूल आस झरिहैं। रहसि रसि तिन करब किड़ाअगर कुंड मा भरा सरीरा बेंत भाँति कबू नंद सरोदू। बास सुबास उठे परमोदू कस्तूरी। दिर सुबास रहब भरपूरी लत महकारा अगर, कपूर, बना, ऐसे जतन बिरसे = विलास करते हैं ।र = बिहिश्त की अप्सरा । जोई =जोय, स्नी। ऐसे ढंग से, इस प्रकार। (५४) इतात = आज्ञापालन । चोल वनपहनावा। दगल = लंबा नगरखा। कुलह टोप। बहुत हि जारा ईश्वर के विरह में लीन रहे। जतन = प्रकार, समान । (५५) नंद आनंद मुराद =स्वरू। (फारसी)। रावन = रमण करनेवाला, प्रियतम । (५६) पंवरि = ड्यौढ़ी ३१२ आाखिरी कलाम सोवन नाजु जो चाहै, साजन मरदन होइ । देह सोहाग ‘मुहम्मद, सुख बिरसे सब बौड़ 11५६। । पैटि बिहिस्त जौ नौनिधि पैहैं। अपने अपने सँदिर सिहैं । एक एक मंदिर सात दुबारा । अगर नंदन के लाग केवारा ॥ हरे हरे बह खंड सँवारे। बहुत भाँति दइ ग्राह्य सँवारे ॥ सोने रू घालि उचावा। निरमल कुर्ती लाग गिलावा i। में कुएँ हीरा रतन पदारथ जरे । तेहि क जोति दीपक जस बर्ग । नदी दूध अतरन के बहहीं । मानिक मोति परे भुड़ रहहीं ॥ ऊपर गा अब सोहाई । एक एक खंड छाह चहा दुनियाई तात न जूड़ न कुनकुनदिवस राय त नह दुख नींद न भूख मुहम्मद, सब बिरसे अति सुक्ख ।५६ देखत मरन केरि निकाई । मोहि रहत मुरछाई ॥ रूप में । लाल करत मख पासा। कीन्ह चहैं किट ोग बिलासा ॥ जहब हैं मागे बिनवे सब रानी। औौर कहैं सब चेरिन्ह आानी ॥ ए सब प्रार्थी मोरे निवासा। तुम आाभ लेड़ झाउ कबिलासा ।। जो अस रूप पाट परानी। औौ सबहिन्ह चेरिन्ह के रानी ॥ बदन जोति मनि माथे भाग । श्र विवि नागर दीन्ह सोहागू ।। साहस करें सिंगार सँवारी। रूप सुरूप पदमिनी। मारा ॥ पाट बैटि नित जोहैं, बिरहन्ह जारौ माँस ॥ दीन दयाल ‘मुहम्मद' !, मानह भोग विलास 1५८। ॥ सुनहि सुरूप अबहि बह भाँती। इनहि चाहि जो है रूपवती। ॥ सातवें पवैरि नवत तिन्ह पेखब। सात ग्राए सो कौकृत देखब ॥ चले जाब भागे तेहि आासा। जाइ परब भीतर कबिलासा तखत बैटि सब देखब रानी। जे सब चाहि पाट परधानी ।। दसन जोति उ चमकारा। सकल बिहिस्त होइ उजियारा ॥ बाहबानी कर जो सोना। तेहि में चाहि रूप प्रति लोना ॥ नरमल बदन चंद के जोती सब क सरीर दिघे जस मोती। । बास सुबास व जेहि बेधि भंवर कहें जात । बर सो देखि ‘मुहम्मद' हिरद महें न समात ।। पग पैग जस जस नियराउब । अधिक सवद मिले कर पाउब। ॥ नन समाइ रहै चुप लागे । सब कहें आाइ लेहि होइ अगे। साजन = म्वजन, प्रियतम 1 मरदन = मालिगन । बिरसे = बिलसे (५७) दइ = दैव, विधाता। गिलावा = गारा । तात = गरम । कुनकुन प्राध गरम । (५८) लाल = प्यार, दुलार। नागर = बढ़कर। (५) रुपवाती रूपवती। कौकृत = कौतुक, चमत्कार । चाहि = बढ़कर 1. बास सुबास जात जिस भौंरे को बेचकर छूने के लिये सुगंध जाती है । = कुनकुना

विसरहु दूलह जोवन बारी । पाएछ दुलहिन राजकुमारी ॥ एहि महें सो कर गहि लेइ हैं । आाध तखत पे ले बैठहैं । सव। अद्युत तुम कहें भरि राख । महै सवाद होइ जो चाखें ॥ नित पिंरीत, नित नव नव नेह । नित उठि चौगुन हो सनेह ॥ नित्तहि नित्त जो बारि बियाहै। बीसौ बीस अधिक ओोहि चाहै । तहाँ न मीलू, न नींद, दुखरह न देह महें रोग । सदा अनंद मुहम्मद, सब सुख मानं भोग 1६०॥ । (६०) जोबन बारी (क) यौवन की बाटिका, (ख) युवती बालाएँ महै - बहुत ही । बोसौ बीस = पहले से मौर बढ़कर।