चंद्रकांता संतति भाग 5
देवकीनन्दन खत्री

दिल्ली: भारती भाषा प्रकाशन, पृष्ठ २७ से – २९ तक

 

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दिन अनुमान दो घड़ी के चढ़ चुका होगा जब राजा गोपालसिंह दो आदमियों को साथ लिए हुए धीरे-धीरे आते दिखाई पड़े। वे दोनों भैरोंसिंह और इन्द्रदेव थे और पैदल थे। जब तीनों उस ठिकाने पर पहुँच गये जहाँ राजा साहब के रथ और सवार लोग थे तब राजा साहब ने अपना घोड़ा छोड़ दिया और उस पर भैरोंसिंह को सवार होने के लिए कहा तथा और सवारों को भी घोड़ों पर सवार हो जाने के लिए इशारा किया, इसके बाद स्वयं एक रथ पर सवार हो और इन्द्रदेव को भी उसी पर अपने साथ बैठा लिया, बाकी तीन रथ खाली ही रह गये। सवारी धीरे-धीरे जमानिया की तरफ रवाना हुई और फौजी सवार खूबसूरती के साथ राजा साहब को घेरे हुए धीरे-धीरे जैसा कि रथ जा रहा था जाने लगे। भैरोंसिंह अपना घोड़ा बढ़ाकर नकली रामदीन के पास चला गया जो उसी पंचकल्यान घोड़ी पर सवार था और उसके साथ-साथ जाने लगा। यह बात लीला को बहुत बुरी मालूम हुई क्योंकि वह राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों से बहुत डरती थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद वह बोली––

लीला––(भैरों से)आपने राजा साहब का साथ क्यों छोड़ दिया?

भैरोंसिंह––(हँसकर)तुम्हारा साथ करने के लिये, क्योंकि मैं अपने दोस्त रामदीन को अकेला नहीं छोड़ सकता।

लीला––और जब मुझे राजा साहब ने अकेले जमानिया भेजा था तब आप कहाँ डूब गये थे?

भैरोंसिंह––तब भी तुम्हारे साथ था मगर तुम्हारी नजरों में छिपा हुआ था।

लीला––(डरकर, मगर अपने को सम्हालकर) परसों तुम कहाँ थे? कल कहाँ थे और आज सवेरा होने के पहले तक कहाँ गायब थे? क्यों झूठी बातें बना रहे हो?

भैरोंसिंह––परसों भी कल भी और आज तक भी मैं तुम्हारे साथ ही था मगर तुम्हारी नजरों से छिपा हुआ था, हाँ, जब दो घण्टे रात बाकी थीं तब मैंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया और राजा साहब से जा मिला। अब मैं फिर तुम्हारे साथ जा रहा हूँ क्योंकि राजा साहब का ऐसा ही हुक्म है। (हँसकर) क्योंकि राजा साहब ने सुना है कि तुम्हारा इरादा जमानिया पहुँचने के पहले ही भाग जाने का है।

लीला––(अपने उछलते कलेजे को रोककर) यह उनसे किसने कहा?

भैरोंसिंह––मैंने?

लीला––और तुम्हें किसने खबर दी?

भैरोंसिंह––तुम्हारे दिल ने।

लीला––मानो मेरे दिल के आप भेदिया ठहरे!

भैरोंसिंह––बेशक ऐसा ही है। अगर तुम्हें ऐयारी का ढंग पूरा-पूरा मालूम होता तब तुम्हारा दिल मजबूत होता मगर तुम्हारी ऐयारी अभी बिल्कुल कच्ची है। आह, एक बात तुमसे कहना तो मैं भूल ही गया, जिस रात मायारानी राजा वीरेन्द्रसिंह के लश्कर से भाग गई थी उसी रोज सवेरा होने के पहले ही खबर राजा गोपालसिंह को मालूम हो गई थी।

लीला––(काँपती हुई और लड़खड़ाती आवाज में) यह तो मुझे मालूम है, मगर तुम्हारे इस कहने का मतलब क्या है सो समझ में नहीं आता।

भैरोंसिंह––मतलब यही है कि तुम अपनी सूरत साफ करो और मेरे साथ राजा साहब के पास चलो क्योंकि अब असली रामदीन के सामने तुम्हारा रामदीन बने रहना मुनासिब नहीं है

लीला––असली रामदीन अब कहाँ... जल्दी में लीला इतना कह तो गई मगर फिर उसने जुबान बन्द कर ली। भैरोंसिंह की चलती-फिरती बातों ने उसका कलेजा हिला दिया और वह समझ गई कि अब मेरा नसीब मुझे धोखा दिया चाहता है, मेरा भेद खुल गया, और अब मेरे कैद होने में ज्यादा देर नहीं है। अब उसके दिल ने भी कहा कि वास्तव में कल ही राजा साहब को तुझ पर शक हो गया था, अगर तू कल ही भाग जाती तो अच्छा था, मगर अब तेरा भागना भी कठिन है। लीला ने कुछ और सोच-विचार के भैरोंसिंह से कहा, "तुम जरा निराले में चलकर मेरी एक बात सुन लो, बेहतर होगा कि हम दोनों आदमी घोड़ा बढ़ाकर जरा आगे निकल चलें, मैं जो बात कहना चाहता हूँ, उसे सुनकर तुम बहुत खुश होओगे।"

भैरोंसिंह––न तो मैं तुम्हारी कुछ सुन सकता हूँ और न तुम्हें छोड़ सकता हूँ, हाँ, एक बात तुम्हें और भी कहे देता हूँ, जिसे सुनकर तुम्हारे दिल का खुटका निकल जायेगा, वह यह है कि जब राजा साहब ने दीवान साहब के नाम की चिट्ठी देकर असली रामदीन को जमानिया भेजा था तो जुबानी कह दिया था कि "इस चिट्ठी में हमने दो सौ सवार भेजने के लिए लिखा है, मगर तुम केवल बीस सवार अपने साथ लाना और जिस दिन हमने माँगा है उसके एक दिन बाद आना।" कहो अब तो बहुत-सी बातें तुम्हारी समझ में आ गई होंगी?

इतना कहकर भैरोंसिंह ने लीला का हाथ पकड़ लिया और राजा साहब की तरफ चलने के लिए कहा मगर लीला को उधर जाना मंजूर न था इसलिए उसने अपनी घोड़ी को न रोका और झटका देकर हाथ छुड़ाना चाहा मगर ऐसा न कर सकी, भैरोंसिंह ने उसे खींचकर जमीन पर गिरा दिया। उसी समय भैरोंसिंह को मालूम हुआ कि यह मर्द नहीं, औरत है।

भैरोंसिंह की यह कार्रवाई देखकर सभी के कान खड़े हो गये। सवारों ने घोड़ा रोक दिया, राजा साहब की सवारी (रथ) खड़ी हो गई, कई सवार अपने घोड़े पर से कूद कर भैरोंसिंह के पास चले आये और इन्द्रदेव भी रथ पर से उतरकर उसके पास जा पहुँचे। आज्ञानुसार लीला की मुश्कें बाँध ली गयीं और पानी मँगा कर उसका चेहरा साफ किया गया और तब लीला को सभी ने पहचान लिया। लीला राजा गोपालसिंह के पास लाई गई और भैरोंसिंह ने सब हाल कहा, जिसे सुन राजा साहब हँस पड़े और बोले, "अब इन्द्रदेव जैसा कहें वैसा करो।"

इन्द्रदेव की आज्ञानुसार लीला रस्सियों से जकड़कर एक खाली रथ पर बैठा दी गई और कई सवार उसकी निगरानी पर मुस्तैद किये गये।

अब सवारी तेजी के साथ जमानिया की तरफ रवाना हुई। दोपहर के बाद जब सवारी जमानिया के पास पहुँची तब इन्द्रदेव ने राजा साहब से धीरे-धीरे कुछ कहा और रथ से उतरकर पैदल ही मैदान का रास्ता लिया और देखते-देखते न मालूम कहाँ चले गये। सवारी खास बाग के दरवाजे पर पहुंची और राजा साहब रथ से उतर कर भैरोंसिंह को साथ लिए हुए बाग के अन्दर चले गये।