ऊषा-अनिरुद्ध
राधेश्याम कथावाचक

बरेली: राधेश्याम कथावाचक, पृष्ठ १ से – ४ तक

 
 


* ऊषा-अनिरुद्ध *
नाटक

 

मङ्गलाचरण

[इस दृश्य को नाटक की प्रस्तावना समझिए]


* गायन *

नट नटी आदि––

जय गणपति, गणनायक, सुख के सदन सुखदायक।
एकदन्त दयावन्त सोहे सिन्दूर, मूषक सवारी,
भव भय हारी, विधनविदारी, कष्टनिवारी ॥जय॰॥

नट––

जय हरिहर सुख के सदन दुःख विनाशन-हार।
एक रूप से विश्व के, पोषण पालन हार॥
रंगभूमि पै आपके, गुणगाने हैं आज।
शक्तिपते, वह शक्तिदो, सुफल होंय सब काज॥

नटी––नाथ, आजतो आपने पड़ा विचित्र ध्यान किया है, हरि और हर दोनों का एक ही प्रार्थना में गुणगान किया है!

नट––प्रिये, यह भारत का दुर्भाग्य है जो सम्प्रदायों के झगड़े इस देश की उन्नति नहीं होने देते। शैवलोग वैष्णवों के द्वेषी हैं तो गणपति के उपासक शाक्त धर्म की निन्दा करते हैं। सनातनधर्मियों द्वारा जैन धर्मियोंका हास्य और जैनधर्मियों द्वारा सनातनधर्मियों का उपहास! हाय! जाति का इतना ह्रास! सर्वनाश, सर्वनाश!

नटी––तो क्या आज जाति-संगठन का ही नाटक दिखाना है?

नट––प्रिये, यह काम तो देश की वेदी पर बलिदान होनेवाले उन धर्म वीरों का है, जो सर्वस्व अर्पण करके हिन्द-संगठन के लिये कटिबद्ध हुए हैं। हमें इतने बड़े मैदान में नहीं जाना है।

नटी––[आश्चर्य से] तो क्या बताना है?

नट––केवल शैव और वैष्णव सम्प्रदाय के झगड़ों की चर्चा उठाना है। धर्म की आड़ में परस्पर लड़नेवाले धर्माचार्यों को प्रेम और एकता के मार्ग पर लाना है:––

जो सोते हैं उन्हें अपने मधुर स्वर से जगायेंगे।
विरोधों को मिटाकर, प्रेम की वंशी बजायेंगे॥

नटी––तो आज के नाटक का प्रारम्भ कल्पना ही से होगा या किसी इतिहास अथवा पुराण से?

नट––हमारे महर्षियों ने अपने पवित्र ग्रन्थों में कोई बात नहीं छोड़ी है। शिव और विष्णु भक्तों के चरित्र अक्सर पुराणों में पाये जाते हैं। तुम जिसे कहो उसे करके दिखायें।

नटी––मेरे विचार से तो शिव के भक्त शोणितपुर-पति वाणासुर और भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र के पौत्र श्री अनिरुद्ध कुमार का चरित्र दिखाइये।

नट––तो यह कहो न कि "ऊषा अनिरुद्ध" का नाटक रचाइये!

नटी––हां, इसी विचारको काममें लाइये। एक ओर प्रेमसागर में अपने दर्शकों को नहलाइये और दूसरी ओर सम्प्रदाय के झगड़ों की बुराइयां बताकर, ऐक्य और संगठन के झंडे के नीचे अपने देश और अपनी जाति को लाइये:––

उसी देश को मिलता मान, धर्म कर्म जिसका बलवान।
हम अनेक हैं एक समान, घर घर होता हो यह गान॥

 

बाहर वाले जानलें, घर वालों की टेक।
बाहरवालों के लिये, घर वाले सब एक॥

गाना

बालिकायें-

हरीहर दोनों एक समान ।

हरिद्वार या हरद्वार हो, द्वार एक ही जान ।
एक रूप में राजे दोनों, गावें वेद पुरान ॥
पालन पोषण करते हैं जो, एक विष्णु भगवान ।
वही रुद्र बन संहारे हैं, जाने सन्त महान ॥
हरिहरात्मक रूप मजे जो, पाव पद निर्वान।
भेद छोड़ जो जपें प्रभू को, वही भक्त सज्ञान ।।