आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ १५७ से – १९६ तक

 

अथ पाल्हखण्ड। मलखानका बिवाह अथवा पथरी. गढ़की लड़ाई॥ सया॥ ध्यावत तोहिं सदा हनुमान यही बरदान मिलै मोहिं स्वामी। हाथ लिये धनुबान कृपान मिलें भगवान जे अन्तरयामी॥ टारे ₹न कबों उरते तिन राम नमामि नमामि नमामी। जान यही ललिते बरदान सुनो हनुमान सदा सुखधामी १ सुमिरन ॥ तुलसी हुलसी अब दुनिया में झुलसी सकल नरनकीकावि।। घर घर पोथी रामायण की दर दर फिर बगल में दावि ? गिरिगिरि चन्दन नहिं होकहुँ बन बन नहीं रह गजराज ।। नारि प्रतिव्रत नहिं घर घर हैं थल थल नहीं होय कविराजर

भाइक होवें नहिं दुनिया में तव गुण जावे सबै हिराय ।। ॥

भोजन खावै हरिको ध्यावै साँचो ग्राहक दीन बताय ३
नाहक जग में कोउ पछतावै भाव नहीं दूसरो काज॥
देही आपनि गलि गलि जावै आबै फेरि जगत में लाज ४
छूटि सुमिरनी गै ह्याँते अब शाका सुनो शूरमन क्यार॥
ब्याह बखानों मलखाने का लड़िहैं बड़े बड़े सरदार ५

अथ कथाप्रसंग॥


यहु गजराजा पथरीगढ़ को ज्यहिको भरी लाग दरबार॥
बैठक बैठे सब क्षत्री हैं एकते एक शूर सरदार १
सुवा पहाड़ी कहुँ पिंजरन में महलन नाचिरहे कहुँ मोर॥
बैठि कबूतर कहुँ घुटकत हैं तीतर बोलिरहे कहुँ जोर २
घोड़ अगिनिया त्यहि राजाके साजा सबै विधाता काज॥
है गजमोतिनि त्यहिकी बेटी विद्या रूप शील शिरताज ३
सो नित खेलै सॅग सखियन में मेलै सदा गले में हाथ॥
सेमा भगतिनि की चेली है गुटवा ख्यलै सखिन के साथ ४
खेलत खेलत कछु सखियों ने कीन्ही तहाँ ब्याह की बात॥
कोउकोउ सखियाँ तहँ व्याहीथीं जानैं भलो श्वशुरपुर नात ५
ब्याही बोलैं अनव्याहिन सों सखियो सुनो हमारी बात॥
सुरपुर हरपुर हरिपुर नाहीं जो सुख मिले श्वशुरपुररात ६
सुनि सुनि बातैं ये ब्याहिनकी तहँ अनव्यहीमनैंअकुलायॅ॥
फिरिफिरिपूंछै तिन सखियनमा कासुखश्वशुरपुरैअधिकाय ७
बतियॉ घतियॉ जे बालम की छतियॉ छुवैं और अठिलायॅ॥
रनियॉ केरी सब बतियाँ को सखियॉ कहैं और हरपायॅ ८
सुरपुर हरपुर हरिपुर नाहीं जो सुखश्वशुरपुरैअधिकाय॥
सुनि सुनि बातैं ये व्याहिनकी मनमाँ गई बात ये छाय ९

सब अनब्याही ब्याकुल ह्वैकै घरका चलीं मनैं पछिताय॥
गै गजमोतिनि निज महलनमें सोई समय रातिको पाय १०
जागे रोवन शय्या लागी माता लीन्ह्यो हृदय लगाय॥
काहे रोवत तुम बेटीहौ हमको हालदेउ बतलाय ११
दीख्यों सुपना मैं माता है ब्याहे लिये कोऊ घरजाय॥
मैं सुधि कीन्ह्यों तहँ बप्पाकी माता रोय उठिउँ अकुलाय १२
सुनिकै बातैं ये बेटी की चंपा गोद लीन बैठाय॥
चूम्यो चाट्यो गले लगायो बातनदिह्यो ताहि बहलाय १३
अवसर पायो जब रानी ने राजा पास पहुंची जाय॥
बेटी लायक है ब्याहन के टीका देउ आप पठवाय १४
समया आयो अब कलियुगका औ युगधर्म रहा दर्शाय॥
बातैं सुनिकै ये रानी की राजा नेगी लीन बुलाय १५
सूरज बेटा को बुलवायो तासों हाल कह्यो समुझाय॥
दिल्ली कनउज चहु तहँ जायो जायो जहँ न चँदेलोराय १६
तीन लाख को टीका लैकै सूरज कूच दीन करवाय॥
आठ रोज की मैजलि करिकै पहुँच्यो जहाँ पिथौरराय १७
को गति बरणै तहँ दिल्ली कै जहँपर रहै कौरवनराज॥
जहँपर गर्जत दुर्योधनरहै जहँपर अये कृष्णमहराज १८
भीषम ऐसे जहँ योधा थे द्रोणाचार्य ऐस द्विजराज॥
तहपर गरजे शिरीकृष्ण जी जयजयनमोनमो व्रजराज १९
जब सुधि आवत है दिल्ली के तब मन आय जात व्रजराज॥
सदा पियारे हैं बिप्रन के अबहूं देत खानको नाज २०
तहँपर पहुँचे सूरज ठाकुर चिट्ठी तुरत दीन पकराय॥
आँक ऑक सब पृथ्वी बांचा जो कुछ लिखा बिसेनेराय २१

ब्याह बिसेने के करिबे ना टीका तुरत दीन लौटाय॥
सूरज चलिमे तहँ दिल्ली ते कनउज फेरि पहूंचे आय २२
हैं कनवजिया जहँ बाम्हन बहु बड़ बड़ महल परैं दिखराय॥
वेद पुराणन की चर्चा तहँ घरघरअधिक२ अधिकाय २३
सूरज पहुँचे जब ड्योढ़ी में बोला द्वारपाल शिरनाय॥
कौने राजाके लड़िकाहौ राजै खबरि देयँ पहुँचाय २४
बातैं सुनिकै द्वारपाल की सूरज हाल दीन समुझाय॥
द्वारपाल सुनि गा राजा ढिग तुरतै खबरि सुनाई जाय २५
सुनिकै बातैं दरवानी की राजै हुकुम दीन फरमाय॥
द्वारपाल सूरज ढिग आयो लैकै सभा पहूँचा जाय २६
चिट्ठी दीन्ह्यो तहँ सूरज ने जयचँद पढ़ा बहुत मनलाय॥
क्यहिका लड़िका घरभारू है पथरीगढ़ै बियाहन जाय २७
घोड़ अगिनिया जिनकेघरमाँ ज्यहिके मारे फौज बिलाय॥
तुरतै टीकाको लौटार्यो यहु महराज कनौजीराय २८
चलिभे सूरज तहँ कनउजे ते उरई फेरि पहूंचे आय॥
पांचकोस मोहवे के आगे मार हिरन उदयसिंहराय २९
सूरज ऊदन यकमिल ह्वैगे दुनों कीन्ह्यो रामजुहार॥
ऊदन पूछैं तहँ सूरज ते ठाकुर पथरी के सरदार ३०
टीको ऐसो का लै गमन्यो नेगी संग तुम्हारे चार॥
सूरज बोलो तब ऊदन ते ठाकुर बेंदुलके असवार ३१
निकरे हनवन हम गहा के सॉचे हाल दीन बतलाय॥
काह शिकारै तुम आयो है अकसर बनै उदयसिंहराय ३२
सुनिकै बातैं ये सूरज की बोला तुरत बनाफरराय॥
किह्यो बहाना तुम सूरज है नेगी संग लियेहौ भाय ३३

हनवन केरी यह सामा ना झूंठी बात रह्यो बतलाय॥
सूरज बोले फिरि ऊदन ते सांची सुनो बनाफरराय ३४
टीका लाये हम बहिनी का दिल्ली कनउज अये मँझाय॥
टीका लीन्ह्यो क्यहु क्षत्री ना जावैं लौटि बनाफरराय ३५
इतना सुनिकै ऊदन बोले हमपर शारद भई सहाय॥
दादा क्वारे मलखाने हैं टीका लिहे चलो तुम भाय ३६
सुफल तुम्हारी मेहनत होई हमरों काज सिद्ध ह्वै जाय॥
सुनिकै बातैं ये ऊदन की सूरज बोला बचन रिसाय ३७
नहीं आज्ञा महराजा की टीका नग्र मोहोबे जाय॥
जाति बनाफर की होनी है कीरति रही जगत में छाय ३८
सुनिकै बातैं ये सूरज की बोला उदयसिंह सरदार॥
नीके जैहौ तौ लैजैहौं नहिं यह देखिलेउ तलवार ३९
सुनिकै बातैं ये ऊदन की नाई बारी उठे डेराय॥
ते समुझावैं भल सूरजको मानो कही बिसेनेराय ४०
रारि न करियो तुम ऊदनते नामी देशराज को लाल॥
पाँच कोस मोहबा है बाकी जहँ पर बसैं रजापरिमाल ४१
सुनि सुनि बातैं सबनेगिनकी सूरज मनै गयो तसआय॥
नेगिन लैकै सूरज ऊदन पहुँचे जहाँ चँदेलोराय ४२
सजी कचहरी परिमालिक की भारी लाग राज दरबार॥
ब्रह्मा आल्हा मलखे देबा सय्यद बनरसका सरदार ४३
देखिकै सूरजको परिमालिक बोले मधुर बचन मुसुकाय॥
कहाँते आयो औ कहँ जैहौ आपन हाल देउ बतलाय ४४
सुनिकै बातैं परिमालिककी सूरज यथातथ्य गे गाय॥
हाल जानिकै सब चंदेलो बोला सुनो बनाफरराय ४५

११

टीका आयो पथरीगढ़का ताको तुरत देउ लौटाय॥
ब्याह बिसेने घर करिबे ना मानों कही उदयसिंहराय ४६
घोड़ अगिनियाँ तिनके घरमाँ ज्यहिके मारे फौज बिलाय॥
सुनिकै बातैं परिमालिक की बोले तुरत बनाफरराय ४७
दतिया मारि उरैछोमारो पहुँचे सेतुबंध लों जाय॥
पेशावर मुल्तान कमायूं बूंदी थहर थहर थहराय ४८
अटक पारलों झंडा गड़िगो औ मेवात लीन लुटवाय॥
गर्ब न राखा क्यहु क्षत्री का मानो कही चँदेलोराय ४९
गिनती किनमें बिसियानन की ठाढ़े तखत देउँ उलटाय॥
हीनी मुखसों तुम भाषतहौ मेरो रजपूती धर्म नशाय ५०
मलखे ब्याहनको रैहैं ना यहु दिन कहिबेको रहिजाय॥
टीका लौटी ना मोहबे ते राजा सत्य दीन बतलाय ५१
बोला चँदेला तब देबा ते अब तुम शकुन बिचारो भाय॥
कैसी गुजरी पथरीगढ़ में सो सब हाल देउ बतलाय ५२
सुनिकै बातैं परिमालिककी देबा पोथी लीन उठाय॥
शकुन सोचिकै देबा बोला साँची कहौं चँदेलोराय ५३
जीति तुम्हारी है पथरीगढ़ काहू बार न बाँको जाय॥
आजु कि साइति भल नीकीहै टीका अबै देउ चढ़वाय ५४
सुनिकै बातैं ये देबाकी महलन खबरिदीन पहुँचाय॥
गा हरिकारा दशहरिपुरवा द्यावलि बिरमा लवालिवाय ५५
आँगन लीपागा गोबर सों मोतिन चौक दीन पुरवाय॥
चूड़ामणि पण्डित फिरिआये तुरतै सूरज लये बुलाय ५६
चारो नेगी सँग में लैकै सूरज महल पहुंचे आय॥
चरण लागिकै मलखाने के बीरा मुखमें दीन खवाय ५७

सखियाँ गावन मंगल लागीं नेगिन झगर मचावा आय॥
सोने चाँदी के गहना को सूरज सबै दीन पहिराय ५०
ऊदन पहुँचे निज कमरामें डिब्बा लाये तुरत उठाय॥
खुब पहिरावा सब नेगिन को चारों खुशीभये अधिकाय ५९
बचा बचावा जो गहना रहै नेगिन स्वऊ दीन पकराय॥
औरो नेगी जो पथरीगढ़ तिनको यहौ दिह्यो पहिराय ६०
ऊदन बोले फिरि नेगिनसे तुम गजराज दिह्यो समुझाय॥
माघ शुक्ल तेरसि की साइति होई ब्याह तहांपर आय ६१
हाथ जोरिकै सूरज बोले आज्ञा देउ चँदेलोराय॥
हम चलिजावैं पथरीगढ़ को राजै खबरि सुनावैं जाय ६२
बातैं सुनिकै ये सूरज की राजै हुकुम दीन फर्माय॥
राम जुहार तुरत फिरिकरिकै सूरज कूच दीन करवाय ६३
सौ सौ तोपैं दगीं सलामी पठवन चले लहुरवाभाय॥
बिदा माँगिकै फिरि ऊदनसों अपने नेगी संगलिवाय ६४
सूरज चलिमे पथरीगढ़को माहिल कथा कहीं अब गाय॥
कहुँ सुधिपाई माहिल ठाकुर टीका चढ़ा मोहोबे जाय ६५
लिल्लीघोड़ी को मँगवायो तापर तुरत भयो असवार॥
सूरजतेनी आगे पहुँचा ठाकुर उरई का सरदार ६६
सजी कचहरी गजराजा की भारी लाग राज दरवार॥
झारि बिसेने सब बैठे हैं टिहुननधरे नाँगि तलवार ६७
माहिल पहुँचे त्यहि समया में राजै कीन्ह्यो राम जुहार॥
बड़ी खातिरी राजै कीन्ह्यो बैठा उरई का सरदार ६८
राजा बोले फिरि माहिलते नीके रहे खूब तुम भाय॥
माहिल बोले फिरि राजाते भइ अनहोनी कहीनाजाय ६९

बेटी तुम्हरी गजमोतिनि का टीका चढ़ा मोहोबे जाय॥
जाति बनाफर की हीनी है जानों भलीभांति तुमभाय ७०
पानी पीहै को घर तुम्हरे आपन धर्म गँवैहै आय॥
अबै न बिगरा कछु राजाहै साँचे हाल दीन बतलाय ७१
सुनिकै बातैं ये माहिल की राजा गयो सनाकाखाय॥
तबलौं सूरज अटा कचहरी राजै शीश नवायो आय ७२
राजा बोल्यो फिरि सूरजते टीका कहाँ चढ़ायो जाय॥
दोउ कर जोरे सूरज बोले दादा सत्य देउँ बतलाय ७३
दिल्लीकनउज हम फिरि आयन टीका क्यहुन लीन महिपाल॥
मोहबे उरई के अन्दर में मिलिगे देशराज के लाल ७४
लै बरजोरी गे मोहबे को, टीका चढ़ा बीर मलखान॥
जो कछु रारिकरत मोहबे में दादा जात प्रान पर आन ७५
माघ शुक्ल तेरसिको अइहैं यह सच साइतिका परमान॥
मारब ब्याहब जो कछु कहिहौ उतनै धनै भई है हान ७६
जितना टीका में दै आये लाये आपन प्राण बचाय॥
साम दाम अरु दण्ड भेद सों कीन्हे काज तहांपर जाय ७७
सुनिकै बातैं ये सूरज की राजै पास लीन बैठाय॥
फिरि शिरसूंघ्यो गजराजाने लीन्ह्यो तुरतै गले लगाय ७८
राजा बोल्यो फिरि माहिल ते ठाकुर उरई के सरदार॥
ब्याहन अइहैं जब हमरे घर तबहीं चली तुरत तलवार ७९
ब्याह न होई गनमोतिनिका तुमते साँच दीन बतलाय॥
बिदा मांगिकै फिरि राजासों माहिल चले बड़ा सुखपाय ८०
माघ महीना आवन लाग्यो धावन लगे मोहोबे दूत॥
लिखिलिखिचिट्ठीपरिमालिकने न्यवतन हेत पठावा दूत ८१

दिल्ली कनउज औ नैनागढ़ उरई न्यवत दीन पठवाय॥
सिरउज पनउज औ बौरी में न्यवता भेजा चंदेलोराय ८२
पायकै चिट्ठी परिमालिककै इनको मानि बड़ो ब्यवहार॥
नगर मोहोबे के जानेको राजा होन लागि तय्यार ८३
बाजे डंका अहतंका के राजन कूचदीन करवाय॥
तेरस केरो शुभ मुहूर्त्त पढ़ मोहबे गये सबै नृप आय ८४
तम्बू गड़िगे महराजन के खातिर कीन उदयसिंहराय॥
पढ़े पढ़ाये सब क्षत्री रहैं अपने धर्म कर्म समुदाय ८५
उचित औ अनुचितके ज्ञाता रहैं जानैं राजनीति सब भाय॥
देश आरिया यह बाजत है आरय कहे बसिंदा जायँ ८६
आरय ऊदन त्यहि समया में सबको खुशी कीन अधिकाय॥
तुरत नगड़ची को बुलवायो तासों कह्यो हाल समुझाय ८७
बाजै डंका अब मोहबे माँ सबियाँ फौज होय तय्यार॥
सुनिकै बातैं ये ऊदन की डंका बजनलाग त्यहिबार ८८
मलखे आये फिरि महलन में होवन लाग तेल त्यवहार॥
एक कुमारी तेल चढ़ावै गावैं सबै मंगलाचार ८९
माय मन्तरा भे दुसरे दिन नहखुर समयगयो फिरिआय॥
लैकै महाउर नाइनि आई नहखुर करन लागि हर्षय ९०
जो कछु माँग्यो ज्यहि नेगी ने मल्हना दीन ताहिसमुझाय॥
मनके भाये जब सब पाये नेगिन खुशी कहीनाजाय ९१
कुँवाँ बियाहन के समया में मलखे चढ़ पालकी धाय॥
बिटिया मल्दना की चन्द्रावाले राई नोन उतारति जाय ९२
जायकै पहुंचे फिरि कुँवनापर बिरमा पैर दीन लटकाय॥
भाँवरि घुम्यो मलखाने ने लीन्ह्यो माता पैर उठाय ९३

बहू लय आवों त्वरि सेवा को माता बाग दिह्यों लगवाय॥
ऐसा कहिकै मलखाने ने भाँवरि घुमी सातहू धाय ९४
पाँय लागि कै फिरि मल्हनाके द्यावलि चरणनशीशनवाय॥
चरणन लाग्यो जब बिरमा के मातालीन्ह्यो हृदयलगाय ९५
पंजा फेर्यो फिरि मल्हना ने तुम्हरो बार न बाँका जाय॥
बैठि पालकी मलखाने गे मनमें श्रीगणेशकोध्याय ९६
बाजन बाजे फिरि मोहबे माँ हाहाकारी शब्द सुनाय॥
हाथी सजिगा पचशब्दा तहँ आल्हा चढ़े रामकोध्याय ९७
हरनागर की फिरि पीठीमाँ ब्रह्मा फाँदि भये असवार॥
वीरशाह बौरी का राजा रूपन सिरउज का सरदार ६८
देवकुँवरि रानी के बालक पनउज केरे मदन गुपाल॥
ये सब क्षत्री चढ़ि घोड़नपर औरौ सजे बहुत नरपाल ९९
घोड़ मनोहर देबा बैठे सय्यद सिर्गापर असवार॥
सजा बेंदुला का चढ़वैया जो दिनरात करै तलवार १००
घोड़ी कबुतरी मलखाने की कोतल तुरत भई तय्यार॥
लक्खा गर्रा पँचकल्यानी हरियलमुश्कीघोड़अपार १०१
सुर्खा सब्जा सिर्गा सुरँगा ताजी तुरकी रंग बिरंग॥
कच्छी मच्छी काबुल वाले तिनकीकसीगईफिरि तंग १०२
डारि रकाबै गंगा यमुनी मुखमें दीन लगाम लगाय॥
परीं हयकलैं सब घोड़न के मेंहदी बूटा रहे बनाय १०३
नवल बछेड़ा सब साजेगे एकते एक रूप अधिकाय॥
हथी महावत हाथी लैकै तिनपर हौदादये धराय १०४
हाथी सजिगे जब मोहबे में तोपै सबै भई तय्यार॥
पहिल नगाड़ामें जिनबन्दी दुसरे फाँदिभये असवार १०५

तिमर नगाड़ाके बाजत खन क्षत्रिन कुच दीन करवाय॥
बाजे डंका अहतंका के बंका चले शूर समुदाय १०६
मारु मारुकै मौहरि बाजै बाजै हाव हाव करनाल॥
खर खर खर खर कै रथ दौरे रब्बाचले पवनकी चाल १०७
लक्ष पताका यकमिल ह्वैगे नभमाँ गई लालरी छाय॥
धूरि उड़ानी हय टापन सों बाबा सूरज गये छिपाय १०८
व्याकुल ह्वैकै पक्षी भागे जंगल जीव गये थर्राय॥
चली बरातैं मलखाने की हमरे बूत कहीं ना जाय १०९
सात रोजकी मैजलि करिकै पहुँचे तुरत धुरेपर आय॥
तम्बू गड़िगे महराजन के झंडा सरग फरहरा खायँ ११०
सजिगा तम्बू तहँ आल्हा का भारी लाग खूब दरबार॥
चूड़ामाणि पण्डित तहँ आयों साइति लाग्योकरनबिचार १११
साइति नीकी अब आई है ऐपनवारी देउ पठाय॥
हाथ जोरिकै रूपन बोला नेगी कौन तहाँ को जाय ११२
हम नहिं जैहैं पथरी गढ़को सांची सुनो बनाफरराय॥
बातैं सुनिकै ये रूपन की बोलातुरत लहुरवा भाय ११३
घोड़ी कबुतरी दादावाली रूपन चढ़ो ताहिपर जाय॥
बानाराखे रजपूती का कैसे बने जनाना भाय ११४

सवैया॥


प्राण न प्यार करैं रणशूर कहैं ललिते हम सत्य बिचारी।
सोनकोधारि झमा झमकारि सो जातसदा पियसेजमें नारी॥
पाय निशा चमकै तहँ नारि सो रारिकिये चमकै तलवारी।
रारिकिये यश शूरने होत सो कूरनकी अपकीरति भारी ११५


सुनिकै बातैं ये ऊदनकी रूपन बहुतगयो शर्माय॥
घोड़ी कबुतरी पर चढ़ि बैठ्यो ऐपनवारी लीन उठाय ११६
माथ नायकै सब क्षत्रिन को मनियादेव हृदय सों ध्याय॥
चारिघरी के फिरि अरसा माँ फाटक उपर पहूंचा आय ११७
हुकुम दर्ररै हुकुम दर्ररै साहेबजादे बात बनाय॥
कहाँते आये औ कहँ जैहै आपन काम देय बतलाय ११८
सुनिकै बातैं दरवानी की बोला घोड़ी का असवार॥
नगर मोहोबा जगमें जाहिर नामी मोहबे के सरदार ११९
ब्याहन मलखे को आयन है मानो साची कही हमार॥
ऐपनवारी बारी लायो बोलो ठाढ़ो राज दुवार १२०
नेग आपने को झगरत है भारी नेग चहै कछुद्वार॥
नेग आपनो का तुमचाहौ बोलो घोड़ी के असवार १२१
घोड़ी जोड़ी लैकै जाई डांड़े परे तासु भर्त्तार॥
बोलु गवाँरे अब ऐसे ना द्वारे चहौं चलै तलवार १२२
सुनिकै बातैं ये रूपन की चकृत द्वारपाल भा द्वार॥
फिरि २ देखै दिशि रूपन के फिरि २ लावै शोच बिचार १२३
ऐसो बारी हम देखा ना जैसो आयो आज दुवार॥
सोचि समुझिकै फिरिसो बोला बोलो घोड़े के असवार १२४
गरमी तुम्हरी अब कछु उतरी बोलो नेग काह तुम द्वार॥
चार घरी भर चलै सिरोही दारे बहै रक्त की धार १२५
नेग हमारो यह साँचा है याँचा द्वार तुम्हारे आय॥
जौन शमा हो पथरीगढ़ हमरो नेग देय चुकवाय १२६
ऐसे वैसे हम बारी ना मारी सदा शूर दश पांच॥
खबरि सुनावै तू राजा का तेरी निकरिपरै कस कांव १२७

सुनिकै बातैं ये रूपन की पहुँचा द्वारपाल दरबार॥
झारि बिसेने सब बैठे हैं एकते एक शूर सरदार १२८
हाथ जोरि औ बिनती करिकै बोला द्वारपाल शिरनाय॥
ऐपनवारी बारी लायो भारी नेग चहै ह्याँ आय १२९
चार पहरभर चलै सिरोही द्वारे बहै रक्तकी धार॥
नेग आपनो बारी बोलै लीन्हे हाथ ढाल तलवार १३०
सुनिकै बातैं द्वारपाल की तब गजराजा उठा रिसाय॥
बाँधिकै मुशकै त्यहि बारी की सूरज मोहिं दिखावै आय १३१
इतना सुनिकै मानसिंह तहँ द्वारे तुरत पहूँचा आय॥
सेल चलायो त्यहि रुपनापर रुपनालीन्ह्यो वारबचाय १३२
मार्यो लटुवा फिरि भालाको शिरते चली खूनकी धार॥
एँड़ा मसक्यो फिरि घोड़ी के फाटकनिकरिगयोवहिपार १३३
बहुतक दौरे फिरि पाछे सों धरु धरु मारु करैं ललकार॥
घोड़ी कबुतरी मलखेवाली नामी मोहबेका सरदार १३४
त्यहिके बलसों रूपन बारी बहुतन मारि मिलायो छार॥
जायकै पहुँचा फिरि तम्बुन में भारी लाग जहाँ दरबार १३५
दीख्यो ऊदन तहँ रूपन का मानों फगुई का त्यवहार॥
कैसी गुजरी रहे द्वारेपर बोले उदयसिंह सरदार १३६
सुनिकै बातैं ये ऊदन की रूपन यथातथ्य गा गाय॥
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडागड़ा निशाको आय१३७
तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय॥
परे आलसी खटिया,तकितकि घों घों कण्ठ रहा घर्राय १३८
करों बन्दना गणनायक की दोनों चरणकमल शिरनाय॥
शीश नवावों पितु अपने को मनमें सदा रामपदध्याय १३९

करों तरंग यहाँ सों पूरण तव पद सुमिरि भवानीकन्त॥
को यशगावै शिवशंकर को जिनको वेद न पावैं अन्त १४०

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनबलकिशोरात्मज बाबूप्रयागना
रायणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपँड़रीकलांनिवासिमिश्रोबंशोद्भवबुध
कपाशंकरसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत मलखानबिवाहविषय
वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥

सवैया॥

दीननके मन मीनन को मेघवा ह्वै वरषत हौ नितवारी।
होय भिखारि चहौ नरनारि किये प्रभुआश सदा सुखकारी॥
दीन पुकार विभीषणकी सुनि आप हर्यो बिपदासबभारी॥
कौन सो दीन रहा शरणागत जोन भयो ललिते हितकारी १

सुमिरन॥


धन्य बखानों मैं नारद को कीन्ह्यो बड़ा जगत उपकार॥
शिक्षा देते नहिं दुष्टन को तौ कस धरत राम अवतार १
जो रघुनन्दन जग होते ना तौ यहचरित करत को भाय॥
काह बखानत तुलसी कलियुग कैसे जात जगत यशवाय २
कृष्ण न होते जो द्वापर में कैसे सूर जात भवपार॥
कोधों मारत शिशुपाले को कोधों करत कंस सों राज़ ३
कैसे अर्जुन भारत जीतत कैसे करत युधिष्ठिर राज़॥
कौन सो दुनिया में ऐसो भो जैसे भये कृष्ण महराज ४
छुटि सुमिरनी गै देवनकै शाका सुनो शूरमन क्यार॥
माहिल अइहैं उरई वाले जहँ गजराज केर दरबार ५

अथ कथाप्रसंग॥


गा जब रूपन बचि द्वारे पर माहिल आयगयो ततकाल॥

आदर करिकै बड़ माहिल का बोले मधुर बचन नरपाल १
ऐपनवारी बारी लायो कीन्ह्यो कठिन द्वार तलवार॥
कैसे मरिहैं मोहबे वाले बोलो उरई के सरदार २
सुनिकै बातैं ये राजा की माहिल बोले बचन उदार॥
ज्यहि की नीकी बेटी द्याखैं ऊदन गाँसें तासु दुवार ३
मिर्चवान ब्याहे की पठवो तामें जहर देव मिलवाय॥
बिना बयारी जूना टूटै औ बिन औषध हटै बलाय ४
बातैं सुनिकै ये माहिल की राजा मनै फूलिगा भाय॥
जहर घुरायो त्यहि शर्बत माँ सूरज पुत्र दीन पठवाय ५
दिय जनवासा फिरि पथरीगढ़ पाछे शर्बत दीन पठाय॥
आदर करिकै सूरज ठाकुर चाँदी आबखोर मँगवाय ६
लै अबखोरा भरि त्यहि शर्बत आल्हा पास पहुंचा जाय॥
जब अबखोरा आल्हा लीन्ह्यों सम्मुख भई छींक तब आय ७
ऊदन बोले तब देबा ते अब तुम शकुन बताओभाय॥
देबा बोला तब ऊदन ते साँची सुनो लहुरवाभाय ८
कालरूप यहु शर्बत आयो सबकी मृत्यु गई नगच्याय॥
धारि जनेऊ तब काने में सूरज उठा तड़ाका भाय ९
ऊदन बोले तब आल्हा ते कुत्तै देवो आप पियाय॥
जो मरिजावै पी कुत्ता यह तौ सब जहर देव फिकवाय १०
इतना सुनिकै नेगी चलिभे मारन लागि लहुरवा भाय॥
बड़े दयालू आल्हा बोले ऊदन छाँड़ि देव यहि ठायँ ११
प्रजा हमारी सम परजा हैं ठाकुर भागि गयो भयखाय॥
नामी ठाकुर तुम मोहबे के इनपर दयाकरो यहि ठायॅ १२
माधै राजा के नौकर हो तुम्हरो करै काह उपकार॥

संग न देवे जो राजा का तौ हनिमरै काढ़ि तलवार ११
ऐसे दीनन के मारे ते ऊदन जावै धर्म नशाय॥
बड़ी कठिनता नर परिजावै औ परिजाय जानपर आय १४
ललिते दशरथ त्यहिसमयामाँ प्राणै दीन धर्म पर आय॥
तैसे ऊदन कहा मानिकै धर्मे राखु दया पर आय १५
दया राखिकै इन नेगिन को सुखसों देव घरै पहुँचाय॥
बड़ी दीनता इन नेगिन की सबकर गये प्राणघट आय १६
ऊदन ऐसे केहरि सम्मुख लरिकै कौन शूरमाँ जाय॥
किह्यो बड़ाई बड़ भाई की आल्हा धर्म दीन समुझाय १७
ऊदन छाँड़्यो तब नेगिन को नेगी घरै पहूंचे आय॥
हाल बतायो गजराजा को सुनतै गयो सनाकाखाय १८
लिल्ली घोड़ी पर चढ़ बैठ्यो माहिल उरई को सरदार॥
जायकै पहुँच्यो झुन्नागढ़माँ जहँपर भरी लाग दर्बार १९
बड़ी खातिरी मै माहिल कै राजा पास लीन बैठाय॥
माहिल बोले वहि समया में ओ महराजा बात बताय २०
शर्बत खन्दक में डारागा सबकै कुशल भई यहि ठायँ॥
लड़े बनाफर ते जितिहौ ना तुमते सत्य दीन बतलाय २१
अब चलि जावो यहि समयामें आल्हा निकट तुरत महराज॥
हाथ जोरिकै पाँयन परिकै कीन्ह्योअवशिआपनोकाजर २२
बली भयेपर छल करिये ना निर्बल भये छलै सों काज॥
होय हँसौवा कन्या बेहे औ नहिं रहै जगतमें लाज २३
ऐसे समया में महराजा करिये कौन दूसरो साज॥
छली न बाजैं हम दुनियाँ में औ रहिजाय हमारी लाज २४
छल बल राजाका कर्मै है कर्म न होय प्रजनकर भाय॥

धर्म व्यवस्था जहँ परिजावै तहँ सब करैं कहैं हम गाय २५
बातैं सुनिकै ये माहिल की राजा बड़ा कीन सतकार॥
हमरे नीके के साथी हौ राजा उरई के सरदार २६
माहिलचलिभे फिरितम्बुनको राजै नेगी लीन बुलाय॥
लैकै तोड़ा दो रुपियन के औ नौ हीरा लीन उठाय २७
चलिभे राजा झुन्नागढ़ सों पथरीगढ़ै पहुंचे आय॥
तहँपर पहुँचे त्यहि तम्बुन में जहँपर रहैं बनाफरराय २८
जो कछु सामा लैकै गेते आल्है नजरि दीन सो जाय॥
देखिकै सामा महराजा की हर्षित भये बनाफरराय २९
ऊदन बोले फिरि राजा सो काहे किह्यो परिश्रम आय॥
तब गजराजा बोलन लागो मानो कही लहुरवाभाय ३०
देश हमारे की रीती यह परचव लेयँ प्रथमही आय॥
जहर पठावैं ते शर्बत में देखे बिना पियैं जे भाय ३१
बिना बुद्धिके ते नर कहिये उनके निकट कबौं ना जायँ॥
पास परीक्षा तुमको जान्यो लरिकाभागिगयो भयखाय ३२
पै जो पीवन आल्हा शर्बत सूरज तुरत देत बतलाय॥
कछु छल नाही हम कीन्होरहै लरिकाभागिगयो भयखाय ३३
इकलो लड़िका यहिसमयामें माड़ोतरे चलै हर्षाय॥
भाँवरि होवैं त्यहि लड़िका की हाथ न छुवै लोह कछुभाय ३४
सुनिकै बातैं ये राजा की मलखे कहा बचन मुसुकाय॥
छलो की सानी सब बातैं हैं घातैं सबै परैं दिखलाय ३५
इतना सुनिकै आल्हा बोले मानों कही बिसेनेराय॥
किरिया करिल्यो श्रीगङ्गा की तौ वर तुरत देयॅ पठवाय ३६
गङ्गा कीन्ही गजराजा ने औ यह कहा बचन परमान॥

छल जो राखैं तुम्हरे सँग में तौ म्बहिं सजादेयँ भगवान ३७
बातैं सुनिकै ये राजा की आल्हा कहा सुनो मलखान॥
बैठि पालकी में अब जावो तुम्हरो भलो करैं भगवान ३८
सुनिकै बातैं ये आल्हा की मलखे सुमिरि दुर्गामाय॥
तुरत पालकी में चढ़ि बैठे महरन पलकी लीन उठाय ३९
चारि घरी के फिरि अर्सा में महलन तुरत पहूँचे आय॥
उतरि पालकी ते मलखाने मड़ये तरे पहूँचे जाय ४०
फाटक बन्दी गजराजा करि क्षत्री सबै लीन बुलवाय॥
रीति बिवाहे की जस चाही तैसे खंभ गड़ा तहँ भाय ४१
गाफिल दीख्यो मलखाने को बन्धन तुरत लीन कटवाय॥
बाँधिकै खंभा में मलखे को हरियर बांस लीन कटवाय ४२
मारन लागे मलखाने को जामा टूक टूक ह्वैजाय॥
देखि तमाशा फुलियामालिनि महलन गई तड़ाका धाय ४३
खबरि सुनाई गजमोतिनि को जो कुछ कियो बिसेनेराय॥
सुनि गजमोतिनि तहँ ते धाई कोठे उपर पहूंची आय ४४
नीचे दीख्यो त्यहि दुलहाको कङ्कण रहा हाथ दर्शाय॥
तब गजराजा सों गजमोतिनि बोली आरत बचन सुनाय ४५
कहाँ को बॅधुवा यहु आयो है जो अति सहै बाँस के घाय॥
तुरतै छाँडो यहि बँधुवा को मोसों बिपतिदीखिनाजाय ४६
तब गजराजा कह बेटी सों खेलो सखिन साथ तुम जाय॥
पैसा मार्यो यहि ठाकुर ने तासों सहै बाँसके घाय ४७
मलखे दीख्यो तब कोठे को चारों नैन एक ह्वैजायँ॥
धरिकै हुमक्यो मलखाने ने खंभा उखरि गयो त्यहिठायँ ४८
बन्धन ढीलेभे मलखे के खंभा लीन हाथ तब भाय॥

लाग घुमावन तब खंभा को क्षत्री गये सनाकाखाय ४९
लात मारिकै इक क्षत्री को ताकी लीन ढाल तलवार॥
मलखे ठाकुर के मारुन में आँगन बही रक्तकी धार ५०
सिंह गरज्जनि मलखे गर्जैं इत उत हनैं बीर दश पांच॥
जितने कायर रहैं आँगन में देखत ढीलिहोइ तिन कांच ५१
फिरि फिरि मारै औ ललकारै नाहर समरधनी मलखान॥
लरिलरि गिरिगकितन्यो क्षत्री भारी लाग तहाँ खरिहान ५२
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठे जैसे अहिर बिडारै गाय॥
तैसे मलखे के मुर्चा में कोउ रजपूत न रोंके पायँ ५३
सूरज ठाकुर तहँ पाछे सों कम्मरपकरिलीन फिरिआय॥
बहुतक क्षत्री यकमिल ह्वैकै बन्धन फेरि लीन करवाय ५४
त्यलिया खंदक में गजराजा फिरि मलखे को दीन डराय॥
हाल पायकै फुलिया मालिनि बेटी पास पहूंची जाय ५५
कही हकीकत सब मलखे की मालिनि बार बार तहँ गाय॥
सुनिसुनिबातैं तहँ मालिनिकी बेटी बार बार पछिताय ५६
तुम्हैं बिधाता अस चहिये ना जैसी कीन हमारे साथ॥
बड़े दयालू औ बरदाता हमपर कृपाकरो रघुनाथ ५७
फिरि फिरिबिनवै रघुनन्दनको धरिकै भूमि आपनो माथ॥
कैसे देखैं हम बालम को मालिनि फेरिकहौ यहगाथ ५८
सुनिकै बातैं गजमोतिनिकी मालिनिकही कथा समुझाय॥
दिवस बीतिगा इन बातन में संध्याकाल पहूंचा आय ५९
थार मँगायो तब चाँदी का भोजन सबै लीन धरवाय॥
चाँदी केरे फिरि लोटा में निर्मल पानी लीन भराय ६०
पाँच पान को चीरा लैकै रेशम रस्सी लीन मँगाय॥

कीन तयारी त्यहि खंदक को जहँपर परा बनाफरराय ६१
अधी रातिके फिरि अमला में बेटी अटी तहाँ पर जाय॥
रेशम रस्सी को लटकायो ओयह बोली बचन सुनाय ६२
बप्पा हमरे बैरी ह्वैगे तुमका खंदक दीन डराय॥
अब चढ़िआवो गहि रस्सीको बालम बार बार बलिजायँ ६३
सुनिकै बातैं गजमोतिनिकी बोला मोहबेका सरदार॥
घटिहा राजाकी बेटी हौ तुम्हरो कौन करै इतबार ६४
किरिया करिकै म्बहिं लै आयो औ खंदक में दियो डराय॥
बातैं सुनिकै मलखाने की बेटी बोली शीश नबाय ६५
मोहिं शपथ है रघुनन्दन की मानो सत्य बचन तुम नाथ॥
क्वारी रहिहौं मैं दुनिया में की फिरि ब्याहहोय तुमसाथ ६६
सुनिकै बातैं गजमोतिनि की मलखे बोले बचन उदार॥
धर्म क्षत्तिरिन को मिटिजावै जो हम बचैं नारि उपकार ६०
चोरी चोरा हम निकरैं ना ओ गजमोतिनि बातबनाय॥
हमको चाहौ जो ठकुराइनि लश्कर खबरिदेउ पहुँचाय ६८
तुमचलिजावोनिजमहलनको बीती अर्द्धरात अब आय॥
इतना सुनिकै बेटी चलिभै महलन सोयगई फिरिजाय ६९
भोर भवरहो मुर्गा बोले फिरिमालिनिको लीनबुलाय॥
लिखिकै चिट्ठी बधऊदन की मालिनि हाथ दीन पकराय ७०
मालिनि बोली गजमोतिनिसों बेटी बार बार बलिजायँ॥
जो सुधिपाई गजराजा कहँ हमरे जाय प्राणपर आय ७१
बेटी बोली तब फुलिया ते मालिनि सत्य देयँ बतलाय॥
पर उपकारी जो मरिजावै पहुँचै रामधाम में जाय ७२
इक दिन मरनो है आखिरको ताको कौन सोच है माय॥

डोला जाई जब मोहबे को तुमको द्रब्य देउँ अधिकाय ७३
इतना सुनिकै मालिनि चलिभै फाटक उपर पहूँची आय॥
सूरज बेटा गजराजा को द्वारे ठाढ़रहै सो भाय ७४
सो हँसि बोला तहँ मालिनि सों मालिनि कहाँ चली तू धाय॥
मालिनि बोली तहँ सूरज सों बेटा फूल लेन को जायँ ७५
मोहिं पठायो गजमोतिनि है तुम सों सत्य दीन बतलाय॥
सूरज बोला दरवानिन सों याकी लेउ तलाशी भाय ७६
सुनिकै बातैं ये सूरज की नंगाझोरी लीन कराय॥
चिट्ठी खोंसे सो जूरा में ताको पता मिला नहिं भाय ७७
मालिनि चलिभैफिरिआगेको फौजन पास पहूँची जाय॥
जहँ जनवासा था आल्हा का मालिनिअटीतहांपर आय ७८
मालिनि पूछ्यो तहँ माहिलसों कहँ पर बैठ उदयसिंहराय॥
माहिल पूछ्यो तहँ मालिनिसों आपन हाल देय बतलाय ७९
नाम हमारो उदयसिंह है आई कौन काज तू धाय॥
सुनिकै बातैं ये माहिल की मालिनि कथागई सबगाय ८०
सुनिकै बातैं सब मालिनिकी माहिल चाबुक लीन उठाय॥
पीटन लाग्यो सो मालिनिको औ यह कह्योबचनसमुझाय८१
जल्दी जावै घर अपने को अब ना कहे कथा अस गाय॥
बड़े जोर सों मालिनि रोई पहुँचा उदयसिंह तब आय ८२
पुछी हकीकति उदयसिंह तब मालिनि कथागई फिरिगाय॥
मोहिं पठायो गजमोतिनिहै चिट्ठी हाथ दीन पकराय ८३
पढ़तै चिट्ठी बघऊदन के आँखन वही आँसुकी धार॥
डाटन लाग्यो फिरि माहिलको का तुम कीनचहौ अपकार ८४
सुनिकै बातैं बघऊदन की बोला उरई का सरदार॥

१२

हाल बिसेने जो सुनि पावैं तौ यहि डरें जानसों मार ८५
हल्ला करिकै यह बोलतभै तब हम कहा याहि समुझाय॥
धीरे बोलै जनवासे में नहिं कहुँ सुनी बिसेनोराय ८६
इतना सुनतै मुहँ मटकायो गारी दियो बनाफरराय॥
ढोलक नारिन औ शूदन की तुमसों कथा कहौं मैं गाय ८७
जैसे पीटे ढोलक बाजै नारी दशा स्वई है भाय॥
गगरीदाना शूद उताना यहहू मिला खूब ह्याँ आय ८८
भला तुम्हारो हम नित चाहैं साँची सुनो बनाफरराय॥
जैसे भैंने म्बर ब्रह्मा हैं तैसे तुहूँ लहुरखा भाय ८९
घाटि न जानैं हम ब्रह्मा ते कैसी कही उदयसिंहराय॥
इतना सुनिकै ऊदन चलिभे सँगौमेंमालिनिलीन लिवाय ९०
जहँ पर बैठे थे आल्हाजी ऊदन तहाँ पहूँचे जाय॥
कही हकीकति तहँ मालिनिने ऊदन पाती दीन सुनाय ९१
बड़ा शोचभा सुनि आल्हाके मनमें बार बार पछितायँ॥
हमहीं पठवा था मलखे को तबचलिगयो लहुरवाभाय ९२
दिह्यो अशर्फी बहु मालिनिको कीन्ह्यो बिदा बनाफरराय॥
मालिनि चलिभै जनवासेते पहुँची फेरि महलमें जाय ९३
कह्योहकीकति गजमोतिनिते ऊदन बोले शीश नवाय॥
हुकुम जो पावैं हम दादा को तौ मलखे को लवैं छुड़ाय ९४
बातैं सुनिकै ये ऊदन की आल्हा हुकुम दीन फर्माय॥
हुकुम लगायो फिरि ऊदन ने डङ्का तुरत दीन बजवाय ९५
बाजे डङ्का अहतङ्का के सबियाँ फौज भई तय्यार॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न भे असवार ९६
पहिल नगाड़ा में जिनबंदी दुसरे बांधि लीन हथियार॥

तिसर नगाड़ा के बाजतखन चलिभे सबै शूर सरदार ९७
कूच करायो पथरीगढ़ते झुन्नागढ़ै पहूँचे जाय॥
गा हरिकारा पथरीगढ़ते राजै खबरि दीन बतलाय ६८
सुनिकै बातैं हरिकारा की सूरज बेटा लीन बुलाय॥
काँतामल औं मानसिंह सो राजा कह्यो खूब समुझाय ९९
जितने आये हैं मोहबेते सो बिन घाव एक ना जायँ॥
बिदा माँगिकै सो राजा सों डङ्का तुरत दीन बजवाय १००
झीलमबखतरपहिरिसिपाहिन हाथम लीन ढाल तलवार॥
रणकी मौहरि बाजन लागी रणका होनलाग व्यवहार १०१
कूच करायो झुन्नागढ़ सों पहुँचे समरभूमि मैदान॥
ढोल औ तुरही बाजन लागीं घूमनलागे लालनिशान १०२
इतसों आगे सूरज ठाकुर उतसों बेंदुलको असवार॥
सूरज ठाकुर के देखत खन ऊदन गरू दीन ललकार १०३
छालिकै लैकै मलखाने को औ खन्दक में दीन डराय॥
बिना बिहाये हम जैहैं ना चहुतन धजी२ उड़िजाय १०४
इतना सुनिकै सूरज जरिगे अपनो घोड़ा दीन बढ़ाय॥
औ ललकारा उदयसिंह को अब तुम खबरदार ह्वैजाय १०५
बार हमारी सों बचिहैना ऊदन मोहबे के सरदार ॥
इतना कहिकै सूरज ठाकुर जल्दी खैंचिलीन तलवार १०६
ऐंचिकै मारा बघऊदन को ऊदन लीन्ह्यो वार बचाय॥
मानसिंह औ फिरि देबाका परिगा समर बरोबरि आय १०७
सूँढ़ि लपेटा हाथी भिड़िगे अंकुश भिड़े महौतन केर॥
हौदा हौदा यकमिल ह्वैगे मारैं एक एक को हेर १०८
गोली ओलासम बर्षत भइँ कहुँ कहुँ कड़ाबीनकी मार॥

+

तेगा घमकै बर्दवान के कोताखानी चलें कटार १०९
बड़ी लड़ाई भै झुन्नागढ़ ऊदन सूरज के मैदान॥
फिरि फिरि मारैं औ ललकारैं नाहर एक एक को ज्वान ११०
मानसिंह जगनिक को राजा देबा मैनपुरी चौहान॥
काँतामल औ बनरसवाला भारी कीन घोर घमसान १११
तीनि सिरोही सूरज मारी ऊदन लीन्ही वार बचाय॥
साँग उठाई बघऊदनने औ सूरजपर दई चलाय ११२
भागा घोड़ा तब सूरजको लश्कर भागि गयो भयखाय॥
जहां कचहरी गजराजाकी सूरज तहां पहूँचा जाय ११३
हाथ जोरि औ पायन परिकै राजै बहुत कहा समुझाय॥
बड़े लड़ैया मोहबे वाले तिनकीमारु सही ना जाय ११४
सुनिकै बातैं ये सूरज की सेमा भगतिनि लीन बुलाय॥
कही हकीकति सब सेमाते राजा बार बार समुझाय ११५
सेमाभगतिनि सूरज लैकै तुरतै कूचदीन करवाय॥
कूच कराये झुन्नागढ़ ते पथरीगढ़ै पहूँची आय ११६
दीख्यो ऊदन जब सूरज को धावा तुरत दीन करवाय॥
सेमा बरसी तब जादूको पत्थर सबै फौज ह्वैजाय ११७
इकलो देबा बचि लश्करगा आल्हा पास पहूँचा आय॥
कही हकीकति सब सेमाकी आल्हागये सनाकाखाय ११८
धीरज धरिकै आल्हा बोले देबा नगर मोहोबे जाय॥
जल्दी लावो तुम इन्दल को तासों कह्यो कथासमुझाय११९
इतना सुनिकै देबाठाकुर अपने घोड़ भयो असवार॥
सातरोज को धावा करिकै पहुँचा नगर मोहोबा द्वार १२०
आल्हा केरे फिरि मंदिर में देवा अटा तुरतही जाय॥

कही हकीकति सब सुनवाँसों इन्दल फेरि पहूँचा आय १२१
इन्दल बोल्यो तहँ देबाते चाचा हाल देउ समुझाय॥
कैसी गुजरी पथरीगढ़ में कस तुम गयो इकेले आय१२२
सुनिकै बातैं ये इन्दल की देवा लीन दुःखकी श्वास॥
सेमाभगतिनि पथरीगढ़ की त्यहिकरिडराबंशकीनाश १२३
तुम्है बुलैबे को आये हैं बेटा चलौ हमारे साथ॥
इतना सुनिकै इन्दल चलिभे देबी जाय नवायो माथ १२४
बड़ी अस्तुती की देबी की इन्दल तंत्रशास्त्र अनुसार॥
अमृतसानी भइ मठबानी इन्दल आल्हा केर कुमार १२५

सवैया॥


बैठुमठी कछु देर कुमार अबार नहीं करिहउँ मैं काजा।
या कहिकै गय देबि तहाँ जहँ बैठ सुराधिप सोहत राजा॥
जायबिनै बहुभांति कियो सुरराज लख्यो तहँ देबिअकाजा।
लैकर अमृत देतजबै ललिते मठिमें फिरि होत अवाजा १२६



छिपिकै चलिये त्यरेसाथ में इन्दल करो तयारी जाय॥
इतना सुनिकै इन्दल चलिभे देबी बार बार शिरनाय १२७
माता केरे फिरि मंदिर में इन्दल बिनय सुनाई आय॥
आज्ञा पावैं महतारी कै दादा पास पहूँचैं जायँ १२८
सुनवाँ बोली फिरि इन्दलते बेटा बार बार बलिजायँ॥
सेमा भगतिनि के देखैको हमहूं चलब पूत तहँधाय १२९
बिस्मय कीन्ह्यो कछु मनमें ना पक्षीरूप धरी तब माय॥
चूम्यो चाट्यो बदनलगायो पाछे हुकुम दियो फर्माय १३०
आज्ञापितुकी सब कोउ कीन्ह्यो राम औ परशुराम लों जानु॥
जल्दी जावो पितु दर्शन को बेटा कही हमारी मानु १३१

इतना सुनिकै इन्दल चलिभे देबै तुरत जुहार्यो जाय॥
जल्दी चलिये अब दादा ढिग मातै हुकुमदीन फर्माय १३२
इतना सुनिकै देबा ठाकुर अपने घोड़ भयो असवार॥
घोड़ करिलिया इन्दल बैठे नाहर आल्हाकेर कुमार १३३
चील्ह रूप ह्वै सुनवाँ उडिगै आधे सरग रही मड़राय॥
देबी चलिकै फिरि मंदिरते पथरीगढ़ै पहूँचीजाय १३४
देबा इन्दल दोऊ नाहर आल्हा निकट पहूंचेजाय॥
आल्हा दीख्यो जबइन्दलको तबछातीसोंलियो लगाय १३५
आल्हा बोले फिरि इन्दल ते बेटा कही कथा ना जाय॥
सेमाभगतिनि के कर्तब ते पत्थर भईं फौज सब आय १३६
इन्दल बोले फिरि आल्हा ते अब नहिं देरकरो महराज॥
जल्दी चलिये अब झुन्नागढ़ चलिकैकरियआपनोकाज १३७
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर हाथी उपर भये असवार॥
घोड़ मनोहरकी पाठीपर ठाकुर मैनपुरी सरदार १३८
चढ़े करि लियाकी पीठीपर इन्दल कूचदीन करवाय॥
घड़ी अड़ाई के अरसा माँ पहुँचे समरभूमि में आय १३९
देखिकै फौजै तह पत्थर की इन्दल गयो सनाकाखाय॥
उतरिकै घोड़ा ते भुइँ आयो बोल्यो देबी शीश नवाय १४०
हेअविनाशिनिसबसुखराशिनि नाशिनिबिपतिकेरिसमुदाय॥
चरण शरण में हम तुम्हरी हैं फौजै देवो मातु जियाय १४१
तब तो देबी पथरीगढ़ में अमृत बूंद दीन बरसाय॥
अमृत बूंदी के परतैखन फौजैं उठीं तुरत हरषाय १४२
उठा बेंदुला का चढ़वैया इन्दल निकट पहूँचा आय॥
चूम्यो चाट्यो गरे लगायो पूंछन लाग बनाफरराय १४३

कैसे आयो तुम पथरीगढ़ हम को हाल देउ बतलाय॥
बातैं सुनिकै ये ऊदन की इन्दल यथातथ्य गा गाय १४४
गा हरिकारा पथरीगढ़ ते मुन्नागढ़ै पहूँचा जाय॥
दीख तमाशा जो फौजन का राजै हाल दीन बतलाय १४५
सुनिकै बातैं हरिकारा की सूरजमल का लीन बुलाय॥
कही हकीकति सब सूरजते जल्दी हुकुमदीनफरमाय १४६
हुकुम पायकै महराजा को डंका तुरत दीन बजवाय॥
हाथी घोड़ा औं रथ सजिगे पैदर सजे शूर समुदाय १४७
जितनी फौजें रहैं झुन्नागढ़ सबियाँ बेगि भईं तय्यार॥
हथी चढ़ैया हाथी चढ़िगे बांके घोड़न भे असवार १४८
रणकी मौहरि बाजन लागी रणका होन लाग ब्यवहार॥
दादी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन वेद उच्चार १४९
कूचको डंका बाजन लाग्यो घूमन लाग्यो लाल निशान॥
फौजै चलिकै झुन्नागढ़ ते पहुँचीं समरभूमि मैदान १५०
धूलि देखिकै आसमान में भारी देखि गर्द गुब्बार॥
बोल्यो फौजन में त्यहि समया ठाकुर बेंदुलको असवार १५१
फौजै आई गजराजाकी भारी अंधकार गा छाय॥
जल्दी सजिकै ओ रणबाघो तुमहूं कूच देव करवाय १५२
बातैं सुनिकै बघऊदन की सबियाँ फौज भई तय्यार॥
झीलमबखनस्पहिरिसिपाहिन हाथ म लई ढाल तलवार १५३
पहिल नगाड़ा में जिनबंदी दुसरे फांदि भये असवार॥
तिसर नगाड़ा के बाजत खन चलिभे सबै शूर सरदार १५४
पहिले मारुइ भइँ तोपन की दूसरि भई तीरकी मार॥
तीसरि मारूइ बंदूखन की चौथे चलनलागितलवार १५५

पांच कदम पर बरछी छूटैं भालन तीन कदम पर मार॥
कदम कदम पर चलैं कटारी ऊनाचलै बिलाइति क्यार १५६
तेगा धमकैं बर्दवान के कटि कटि गिरैं शूर सरदार॥
बड़ी लड़ाई दोउ दल कीन्ह्यो नदिया बही रक्तकी धार १५७
सूरज ऊदन फिरि दोऊ का परिगा समर बरोबरि आय॥
दोऊ मारैं दोउ ललकारैं दोऊ लेवैं वार बचाय १५८
को गति बरणै तहँ दोऊकै दोऊ समर धनी सरदार॥
बैस बरोबरि है दोऊ कै दोऊ खूब करैं तलवार १५९
यहु रणरंगी लै असि नंगी जंगी मैनपुरी चौहान॥
धरि धरि धमकै रजपूतन को देवा बड़ा लड़ैया ज्वान १६०
को गति बरणे कंतामल की हंता क्षत्रिन को सरदार॥
फिरि फिरि मारे औ ललकारै दोऊ हाथ करै तलवार १६१
सिर्गा घोड़ा की पीठी पर सय्यद बनरस का सरदार॥
अली अली कहि जैसी दौरै भागैं गली गली सबयार १६२
भली भली कहि ऊदन वोलें कॉ थली थली सरदार॥
हली हली तहँ पृथ्वी डोलै काँपैं डली डली लखिमार १६३
को गति बरणै तहँ सूरज की यहु गजराजा केर कुमार॥
खैंचि सिरोही ली कम्मर सों ऊदन उपर हनी तलवार १६४
वार बचाई बघऊदन ने आपो दियो तड़ाका मार॥
परी सिरोही सो घोड़ा के औशिरगिर्योतुरतत्यहिबार १६५
उतरि बेंदुलाते सूरज को पकर्यो उदयसिंह सरदार॥
बाधिकैं मुशकै सूरजमलकी बेंदुल उपर भयो असवार १६६
औ ललकार्यो कंतामल को क्षत्री खबरदार ह्वैजाय॥
घाटि बिसेनेने जस कीन्ह्यों तैसी सजा लेउ अवआय १६७

इतना कहतै बघऊदन ने औझड़ हना ढालकी जाय॥
कांतामल घोड़ा ते गिरिगा पकरा तुरत बनाफरराय १६८
बांधिकै मुशकै काँतामल की तम्बू तुरत दीन पहुँचाय॥
गा हरिकारा तब झुन्नागढ़ राजै खबरि सुनायो जाय १६९
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकन लाग्यो संतन धुनी दीन परचाय १७०
माथ नवावों पितु अपने को ध्यावो तुम्हें भवानीकन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरिभगवन्त १७१

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई, ई) मुंशी नवककिशोरात्मजबाबूप्रयागना-
रायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपडरीकलांनिवासिमिश्र
बंशोद्भवबुधकृपाशङ्करसूनुपण्डितललिताप्रसादकृतऊदनबिजय
वर्णनोनामद्वितीयस्तरंगः ॥२॥


सवैया॥

होत नहीं जपहू तपहू अपने मन में यहही पछतावैं।
काम औ क्रोध बढ़ैं नितही दुखही दुखसों हम देह बितावैं॥
शान्ति औ शील दया अरु धर्म बिना इन कौन कहौ सुखपावैं।
गावैं सदा रघुनन्दन को गुण बन्दन कै ललिते बर पावैं १

सुमिरन॥

हम पद ध्यावैं पुरुषोत्तम के नरनारायण शीश नवाय॥
नर तो जानो तुम अर्जुन को गीतासुना सकल ज्यहिभाय १
हैं नारायण कृष्णचन्द्र तहँ जिनकासुयश रहाजगभ्राज॥
को गति बरणै पुरुषोत्तम कै जिनको नाम राम महराज २
कोधों पैदा फिरि दुनियां भा कोधों बैठि करै असराज॥

धर्म क्षत्तिरी के सब पाले कीन्ह्यो रामचन्द्र जस काज ३
काव्य पुरानी बालमीकि की यहही ठीक ठाक परमान॥
याको देखै जब कोउ मानुष होवैं रामचन्द्र तब भान ४
भानै होतै त्यहि प्रानी के आनी मनो पुरबले भाग॥
भागै ह्वैकै सो जागै उर भागै सबै बिपति की आग ५
छूटि सुमिरनी गै ह्यांते अब शाका सुनो शूरमन केर॥
फौजे सजि हैं गजराजा की लड़ि हैं द्वऊ शूमा फेर ६

अथ कथाप्रसंग॥


खबरि पायकै गजराजाने सेमा भगतिनि लीन बुलाय॥
सेमा भगतिनि ते गजराजा सबियाँ कथा कह्यो समुझाय १
सुनिअकुलानी सेमाभगविनि राजै बार बार शिरनाय॥
आज्ञा देवो मोहिं जाने को मानो कही बिसेनेराय २
राजा बोले फिरि सेमाते आइव यही काज बुलवाय॥
अब तुम जावो पथरीगढ़ को मारो सबै मोहबिया जाय ३
आज्ञा पावत महराजा की सेमा अटी भवन में जाय॥
लैकै पुरिया सब जादू की तुरतै कूच दीन करवाय ४
तुरत पौंरिया को बुलवायो राजै हुकुम दीन फर्माय॥
तुरत नगड़ची को बुलवाओ डंका तुरत देव बजवाय ५
हुकुम पायकै महराजा को धावन अटा तुरतही जाय॥
बाजे डंका अहतंका के हाहाकारी शब्द सुनाय ६
जितनी फौजैं गजराजा की सबियाँ बेगि भईं तय्यार॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न भे असवार ७
घोड़ अगिनिया गजराजाको सोऊ सजा खड़ा तय्यार॥
सुमिरि भवानी जगदम्बा को राजा फाँदि भयो असवार ८

ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन बेद उचार॥
रणकी मौहरि बाजन लागी रणका होन लाग व्यवहार ९
खर खर खर खर कै रथ दौरे रब्बा चले पवन की चाल॥
मारु मारु करि मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल १०
आगे हलका है हाथिन का पाछे चले जायँ असवार॥
पैदल क्षत्री त्यहि पाछे सों हाथम लिये नाँगि तलवार ११
सुनि सुनि चौबे तहँ डङ्का की बोला तुरत बनाफरराय॥
चढ़िकै आवत गजराजा है मानो कही शूर समुदाय १२
सुनिकै बातैं बघऊदन की सँभले सबै शूर सरदार॥
घड़ी न बीती ना दिन गुजरा फौजै सबै भईं तय्यार १३
दोऊ ओरते तोपैं छूटीं मानो प्रलय मेघ घहरान॥
मारत मारत फिरि तोपन के संगम भये समर मैदान १४
ऊदन राजा सम्मुख ह्वैगे राजा गरू दीन ललकार॥
मुशकै छोड़ो दउ पुत्रनकी ऊंदन मानो कही हमार १५
लड़िकै बेटी तुम पैहो ना मरिकै आन धरो अवतार॥
सुनिकै बातैं ये राजा की बोला उदयसिंह सरदार १६
घाटि बिसेने तुम कीन्ही है मलखे खन्दक दिये डराय॥
बेटी ब्याहो औ फिरि जावो नाहीं गई प्राणपर आय १७
काम विटेवन ते परिगा है कबहुँ न परा मर्द ते काम॥
सम्मुख लड़िकै उदयसिंह ते अबहीं जानचहत यमधाम १८
इतना सुनिकै गजराजा ने आपनि ऐंचि लीन तलवार॥
हनिकै मारा बघऊदन को ऊदन लीन ढालपर वार १९
फिरि ललकारा गजराजा को ठाकुर खबरदार ह्वैजाय॥
पहिली कीन्हे दूसरि कैले क्षत्री तोरि आहि रहिजाय २०

दूध लरिकई मा पाये ना तेरे मरे चढ़ै ना घाव॥
इतना सुनिकै गजराजा ने जल्दी हना दूसरा दाँव २१
वार बचाई बघऊदन ने राजा बहुत गयो शर्माय॥
उसरिन उसरिन द्वउ मारत भे शोभा कही बूत ना जाय २२
चिल्हिया बनिकै सेमाभगतिनि सुनवाँ पास पहुँची जाय॥
दोनों चिल्हिया संगम ह्वैकै पंजन परन लड़ैं नभधाय २३
इन्दल दीख्यो घोड़ा पर सों ऊपर आसमान की ओर॥
दोनों चिल्हिया आसमान में भारी करैं युद्ध अतिघोर २४
लड़िकै सटिकै संगम ह्वैकै दोऊ गिरीं धरणि में आय॥
सुनवाँ बोली तब इन्दल ते मारो पूत याहि असिघाय २५
इन्दल बोले तब सुनवाँ ते माता सत्य कहौं समुझाय॥
हाथ मिहिरियापर डारैं जो तो रजपूती धर्म नशाय २६
सुनवाँ बोली फिरि इन्दल ते बेटा बार बार बलिजायँ॥
जूरा काटो इह भगतिनि को तौ सबकाम सिद्धि ह्वैजायँ २७
सुनिकै बातैं ये माताकी जूरा काटि लीन त्यहिकाल॥
जादू झूठी भइँ सेमाकी सेमा परी बिपति के जाल २८
ज्यों त्यों करिकै झुन्नागढ़ को सेमाचली गई पछताय॥
मनै सराहै भल सुनवाँ को आपनलिह्योबदलह्याँआय २९
हवा चलाई जब पहिले मैं सुनवाँ बन्दकीन तब आय॥
अपने हाथे मैं विष बोयों बनिकैचील्हलडियुँजोजाय ३०
ह्याँ गजराना हल्ला करिकै अति खलभल्ला दीन मचाय॥
लड़ै इकल्ला सो घोड़ा पर कल्लादीन भूमि बिथराय ३१
पल्ला दैकै सय्यद ठाढ़े अल्लाऔबिसमिल्लागयेहिराय॥
जैसे होरी बल्ला छूटैं गल्ला यथा उसावा जाय ३२

मारे मारे तलवारिन के तस गजराजा दीन बिछाय॥
फिरि फिरि मारै औ ललकारै अद्भुतसमर कहा ना जाय ३३
सुनवाँ बोली फिरि इन्दल ते बेटा कहा मानि ले मोर॥
पूंछ काटिले इह घोड़ाकी तौ नहिंरहै फेरि अस जोर ३४
इतना सुनिकै इन्दल तुरतै घोड़ा पास पहुंचे जाय॥
पूंछ काटिकै वहि घोड़ा की औ धरती माँ दीन गिराय ३५
सेमाभगतिनि घोड़ अगिनियाँ दोऊ बिना जोर भे भाय॥
राजा सोच्यो अपने मनमाँ हमरो काल पहूँचा आय ३६
छोड़ि आसरा जिंदगानी का अपनो मया मोह बिसराय॥
प्राण गदोरी पर धरि लीन्ह्यों आल्हा पास पहूँचा जाय ३७
औ ललकारा फिरि आल्हाको ठाकुर खबरदार ह्वैजाय॥
धोखे भूले ना माड़ो के जहँ लै लिये बापका दायँ ३८
मैं गजराजा झुन्नागढ़ को सम्मुख लड़ो आजु सरदार॥
एँड़ा मसके फिरि घोड़ा के आल्हा उपर हनी तलवार ३९
टूटि सिरोही गै राजाकै कबुजा रहा इकेलो हाथ॥
साँकरि लैकै फिरि हाथी को आल्हा दीन सुमिरिरघुनाथ ४०
साँकरि फेरी पचशब्दा ने औ घोड़ाते दीन गिराय॥
बाँधिकै मुशकै फिरि राजाकी आल्हा कूचदीन करवाय ४१
ऊदन बोले गजराजा सों म्वहिं मलखे को देउ बताय॥
राजा बोलो तब ऊदन सों मानो कही बनाफरराय ४२
संग हमारे अब तुम चलिभे औ मलखे को लवैं लिवाय॥
इतना सुनिकै दूनों चलिमे खंदक पास पहूँचे जाय ४३
बज्रशिला को फिरि टारत भे रस्सा तुरत दीन लटकाय॥
बाहर निकरे मलखे ठाकुर रोवा बहुत लहुरवा भाय ४४

पकरिकै बाहू द्वउ ऊदन की मलखे छाती लीन लगाय॥
तीनों चलिभे फिरि खन्दकसों आल्हा निकट पहूँचे आय ४५
राजा बोल्यो फिरि आल्हा सों मानो कही बनाफरराय॥
कैदी छोड़ो द्वउ पुत्रन को अबहीं ब्याह लेउ करवाय ४६
ऊदन बोले फिरि राजाते तुम्हरी कौन करै परतीति॥
गंगा करिकै दादै लैकै घरमाँ किह्योजाय अनरीति ४७
दया आयगै फिरि आल्हाके गंगा फेरि लीन करवाय॥
कैद छुड़ायो दउ पुत्रन को पण्डित तुरतै लीन बुलाय ४८
देखिपत्तरा पण्डित बोल्यो भाँवरि आजु लेउ करवाय॥
इतना सुनिकै राजा चलिभा दोऊ पुत्रन साथ लिवाय ४९
आल्हा पहुंचे जनवासे में राजा महल पहूँचा जाय॥
लिल्ली घोड़ी माहिल चढ़िकै राजा घरै गये फिरि धाय ५०
बड़ी खातिरी राजा कीन्ह्यो माहिल बैठि महल में जाय॥
माहिल बोले फिरि राजाते मानो कही बिसेनेराय ५१
जितने ठाकुर आल्हा घरके मड़येतरे लेउ बुलवाय॥
शूर कुरियन में बैठारो सबके मूड़लेउ कटवाय ५२
इतना कहिकै माहिल चलिभे पथरीगढ़ै पहूँचे आय॥
किह्यो तयारी ह्याँ मड़ये की यहु गजराजा खंभ गड़ाय ५३
सूरज बेटा को बुलवायो तासों कह्यो हाल समुझाय॥
सुनिकै बातैं सब राजा की सूरज चलिभा शीशनवाय ५४
जायकै पहुॅच्यो जनवासे में जहँ पर बैठि बनाफरगय॥
कह्यो हकीकति सबआल्हासों सूरज बार बार शिरनाय ५५
सुनिकै बातैं सब सूरज की आल्हा हुकुम दीन फर्माय॥
ठावैं घरैया सब मड़ये को यह कहिदियो बिसेनेगय ५६

इतना सुनिकै ऊदन देबा जोगा भोगा भये तयार॥
मलखे सुलखे ब्रह्मा लाखनि इनहुन बांधिलीन हथियार ५७
चन्दनबेटा पृथीराज को जगनिक भैने चँदेलो क्यार॥
मोहनबेटा वीरशाह को बौरीगढ़ को जो सरदार ५८
हाथी सजिगा पचशब्दाफिरि आल्हा तापर भये सवार॥
बारहु ठाकुर अपने अपने सबहिन बाँधिलियेहथियारह ५९
कूच करायो जनवासे ते मड़ये तरे पहूंचे जाय॥
चन्दन चौकी मलखे बैठे पण्डित साइति दियो बताय ६०
घर औ कन्या इकठौरी भे भाँवरिसमय गयो नगच्याय॥
पहिली भाँवरि के परतैखन सूरज ठाकुर उठा रिसाय ६१
वार चलाई सो मलखे पर ऊदन लीन्ह्यो वार बचाय॥
दूसरि भाँवरि के परतैखन कांतामलहू गयो रिसाय ६२
खैंचिकै मारा सो मलखेपर रोंका तुरत लहुरवाभाय॥
तीसरि भाँवरि के परतैखन सबियाँ शूर पहुँचे आय ६३
बड़ी लड़ाई भै आँगन में तुरतै बही रकतकी धार॥
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डनके लाग पहार ६४
आधे आँगन भौंरी होवैं आधे खूब चलै तलवार॥
नाई बारी जी लैभागे जूझे बड़े बड़े सरदार ६५
को गति बरणै रजपूतन कै भारी हाँक देयँ ललकार॥
चलै कटारी बूंदी वाली आँगन चमकिरही तलवार ६६
चन्दन मोहन लाखनि उदन दोऊ हाथ करैं तलवार॥
को गति बरणै जगनायक कै भैने जौन चँदेले क्यार ६७
जोगा भोगा सुलखे देबा इनहुन खून मचाई मार॥
इतने क्षत्रिन के मारून में कोउ न खड़ा होय सरदार ६८

ब्रह्मा सूरज दोऊ ठाकुर रणमाँ घोर कीन घमसान॥
बड़ा लड़ैया गजराजा यहु नाहर समरधनी मैदान ६९
कांतामलहू आँगन लड़िकै अपने तजी प्राण की आश॥
सातसै क्षत्री आँगन लड़िकै तुरतै भये तहाँपर नाश ७०
कांतामल औ फिरि सूरज की आल्हा मुशकै लीन बँधाय॥
कठिन लड़ाई भै माड़ोतर सातो भाँवरि लीन डराय ७१
तब गजराजा पाँयन परिकै सब को बार बार शिरनाय॥
हारि देखिकै अपने दिशिकी कन्यादान दीनफिरिआय ७२
ऊदन बोले फिरि राजा ते मानों कही बिसेनेराय॥
आल्हा गर्जी हैं दायज के मलखेदुलहिनिकोललचायॅ ७३
भातके गर्जी हम सब ठाकुर सो अब बेगि होय तग्यार॥
छोरिकै मुशकै दोउ पुत्रन की चलिभे मोहबे के सरदार ७४
ई सब पहुंचे जनवासे में माहिल तुरत भयो तैयार॥
आयके पहुंच्यो झुन्नागढ़ माँ राजै कौन्यो रामजुहार ७५
राजा बोले तब माहिल ते ठाकुर उरई के सरदार॥
बड़े लड़ैया मुहवे वाले नाहर कठिन करैं तलवार ७६
माहिल बोले तब राजा ते मानों कही बिसेनेराय॥
भातखान को अब बुलवावो चौका मूड़ लेउ कटवाय ७७
यह मन भाई महराजा के लाग्यो भात होन तय्यार॥
विदा मॉगिकै महराजा ते चलिभा उरई का सरदार ७८
राजा चलिभे जनवासे में आल्हा पास पहूँचे जाय॥
त्यार भातहै मोरे महलन में जल्दी चलो बनाफरराय ७९
कहा सुनिकै हम लुच्चनको तुच्चन सरिस कीन सब काम॥
तुम सों दूजी अब राखैं ना सोऊ जान रहे श्रीराम ८०

धन्य सराही त्यहि ठाकुर को तुम सों मिलैं नात समरस्त॥
क्यहु अभिलाषा कछु बाकीना ह्वैगे सबै ज्वान अब पस्त ८१
बातैं सुनिकै ये राजा की आल्हा हुकुम दीन फर्माय॥
बारह ठाकुर गे भौंरिन में तेई फेरि सजे सब भाय ८२
भाला बरची औ ढालै लै हाथ म लई सबन तलवार॥
नाई बारी गडुवा लीन्हेनि चलिभे सबै शूर सरदार ८३
मलखे बैठे फिरि पलकी में बाजन सबै रहे हहराय॥
एकपहर के फिरि अर्सा में राजा भवन पहूंचे जाय ८४
नाई आवा फिरि भीतर सों आल्है शीश नवावा आय॥
जल्दी चलिये अब भोजनको करिये न देर बनाफरराय ८५
इतना सुनिकै सब क्षत्रिनने अपने कपड़ा धरे उतार॥
ढालै धरिकै गैंडावाली हाथ म लई नाँगि तलवार ८६
तब गजराजा कह आल्हा सों ठाकुर मोहबे के सरदार॥
हमरे कुलकी यह रीती ना भोजन करत गहै हथियार ८७
एकरीति नहिं सब देशन में अपने कुला कुला व्यवहार॥
बातैं सुनिकै ये राजा की सबहिन धराफेरि हथियार ८८
चलिकै ठाकुर गे चौका में पीढ़न उपर बैठिगे जाय॥
षटरस व्यंजन सब परसेगे उत्तम भातगयो फिरिआय ८९
लक्ष्मी बोलत परलै ह्वैगै आये सबै शूर समुदाय॥
जान न पावैं मुहबेवाले सबका कटा देव करवाय ९०
बातैं सुनिकै गजराजा की आल्हा गये सनाकाखाय॥
गडुवा लैकै ऊदन ठाढ़े मलखे पाटा लीन उठाय ९१
बड़ी मारु भै फिरि चौका में अद्भुत समर कहा ना जाय॥
पाटा लागै ज्यहि ठाकुर के घुर्मित गिरै मूर्च्छा खाय ९२

को गति बर्णै तहँ ऊदन की गडुवन मारि कीन खरिहान॥
लाखनि ब्रह्मा के मुर्चा में सम्मुख लड़ै न एकोज्वान ९३
कांतामल औ सूरज ठाकुर दोऊ हाथ करैं तलवार॥
बड़े लड़ैया मोहबे वाले ठाकुर समरधनी सरदार ९४
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार॥
मारे मारे तलवारिन के चौका बही रक्तकी धार ९५
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठै जैसे अहिर बिडारै गाय॥
तैसे ठाकुर मोहबे वाले मारिकैदीन्हो समरसोवाय ९६
बहुतक जूझे झुन्नागढ़ के रानी राजै लीन बुलाय॥
रानी बोली फिरि राजा सों मानों कही बिसेनेराय ९७
बड़े लड़ैया मोहबे वाले ओ महराजा बात बनाव॥
लड़िकैजितिहौनहिंआल्हासों तुम करि थाके सबै उपाव ९८
कहा न मानो तुम माहिल को नहिं सब जैहैं काम नशाय॥
हॅसी खुशी सों बेटी पठवो याहि में भला परै दिखराय ९९
बातैं सुनिके ये रानी की राजा समर पहूँचा आय॥
भुजा उठाये फिरि बोलत भा अबहीं मारु बन्द ह्वैजाय १००
मारु बन्द भै दोऊ दिशिसों राजा बोला बचन सुनाय॥
बिदा करावो सब बेटी को नहिं कछु देर बनाफरराय १०१
बातैं सुनि गजराजा की द्वारेगये बराती आय॥
कपड़ा पहिरे अपने अपने सीताराम चरण मनध्याय १०२
हुकुम लगायो ह्याँ गजराजा बेटी बेगि होय तय्यार॥
हुकुम पायकै महराजा को सोलह करनलागि शृंगार १०३

सवैया॥


मज्जन चीर औ कुण्डल अंजन नाक में गौक्तिक वेश सवाँरी।

कंचुँकि ओ क्षुद्रावलि कंकण कुसुमित अम्बर चन्दन धारी॥
खायकै पान औ धारिमणीनको हार औ नूपुरकी झनकारी।
सेंदुर भाल बिशाललखे ललिते मनलज्जित मन्मथनारी१०४



ग्वरिग्वरिबहियाँ हरिहरिचुरियाँ सो मनिहारिनि दी पहिराय॥
पहिरि मुँदरियाँ अठो अँगुरियाँ ऊपर छल्ला लये दबाय १०५
पहिरि आरसी ली अँगुठा में सीसा उपर तासु के भाय॥
अगे अगेला पिछे पछेला बीचम छन्न रही दर्शाय १०६
टाड़ैं पहिरी सोने वाली जोसन पट्टी करैं बहार॥
दुलरी तिलरी पंचलरीलों तापर परा मोतियन हार १०७
नथुनी लटकन की शोभाअति कानन करनफूल शृङ्गार॥
ढारै गुज्झी द्वउकानन में बँदियाँ मस्तक करैं बहार १०८
बिछिया पहिरी पद अँगुरिन में अनवट सखी दीन पहिराय॥
कड़ाके ऊपर छड़ा बिराजै तापर पायजेव हहराग १०९
लहँगा पहिर्यो कीनखाव को चादर ओढ़िलीन फिरिभाय॥
जैसे बादल बिजुली चमकै तसगजमोतिनिपरैदिखाय ११०
तहिले राजा फिरि आवत भे औ रानी सों कह्यो सुनाय॥
बिदा कि बिरिया अब आई है जल्दी बेटी देउ पठाय १११
सुनिकै बातैं ये राजा की रानी बेटी लीन बुलाय॥
सीतामाता अनुसूया की सबियाँकथाकहीसमुझाय ११२
कहा न मानै जो पूरुष को नारी घोर नर्क को जाय॥
चोर कुकर्मी जो पतिहोबै सेवा किहे नारि तरिजाय ११३
बिनापराधै नारी त्यागै सो पति मरै भूँखके घाय॥
ऐसे कहिकै गजमोतिनि सों माता रोई हृदय लगाय ११४

मिला भेट करि सबकाहू सों फुलियामालिनिलीनबुलाय॥
बहुधनदीन्ह्योफिरिफुलियाको रोवत चढ़ी पालकीजाय ११५
बड़ी खुशाली आल्हा कीन्ह्यो बहुधन द्वारे दीन लुटाय॥
बिदा मांगिकै गजराजा सों लश्कर कूच दीनकरवाय ११६
सात रोज को धावा करिकै पहुँचे नगर मोहोबा जाय॥
सखियाॅ मंगल गावन लागीं परछन भई द्वारपर आय ११७
बिदा मांगिकै न्यवतहरी सब निज निज देशगये हर्षाय॥
चील्ह रूप धरि सुनवाँ आई मल्हनाखुशीभईअधिकाय ११८
देवलि बिरमा त्यहि औसर में फूली अंग न सकैं समाय॥
को गति वर्णे परिमालिक की मानों इन्द्रलोक गे पाय ९१९
पिता आपने की दाया सों मलखे ब्याह गयों सब गाय॥
नही भरोसा निज भुजबलका किरपाशंकर करैं सहाय १२०
आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
हुकुम तुम्हारो जो होतो ना ललितेकहतकौनबिधिगाय १२१
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललितेके तबलों तुम यशसों रही सदा भरपूर १२२
इष्ट देवता मम एकै हैं पूरण ब्रह्म राम भगवन्त॥
चरणकमल तिन धरि हिरदे में ह्याँसों करों तरॅग को अन्त १२३

इति श्रीलखनऊ निवासि (सी, आई, ई) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासि
मिश्रबंशोद्भव बुध कुपाशंकरसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत
मलखेपाणिग्रहणवर्णनोनामतृतीयस्तरंगः ॥३॥

मलखे विवाहसमाप्त॥
इति॥