आल्हखण्ड/६ ब्रह्मा का विवाह
अथ श्राल्हखण्ड॥ ब्रह्माका विवाह अथवा दिल्लीकी लड़ाई । सवैया॥ कर दीन गह्यों तुमको रघुनाथ करो अबतो रखवारी । पायके शाप पपाण भई मुनिनारि दयालु दियो तुम तारी ।। हा राम कह्यो यवनो यकवार गयो तव धामहि बेगि खरारी । दीन पुकार करै ललिते प्रभु चूक क्षमो रघुनाथ हमारी १ सुमिरन ॥ पहिले सुमिरों पद गणेश के गौरा पारवती के बाल ।। हाथी आनन सम आनन है सेंदुर सदा विराजे भाल ? बड़ी पियारी जिन दुर्वा है फूलो बड़े पियारे लाल ॥ भोग लगावै जो लड्डू को तापर खुशी रहैं सब काल २ हैं शिवशङ्कर के लरिका ते अरिका करें सदा जे नाश। विधिवत पूजनजोकोउकीन्ह्यो पूरी सदा तासुकी आश ३ बड़ो भरोसो तिन गणेश को अपने हृदय करों सब काल ।। करो मनोरथ पूरण हमरो गौरा पारवती के लाल ४
दि मुमिरनी गै गणेशक सुनिये वेला केर हवाल ।। ब्याह बखानों त्यहि ब्रह्माको ज्यहिका पिता रजा परिमाल ५
अथ कथाप्रसंग॥
पृथीराज दिल्ली को राजा ज्यहिका जानैसकलजहान॥
कन्या उपजी जब त्यहिके घर तारा टूटि तबै असमान १
थर थर थर थर पृथ्वी कांपी दर दर बोले श्वान श्रृगाल॥
झन् झन् झन् झन् वायू डोलीं अशकुनबहुतभयेत्यहिकाल २
अशकुन दीख्यो पृथीराज ने तुरतै पंडित लीन बुलाय॥
लैके पोथी ज्योतिष वाली पंडित हाल दीन बतलाय ३
गौना ह्वैहै जब कन्या का ह्वैहै तबै घोर घमसान॥
बहुतक क्षत्री तब नशिजैहैं जुझिहैं बड़े बड़े ह्याँ ज्वान ४
ताते बेला यहि कन्या का राखो नाम आप महराज॥
पाय दक्षिणा पंडित चलिभो होबन लागि और फिरिकाज ५
छठी बारहों पसनी ह्वैगै बेला परो तामु को नाम॥
सात बरस की जब बेला भइ खेलत फिरै सखिन के धाम ६
कोउकोउसखियां तहँब्याहीथीं बेंदी दिये आपने भाल॥
क्वारी पूछैं तिन ब्याहिन ते सखितुमकहौ श्वशुरपुरहाल ७
ब्याही बोली अनब्याहिन ते मानो सखी बचन तुमसाँच॥
जब सुधि आवत है बालम कै तब उर जरै बिरहकी आँच ८
सुरपुर नरपुर अहिपुर माहीं सो सुख नहीं परै दिखराय॥
जो सुख पावा हम श्वशुरे में बालम छाती लीन लगाय ९
कटिगहि मसकैं हम नहिंठस कैं कसकै हृदयकिये सुधिआज॥
कासुखजानो तुमअनुब्याहिउ बैरिनि भई हमारी लाज १०
सुनि सुनि बातैं ये ब्याहिनकी सब अनब्यही गंई शर्माय॥
बढ़ी लालसा तब ब्याहे की त्याला घरै पहुंची आय ११
खयो मिठाई औ मेवा कछु पलँगा सोय रही फिरिजाय॥
फिकिरि लगाये सो ब्याहे की एका एकी उठी कवाय १२
हम नहिं जैहैं अब श्वशुरे को यह कहि रोय उठी चिल्लाय॥
रानी अगमा तहँ ठाढ़ी थी तुरतै छाती लीन लगाय १३
धीरज दैकै माता पूछै बेटी स्वपन दीख का आज॥
इतना सुनिकै बेटी बोली माता कहतलगै बड़िलाज १४
माता बोली फिरि बेटी सों बेटी सत्य देउ बतलाय॥
कैसो स्वपना तुम दीख्यो है हमरे धीर धरा ना जाय १५
सुनिकै बातैं ये माता की बेटी कहन लागि त्यहि बार॥
मोहिं बियाहनजनु कोउआयो हाथ म लिये ढाल तलवार १६
फिरि बैठायो मोहिं डोला पर अपने घरै लिये सो जाय॥
ऐसा दीख्यों जब माता मैं तबहीं रोय उठिउँ चिल्लाय ९७
इतना कहिकै बेला चलि भै खेलन लागि सखिन के साथ॥
महलन आये पिरथी राजा रानी गहाजाय तब हाथ १८
स्वपन बतायो सब बेला को सो सुनि लीन पिथौराराय॥
ब्याहन लायक अब कन्या है बोली बार बार समुझाय १९
रानी अगमा की बातें सुनि बोले पृथीराज महराज॥
कहे अधीरज तुम होतीहौ रानी कहा न टारों आज २०
इतना कहिकै पिरथी चलिभे औ दरबार पहूंचे आय॥
ताहर बेटा को बुलवायो चौंड़ा बाम्हन लीन बुलाय २१
कलम दवाइति कागज लैकै चिट्ठी लिखन लाग सरदार॥
शिरी सरबऊ शिरिपत्री करि पाछे आपन राम जुहार २२
पहिलि लड़ाई है द्वारेपर मड़ये कठिन चली तलवार॥
खान कलेवा लड़िका आई तबहूँ मूड़ कटावव यार २३
इतनी जुर्रति ज्यहिके होवै टीका लेय हमारो सोय॥
नहीं बिधाता की मर्जी ना कन्याब्याह और बिधिहोय२४
इतना लिखिकै पृथीराज ने नाई बारी लीन बुलाय॥
साल दुसाला मोतिन माला चीरा कलँगी लीन मँगाय २५
तिरपन पलकी अस्सी गजरथ उम्दा घोड़ा सवाहजार॥
धरिकै तोड़ा दो मुहरन का अच्छा थार सूबरण क्यार २६
तीनि लाखको टीका दैकै सबको हाल दीन समुझाय॥
नगर मोहोबे कोउ जायो ना ओछी जाति बनाफरराय २७
चिट्ठी दीन्ह्यो फिरि ताहर को ताहर चलिभे शीश नवाय॥
नाई बारी चौंड़ा ताहर फाटक पार पहुंचे आय २८
ताहर बैठे दलगंजन पर चौंड़ा एकदन्त असवार॥
कूच करायो फिरि दिल्ली ते दूनों चलत भये सरदार २९
आठ रोज को धावा करिकै झुन्नागढ़ै पहूंचे जाय॥
लड़िका क्वारो गजराजा को पाती तुरत दीन पकराय ३०
पढ़िकै चिट्ठी गजराजा ने टीका तुरत दीन लौटार॥
तहँते पहुॅचे फिरि बौरीगढ़ जहँपर रहैं यादवा यार ३१
तिनहुन टीका जब लीन्हो ना नखर फेरि पहुंचे जाय॥
नरपति राजा नखरवाला सोऊ टीका दीन फिराय ३२
गंगाधर बूंदी का राजा त्यहि दरबार गये फिरि धाय॥
चिट्ठी पढ़िकै सोऊ ठाकुर टीका तुरत दीन लौटाय ३३
ताहर बोले फिरि चौड़ाते दादा कही हमारी मान॥
चार महीना घूमत ह्वैगे अब हम भये बहुत हैरान ३४
जल्दी चलिये अब उरई को जहँपर बसै महिल परिहार॥
यह मन भाय गई चौंड़ा के हाथी उपर भयो असवार ३५
चढ़ि दलगंजन की पीठी पर ताहर नाहर भयो तयार॥
नाई बारी सँग में लीन्हे पहुँचे माहिल के दरबार ३६
आवत दीख्यो जव ताहर को माहिल बहुत गयो घबड़ाय॥
माहिल बोले फिरि ताहर ते बेटा कुशल देउ बतलाय ३७
ताहर बोले फिरि माहिल ते ठाकुर उरई के सरदार॥
टीका लाये हम बहिनी का घूमत बिते महीना चार ३८
कुँवर बतावो क्यहु क्षत्री का मोको पूत आपनो जान॥
माहिल बोले तब ताहर ते मानो कही बीर चौहान ३९
अजयपाल कनउज का राजा राजन मध्य बीर सरदार॥
ताको लड़िका रतीभान भो जाकी जगजाहिर तलवार ४०
ताको लड़िका लाखनि राना टीका तासु चढ़ावो जाय॥
इतना सुनिकै ताहर चौंड़ा तुरतै कूचदीन करवाय ४१
जायकै पहुँचे फिरि कनउज में जहँपर भरी लाग दरबार॥
को गति बरणै चन्देले कै आली खानदान सरदार ४२
ताहर दीख्यो जब जयचँद को तुरतै कीन्ह्यो राम जुहार॥
चिट्ठी दीन्ह्यो फिरि जल्दी सों लीन्ह्यो कनउजके सरदार ४३
पढ़िकै चिट्ठी राहुट ह्वैगा नैना अग्निबरण भे लाल॥
लै जा चिट्ठी कहुँ अनतै को मेरो बड़ो पियारो बाल ४४
ताहर चौंड़ा दूनो जरिकै तुरतै कूच दीन करवाय॥
पार उतरिकै श्रीयमुना के उरई निकट पहुंचे आय ४५
मलखे ठाकुर त्यहि समया में मारन आयो तहां शिकार॥
ताहर चौंड़ा मलखे ठाकुर मारग भेंटिगये सरदार ४६
कुशल प्रश्न ताहर सों कहिकै बोला बचन बीर मलखान॥
कौने मतलब को निकरेहौ नाहर दिल्लीके चौहान ४७
सुनिकै बातैं ई मलखे की ताहर हाल गयो सबगाय॥
मलखे बोले फिरि ताहर सों लड़िका तुम्हैं देयँ बतलाय ४८
संग हमारे कछु दूरी तुम औरो चलो बीरचौहान॥
इतना सुनिकै दूनों चलिभे मोहबे गये तीनहू ज्वान ४९
ताहर बोले तहँ मलखे ते यहुहै कौन शहर मलखान॥
मलखे बोले तहँ ताहर सों यहहै नगर मोहोबा ज्वान ५०
यहँको राजा परिमालिक है ब्रह्मा लड़िका तासु कुँवार॥
तोरी बहिनी सों त्यहि ब्याहौं साँची बात मानु सरदार ५१
सुनिकै बातैं ये मलखे की ताहर बहुत गयो शर्माय॥
ऐसी बातै का तुम बोलै ब्याह न करैं बनाफरराय ५२
नहीं आज्ञा दिल्लीपति कै टीका नगर गोहोबे जाय॥
सरबरि हमरी का नाहीं हैं ठाकुर काह गयो बौराय ५३
सुनिकै बातैं ये ताहर की बोला बचन बीर मलखान॥
धॉसि सिरोही मुॅहमें देवों जोफिरि ऐस कहै चौहान ५४
इतनी सुनिकै ताहर ठाकुर पाती तुरत दीन पकराय॥
मूड़ कटाई सो ब्याहे माँ नाहर जौन पिथौराराय ५५
ताका बाना जग मर्दाना मारै शब्द ताकिकै बान॥
परै निशाना पूरशब्द पर ता सँग कौन लड़ैया ज्वान ५६
सुनिकै बातैं ये ताहर की बोला तुरत बनाफरराय॥
लड़ै मरैका कछु डर नाहीं यहही धर्म सनातन भाय ५७
रीछ वाँदरन सँग में लैके लङ्का विजय कीन भगवान॥
ग्वालन वालन सँगमा लैकै कंसै हना कृष्ण बलवान ५८
काह हकीकति है दिल्ली कै चलिकै बिल्ली देउॅ बनाय॥
परि स्वरभिल्ली दिल्ली जाई किल्ली तुरतै देउँ नवाय ५९
कैसो दिल्ली में गिल्ली सम पिल्ली पूत पिथौराराय॥
लिल्ली घोड़िन के चढ़वैया लड़िहैं कौन तहाँपर भाय ६०
चौंड़ा बोला तहँ मलखे ते चलिये जहाँ चँदेलोराय॥
सुनिकै बातैं ये चौंड़ा की तीनों अटे महल में जाय ६१
देखिकै सूरति मलखाने कै बोला मोहबे का सरदार॥
हाल बतावो सब सिरसा को ओ बिरमा के राजकुमार ६२
हाथ जोरिकै मलखे बोले दादा मोहबे के महराज॥
मनोकामना सब पुरण हैं तुम्हरीकृपा सुफल सबकाज ६३
टीका लाये ये दिल्ली सों में ब्रह्माका करों बिवाह॥
यही कामना यक बाकी है साँची मानु कही नरनाह ६४
पाती दीन्ह्यो मलखाने ने बांचन लाग रजापरिमाल॥
डसे भुवंगम लहरैं आवैं कहरन लाग तुरत नरपाल ६५
हाथ जोरिकै ऊदन बोले दादा मोहबे के महराज॥
टेक न टारैं मलखे दादा तासों करे बनी यहु काज ६६
सुनिकै बातैं ये ऊदन की बोले तुरत रजापरिमाल॥
हाल बतावो सब मल्हनाको वाको बड़ो पियारो बाल ६७
मोहिं बुढ़ापा की लाठी है ब्रह्मा बड़ा पियारा मान॥
नामी राजा दिल्लीवाला ठाकुर समरधनी चौहान ६८
टेक कठिनहै मलखाने कै पूरण यहौ हृदय बिशवाश॥
जियब न देखैं हम काहू कर सबकर होय वहाँपर नाश ६९
पढ़िकै चिट्ठी पृथीराज की हमरे गई करेजे हूक॥
जानि बूझिकै जस मलखे की ऐसी करै कौन नर चूक ७०
सवैया॥
सुनिकै नृपबैन तबै बलऐन म्बले मलखे ललिते अनखाई।
कउनसो काज अकाज भयो महराज गयउ जहँ लाज गवाँई॥
सुक्खको साज समाज करउ रघुराज सदा मम लाज बचाई।
घबड़ानको आज न काज कछू हम ब्याहकरैं बछराजदुहाई ७१
सुनिकै बातैं मलखाने की राजा गयो सनाकाखाय॥
मलखे चलिभे फिरि महलनको मल्हना पास पहूंचे जाय ७२
चिट्ठी पढ़िकै पृथीराज की मलखे हाल दीन बतलाय॥
सुनिकै चिट्ठी पृथीराज की मल्हनागई तुरत कुँभिलाय ७३
तारा टूटे आसमान में थर थर धरा गई तब हाल॥
चील्है छाई राजमहल में रोवन लागे श्वान शृगाल ७४
मल्हना बोली तब मलखे ते अशकुन बहुत परैं दिखलाय॥
क्वारो ब्रह्मा घरमें रहिहै टीका आप देउ लौटाय ७५
सुनिकै बातैं ये मल्हना की मलखे बोले बचन रिसाय॥
ब्याह विधाता यह रचिराखा टीका कौन सकै लौटाय ७६
सदा न फूलै कहुँ वन तोरई माई सदा न सावन होय॥
सदा जवानी नहिं स्थिर है माई सदा न वर्षा होय ७७
टीका फेरो जो दिल्ली का माता होउ जगत बदनाम॥
जातिके ओछे मोहबे वाले यह है देश-देश सरनाम ७८
होय नतैती जो दिल्ली में पूरण होयँ हमारे काम॥
झुन्ना नैनागढ़ माड़ो में हमपर कृपाकीन सियराम ७९
ये सब अशकुन हैं ताहर को माता कहां ज्ञान गा त्वार॥
अवै कबुतरी ना बुड्ढी भै ना बल खाय गई तलवार ८०
बार जो बाँका जा ब्रह्मा का हमरो मूड़ लियो कटवाय॥
बातैं सुनिकै ये मलखे की मल्हना दीन्ह्यो बाँह गहाय ८१
जस मनभावै मलखाने के तैसी करो बनाफरराय॥
बड़ी खुशीभै मलखाने के फूले अंग न सके समाय ८२
बड़ी प्रशंसाकी मल्हना की मलखे बार बार शिरनाय॥
शाका चलिहै महरानी तव ईजति हमरी लियो बचाय ८३
बारु न बांका इनका जैहै ओ महरानी बात बनाय॥
जहाँ पसीना इनका गिरिहैं तहँ मैं देहौं खून बहाय ८४
करो तयारी अब जल्दी सों ताहर टीका देय चढ़ाय॥
बातैं सुनिकै मलखानेकी मल्हना हुकुम दीन फर्माय ८५
बाँदी लीपन चौका लागी छींक्यो एक पुरुषने आय॥
मल्हना बोली तब मलखे ते अशकुन बहुत परैं दिखराय८६
टीका फेरो तुम दिल्ली का मानो कही बनाफरराय॥
बातैं सुनिकैं ये मल्हना की बोला तुरत लहुरवाभाय ८७
टीका फिरिहै जो दिल्ली का होई देश हँसौवा माय॥
कीन तयारी जब माड़ो की तबहूं छींक भई थी आय ८८
तवहूं रोंक्यो महरानी तुम माड़ो फते कीन हम जाय॥
शकुन हमारो फिरि वैसे भा शंका कौन गई मन आय ८९
सुनिकै वात उदयसिंह की मल्हना ठीक लीन उहाय॥
ऊदन मलखे द्वउ मनिहैं ना अब अनहोनी परै दिखाय ९०
बड़ा लड़ैया दिल्ली वाला है सब राजन में शिरताज॥
तुम्ही गोसइयाँ दीनबन्धुहौ स्वामी रामचन्द्र महराज ९१
परो साँकरो अब हमपर है राखन हार तुम्ही रघुराज॥
हम सुनिराखा है बिप्रन सों राख्यो सदा भक्तकी लाज ९२
गौतम नारी को तुम तारा केवट लीन्ह्यो हृदय लगाय॥
मांस अहारी गृद्धे तार्यो भीलिनिदर्शदिखायो जाय ९३
सोई दशरथ के रघुरैया नैया तुही लगैया पार॥
एक पूतकी मैं मैयाहौं ताकी कुशल किह्योकरतार ९४
सुमिरन करिकै रघुनन्दन को मल्हना करनलागि घरकाम॥
मलखे ठाकुर त्यहिसमया में ताहर वेगि बुलावा धाम ९५
जितने वासी हैं मुहबे के आये सबै नारि नर द्वार॥
सात सुहागिल त्यहि समयामें गावन लगीं मंगलाचार ९६
बड़ी भीर भै परिमालिक घर कहुँ तिलडरा भूमि ना जाय॥
चूड़ामणि पण्डित तहँ आयो साइतिं तुरत दीन बतलाय ९७
तव पिचकारी भरिकेशीर रँग मारैं एक एक को धाय॥
धूरि उड़ाई तहॅ अबीर की महलन गई लालरी छाय ६८
चौक पुराई गजमोतिन सों पीढा तहाँ दीन धरवाय॥
चौड़ा ताहर द्वउ ठाढ़े थे ब्रह्मा गये तहाँपर आय ६६
को गति बरणै परिमालिक कै लोहा छुये सोन ह्वैजाय॥
पारस पाथर ज्यहिके घरमाँ त्यहिकी द्रव्यसकैकोगाय १००
ऊदन बोले तहॅ ताहर सों अब तुम टीका देउ चढ़ाय॥
साँग गाड़ दइ तब ताहरने औयहबोल्यो भुजा उठाय १०१
सॉग उखारैं ब्रह्मा ठाकुर तौ हम टीका देई चढ़ाय॥
रीति हमारे यह घरकी है साँचे हाल दीन बतलाय १०२
सात तबा लोहे के नीचे तापर साँग गाड़ि हम दीन॥
सॉग उखारैं ब्रह्मा ठाकुर तौहमब्याहबहिनकाकीन १०३
देखि तमाखा बहु ताह रका मल्हना बोली वचन रिसाय॥
अशकुनकीन्ह्योम्बरेमहलनमां टीका तुरत देउ लौटाय १०४
बिना बियाहे ब्रह्मा रहि हैं तौ नहिं होय हमारी हान॥
अकिन तुम्हारी को लैलीन्ही मानों नहीं कही मलखान १०५
सुनिकै बातैं ये मल्हना की ऊदन बोले माथ नवाय॥
टीका फेरागा दिल्ली का तौमुँहकौन दिखावाजाय १०६
इतना कहिकै ऊदन ठाकुर तुरतै डारा सांग उखार॥
ऊदन बोले फिरि ताहर सों नाहर दिल्ली के सरदार १०७
हम तो नौकर परिमालिक के तिन यह डारा सांग उखार॥
ऐसे नौकर जिनके घरमाँ तिनसे कौन करै तलवार १०८
सुनिकै बातैं ये ऊदन की ताहर मनै गयो शर्माय॥
बीरा दीन्ह्यो ताहर ठाकुर ब्रह्मा बीरागये चबाय १०९
छींक तड़ाको भै सम्मुखमाँ मल्हना रोय उठी घबड़ाय॥
ब्याह न करिहौं मैं ब्रह्मा का मानो कही बनाफरराय ११०
हमैं चाह है नहिं भौंरिन कै ना कछु बहू केरि परवाह॥
घर इकलौता यहु जीवै जग औ फिरि बनेरहैं नरनाह १११
बहुतक अशकुन हम देखे हैं कैसे धरा जाय जिय धीर॥
पुत्रघाव सों दशरथ मरिगे यासों और कौन जगपीर ११२
भला न देखैं यहि व्याहे में मानो कही वीर मलखान॥
जो नहिं मानो मलखाने तुम हमरे जाय पानपर पान ११३
बातें सुनिके ये मल्हना की बोले फेरि वीर मलखान॥
घरको आवो टीका फेरैं तौसव हँसिहै देशजहान ११४
बिटिया आहिउ तुम ठाकुर की ठाकुर घरै बियाही माय॥
नहिं क्यहु बनियाकी महतारी जो मन बारबार पछिताय ११५
हल्दी मिरचा हम बेचैं ना ना हम करैं बणिज व्यापार॥
हम तो लरिका हैं ठाकुर के औ दिनराति करैं तलवार ११६
धन्य सराहैं हम कुन्ती का आपन दीन्हे पुत्र पठाय॥
युद्ध मचायो तिन कौरव ते औयशरहा जगतमें छाय ११७
बचे युधिष्ठिर समरभूमि ते पाँचो भाय कृष्ण महराज॥
यै ना रहिगे त्यउ दुनिया मॉ रहिगै एक जगतमें लाज ११८
जप तप होवै नहिं कलियुग में ना कछुदान पुण्य अधिकाय॥
जो मरिजावैं समरभूमि में पावैं स्वर्गलोक को माय ११९
इतना कहिकै मलखे ठाकर टीका तुरत दीन चढ़वाय॥
चारो नेगिन को बुलवायो भूषण वस्त्र दीन पहिराय १२०
बहुधन दीन्ह्यो फिरिचौंड़ा को अपने हाथ बनाफरराय॥
चूड़ामणि पंडित ते बोल्यो अबतुगलगनदेउबतलाय १२१
सुनिकै बातैं मलखाने की पंडित बोला लगन बिचार॥
माघ महीना कृष्ण पक्ष में तेरसि निथी शुक्रको बार १२२
नीकी साइति मलखाने है सो हम तुमका दीन बताय॥
सुनिकै बातैं ये पंडित की औ ताहरको दीन सुनाय १२३
यादि राखियो यह दिन भाई दिल्ली ब्याहकरव हम आय॥
बातैं सुनिकै ये मलखे की ताहरबलिभेशीशनवाय १२४
दगीं सलामैं सौ तोपन की धुवना रहा सरग मड़राय॥
अद्भुत शोभा में मोहबे के घर घर ढोलक परै सुनाय १२५
चलै पिचक्का कहुँ केशरि के कहुँकहुँ अबिरगुलालउड़ाय॥
पान मोहोबे के जग जाहिर लाली पीकैं पर दिखाय १२६
कहुँ कहुँ खेला गेला ठाढ़े बेला हार परैं दिखराय॥
कहूँ चमेला के तेला को रहेअलबेलाजुलुफलगाय १२७
कहुँ कहुँ हेला मेला कैकै बुलबुल बुलबुल रहे लड़ाय॥
उड़े तमाखू कहुँ हुक्कन में गुड़गुड़गुड़गुड़रहेमचाय १२८
मारु मारूकै मौहरि बाजे कहुँ कहुॅ हाव हाव करनाल॥
कहुँ पेवड़ा बालक बदलैं कहुॅकहुॅलड़ैंमल्ल जसकाल १२९
पटा बनेठी बाना कहुँ कहुँ कहुँकहुँ गदका को घमसान॥
बाढ़ि धरावें कहुँ कहुँ क्षत्री कहुँकहुँहनैनिशानाज्वान १३०
देखि तमाशा चौंड़ा ताहर मनमें बड़े खुशी ह्वैजायँ॥
कूच कराये द्वउ मोहबे ते दिल्लीशहरगये नगच्याय १३१
ह्याँसुधि पाई माहिल गकुर दिल्ली अटे अगाड़ी जाय॥
माथनवायो जब माहिल ने खातिर कीन पिथौराराय १३२
सोने कि चौकी में बैठार्यो राजा दिल्लीके महराज॥
बोले पिरथी फिर माहिल ते तुम्हरोकौन करी हमकाज१३३
बोले माहिल फिर पिरथी ते मानो कही सत्य महराज॥
ब्याहजो कीन्ह्यो तुम मोहबे में खोई सबै आपनी लाज १३४
जाति बनाफरकी ओछी है है सब जातिन केरि उतार॥
इतना कहतै चौंड़ा ताहर दोऊ आयगये दरबार १३५
सूरति दीख्यो जब ताहर की गई हाँक दीन ललकार॥
हमजो बरजा तुमको ताहर ना तुम मानी कही हमार १३६
सुनिकै बातैं ये राजा की ताहर हाथजोरि शिरनाय॥
कही हकीकति सब मलखे की ताहर बारबार समुझाय १३७
माहिल बोले फिर राजा ते नाहर दिल्ली के सरदार॥
टीका फेरो तुम जल्दी सों इतनी मानो कही हमार १३८
इतना सुनिकै चौंड़ा चलिभा ताहर बोले बचन उदार॥
बड़े लड़ैया मोहबे वाले जिनके बाँट परी तलवार १३९
ब्याहन आवैं जब तुम्हरे घर तब तुम मूड़ लिह्यो कटवाय॥
टीका फिरिहै अब दादा ना तुमते सत्यदीन बतलाय १४०
यह मन भाय गई माहिल के तुरतै कीन्ह्यो रामजुहार॥
बिदा माँगिकै पृथीराज सों चलिभा उरई का सरदार १४१
१४
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय १४२
माथनवावों पितु अपने को ह्याँते करों तरँग को अन्त॥
रामरमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त १४३
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबूप्रयागना-
रायणजीकी आज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅडरीकलानिवासिमिश्रवंशोङ्दव
बुधकृपाशंकरसूनुपं॰ ललिताप्रसादकृतब्रह्माटीकावर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥
सवैया॥
भो रधुनाथ अनाथन नाथ सनाथ करो अब तो भगवाना।
और न आश निराशकरो नहिं देखिचुके सब और ठिकाना॥
मात पिता अरु भ्रातको नात सबै तुमहीं यहही मनजाना।
गात सुखात सबै दिन जात नहीं ललितें कछु झूठबखाना १
सुमिरन॥
दोउ पद ध्यावों रघुनन्दन के बन्दनकरों जोरि द्वउहाथ॥
नहीं सहायक कउ काको है स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ १
बिना तुम्हारे को परमारथ अन्त में देइ कौन को साथ॥
भो जगतारण भवभय हारण तुमहीं सदा हमारे नाथ २
को अस दुनियामाँ पैदा भा जो तरिगयो बिना तव नाम॥
माता भ्राता अरु ताता ना अन्तम अवैं आपने काम ३
तुम्ही गोसइयाॅ दीनबन्धु हौ सीतापती चराचर नाथ॥
गलति हमरी द्विज देही का जावै समय हाथ बेहाथ ४
शिव औ ब्रह्मा कोउ पायो ना गाय कै पार तुम्हारी गाथ॥
ब्यहि को गावों कसमानुष में स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ ५
छूटि सुमिरनी गै रघुबर कै सुनिये ब्रह्मा केर बिवाह॥
फौजै सजिहैं आल्हा ऊदन करि हैं समर केर उत्साह ६
अथ कथाप्रसंग॥
माहिल चलिभे जब दिल्ली ते मल्हना महल पहूंचे आय॥
बड़ी खुशाली भै मल्हना के हमरे बूत कही ना जाय १
मल्हना बोली फिरि माहिल ते भैया उरई के सरदार॥
टीका चढ़िगा है दिल्ली का ब्रह्मा भैने जौन तुम्हार २
बहुतकअशकुन त्यहिसमयाभे जियरा धीर धरा ना जाय॥
मैं समुझायों भल मलखे को पैना मन्यो बनाफरराय ३
त्यही समैया ते भैया अब रहि रहि मोर प्राण घबड़ायँ॥
माह महीना जब ते आवा तब ते भूख नींद गै भाय ४
कलनहिं पावैं हम पलँगा में औ घरदीखे नित्त डेरायँ॥
बिरमा द्यावलिके लड़िका सब हमको शत्रु रूप दिखरायँ ५
पै अब करतब कछु सूझैना साँचे हाल दीन बतलाय॥
बातैं सुनिकै ये मल्हना की माहिल बोले बचन बनाय ६
काम हमारो रहै पिरथी ते हम दरबार मँझावा जाय॥
सुनी हकीकति तहँ पिरथी की बहिनी सांच देयॅ बतलाय ७
जाति बनाफर की ओछी है पिरथी बार बार पछितायॅ॥
ब्याहन अइहैं हमरे घरमाँ सबके मूड़ लेव कटवाय ८
चलिकै ब्रह्मा इकलो आवै तौ बिनव्याधि ब्याह ह्वैजाय॥
चन्द्रवंश में उइ पैदा है नहिं कछु उजुरु हमारे भाय ९
हम समुझावा तब पिरथी को ऐसै करब मोहोबे जाय॥
भैने हमरो ब्रह्माकुर औ बहनोई चँदेलोराय १०
बड़ी खुशाली भै पिरथी के फूले अंग न सक्यो समाय॥
भलो आपनो जो तुम चाहौ इकलो ब्रह्मा देउ पठाय ११
हमहूं जैवे त्यहि संगैमाँ तुम्हरे काज सिद्ध ह्वैजायँ॥
सुनिकै बातैं ये माहिल की मल्हना बोली मन हर्षाय १२
कहा तुम्हारो हम टाख ना भैया उरई के सरदार॥
इकलो ब्रह्मा तुम लै जावो जामें होय नहीं तहँ मार १३
माहिल बोले फिरि मल्हनाते बहिनी मानो कही हमार॥
चोरी चोरा काम निकालो नाकछु रीतिभांति की ब्यार ११
यह मन भायगई मल्हना के चुप्पे पलकी लीन मँगाय॥
ब्रह्माठाकुर को बुलवायो औ पलकीमॉ दीन विठाय १५
लैकै पलकी माहिल चलिभे ऊदन अटा तहाँ पर आय॥
हाल जानिकै सब माहिल को चुप्पै धावन लीन बुलाय १६
लिखिकै चिट्ठी मलखाने को ऊदन तुरतै दीन पाय॥
चिट्ठी पढ़िकै मलखाने ने औ सुलखेको लीन बुलाय १७
कहि समुझायो सब सुलखेको सोऊ चला वेगिही धाय॥
जायकै पकर्यो सो माहिलको तुरतै कैद लीन करवाय १८
लैकै पलकी औं माहिल को सिरसागढ़ै पहूँचा आय॥
बाँधि जँजीरन फिरि माहिल को फाटक पास दीन बैठाय १९
ऊदन चलिभे फिरि महलनको मल्हनै शीश झुकावाजाय॥
हाथ जोरिकै ऊदन बोले माता साँच देयँ बतलाय २०
माहिल मामा की बातन में इकलो ब्रह्मा दियो पठाय॥
कुशल न होइहै तहँ ब्रह्माकी साँची बात कहैं हम माय २१
इतना कहिकै ऊदन चलिभे दशहरिपुरै पहूँचे आय॥
कही हकीकति सब आल्हासों ऊदन बार बार समुझाय २२
चिट्ठी लिखिकै मलखाने ने औ परिमालै दीन जनाय॥
नेवता पठवो सब राजन को वहँहीं कुँवाँ बियाहैं माय २३
पायकै चिट्ठी मलखाने की सोई कीन रजापरिमाल॥
गायकै नेवता परिमालिक का आये सबै तहाँ नरपाल २४
तम्बू गड़िगे महराजन के झण्डा आसमान फहरायँ॥
सुनवाँ बोली ह्याँ ऊदन ते तुम सुनिलेउलहुरवाभाय २५
ब्याह नगीचे है ब्रह्माका ना मोहबे का भयो तयार॥
काह तुम्हारे मनमाँ व्यापी देवर बेंदुल के असवार २६
सुनिकै बातैं ये भौजी की बोले उदयसिंह सरदार॥
हम नहिं जावै अब मोहबे का भौजी मानों कही हमार २७
सुनिकै बातैं ये ऊदन की सुनवाँ कहे बचन मुसुकाय॥
दूध पियायो मल्हना रानी सेयो तुम्हैं बनाफरराय २८
तुम्है न चहिये अस बघऊदन धोखा देउ समय पर आय॥
धोखो दीन्हो माहिल मामा मलखे कैद लीन करवाय २९
कुशल आपने सब लड़िकाकी चाहैं सदा लहुरवा भाय॥
को जगरक्षक है जननी सम ऊदन काह गये बौराय ३०
करो तयारी अब भैया सँग मानो कही बनाफरराय॥
इतना सुनिकै ऊदन चलिभे आल्है खबरिजनायोजाय ३१
बातैं सुनिकै बघऊदन की आल्हा लश्करलियोसजाय॥
बैठे हाथी आल्हा ठाकुर मनमें सुमिरि शारदामाय ३२
चढ़ा बेंदुला की पीठी पर नाहर उदयसिंह सरदार॥
दशहरिपुरवा ते चलिकै फिरि पहुंचे मोहबे के दरबार ३३
खातिर कीन्ह्यो परिमालिक ने दोऊ भाय बैठि शिरनाय॥
भई तयारी फिर सिरसा की सबकोउ अटे तहाँपर जाय ३४
गई पालकी तहँ मल्हना की सिरसा भीर भई अधिकाय॥
आल्हा दीख्योजब माहिल को मनमें गई दया तब आय ३५
फिरि ललकार्यो मलखाने को यहुका कीन लहुरवा भाय॥
जल्दी छोरो तुम मामा को हमसोबिपतिदीखिनाजाय ३६
सुनिकै बातैं ये आल्हा की मलखे तुरतै दीन छुड़ाय॥
कुँवाँ बियाह्यउ ब्रह्मा ठाकुर पलकीचढ्योगणेशमनाय ३५
भई तयारी फिरि बिवाह की सबियाँ क्षत्री भये तयार॥
हम ना जैबे अब दिल्ली को बोला उरई का सरदार ३८
बातैं सुनिकै ये माहिल की बोला उदयसिंह त्यहिबार॥
तुम ना जैहौ जो दिल्ली को तौ को करिहै काम हमार ३९
बॉघि जँजीरन हम लैजैहैं मामा उरई के सरदार॥
बातैं सुनिकै ये ऊदन की माहिल तुरत भये तय्यार ४०
हाथी सजिकै आगे चलि भे पाछे चले घोड़ असवार॥
पैदर सेना त्यहि पाछे सों तोपैं चलिभइँ पांच हजार ४१
आगे हाथी परिमालिक का पाछे सबै शूर सरदार॥
पाग बैंजनी शिरपर बाँधे ऊदन बेंदुलपर असवार ४२
कूच कराये सिरसागढ़ सों दिल्लीशहर गये नगच्याय॥
दिल्ली केरे फिरि डाँड़ेपर तम्बू तुरत दीन गड़वाय ४३
ज्ञक्षपताका एकमिल ह्वैगे नभमाँ गई लालरी छाय॥
लागि कचहरी परिमालिककी शोभा कही बून ना जाय ४४
आल्हा बोले चूड़ामणि सों पंडित साइति देउ बताय॥
लैकै पत्रा पंडित बोले मानो कही बनाफरराय ४५
भीनलग्न की अब बिरिया है ऐपनतारी देव पठाय॥
बातैं सुनिकै चूड़ामणि की मलखे रुपना लीन बुलाय ४६
एपनवारी बारी लैकै दिल्ली तुरत देव पहुंचाय॥
बातैं सुनिकै मलखाने की रुपना हाथजोरि शिरनाय ४७
उत्तर दीन्ह्यो मलखाने को मानो कही बनाफरराय॥
नैनागढ़ झुन्नागढ़ नाहीं ह्याँपर बसै पिथौराराय ४८
लौटब मुशकिल है दिल्ली ते पिरथी मूड़ लेइ कटवाय॥
औरो बारी हैं मोहबे के तिनका आप देयँ पठवाय ४९
बातैं सुनिकै ये रुपना की बोले उदयसिंह सरदार॥
तेहा सखो रजपूती का बाँधो सदा ढाल तलवार ५०
जौन गोसइयाँ पैदा कीन्ह्यो सोई सदा बवावनहार॥
बातैं सुनिकै उदयसिंह की रूपन बोला बचन उदार ५१
घोड़ा पावैं हरनागर को औ मलखे कि ढाल तलवार॥
ऐपनवारी हम लै जावैं लावें नहीं नेकहू बार ५२
सुनिकै बातैं ये रूपन की मलखे दीन ढाल तलवार॥
ऐपनवारी रूपन लैकै हरनागर पर भयो सवार ५३
माथनायकै सब क्षत्रिन को तुरतै कूच दीन करवाय॥
पिरथी केरे फिर फाटकपर रूपन तुरत पहूंचा जाय ५४
तब ल्यलकारा दरवानी ने बारी बड़ो के असवार॥
कहाँते आयो औ कहँ जैत ताहर समरध रावरे क्यार ५५
सुनिकै बातैं द्वारपालजादे रूपन पास चन ततकाल॥
अई बरातैं हैं मोहब के फाटकपार निकाजापरिमाल ५६
ब्याहन आये हैं ब्रह्माको रूपनवारी नाम हमार॥
ऐपनवारी हम लाये हैं चहिये नेग म्बार अब द्वार ५७
सुनिकै बातैं ये रूपन की बोला द्वारपाल त्यहिबार॥
नेगु तुम्हारो का द्वारे का बोलो घोड़े के असवार ५८
सुनिकै बातैं द्वारपालकी रूपन कहा बचन ललकार॥
चारघरी भर चलै सिरोही द्वारे बहै रक्तकीधार ५९
जौन शूरमाहो दिल्ली को द्वारे देवै नेग हमार॥
ऐसे वैसे हम नेगी ना कम्मर बँधी ढाल तलवार ६०
शूर सराही हम ऊदन का मलखे सिरसा के सरदार॥
का गति बरणैं हम आल्हा की जिनसों हारिगई तलवार ६१
तिनके नेगी हम रूपन हैं राजै खबरि जनावो जाय॥
सुनिकै बातैं ये रूपन की रहिगा द्वारपाल सन्नाय ६२
सोचिसमझिकै फिरिवोलतभा रूपन काह गये दोराय॥
दहीके धोखे कहुँ भूले ना जोतैं जाय कपास चवाय ६३
एक तो ऊदन कै गिनती ना बावन चढ़ै उदयसिंह आय॥
ह्याँपर मलखे सब घर घर हैं आल्हा कौनवस्तु हैं भाव ६४
है परिमालिक अस ठाकुर बहु जिनते पोत तसीला जाय॥
जूंठनि खावै घर घर बारी सो का रारि मचावै आय ६५
पीकै दारू को आवा है की बश सन्निपात के भाय॥
झूरिभांग जो तू खावा हो तो हम औषधि देयँ बताय ६६
ज्ञान ठिकाने करिसागढ़ सों गजै काह सुनावैं जाय॥
सुनिकै बातैं क्वरि डाँड़ेपर धन बोला क्रोध बढ़ाय ६७
आयगयो तव परिमालिककी सहाय थे कोऊ कहुँ देखिपरैना।
जानत नाहिन रूपन को अरु नाहक दुष्ट बकै बहु बैना॥
ताहर नाहर को गहिकै इकलो मलखान जिता बिन सैना।
का बड़िबात करैं ललिते दिनही नहिं देखिपरै तव नैना ६८
बातैं सुनिकै ये बारी की चलिभा द्वारपाल ततकाल॥
हाथ जोरिकै महराजा को सब बारीके कहे हवाल ६९
सुनिकै बातैं द्वारपाल की यहु महराज पिथौराराय॥
सूरज लड़िका को बुलवायो औ सवहाल कह्योसमुझाय ७०
पकरिकै लावो त्यहि बारी को हमको बेगि दिखावो आय॥
सुनिकै बातैं महराजा की सूरज चलिभाशीशनवाय ७१
दीख दुबारेपर बारी को नाहर घोड़े पर असवार॥
शंका जाके कछु नाहीं है हाथ म लिये नाँगि तलवार ७२
हुकुम लगावा द्वारपाल को फाटक बंद लेउ करवाय॥
फिरि ल्यलकारा रजपूतन को लावो पकरि शूरमाँ जाय ७३
हुकुम पायकै तब सूरज को तुरतै चले सिपाही धाय॥
एँड़ लगायो हरनागर के टापन क्षत्री दीन गिराय ७४
बहुतन मार्यो रूपनबारी हाहाकार शब्द गा छाय॥
देखि तमाशा सूरज ठाकुर मनमाँ बार बार पछिताय ७५
रूपनबारी के मुर्चा माँ कोऊ शूर न रौंक पायँ॥
उड़न बछेड़ा हरनागर ने बहुतक क्षत्री दीन गिराय ७६
फिरि फिरि मार औ ललकारै बारी बड़ा लड़ैया ज्वान॥
देखि तमाशा यहुबारी का ताहर समरधनी चौहान ७७
सूरज ताहर दउ शहजादे रूपन पास पहूंचे जाय॥
एँड लगायो हरनागर के फाटकपार निकरिगा भाय ७८
मारो मारो हल्ला कैकै क्षत्री सबै चले बिरझाय॥
नेग लेब अब हम भौंरिन में गरूई हाँक दीन गुहराय ७९
इतना कहिकै ऍड़ लगायो फौजन तुरत पहूंचा आय॥
जेसे फागुन फगुई खेलैं लोहू छीटन गयो अन्हाय ८०
तेसे दीख्यो जब रूपन का बोल्यो उदयसिंह सरदार॥
कहौ हकीकति सब दिल्ली कै द्वारे भली कीन तलवार ८१
बातैं सुनिकै उदयसिंह की रूपन यथातथ्य गा गाय॥
सुनिकै बातैं ये रूपन की माहिल बोले बचन बनाय ८२
यह नहिं चहिये पृथीराज को जो अब रारि बढ़ावत जायँ॥
कौन दुसरिहा है आल्हा का सम्मुख लड़ै समर में आय ८३
जो मन पावैं बघऊदन का राजै तुरत देयँ समुझाय॥
नेग कराय देयँ द्वारे का सातो भॉवरि देयँ फिराय ८४
भली भली कहि ऊदन बोले माहिल घोड़ी लीन मँगाय॥
चड़िकै घोड़ी माहिल ठाकुर दिल्ली शहर पहूँचे जाय ८५
को गति बरणै तहँ पिस्थी कै भारी लाग राजदरबार॥
खाँडेराय पिरथी का भाई धाँधू तासु पुत्र सरदार ८६
रहिमति सहिमति जिन्सीवाले औं रणधीर लहाउर क्यार॥
भुरा मुगुलिया काबुल वाला टिहुनन धरे नाँगि तलवार ८७
देबी मरहटा दक्षिण वाला आला समरधनी मैदान॥
अंगद राजा ग्वालियर का जगनिकक्यारभुगंताज्वान ८८
सातो लड़िका पृथीराज के तेऊ बैठि राजदरबार॥
मोती जवाहिर, गोपी, ताहर, सूरज, चन्दन ये सरदार ८९
मर्दन, सर्दन, सातो लड़िका ये रणबाघ लड़ैया बाल॥
सोने सिंहासन पिरथी सोहैं त्यहिमाँजड़े जवाहिरलाल ९०
और ठाकुर बहु बैठे हैं एकते एक शूर सरदार॥
तही पहुँचो उरई वाला तुरतै कीन्ह्यो राम जुहार ९१
किह्यो खातिरी पृथीराजने अपने पास लीन बैठाय॥
माहिल बोला तब पिरथी ते मानो कही पिथौरागय ९२
काम न सहिहै लड़े भिड़ते दूनों तरफ हानिहै भाय॥
जहर घुरावो तुम शरबत में औ लश्करमें देउ पठाय ९३
बिना बयारी जूना टूटै ओ बिन औषधि बहै बलाय॥
यह तयारी अब करिडारो तो सबकाम सिद्ध ह्वैजाय ९४
साम दाम औ दण्ड भेद सों क्षत्री करैं आपनो काम॥
छल बल क्षत्री का धर्मै है तुमको कौन करै बदनाम ९५
बातैं सुनिकै ये माहिल की भा मन बड़ा खुशी नरनाह॥
स्यावसि स्यावसि उरई वाले हमका नीकि दीन सल्लाह ९६
बिदा मांगिकै पृथीराज सों तम्बुन फेरि पहूंचा आय॥
हाल बतायो परिमालिक को चेउँ करी पिथौराराय ९७
जैसे पियासा पानी पावै सूखे धान परै जस नीर॥
बातैं सुनिकै ये माहिल की तैसे आय गयो मनधीर ९८
घड़ा मँगायो ह्याँ पिरथी ने तामें जहर दीन डरवाय॥
चारो नेगिन को बुलवायो सूरज पूत लीन बुलवाय ९९
कह्यो हकीकति सब सूरज सों पिरथी बार बार समुझाय॥
तुरत कहारन को बुलवायो सूरज घड़ा लीन उठवाय १००
माथनायकै फिरि पिरथी को मनमें श्रीगणेश पद ध्याय॥
सूरज चलिभा फिरि दिल्ली सों लश्कर तुरत पहूंचा आय १०१
जहँना तम्बू परिमालिक का वहिंगी तहाँ दीन धरवाय॥
माथ नायकै परिमालिक को आपो बैठिगयो तहँ जाय १०२
मलखे बैठे हैं दहिने पर बायें बैठे उदयसिंहराय॥
बैठ बराबर आल्हा ठाकुर शोभाकही बूत ना जाय १०३
सूरज बोले तहँ राजा सों शरबत आप देउ बँटवाय॥
करो तयारी फिरि द्वारे की साइतिआयगईनगच्याय १०४
देबा बोला महराजा सों मानो कही चँदेलो राय॥
पहिले शरबत माहिल पीवैं पाछे सब को देउ बटाय १०५
इतना सुनिकै सूरज चलिभे तुरतै काने जनो चढ़ाय॥
माहिल बोले तब देबाते क्षत्री काह गये बौराय १०६
पान बड़ेको पानी छोटे यहहै रीति सदा की भाय॥
भाय लहुरवा शरबत पीवै औरो पियैं बनाफरराय १०७
माघ महीना दिन शरदी के हमरो शरवत पियै बलाय॥
शिरमें पीड़ा ऐसे होवै औ फिरिसन्निपातह्वैजाय १०८
बातैं सुनिकै ये माहिल की देबा कुत्ता लीन बुलाय॥
पीते शरबत कुत्ता मरिगा तब सब गये तहां सन्नाय १०९
जितना शरबत रहै बहिंगिनमें सो सब खन्दक दीन डराय॥
भागिकै सूरज दिल्ली आये औ दरबार पहूंचे आय ११०
खबरि जनाई सब राजा को नेगी चले यहां ते धाय॥
भागत नेगिन ऊदन देखा पकरा तुरत सबनको जाय १११
दया आयगै तब आल्हा के तुरतै नेगी दीन छुड़ाय॥
नेगी चलिभे सब दिल्ली को औ दरबार पहूंचे आय ११२
कही हकीकति सब पिरथी ते नेगिन बार बार शिरनाय॥
माहिल बोले परिमालिक ते मानो कही चँदेलेराय ११३
यह नहिं करतब है पिरथी कै लरिकन घाटि कीन ह्याँ आय॥
रक्षक ज्यहिको है परमेश्वर त्यहिकोबार न बाँकाजाय ११४
पै रिस हमरे अस आई है सबियाँ दिल्ली डरैं खुदाय॥
काह बतावैं हम जीजा ते तुम सुनिलेउ लहुरवाभाय ११५
शङ्का हमपर है देबा की साँचे हाल देयॅ बतलाय॥
हम नहिं जानत यह करतवरहैं मानो कही बनाफरराय ११६
बड़ी पियारी मल्हना बहिनी औ नित खातिर करै हमारि॥
सगो भानजो ब्रह्मा हमरो तासों कौनि हमारी रारि ११७
सुनिकै बातैं ये माहिल की बोले उदयसिंह त्यहिवार॥
अब तुम जावो फिरि दिल्लीको मामा उरई के सरदार ११८
शंका तुमपर नहिं काहूकी मामा मानो कही हमारि॥
रक्षक ज्यहिकी जगदम्बा है त्यहिकोसकैकौनजगमारि ११९
सुनिकै बातैं ये ऊदन की माहिल घोड़ी लीन मँगाय॥
चढ़िकै घोड़ी माहिल ठाकुर फिरि दरबार पहूंचे जाय १२०
बड़ी खातिरी राजा कीन्ह्यो माहिल बैठिगयो शिरनाय॥
माहिल बोले फिरि राजा ते मानो कही पिथौराराय १२१
खंभ गड़ावो दरबाजे पर तिनपर कलश देउ धरवाय॥
जौंरा मौंरा दोनों हाथी तिनके आगे देउ छुड़ाय १२२
प्यायकै दारू तिन हाथिन को तुरतै मस्त देउ करवाय॥
द्वारे आवैं जब परिमालिक तयहबोल्योवचनसुनाय १२३
हथी पछारो म्बरे द्वार में तुरतै भाँवरि देयँ डराय॥
कुल की हमरे यह रीती है मानो कही चँदेलेराय १२४
अबती बचिहैं नहिं द्वारे पर मानो कही पिथौराराय॥
इतना कहिकै माहिल चलिभे तम्बुन फेरि पहूंचे आय १२५
भई तयारी ह्याॅ दिल्ली में द्वारे खम्भ दीन गड़वाय॥
जो कुछ माहिल बतलावाथा सो सब सामादीन कराय १२६
माड़ो छावा गा जल्दी सों जल्दी चौक भई तय्यार॥
अई सुहागिल बहु दिल्ली की गावनलगीं मंगलाचार १२७
देखिकै सूरति ह्याँ माहिल की मलखे कहे वचन यहिबार॥
खबरि बतावो सब दिल्ली की मामा उरई के सरदार १२८
सुनिकै बातैं ये मलखे की माहिल बोले बचन बनाय॥
करो तयारी अब द्वारे की मानो कही बनाफरराय १२९
मलखे बोले परिमालिक ते दूनो हाथ जोरि शिरनाय॥
हुकुम जो पावैं महराजा को ह्यॉते कूच देयँ करवाय १३०
बातैं सुनिकै मलखाने को राजा हुकुम दीन फरमाये॥
बाजे डंका अहतंका के हाहाकारी शब्द सुनाय १३१
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़नपर असवार॥
जितनी फौजें परिमालिक की सवियाँ वेगि भई तय्यार १३२
मनियादेवन को सुमिरन करि गजपर बैठि रजापरिमाल॥
मारु मारुकै मौहरि बाजी बाजी हावहाव करनाल १३३
गर्द उड़ानी तब पिरथी माँ लोपे अन्धकारसों भान॥
मारू तुरही बाजन लागीं घूमनलागे लालनिशान १३४
आगे पलकी भै ब्रह्माकै पाछे चले सिपाही ज्वान॥
घोड़ी कबुतरी के ऊपरमाँ दहिने चला वीरमलखान १३५
बँयें बेंदुला को चढ़वैया नाहर लिये नाँगि तलवार॥
पाग बैंजनी शिरपर सोहै तापर कलँगी करै बहार १३६
गर्द न समझै क्यहु दुशमनको क्षत्री उदयसिंह सरदार॥
शोभा बरणै को आल्हा की साँचो धर्मरूप अवतार १३७
गा खलभल्ला औ हल्ला अति दिल्ली पास गये नगच्याय॥
चन्दन बेटा को बोलवायो यहु महराज पिथौराराय १३८
भई तयारी अगवानी की दिल्ली सजन लागि सरदार॥
रथ औ हाधिन में बहु बैठे छैला घोड़न भे असवार १३९
बड़ी सजाई भै ठकुरनकै छैला चलिभे बॉधि कतार॥
भाला बलछी फरसा बाॅधे कोऊलिये ढाल तलवार १४०
दगीं सलामी दुहुँ तरफन ते धुॅवना छायगयो असमान॥
आतशबाजी की शोभा अति भाला तारा के अनुमान १४१
कउँधालपकनि खड्गचमक्कनि हुक्कनि गुड़गुड़दीन मचाय॥
पैग पैग पर दूनों चलि चलि रुकिकिपैगपैगपर जायँ १४२
को गति बरणै महराजन कै मानो देव भूमिगे आय॥
दो बिचचानी द्वउ दिशि घूमैं रूकिरूकिपैगपैगपर जाय १४३
उठे सुगन्धैं तहँ अतरन की बेला और चमेला हार॥
का गति बरणों मैं निवारि की क्षत्री किये फूल श्रृंगार १४४
नीली पीली जंगाली औ लाली पगड़िनकेरि कतार॥
मुँदरी छल्ला मोहनमाला क्यहुगरपरामोतिनकाहार १४५
देखैं तमाशा जे नारी नर तिनका लागै नीकि बहार॥
शाल दुशाले नीले पीले चमके इन्द्रधनुष अनुहार १४६
बाल सूर्य्यसम मूंगा चमकैं दमकैं तहाँ जवाहिरलाल॥
जब अगवानी पूरण ह्वैगै गावन लगीं द्वारपरबाल १४७
संगम ह्वैगा दुहुँ तरफा ते दूनों तरफ भये सतकार॥
दूनों मिलिकै संगम ह्वैकै पहुँचे पृथीराज के द्वार १४८
जौंरा भौंरा हाथी ठाढ़े ताहर बोले बचन पुकार॥
जौन शूरमा हों मोहबे के द्वारे हाथी देयँ पछार १४९
सुनिकै बातैं ये ताहर की चलिभा उदयसिंह झन्नाय॥
जावत दीख्यो उदयसिंह को मलख्यो चला तुरत ठन्नाय १५०
को गति बरणै दोउ वीरन की मानो चले कृष्ण बलराम॥
ऊदन सुमिर्यो श्रीशारद को मलखेलीनशिवाशिवनाम १५१
ऊदन चलिमा जौरा दिशिको मलखे भौंरा की दिशिजाय॥
पूॅछ पकारिकै तिन हाथिन कै जैसे सिंह घसीटै गाय १५२
तैसे ऊदन मलखे ठाकुर दोऊ नाग घसीटैं धाय॥
करोख तमाशा दिल्लीवाले अँगुरी दाँते लीन चपाय १५१
मलखे ऊदन दोऊ ठाकुर सम्मुख गही सूँढ को आय॥
दाबिकै मस्तक तिन हाथिनका दूनों दीन्ह्यों भूमि लुटाय १५४
दॉत तूरिकै तिन हाथिन का दोऊ चढ़े घोड़ पर आय॥
ताहर बोले फिरि दोउन ते गानो कहीं बनाफरराय १५५
कलश गिराबो अब खम्भन ते तौ हम कही शूर फिरि भाय॥
इतना सुनिकै जगनिक ठाकुर कलशन पासपहुंचाजाय १५६
ताहर बोला कमलापति सों मारो याहि दौरि सरदार॥
इतना सुनिकै कमलापति फिरि दौरे लिहे नाँगितलवार १५७
कोगति बरणै जगनायक कै भैने जौन चँदेले क्यार॥
आवत दीख्यो कमलापति को गरूईहाँक दीन ललकार १५८
लौटिज ठाकुर म्बरे सुर्चाते नहिं शिर काटि देउँभुइँ डारि॥
सुनिकै बातैं जगनायक की, कमलापतिउ बढ़ायोगरि १५९
हथी बढ़ायो फिरि आगे को जगनिक पास पहूंच्योजाय॥
एँड़ लगायो हरनागर को हौदा उपर बिराजाआय १६०
भाला मार्यो कमलापति को सोतो लीन ढालपर वार॥
रिसहा ह्वैकै जगनायक फिरि तुरतै खैंचिलीन तुलवार १६१
ऐंचि महाउत को मारत भा तुरतै भूमि दीन शिरडार॥
आवा मस्तक ते भूमा फिरि गरूई हाँक दीन ललकार १६२
सॅभरिकै बैठे अव हौदापर ठाकुर हाथी के असवार॥
की भगि जावै म्बरे मुर्चा ते नहिंअवजानवहतयमद्वार१६३
बातैं सुनिकै जगनायक की कमलापतिउ दीनललकार॥
काह गवॉरे तू बोलत है ठाकुर घोड़े के असवार १६४
तू अस क्षत्री हम संगर में केतन्यो डारे खेलि शिकार॥
ऐसी बातैं जो फिरि बोलै तौ मुहँ धाँसिदेउँ तलवार १६५
बातैं सुनिकै कमलापति की भैने जौनु चँदेले क्यार॥
एँड़ लगायो हरनागर के हाथी उपर गयो सरदार १६६
भाला मार्यो कमलापति के तोंदी परा घाव सो जाय॥
द्वार जूझिगा कमलापति जब रहिमतसहिमतचलेरिसाय१६७
ऊदन बोले तब देबा ते ठाकुर भैनपुरी चौहान॥
देखो आवत दुइ लड़ने को उतसों समर भूमिमें ज्वान १६८
मन्नागूजर को सँग लैकै मारो समर भूमि मैदान॥
तुम्हरी दूनन की बरणी हैं मानो कही बीर चौहान १६९
सुनिकै बातैं बघऊदन की दोऊ बढ़े अगाड़ी ज्वान॥
रहिमत सहिमतको ललकार्यो होवो खड़े समर मैदान १७०
सुनिकै बातैं इन दोउन की उनहुन खैंचि लीन तलवार॥
उसरिन उसरिन दोऊ मारैं दोऊ लयँ ढालपर वार १७१
बड़ी लड़ाई भै द्वारेपर औ बहि चली रक्तकी धार॥
रहिमत सहिमत जिन्सीवाले घायल भये द्वऊ सरदार १७२
सुमिरि भवानी मइहरवाली मनियादेव मोहेबे क्यार॥
घोड़ बढ़ायो बघऊदन ने दोऊ कलशा लिये उतार १७३
देखि वीरता बघऊदन की भा मन खुशी पिथौराराय॥
हँसिकै बोल्यो बघऊदन ते मानो कही बनाफरराय १७४
उलटी रीती हमरे घरकी ऐसो सदा क्यार व्यवहार॥
हो समध्वारो जब द्वारेपर तवफिरिभौंरिनकात्यवहार१७५
अब तुम लावो परिमालिक को यहहू नेग यहाँ ह्वैजाय॥
होय तयारी फिरि भौंरिनकै साँचे हाल दीन बतलाय १७६
इतना सुनिकै ऊदन चलिभो पहुँचा जहाँ रजापरिमाल॥
१५
जो कछु भापा पृथीराज ने ऊदनजाय कह्यो सबहाल १७७
सुनीहकीकति जवमाहिल सब पहुंचा पृथीराज के पास॥
बड़ी उदासी सों बोलत भा राजा करो वचन विश्वास १७८
ब्याह जो होइहै ब्रह्मानँद का होइहै बड़ा जगत उपहास॥
भेटन आवैं परिमालिक जब तब तुमकरो द्वारपरनाश १७९
इतना कहिकै माहिल चलिभे अब ऊदनके सुनो हवाल॥
सुनिकै बातैं बघऊदन की बोले तुरत रजापरिमाल १८०
ताकत हमरे अस नाहीं है जो हम मिलैं द्वार समध्वार॥
गजभर छाती पृथीराज की क्यहिके जमे करजे बार १८१
रह्यो भरोसे तुम हमरे ना मानो कही बनाफरराय॥
मलखे बोले तब आल्हा ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय १८२
भयो हँसौवा अब दिल्ली माँ दादा साँच परै दिखराय॥
ऐसी बातैं राजा बोलैं सो तुम सुनी रह्योहे भाय १८३
अब तुम चलिहौ समध्वारे को तो सब वात यहाँ रहिजाय॥
हँसिहैं दिल्ली में नरनारी भारीबिपतिपरीअबआय १८४
जेठो भाई बाप बरोबरि तुम्हरे गये बात बनिजाय॥
सुनिकै बातैं ये मलखे की आल्हा हाथी दीन बढ़ाय१८५
द्वार ठाढ़े पृथीराज जहँ तहँपर गये बनाफरराय॥
उतरिकै हाथी के हौदा ते मनमें सुमिरिशारदामाय १८६
गये सामने जब पिरथी के दधि औ पान दीन चपकाय॥
लखैं तमाशा तहॅ नारी नर भा समध्वार द्वारपरआय १८७
पिरथी बोले तहॅ आल्हा सों मानो कही बनाफरराय॥
अब तुम जावो निज तम्बू को भौंरीसमयगयोनगच्यायर १८८
निकै बातैं ये पिरथी की लश्कर कूच दीन करवाय॥
बाजे डंका अहतंका के तम्बुन फेरि पहूंचे आय १८९
पिरथी पहुंचे राजमहल को सबियाँ झगड़ा गयो पटाय॥
खेत छूटि गा दिननायक सों झंडागड़ा निशाको आय १९०
करों बन्दना पितु अपने की जिन वल भयोतरँगकोअन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त १९१
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मजबाबूप्रयागना-
रायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपँड़रीकलांनिवासिमिश्र
वंशोद्भवबुधकृपाशशरसूनुपण्डितललिताप्रसादकृतब्रह्माद्वारचार
वर्णनोनामद्वितीयस्तरंगः ॥२॥
पहिली भाँवरि के परतै खन ताहर हनी तुरत तलवार ४४
दहिने ठाढ़ो मलखे ठाकुर सो लैलीन ढाल पर वार॥
आधे आँगन भौंरी होवैं आधे चलनलागि तलवार ४५
ब्रह्मा ठाकुर की रक्षा में आल्हा ठाकुर भये तयार॥
मलखे सुलखे जगनिक देबा आँगन करैं भड़ाभड़ मार ४६
तेगा चटकै बर्दवान का ऊना चलै बिलाइति क्यार॥
छूरी छूरा कोउ कोउ मारैं कोताखानी चलैं कटार ४७
फिरि फिरि मारैं औ ललकारैं नाहर दिल्ली के सरदार॥
आँगन थिरकै उदन बाँकुड़ा लीन्हे हाथ नाँगि तलवार ४८
मूड़न केरे मुड़चौरा मे औ रुंडन के लगे पहार॥
बड़ी लड़ाई भै आँगन में औ बहिचली रक्तकी धार ४९
अपन परावा कछु सूझै ना आमाझोर चले तलवार॥
बड़े लड़ैया मलखे सुलखे नामी सिरसा के सरदार ५०
कोगति बरणै तहँ ताहर कै दूनों हाथ करै तलवार॥
फिरि फिरि मारै औ ललकारै नाहर उदयसिंह सरदार ५१
कोगति बरणै तहॅ देबाकै क्षत्री भैनपुरी चौहान॥
मन्नागूजर जगना ठाकुर इनहुन खूबकीन मैदान ५२
मोहन ठाकर बौरी वाला रणमाँ बड़ा लड़ैयाज्वान॥
जोगा भोगा दोनों भाई मारिकै सूबकीन खरिहान ५३
विकट लड़ाई भै ऑगन में साँगन खूब भई तहँ मार॥
सातो लड़िका पृथीराज के बाँध्यो सिरसाके सरदार ५४
सातो मॅवरी ब्रह्मानँदकी आल्हा तुरत लीनकरवाय॥
देखि तमाशा बघऊदन का पिरथी गये सनाकाखाय ५५
चौंड़ा बोला त्यहि समया में मानो कही पिथौराराय॥
अबहीं जावैं हम मड़येतर सबके बन्धन देयँ छुड़ाय ५६
इतना कहिकै चौंड़ा चलिभा मड़ये तरे पहूँचा आय॥
चौंड़ा बोला फिरि आल्हाते मानो कही बनाफरराय ५७
इकलो लड़िका भीतर पठयो सो लहकौरि खानको जाय॥
मुशकै छोरो सब लरिकन की यह कहिदीन पिथौराराय ५८
दया आयगै मलखाने के मुशकै तुरत दीन छुड़वाय॥
अब तुम जावो जनवासे को बोला फेरि चौंड़ियाराय ५९
नाउनि आई फिरि भीतर सों औ आल्हासों कह्यो सुनाय॥
इकलो दूलह अब पठ्यावो रानी भीतर रहीं बुलाय ६०
ऊदन बोले तब नाइनिते साँची मानो कही हमार॥
संग न छाँडै सहिबाला कहुँ यह है मोहबे का व्यवहार ६१
इतना सुनिकै नाइनि बोली जल्दी चलो करो नहिं बार॥
आगे नाइनि फिरि दुलह भा पाछे बेंदुल का असवार ६२
और बीर सब तम्बुन आये ये दोउ महल पहूँचे जाय॥
चौंड़ा बोला पृथीराज सों आयसु मोहिं देउ फरमाय ६३
मैं अब मारों बघऊदन को औसर नीक पहूँचा आय॥
सुनिकै बातैं ये चौंड़ा की आयसु दीन पिथौराराय ६४
बिछिया अँगुठा चौंड़ा पहिरयो लीन्ह्यो रूप जनाना धार॥
ठुम्मुक ठुम्मुक चौंड़ा चलिभा विषधर चापे बगलकटार ६५
जायकै पहुंच्यो त्यहि महलनमें ऊदन जहाँ करे ज्यउँनार॥
दुचिता दीख्यो जब ऊदन को चौंड़ा मारी तुरत कटार ६६
खाय मूर्छा ऊदन गिरिगे नारिन कीन तहाँ चिग्घार॥
भये सनाका ब्रह्मागकुर मनमा लागे करन विचार ६७
आजु वीरता गै मोहबे ते जो मरिगयो लहुरखा भाय॥
मर्द न ऐसो कहुँ पैदा भो जैसो रहै बनाफरराय ६०
शोच आयगा ब्रह्मानँद के मनमाँ बार बार पछिताय॥
छाती पीटै रानी अगमा महलन गिरी पछाराखाय ६९
तोहिं चौंडिया यह चाही ना कीन्हे घाटि महलमाँ आय॥
नालति तेरी द्विज देही का चौंड़ा काहगये बौराय ७०
घाव मूंदिकै बबऊदन का रानी औषय दीनलगाय॥
कन्या राजनकी महरानी औ सब जानै भले उपाय ७१
मारु कूटकी घर घर चरचा क्षत्री बंश रहै तब भाय॥
राजा पिरथी की महरानी त्यहिबघऊदनदीनजियाय ७२
उठा दुलरुवा द्यावलिवाला बेला देखिगई हार्षाय॥
ऐसि खुशाली मैं ब्रह्मा के जैसे योग सिद्धि ह्वैजाय ७३
गवैं सुहागिल दिल्ली वाली लैलै नाम बनाफरक्यार॥
बड़ी खुशाली भै महलन में होवन लाग मंगलाचार ७४
पायँ लागिकै महरानी के बोला उदयसिंह सरदार॥
आयसु तुम्हरी जो हमपावैं तो तम्बुन को होयँ तयार ७५
रूप देखिकै बघऊदन को नारी पीटन लगींकपार॥
भई अभागिनिहमसब महलन अब ये चलन हेत तय्यार ७६
रूप न देखा क्यहु क्षत्री का जैसो उदयसिंह सरदार॥
पाग बैंजनी शिरपर बाँधे ऊपर कलँगी करै बहार ७७
बेला चमेला के गजरा हैं तिनपर परा मोतियनहार॥
बाँके नैना यहि क्षत्री के सखिया चुभे करेजे फार ७८
मन बौराना सहिबाला पर आला देवरूप अवतार॥
इसरि वाला त्यहि काला में बोली मानो कही हमार ७९
भागि तुम्हारी अस नाहीं है जो ये होयँ तोर भर्तार॥
नालति तुम्हरे मन चब्बन को तुमका बार बार धिक्कार ८०
त्यही समैया ऊदन चलिभा सबसों बिदा मांगि त्यहिबार॥
चढ़ा पालकी ब्रह्मा ठाकुर ऊदन बेंदुल भा असवार ८१
आयकै पहुंचे द्वउ लश्कर में जहँ दरबार चँदेले क्यार॥
हाथ पकरिकै ब्रह्मा ऊदन तम्बुन गये दोऊ सरदार ८२
चरणन परिकै परिमालिक के बैठे द्वऊ बीर बलवान॥
पूंछन लागे बघऊदन ते तुरतै तहाँ बीर मलखान ८३
कहौ हकीकति सब महलनकी कैसी भई रीति ब्यवहार॥
सुनिकै बातैं मलखाने की कहिगा यथातथ्य सरदार ८४
सुनिकै बातैं बघऊदन की आल्हा ठाकुर लीन बुलाय॥
कमर बिलोकैं बघऊदन की कैसा परा कटारी घाय ८५
चिह्न न पायो कहूं घाव को आल्हा बोल्यो बचनसुनाय॥
झूंठ न बोलत तुम ऊदन रहौ कैसी किह्यो दिल्लगी भाय ८६
ब्रह्मा बोले तब आल्हा ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
साँची दादा ऊदन बोल्यो झूंट न कह्यो लहुरवाभाय ८७
लीन्हे बूटी रानी आई सो ऊदन के दिह्यो लगाय॥
घाव पूरिगा बघऊदन का औ उठि बैठ लहुरवा भाय ८८
सुनिकै बातैं ब्रह्मानँद की गे परिमाल सनाकाखाय॥
कूच कराओ अब लश्कर को बोला फेरि चँदेलाराय ८९
बातैं सुनिकै महराजा की मलखे रुपना लीन बुलाय॥
औ समुझायो यह रुपना को यह तुम कहौ पिथौरैनाय ९०
कह्यो सँदेशा परिमालिक है बेटी बिदा देयँ करवाय॥
इतना सुनिकै रुपना चलिभा औफिरिअटाद्वारपरजाय ९१
द्वारे ठाढ़े पिरथी राजा तिनसों बोला शीश नवाय॥
विदा कि विरिया अव आई है यह मोहिं कह्यो चँदेलोराय ९२
यहु संदेशा हम लाये हैं ओ महराज पिथौराराय॥
जो कछु उत्तर तुम ते पावैं राजै स्वई सुनावैं जाय ९३
बातैं सुनिकै ये रूपन की बोले पृथीराज महराज॥
देश हमारे की रीती यह पुरिखन कियो अगारीकाज ९४
ब्याह के पीछे गौना देवैं तवहीं होवै पूर बिवाह॥
यहतुम कहियो परिमालिक ते ऐसे कहे बचन नरनाह ९५
धन्य बखानैं हम आल्हा को सातो भाँवरि लियो कराय॥
हैं सब लायक मलखे ठाकुर हमरो कहौ सँदेशो जाय ९६
सुनिकै बातैं पृथीराज की रूपन चला तुरत शिरनाय॥
आयकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में ज्यहि में रहैं चँदेलेराय ९७
आल्हा ऊदन मलखे सुलखे बैठे लिहे ढाल तलवार॥
जोगा भोगा मन्नागूजर जगनिक भैने चँदेलेक्यार ९८
जो संदेशा पृथीराज का रूपन सो गा सबै सुनाय॥
सुनिकै बातैं पृथीराज की भा मन खुशी चँदेलोराय ९९
हुकुम लगायो फिरि लश्कर में क्षत्री कूच देयँ करवाय॥
मानि आज्ञा परिमालिक की आल्हा कूच दीन फरमाय १००
कूच क डंका तब बाजत भो क्षत्री सबै भये हुशियार॥
हथी चढ़ैया हाथी चढ़िगे बाकी घोड़न भे असवार १०१
बाजे डंका अहतंका के घूमन लागे लाल निशान॥
बैठि पालकी ब्रह्मा चलि भे साथै चले वीर मलखान १०२
ढ़ोल औ तुरही कै गिनती ना बाजन कीन घोर घमंसान॥
ग्यारा रोज कि मैजलि करिकै मोहबे अये बराती ज्वान १०३
आगे चलिकै रूपनबारी मल्हना महल पहूँचा आय॥
कुशल प्रश्नसों सब जन आये रूपनबोला शीश नवाय १०४
बड़ी खुशाली भै मल्हना के तुरतै सखियाँ लीन बुलाय॥
चौमुख दियना रानी बारे पहुंची तुरतद्वारपर आय १०५
बारह रानी परिमालिक की गावन लगीं मंगलाचार॥
पलकी आई ब्रह्मानँद की परछन होनलगी तबद्वार १०६
भई आरती ब्रह्मानँद की सवियाँ याचक भये निहाल॥
जितनी रैयति मोहबे वाली आये ज्यान बृद्ध औ बाल १०७
भयो बुलौवा फिरि पंडित का धावन चला तड़ाका धाय॥
लैकै पत्रा पंडित आवा साइति ठीकदीन बतलाय १०८
महलन पहुंचे ब्रह्माठाकुर बिप्रन मोदभयो अधिकाय॥
दान दक्षिणा मल्हना दीन्हे सीधा घरै दीन पहुँचाय १०९
दगीं सलामी दरवाजे पर धुँवना रहा सरगमें छाय॥
बिदा मांगिकै नेवतहरी सब निजनिजदेशपहूंचेजाय ११०
दशहरि पुरवा आल्हा पहुंचे सिरसा गये वीर मलखान॥
कथा पूरि भै अब ब्याहे कै मानो सत्यवचन परमान १११
खेत छुटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकनलागे सन्तन धुनी दीन परचाय ११२
परे आलसीखटिया तकि तकि घों घों कण्ठ रहे घर्राय॥
भल बनिआई तहँ योगिन कै निर्भयरहे रामयशगाय ११३
निशा पियारी सब योगिनको चोरन अर्द्धमास की भाय॥
कछु नहिंभावै मनबिरहिन के उनको कालरूपदिखराय११४
सदा सहायक पितु अपने को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय ११५
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रह चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलोंतुम यशसों रहौ सदाभरपूर ११६
माथ नवावों शिवशंकर को यहँसों करों तरँग को अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त ११७
इति श्रीलखनऊ निवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज बाबूप्रयाग
नारायणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलां निवासि
मिश्रवंशोद्भवबुध कृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत
ब्रह्मापाणिग्रहणवर्णनोनामतृतीयस्तरंगः ॥३॥
ब्रह्मा औ बेला का विवाह सम्पूर्ण॥
इति॥