आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ११७ से – १५६ तक

 

अथ पाल्हखण्ड॥ नैनागढ़की लड़ाई अथवा आल्हाका बिवाह ॥ सवैया।। दीनसहायक नाम तुम्हार सुना बहु ग्रन्थन में महराजा। है शबरीगजगीध अजामिल ते अजहूं जिहिकोयशवाजा॥ जो करणी सुमिरों इनकी तवहीं मन धैर्य लहै रघुराजा। दीन पुकारकरै ललिते प्रभु बेगि द्रवो हे गरीब नेवाजा ॥ सुमिरन॥ गयान कीन्हीजिनकलियुगमाँ काशिम घोड़ दान नहिंदीन। जन्मत बैरी जिन मारा ना नाहक जन्म जगत में लीन १ पूजा कीन्ही नहिं शम्भू की अक्षत चन्दन फूल चढ़ाय ।। फिरि गलमँदरी जिनबाजीना मुख ना बम्ब बम्ब गा छाय २ भसमरमायो नहिं देही माँ कबहुंन लीन सुमिरनी हाथ ।। सोचन लायक ते आरय हैं जिन नहिं कवों नवायोमाथ ३ को अस देवता रहे शम्भूसम जिनको पूज्यो रामउदार ।।

वेद उपनिषदके ज्ञाता रहैं जिनबल भयो रावणाचार

छूटि सुमिरनी गै देवन कै शाका सुनो शूरमनक्यार॥
ब्याह बखानों मैं आल्हाका होई तहाँ भयानक मार ५

अथ कथाप्रसंग॥


नैनागढ़ का जो महराजा साजा सबै भांति कर्त्तार॥
राजा इन्दर का बादानी औ नैपाली नाम उदार १
तिन घर कन्या इक पैदा भै सबबिधि रूप शीलगुणखान॥
पढ़िकै विद्या सब जादूकी कछुदिनबाद भई फिरिज्वान २
संगसहेलिन के खेलति भय सुनवाँ कही तासुका नाम॥
खेल लरिकई को जाहिर है लरिका ख्यलैं चारिहूयाम ३
खेलत खेलत फुलबगिया गइँ सब मिलि करैं फुलनकी मार॥
कटहर बड़हर त्यहि बगिया में कहुँ कहुँ फूलिरही कचनार ४
उठैं सुगन्धैं कहुँ चन्दन की कतहूँ कदलिन खड़ी कतार॥
गुम्मज सोहैं मोमशिरिन के कहुँ कहुँ फुलीं चमेलीडार ५
बेला फूले अलबेला कहुँ खिन्निन लता गईं बहुछाय॥
हर्र बहेरा साँखो बिरका सीधे चले उपर को जायँ
बरगद छैले हैं नीचे को फैले भूमि रहे नियराय॥
जैसे सम्पति सज्जन पावैं नीचे शीश झुकावत जायँ ७
शीशम जानो तुम नीचनको आधे सरग फरहरा खायँ॥
चलै कुल्हाड़ा जब नीचेते गिरिकै टूक टूक ह्वैजायँ ८
को गति बरणै तहँ अधमनकै सोहैं करिल रूपते भाय॥
ताल तमालन के गिनतीना कदमन गई सघनता छाय ९
फुली नेवारी अब अगस्त्य हैं आमनडार कैलिया बोल॥
सोहैं अशोकन के बिरवा भल तीनों तहाँ क्यारी डोल १०
गूलर जामुन पाकर पीपर कोनन खड़े वृक्ष सरदार॥

तार अपारन के बिरवा बहु कहुँ कहुँ खड़े वृक्ष कह्वार ११
टेसू फूले कहुँ सोहत हैं जैसे सोहैं लड़ैता ज्वान॥
रूप गुलावन को देखत खन फूलनछांड़िदीनअभिमान १२
कौन कनैरन को वर्णन कर चाँदनि चाँद सरिस गै छाय॥
फूल दुपहरी के भल सोहैं मोहैं मुनिन मनै अधिकाय १३
गेंदन केरे बहु बिरवा हैं अर्जुन बृक्ष परैं दिखराय॥
मेला लाग्यो नौरङ्गिन का हेला निंबुन का दर्शाय १४
ठेला भरि भरि अमरूतन का माली राजभवन को जाय॥
केवँड़ा केरी उठैं सुगन्धैं कहुँकहुँ नागबेलिगै छाय १५
ताही बगिया सुनवाँ खेलै मेलै गले सखिन के हाथ॥
सखियाँ बोलीं तहँ सुनवाँते तुम नित ख्यलोहमारेसाथ १६
पैर महावर पै तुम्हरे ना टिकुली नहीं बिराजै भाल॥
द्रव्य तुम्हारे का घर नाहीं जो नहिं ब्याहकरैं नरपाल १७
इतना कहिकै सब आलिनने औ करताली दीन बजाय॥
समय दुपहरी को जान्यो जब तब फिरि खेलबन्द ह्वैजाय १८
कीरति गावैं सब आल्हा की माड़ो लिहेनि बापका दायँ॥
धन्य बनाफर उदयसिंह हैं आल्हा केर लहुरवा भाय १९
ऐसी बातैं सखियाँ करतै अपने भवन पहुंचीं आय॥
ताही क्षणमें सुनवाँ मन में अपने ठीक लीन ठहराय २०
ब्याही जैबे आल्हा सँग में की मरिजाब जहरको खाय॥
छाय उदासी गै चिहरा में पूंछै बार बार तब माय २१
कौन रोगहै त्वरि देहीमाँ बेटी हाल देउ बतलाय॥
पीली ह्वैगे सब देही है औतनकाँपिकाँपिरहिजाय २२
को हितकारी है मातासम नाता बड़ा जगत केहिभाय॥

अब तो बाबा कलियुग आये माता सहैं लात के घाय २३
सुनिकैं बातैं ये माता की सुनवाँ चरणन शीश नवाय॥
जो कछु भाषारहै सखियनने सुनवाँ मातै गई सुनाय २४
सुनिकै बातैं सब कन्या की माता रही समय को देखि॥
यकदिन ऐसा आनपहूंचा राजा रहा कन्यका पेखि २५
रानी बोली तब राजाते हमरे वचन करो परमान॥
व्याहन लायक यह कन्या भैं सोतुमजानो नृपतिसुजान २६
सुनिकै बातैं ये रानी की बिजिया बेटा लीन बुलाय॥
नाई बारी को बुलवायो तिनते कह्योहालसमुझाय २७
जयो मोहोबे ना टीका लै सब कहुँ जाउ तुरतही धाय॥
नाई बारी तुरतै चलिभे पहुँचे नगर नगर में जाय २८
काहू टीका को लीन्ह्यो ना नैनागढ़ै पहूंचे आय॥
खबरि सुनाई सब राजा को नेगिनचरणनशीशनवाय २९
जालिम राजा नैनागढ़ का राजन यही बिचारा जीय॥
मारे उरके छाती धड़कै कैसेहोयँ तहांपर पीय ३०
थोरी थोरी फौजें लैकै नैनागढ़ै पहूंचे आय॥
नजरी दीन्ह्यो नैपाली को राजाचरणन शीशनवाय ३१
सरबरि तुम्हरी का नाहीं हैं टीका लेयँ कहाँ कस भाय॥
कुमक तुम्हारी को आयन है राजन सत्यदीन बतलाय ३२
त्यही समैया त्यहि औसरमाँ औं सुनवाँ को सुनो हवाल॥
हीरामणि सुवनाको लैकै सुनवाँ भई रोवासिनिबाल ३३
चूम्यो चाट्यो त्यहि सुवनाको औफिरिकह्योबचन यहगाय॥
मेवा खायो भल पिंजरन में अब गाढ़े में होउ सहाय ३१
लैकै पाती जाउ मोहोबे देवो उदयसिंह को जाय॥

लिखी हकीकत सब आल्हाको सुनवाँ बारबार समुझाय ३५
नामी ठाकुर तुम मोहबे में हमरो ब्याह करो अब आय॥
नहिं मरिजायो जहर खायकै दूनों भाइ बनाफरराय ३६
लिखिकै पाती गल सुवनाके सुनवाँ तुरत दीन लटकाय॥
मूठी दीन्ह्यो फिरि कोठे ते सुवना चला मोहोबे जाय ३७
चन्दन बगिया सुवना पहुँच्यो तहँ पर रहैं उदयसिंहराय॥
चन्दन ऊपर सुवना बैठो परिगा दृष्टि तुरतही आय ३८
भल चुचकार्यो उदयसिंहने आपन नाम दीन बतलाय॥
सुवना बैठ्यो तब हाथेपर पाती छोरि लीन हर्षाय ३९
बांचिकै पाती तब ऊदन ने औ सय्यद को दीन सुनाय॥
सय्यद आल्हासों बतलायो मलखे देबै दीन बताय ४०
लैकै पाती औ सुवना को गे परिमाल कचहरी धाय॥
कही हकीकति सब राजा सों पाती दीन उदयसिंहराय ४१
पढ़िकै पाती को परिमालिक मनमाँ गये सनाकाखाय॥
होश उड़ान्यो परिमालिक का मुहँका बिरागयो कुम्हिनाय४२
बोलिन आवा परिमालिक सों औ द्वादालों लार सुखाय॥
थर थर थर थर देही काँपी शिरसों मुकुट गिरा भहराय ४३
रोम रोम सब ठाढ़े ह्वैगे नैनन बही आँसु की धार॥
धीरजधरिकै परिमालिक फिरि औ मलखे तन रहे निहारि ४४
मलखे बोले तब राजा ते साँचे बचन सुनो नरपाल॥
टीका पठयो है बेटी ने सोनहिंलौटिसकैक्यहुकाल ४५
सुनिकै बातैं मलखाने की बोले तुरत रजापरिमाल॥
न्याधि नशायो गढ़माड़ो की दूसरि ब्याधिभयोफिरिहाल ४६
टीका फेरो नयनागढ़ को मलखे मानो कही हमार॥

जालिम राजा नयपाली है ज्यहिघर अमरढोल सरदार २७
कौन बियाहन त्यहि घर जैहै ऐहै लौटि कौन बलवान॥
टीका फेरो सब राजन ने मानो कही बीर मलखान ४८

सवैया॥


शान चढ़ी मलखान के ऊपर आन नहीं कछुहू नृप राखी।
मोहिं पियार न प्राण भुवार कहौं मैं सत्य सदाशिव साखी॥
कीरतिही प्रिय बीरनको हम शान कि आन सदा मनमाखी।
आनरहैनहिं शान कि जो मरिजान भलो ललिते हम भाखी ४९



इतना कहिकै मलखाने ने डंका तुस्त दीन बजवाय॥
लिखिकै उत्तर उदयसिंहने सुवना गरे दीन लटकाय ५०
उड़िकै सुवना फिरि मोहबे ते सुनवाँ पास पहूंचा आय॥
रानी मल्हना के महलन में राजा तुरत पहूंचे जाय ५१
हाल बतायो सब मल्हना को सुनतै गई सनाकाखाय॥
मलखे देवा को बुलवायो सुनतै गये महल में आय ५२
मल्हना बोली तब भलखे ते बेटा हाल देउ बतलाय॥
काहे डंका तुम्हरे बाजे कहँ चढ़िजाउ बनाफरराय ५३
हाथ जोरिकै मलखे बोले मल्हना चरणन शीश नवाय॥
पाती आई नैनागढ़ की आल्हा तहाँ बियाहनजायँ ५४
सुनिकै बातैं मलखाने की मल्हनै देवै कहा सुनाय॥
शकुन तुम्हारे सों मलखाने माड़ो लीन बाप का दायँ ५५
कैसी गुजरी नैनागढ़ में सो सब हाल देव बतलाय॥
सुनिकै बातैं ये मल्हना की देवा पोथी दीन मँगाय ५६
लैकै पोथी ज्योतिष वाली औ सब हाल दीन बतलाय॥
जीति तुम्हारी हैहै साँची बात कहैं हम माय ५७

इतना कहिकै दूनों चलि भे महलन भये मंगलाचार॥
बांदी आंगन लीपन लागी पंडित साइति रहे बिचार ५८
एक कुमारी तेल चढ़ावै गावनलगीं सखी त्यहिकाल॥
माय मंतरा भे पाछे सों नेगिननेग दीन परिमाल ५९
लैकै महाउर नाइनि आई नहखुर होनलाग त्यहिबार॥
नाइनि माग्यो तहँ पुरवाको दीन्ह्यो मल्हना परम उदार ६०
उबटन करिकै तन केसरसों निर्मलजलसों फिरिअन्हवाय॥
कंकण बांधागा आल्हा के दूलह बने बनाफरराय ६१
सजी पालकी तहँ ठाढ़ीथी तापर बैठि शम्भु को ध्याय॥
कुँवा बियाहन आल्हा पहुंचे मल्हना पैर दीन लटकाय ६२
पहिली भाँवरि के फिरतैखन आल्हा गहा चरणको धाय॥
बाग लगावों तेरे नाम की माता लेवो चरण उठाय ६३
ऐसो कहिकै सातों भाँवरि घूमा तुरत बनाफरराय ॥
मल्हनाबोली फिरि आल्हा सो सेयों तुमको दूध पियाय ६४
तासों द्यावलि सों अधिकी मैं तासों पैर दीन लटकाय॥
पंजा फेर्यो फिरि पीठी माँ तुम्हरो बार न बाँको जाय ६५
पाँय लागिकै फिरि द्यावलिके पलकी चढ़े बनाफरराय॥
हुकुम लगायो बघऊदन ने डंका बजनलाग घहराय ६६
घोड़ करिलिया आल्हा वाला कोतल चला पालकी साथ॥
मलखे पपिहापर बैठत भे नायकै रामचन्द्र को माथ ६७
घोड़ा मनोहरा की पीठी माँ देबा तुरत भयो असबार॥
सय्यद सिरगा पर बैठत भे नाहर बनरस के सरदार ६८
अली अलामत औ दरियाखां बेटा जानबेग सुल्तान॥
तेग बहादुर अलीबहादुर बैठे घोड़ आपने ज्वान ६९

मीराताल्हन के लरिका ये नाहर समरधनी तलवार॥
मन्नागूजर मोहबे वालो सोऊ बेगि भयो असवार ७०
सातलाख लग फौजें सजिकै नैनागढ़ को भई तयार॥
डंका बाजैं अहतंका के ऊदन बेंदुलपर असवार ७१
सजे बराती सब मोहबे के जल्दी कूच दीन करवाय॥
सातरोज की मैजलि करिकै फौजें अटीं धुरा पर आय ७२
आठ कोस नैनागढ़ रहिगा तहँपर डेरादीन डराय॥
तम्बू गड़िगा तहँ आल्हा का बैठे सबै शूरमा आय ७३
ऊंचे ऊंचे तम्बू गड़िगे नीचे लागीं खूब बजार॥
कम्मर छोरे रजपूतन ने हाथिन हौदा धरे उतार ७१
तंग बछेड़न की छोरी गइँ क्षत्रिन धरा ढाल तलवार॥
बनी रसोई रजपूतन की सबहिनजेंयलीन ज्यँवनार ७५
गा हरकारा तब तहँनाते जहँना भरीलाग दरबार॥
बैठक बैठे सब क्षत्री हैं एकते एक शूर सरदार ७६
गम् गम् गम् गम् तबला गमकैं किन् किन् परी मँजीरन मार॥
को गतिबरणै सारंगी कै होवै नाच पतुरियन क्यार ७७
खये अफीमनके गोला कोउ पलकैं मूंदैं औ रहिजायॅ॥
कोऊ जमाये हैं भांगनको मनमाँ रहे रामयश गाय ७८
उड़ै तमाखू बुटवल वाली धुँवना रहा तहांपर छाय॥
हाथ जोरि औ बिनती करिकै धावन बोल्यो शीशनवाय ७९
अई बरातैं क्यहु राजाकी धूरे परीं आजही आय॥
आठकोस केहैं दूरीपर सांची खबरि दीन बतलाय ८०
सुनिकै बातैं नयपाली ने तीनों लड़िका लये बुलाय॥
जोगा भोगा औ बिजियाते राजा बोल्यो बचन सुनाय ८१

जावो जल्दी तुम धूरेपर हमको खबरि सुनावो आय॥
सुनिकै बातैं तीनों चलिमे धूरे तुरत पहूंचे जाय ८२
ऊंचे टिकुरी तीनों चढ़िकै दूरिते द्यखैं तमाशा भाय॥
देखिकै फौजैं मलखाने की तीनों गये तहाँ सन्नाय ८३
तीनों लौटे त्यहि टिकुरीते अपने महल पहूंचे आय॥
भोजन केरी फिरि बिरियामाँ राजै खबरि दीन बतलाय ८४
लगी कचहरी ह्वाँ आल्हाकी भारी लाग तहाँ दरबार॥
बैठक बैठे सब क्षत्री हैं एकते एक शूर सरदार ८५
मीराताल्हन बनरसवाले आली खानदान के ज्वान॥
बड़े पियारे ते क्षत्रिनके अपने धर्म कर्म अनुमान ८६
सच्चे साथी रहैं चारों के यारों मानों कही हमार॥
ऐसे होते जो सय्यद ना कैसे बने रहत सरदार ८७
अली अलामत औ दरियाखाँ बेटा जानवेग सुल्तान॥
औरो लड़िका रहैं सय्यदके एकते एक रूप गुणखान ८८
मन्नागूजर मोहबे वाला बैठा बड़ा सजीला ज्वान॥
रुपनाबारी ते त्यहि समया बोले तहाँ बीर मलखान ८९
ऐपनवारी बारी लैकै राजेद्वार पहूंचो जाय॥
सुनिकै बातैं मलखाने की रुपना बोला शीशनवाय है ९०
औरो नेगी मोहबे वाले आये साथ बनाफरराय॥
ऐपनवारी बारी लैकै द्वारे मुड़ कटावै जाय ९१
सुनिकै बातैं ये रुपना की बोले तुरत उदयसिंहराय॥
तुमको नेगी हम मानैं ना जानैं सदा आफ्नो भाय ९२
ददा बियाहन को रहि हैं ना बतियाँ कहिबे को रहिजायँ॥
यश नहिंजावै नर मरिजावै परहित देवै मूड़कटाय ९३

स्वारथ देही तव नरकेही नेही मरे न पावै चाम॥
सन्मुख जूझै समरभूमि में जावै तुरत हरी के धाम ६४
बड़े प्रतापी जग में जाहिर मनियाँदेव मोहोबे केर॥
तिनके सेवक तेई रक्षक रूपन काह लगावो देर ९५
रूपन बोला तब मलखे ते दादा मानो कही हमार॥
घोड़ करिलिया आल्हा वाला अपने हाथ देउ तलवार
सुनिकै बातैं ये रुपना की मलखे घोड़ दीन सजवाय॥
डाल खड्ग रुपना को दैकै बैठे तुरत बनाफरराय ९७
बेठिकै रुपना फिरि घोड़े पर ऐपनवारी लीन उठाय॥
चारिधरी को अरसा गुजरो नैनागढ़ै पहूँचो जाय ९८
देखिकै बारी दरवानी ने भारी हाँक दीन ललकार॥
कहां ते आयो औ कहँ जैहौ बोलो घोड़े के असवार ९९
सुनिकै बातैं द्वारपाल की रूपन बोला बचन उदार॥
आल्हा ब्याहन को हम आये नामी मोहबे के सरदार १००
खबरि सुनावो नैपाली को फिरि तुम हमैं सुनावो आय॥
ऐपनवारी बारी लायो ताको नेग देव पठवाय १०१
सुनिकै बोलो द्वारपाल फिरि तुम्हरो नेग काह है भाय॥
सोऊ सुनावों महराजा को लादे लिहे घोड़ पर जाय १०२
सुनिकै बातैं द्वारपाल की रूपन बोला बचन उदार॥
चारिधरीभर चलै सिरोही द्वारे बहै रक्त की धार १०३
नेग हमारो यहु प्यारो है देवो पठै स्वई सरदार॥
जाहि पियारो तन होवै ना आवै स्वई शूर अब द्वार १०४
सुनिकै बातैं ये बारी की आरी द्वारपाल ह्वैजाय॥
मनमें सोचै मने बिचारै मनमें बार बार पछिताय १०५

केसो बारी यहु आयो है नाहर घोड़ेका असवार॥
जालिम राजा नैपाली है तासों कीन चहै तलवार १०६
यहै सोचिकै द्वारपालने औ रूपन ते कहा सुनाय॥
गरमी तुम्हरी जो उतरी हो बोलो ठीक ठीक तुम भाय १०७
सुनिकै बातैं दरवानी की रूपन गरू दीन ललकार॥
नगर मोहोबा जगमें जाहिर नामी मोहबे के सरदार १०८
तिनको नेगी मैं द्वारेपर लीन्हे खड़ा ढाल तलवार॥
जौन शूरमा हो नैनागढ़ आवै देय नेग सो द्वार १०९
इतनी सुनिकै दरवानी ने राजै खबरि सुनाई जाय॥
ऐपनवारी बारी लावा, भारी बात कहै सो गाय ११०
चारिघरीभर चलै सिरोही द्वारे बहै रक्तकी धार॥
जौन शूरमाहो राजाघर आवै देय नेग सो द्वार १११
इतना सुनतै महराजाके नैना अग्नि बरण ह्वैजायँ॥
पूरण राजा पटनावाला बोला रोजै बचन सुनाय ११२
हम चलिजावैं अब द्वारेपर बारी नेग देयँ चुकवाय॥
इतना कहिकै चलि ठाढ़ो भो साथै औरो चले रिसाय ११३

सवैया॥


द्वार चले तलवार लिये रट मारहि मार कुमारन पेखा।
लाल गुपाल गहे करबाल ख्यलैं जसफाग भयउ तस भेखा॥
मार अपार जुझार किये औ गिरे रणखेत रहे नहिं शेखा।
बारीकरै कब रारी नृपै ललिते मलखान कि है यह लेखा ११४


पूरन राजा पटना वाला लीन्हे नांगि हाथ तलवार॥
सो धरि धमका त्यहि रूपनके रूपन लीन ढालपर वार ११५

सांगि उठाई फिरि रूपन ने राजै बार बार ललकार॥
लटुवा लाग्यो पूरन शिर में औ बहिचली रक्तकीधार ११६
अगल बगल के फिरि मारतभा दाँयें बाँयें दीन हटाय॥
एँड़ा मसके फिरि घोड़ा के फाटक तुरत पार ह्वैजाय ११७
गली गली में फिरि मारत भो औ बहिचली रक्तकी धार॥
घरी चारके फिरि अरसा में लश्कर आयगयोअसवार ११८
लाले रँग सों भीजे दीख्यो फागुन टेसू के अनुहार॥
पुँछी हकीकति तब मलखेने नाहर मोहबे के सरदार ११९
कैसी गुजरी नैनागढ़ में रूपन हाल देउ बतलाय॥
सुनिकै बातैं मलखाने की रूपन यथातथ्य गा गाय १२०
हल्ला ह्वैगा नैनागढ़माँ जहँतहँ कहनलागि सबकोय॥
ऐस बहादुर जहँके परजा तहँकेनृपतिकहौ कसहोयँ १२१
देखि तमाशा यहु बारी का राजा बार बार पछिताय॥
बड़ी हीनता हमरी ह्वैगै बारी जियतनिकरिगाहाय १२२
जोगा भोगा दोऊ लरिका बोले हाथ जोरि शिरनाय॥
हुकुम जो पावैं महराजा का सबकी कटा देयँ करवाय १२३
जितनी रॉड़ैं चढ़ि आई हैं सो बिनघाव एक ना जायँ॥
खेदिकै मारैं हम मोहबे लग टेटुवा टायर लयँ छिनाय १२४
सुनिकै नातैं ये लरिकन की राजै हुकुम दीन फरमाय॥
तुरत नगड़ची को बुलवायो तासोंबोल्योहुकुमसुनाय १२५
बजै नगाड़ा नैनागढ़ में सबियाँ फौज होय तय्यार॥
भोर भुरहरे पहफाटत खन मारों मुहबेके सरदार १२६
इतना कहिकै दूनों चलिभे अपने महल पहूँचे जाय॥
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डागढ़ानिशाकोआय १२७

तारागण सब चमकन लागे सन्तन धुनी दीन परचाय॥
परे आलसी निजनिज खटिया घों घों कंठ रहे घर्राय १२८
माथ नवावों पितु अपने को जो नित मेरी करैं सहाय॥
करों तरंग यहाँ सों पूरण पूरण ब्रह्म रामको ध्याय १२९
आगे फौजै दूनों सजिहैं मचि हैं घोर शोर घमसान॥
जोगा भोगा के मुर्चापर लड़ि हैं खूब बीरमलखान १३०

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबूप्रयागना-
रायणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपँड़रीकलांनिवासिमिश्रवंशोद्भवबुध
कपाशंकरसनुपं॰ललिताप्रसादकृतबरातआगमनवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥

कवित्त॥

अंजली दिहेते रोग देहसों हटाय देत ध्यान के धरेते दुख दारिद दिखातना।
मानसों बिचारे मान राजैसों कराय देत नामके उचारे मुक्ति पदवी बिलातना॥
धारे उर व्रत काम क्रोधहू नशाय देत दीनदै पुकार करे खीन कुम्हिलातना।
बोरिदेत विघ्नन मिरोरि देत शत्रुमुख ललित करजोरे पाप रंचहू लखातना। १

सुमिरन॥


मारतण्ड मैं तुमको सुमिरों धरिकै चरणकमल में माथ॥
सूर्य्य भास्कर सविता रवि औ औरो नाम बहुत दिननाथ १
कथा पुराणन में पढ़िकै मैं जानों काश्यपेय महराज॥
जो कोउ आयो तब शरणागत गई न तासु कबों जगलाज २
तुम्हरे कुलमाँ रघुनन्दन मे बन्दनकरैं ललित तिनक्यार॥
अक्षत चन्दन औ फूलन सों मानस पूजन सदा हमार ३
तुम्ही सहाई हो दीनन के गाई सबै पुराणन गाथ॥
स्वई भरोसा धरि जियरेमाँ जावाचहौं नांघि भवपाथ ४
छूटि सुमिरनी गै देवन कै शाका सुनो शूरमन क्यार॥
जोगा भोगा दोऊ लड़िहैं लड़िहैं उदयसिंह सरदार ५

अथ कथाप्रसंग॥

उदय दिवाकर भे पूरबमाँ किरणनकीनजगत उजियार॥
डंका बाज्यो नैनागढ़माँ सवियाँ फौज भई तय्यार १
बसैं बघेले औं चन्देले पाँवर सूरबंश सरदार॥
माड़वाड़ के क्षत्री साजे औ परिहार गुटैयाचार २
हाड़ा वाले बूंदी वाले औ रइठाउर लीन सजाय॥
तुरत निकुम्भन को सजवायो औ गौरन को लीन बुलाय ३
सजि गुहलैता औ कछवाये बहुतक चन्द्रबंश के ज्वान॥
तोमर ठाकुर तुमवार के सजिगे मैनपुरी चवहान ४
सजे भदावर वाले क्षत्री सजिगे गहिलवार सरदार॥
बैस डौंडियाखरे वाले जिनके बांट परी तलवार ५
हवशी साजे औ दुर्रानी जे मनइन के करैं अहार॥
कुरी छतीसों सब सजवाई ठाकुर सबै भये तय्यार ६
पूरन राजा पटनावाला सोऊ लीन ढाल तलवार॥
जोगा भोगा दोनों ठाकुर अपने घोड़न में असवार ७
रणकी मौहरि बाजन लागी रणका होनलाग व्यवहार॥
दाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन बेद उच्चार ८
मारु मारु कै मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल॥
को गति बरणै तहँ क्षत्रिनकै एक ते एक दई के लाल ९
हनु हंकारनि तोपै सजि गइँ जिनसों होय घोर घमसान॥
मारू डंका बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान १०
खर खर खर खर कै रथ दौरे रब्बा चले पवन की चाल॥
खट पट खट पट तेगा बोलैं मर मर होयँ गैंड़की ढ़ाल ११
धक धक धक धक करैं महावत हाथी धकापेल चलिजायँ॥

कोउ कोउ घोड़ा मोर चालपर कोउ कोउ सरपट रहे भगाय १२
कोउ कोउ घोड़ा हंस चालपर कोउ कोउ चले कदमपरजायँ॥
कोउ कोउ घोड़ा ऐसे जावैं जिनकै टाप न परै सुनाय १३
कोउ कोउ घोड़ा कावा देखैं कोउ कोउ गर्जि रहे असवार॥
कउँधालपकनिबिजुलीचमकनि चमचम चमाचम्म तलवार १४
घन घन घन घन घंग बाजैं घूमत चलैं मत्त गजराज॥
बल बल बल बल करैं साँड़िया भागत चलैं समर के काज १५
हिनहिन हिन हिन घोड़ा हींसैं खीसैं कायर देखि परान॥
छाय अँधेरिया गै पृथ्वी में गर्द्दा छाय गई असमान १६
देवता सकुचे आसमान में जंगल जीव गये थर्राय॥
घरी चार के फिरि अर्सा में सेना अटी समर में आय १७
धूली दीख्यो आसमान में मलखे बोल्यो बचन सुनाय॥
सजो बेंदुला के चढ़वैया फौजै गईं उपर अब आय १८
सुनिकै बातैं मलखाने की ऊदन गरू दीन ललकार॥
सजो सिपाही मोहबे वाले सबियाँ फौज होय तैयार १९
झीलम बखतर पहिरिसिपाहिन हाथ म लीन ढाल तलवार॥
सिरगा घोड़े की पीठीमाँ सय्यद तुरत भये असवार २०
चढ़ो कबुतरी में मलखाने अपनी लिये ढाल तलवार॥
घोड़ मनोहर की पीठीमाँ देबा चढ़त न लागी वार २१
बड़ि बड़ि तो अष्टधातु की सो चरखिन में दीन चढ़ाय॥
लै लै थैली बारूदन की सो तोपन में दई चलाय २२
बत्ती दइ दइ फिरि तोपन में रंजक तुरत दीन धरवाय॥
बम्बके गोला छूटन लागे परलय जनो गई नगच्याय २३
गोली ओला सम वर्षत भइँ भनभन भन्नभन्न भन्नाय॥

सर सर सर सर कै शर छूटैं मन मन मन्न मन्न मन्नाय २४
खट खट खट खट तेगा बोलैं हट हट करैं लड़ेता ज्वान॥
बड़ी लड़ाई भै नैनागढ़ जोगा भोगा के मैदान २५
सूंढ़ि लपेटा हाथी भिड़िगे अंकुश भिड़े महौतनकेर॥
हौदा हौदा यकमिल ह्वैगे मारैं एक एकको हेर २६
सात लाख दल मलखे लीन्हे भोगा पांच लाख परमान॥
मीराताल्हन औ जोगाका परिगा समर बरोबरि आन २७
भोगा बोला तब ऊदनते ओ परदेशी बात बनाय॥
कहाँते आयो औ का करिहौ आपन हाल देव बतलाय २८
ऊदन बोले तब भोगाते तुमते सत्य देयँ बतलाय॥
देश हमारो नगर मोहोबा जहँपर बसै चँदेलाराय २९
छोटे भैया हम आल्हाके औ ऊदनहै नाम हमार॥
सुनवाँ ब्याहन आल्हा आये मानों सत्य बचन सरदार ३०
बाँधिकै मुशकै त्वरे बप्पाकी भँवरी फिरी बड़कवा भाय॥
नीके ब्याहौ घर फिरिजावो अपने बाप देउ समुझाय ३१
सुनिकै बातैं ये ऊदन की भोगा कालरूप ह्वैजाय॥
धोखे माड़ो के मूल्यो ना जहँ लै लियो बापका दायॅ ३२
जाति बनाफर की ओछी है औ सब क्षत्रिन केर उतार॥
कठिन बिसाने जग में जाहिर मोहबे लौटि जाउ सरदार ३३
बातैं सुनिकै ये भोगा की बोला बिहँसि लहुरवा भाय॥
नदिया भागैं तौ गंगाजायँ गंगा भागि समुन्दर जायँ ३४
महादेव अर्धाते भागैं धरती लौटि रसातल जाय॥
ऊदन भागैं समरभूमिते तौ फिरिभागिकहांकोजायँ ३५
इतना कहिकै बघऊदनने सुमिरी हृदय शारदा माय॥

देबी शारदा मइहरवाली मानों गईं भुजापर आय ३६
बाहू फरके बघऊदन के फौजन घुसा बनाफरराय॥
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठै जैसे अहिर बिडारै गाय ३७
तैसे क्षत्री ऊदन देखैं भागैं तुरतै पीठि दिखाय॥
बड़ी लड़ाई मलखे कीन्हों अद्भुतसमर कहा ना जाय ३८
घोड़ मनोहर की पीठीपर देबा गरू करै ललकार॥
हनि हनि मारै रजपूतन को बहुतक जूझिगये सरदार ३९
अली अलामत औ दरियाखाँ बेटा जानबेग सुल्तान॥
ये सब लड़िका सय्यदवाले तहँपर करैं घोर घमसान ४०
मन्ना गूजर मोहबेवाला दोऊ हाथ करै तलवार॥
जोगा भोगा पूरन राजा येऊ करैं तहां पर मार ४१
जुझे सिपाही नैनागढ़ के लगभग एक लाखके ज्वान॥
पांच सहस मोहबे के जूझे करिकै समर भूमि मैदान ४२
जोगा बोला तब भोगा ते मानो कही हमारी बात॥
खबरि सुनावो महराजाको जैसी देखि परै कुशलात ४३
सुनिकै बातैं भोगा चलिभा नैनागढ़ै पहुंचा जाय॥
हाथ जोरिकै महराजा के भोगा यथातथ्य गा गाय ४४
सुनिकै बातैं महराजा ने लायो अमरढोल को जाय॥
सो दै दीन्ह्यो कर भोगा के भोगाचलिभाशीशनवाय ४५
आयकै पहुंच्यो समर भूमि में भोगा दीन्ह्यो ढोल बजाय॥
मुर्दा उठिकै जिन्दा ह्वैगे घैहा उठे तुरत हरषाय ४६
उठे सिपाही नैनागढ़ के मारैं खैंचि खैंचि तलवार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी धार ४७
डारे मुर्दा हैं लोहुन में मानों कच्छ मच्छ उतरायँ॥

पगड़ी गिरिगइँ त्यहि लोहू में फूले कमल सरिसदर्शायँ ४८
परीं बँदूखैं कहुँ लोहू में काली नागिनिसी मन्नायँ॥
पांच कोसलों चली सिरोही लोथिन उपरलोथिदिखरायॅ ४९
बड़ी लड़ाई में नैनागढ़ मारा मारा परै सुनाय॥
कोऊ हारा नहिं काहू सों दोउरण परा बरोबरि आय ५०
जोगा ठाकुर नैनागढ़ का सय्यद बनरस का सरदार॥
भोगा देबाके मुर्चा माँ दोउ दिशिहोय बरोबरि मार ५१
मन्नागूजर पूरन राजा दोऊ करैं खूब तलवार॥
बड़े लड़ैया रणमाँ रहिगे कायर छांड़ि भागि हथियार ५२
अमरढोल कहुँ रणमाॅ बाजै गिरि उठि लड़ैं लड़ैताज्वान॥
देखि तमाशा ऊदन बोले दादा सुनो बीर मलखान ५३
मरिमरि जीवैं नैनागढ़ के मैंना दीख कबों असभाय॥
कावा दैकै ऊदन चलिमे नैनागढ़ै पहूंचे आय ५४
संध्या ह्वैगै ह्याँ लश्कर में तब फिरि मारु बंद ह्वैजाय॥
ऊदन पहुंचे ह्वाँ मालिन घर तुरतै मोहर दीन थँभाय ५५
खबरि सुनावो म्बरि भौजीका आयो मिलन उदयसिंहराय॥
सुनिकै बातैं मालिनि चलिभै सुनवैं खबरि सुनाई जाय ५६
सुनवॉ चलिमै तब महलन ते आई जहाँ लहुरवा भाय॥
पाग बैंजनी शिरपर बाँधे ऊदन कह्यो बचन मुसुकाय ५७
याही कारण चिठिया पठई जल्दी अवो लहुरवा भाय॥
जियत मोहोबे कोउ जाई ना डरिहौ बंश नाश करवाय ५८
मरे सिपाही क्यों जीवत हैं भौजी हाल देउ बतलाय॥
सुनिकै बातैं सुनवाँ बोली तुम सुनिलेउ लहुरवा भाय ५९
बरा बर्पलों मेरे बापने कीन्ह्यो कठिन तपस्या जाय॥

मांगु मांगु तब इन्दर बोले बप्पा बोले माथ नवाय ६०
अमरढोल जो हमको देवो तौ सब काम सिद्ध ह्वैजायँ॥
एवमस्तु तब इन्दर बोले बप्पा भवन पहूंचे आय ६१
जबहीं क्षत्री गिरैं खेतमें अम्मरढोल देयँ बजवाय॥
कान भनक क्षत्रिन के परतै जीवैं तुरत बनाफरराय ६२
धोखे माड़ोके रहियो ना जहँ लैलियो बापका दायँ॥
लड़े न जितिहौ मेरे बापसों तुमको भेद देउँ बतलाय ६३
देवी पूजन कल मैं जैहौं लेहौं अमरढोल मँगवाय॥
माली बनिकै तहँ तुम आयो लीन्ह्यो अम्मर ढोल चुराय ६४
इतना कहिकै सुनवाँ चलिभै अपने महल पहूंची आय॥
ऊदन आये फिरि तम्बूको बैठे जहाँ बनाफरराय ६५
हाल बतायो मलखाने ते सोयो सबै रातिको पाय॥
भोर भुरहरे मुर्गा बोलत माली बने उदयसिंहराय ६६
जायकै पहुंचे तेहि मठियामाँ जहँपर सुनवाँ गई बताय॥
घोड़ बेंदुला तहँ बांधा है मालिन बीच बनाफरराय ६७
फूल डिलैया माँ सोहैं भल सुन्दर हरवा रहे बनाय॥
सुनवाँ जागी ह्याँ महलन में बोली मातै बचन सुनाय ६८
राति सुपनवाँ यक मैं देखा माता तुम्हैं देउँ बतलाय॥
संग सहेलिन देवी पूजैं तहँपर अमरढोल अरराय ६९
त्यहिते मनमाँ यह आई है पूजन करों भवानी जाय॥
तुमसों माता यह बिनबतिहौं देवो अमरढोल मँगवाय ७०
सुनिकै बातैं रानी चलिभैं पहुंची तुरत सेजपर जाय॥
हाल बतायो महराजा को लीन्ह्यो अमरढोल मँगवाय ७१
सो दै दीन्ह्यो लै बेटी को बेटी सखियन लीन बुलाय॥

चली भवानी फिरि पूजनको सुन्दरि गीतरहीं सब गाय ७२
जायकै पहुंचीं त्यहि मंदिरमाँ ज्यहिमाँ बसै दुर्गा माय॥
अक्षत चन्दन सों पूजन करि लौंगनहार दीन पहिराय ७३
शीश नवायो जगदम्बाका सुनवाँ फूलनहार चढ़ाय॥
भोग लगायो फिरि मेवा का सेवा अधिक कीन हरपाय ७४
किह्यो इशारा फिरि ऊदनको तुरतै लीन्ह्यो ढोल उठाय॥
कूदि बेंदुलापर चढ़ि बैठ्यो लशकर तुरतपहूंच्योआय ७५
कहाँ कहाँ कहि माली दौरे रहिगे जहाँ तहाँ शिरनाय॥
खबरि सुनाई नयपाली को सुनतै गयो सनाकाखाय ७६
जायकै पहुंच्यो तेहि मंदिर में जेहि में रहँ दुर्गा माय॥
तुरत पंडितन को बुलवायो जाने तंत्रशास्त्र अधिकाय ७७
इन्द्र यज्ञ नृपने तहँ ठानी स्वाहा स्वाहा परै सुनाय॥
एकसहसमन होम करायो गायो बेदमंत्र तहँ भाय ७८
हाथ जोरिकै बिनय सुनायो मानो सत्यबचन सुरराज॥
बारह बरसै जब तप कीन्ह्यों तबमोहिंढोलदियोमहराज ७९
जाति बनाफर की ओछी है तिनने चोरी लई कराय॥
सुनिकै बातैं ये राजा की भइ नभबाणि समयसुखदाय ८०
तुम्हरे उनके नहिं काहूघर रहि है ढोल सुनो नृपराय॥
इन्दर बोले फिरि देवन ते मानो बचन हमारे भाय ८१
आल्हा अम्मर हैं दुनिया में ते कस मरैं यहांपर आय॥
देवी शारदा का वरदानी आल्हा केर लहुरवा भाय ८२
लैकै ढोलक तुम तम्बू ते पटको तुस्त डांड़पर जाय॥
सुनिकै बातैं ये इन्दर की देवता तुरत चले शिरनाय ८३
लैकै ढोलक ते पटकत भे अपने धाम पहूंचे आय॥

गा नैपाली निज मंदिर को लश्कर खुशी बनाफरराय ८४
ऊदन बोले फिर मलखे ते दादा मोहबेके सरदार॥
कूच करावो अब लश्कर को चलिकै लड़ैं तासुके द्वार ८५
यह मन भाई मलखाने के तुरतै कूच दीन करवाय॥
कोउ कोउ घोड़ा हंसचाल पर कोउकोउ मोरचालपरजायँ ८६
चित्रचालपर चतुरचालपर कोइकोइंचलैं तितुरकी चाल॥
मारु मारु कै मौहरि बाजैं बाजैं हाव हाव करनाल ८७
बाजैं डंका अहतंका के घूमत जावैं लाल निशान॥
छाय अँधेरिया गै दशहू दिशि छिपिगे अंधकार में भान ८८
मारु मारु करि क्षत्री बोलैं रणमें बड़े लड़ैता ज्वान॥
घोड़ी कबुतरी के ऊपर माँ आगे चला बीर मलखान ८९
तीनकोस जब फाटक रहिगा तब पुरबासी उठे डेराय॥
यक हरिकारा दौरति आवै राजै खबरि सुनाई आय ९०
सुनिकै बातैं हरिकाराकी राजा मनै उठा अकुलाय॥
जोगा भोगा तहँ बैठेथे बोले राजै शीश नवाय ९१
हुकुम जो पावैं महराजा को डंका अबै देयँ बजवाय॥
जाय न पावैं मोहबे वाले सबकी कटा लेयँ करवाय ९२
सुनिकै बातैं ये लरिकन की राजै हुकुम दीन फर्माय॥
जोगा भोगा दोऊ चलिभे लश्कर तुरत पहूंचे आय ९३
बाजे डंका अहतंका के शङ्का करे कोऊ नहिं काल॥
घोड़ आपनेपर चढ़िबैठ्यो पूरन पटना को नरपाल ९४
जोगा भोगा घोड़े बैठे लश्कर कूच दीन करवाय॥
बाजे डंका अहतंका के पहुँचे समरभूमि में आय ९५
आगे घोड़ाहै जोगा का पाछे सकल शूर मरदार॥

घोड़ बेंदुला पर ऊदनहैं लीन्हे हाथ ढाल तलवार ९६
जोगा बोला तब घोड़ेते कौने डांड़ दबायो आय॥
जितने आये हैं मोहबे के सबके मूड़ लेउँ कटवाय ६७
बातैं सुनिकै ये जोगा की ऊदन तहां पहुंचे आय॥
हमहैं क्षत्री मुहबे वाले हमरो मूड़लेउ कटवाय ६८
सुनिकै बातैं जोगा ठाकुर तुरतै खैंचिलीन तलवार॥
ऐंचिकै मारा बघऊदन को सोऊ लीन ढालपर वार ९९
भोगा चलिभा तब ऊदनपर मलखे तुरत पहूंचे आय॥
मलखेठाकुर के मुर्चा में कोउ रजपूत न रोंकै पायँ १००
मन्नागूजर मोहबे वाला पूरन पटना का सरदार॥
लड़ैं बहादुर दोउ रणखेतन दोऊहाथ करैं तलवार १०१
घोड़ पपीहा की पीठीपर रूपन गरूदेय ललकार॥
भाला छूटे असवारन के पैदरचलनलागितलवार १०२
गजके हौदा ते शर बरषैं नीचे करैं महावत मार॥
कल्ला भिडिगे तहँ घोड़न के अंकुशभिड़ेमहौतनक्यार १०३
पैदर के सँग पैदर भिड़िगे घोड़न साथ घोड़ असवार॥
सूंढ़ि लपेटा हाथी भिड़िगे हौदन होय तीर की मार १०४
चलैं कटारी कोताखानी ऊना चलैं बिलाइति केर॥
लीन्हे भाला नगदवनि को मारैं एक एक को हेर १०५
झुके सिपाही नैनागढ़ के एँड़ा बेंड हनैं तलवार॥
जोगा भोगा दोनों ठाकुर गरूई हाँक दीनललकार १०६
सदा न फूलै यह बन तोरई यारों सदा न सावन होय॥
अम्मर देही नहिं मानुष कै मरिहै एकदिना सबकोय १०७
है मरदाना ज्यहि को बाना सो लड़ि मरै समर मैदान॥

जीवत बचिहै जो मुर्चा ते पाई खान पान सनमान १०८
जो भगिजाई अब मुर्चा ते तेहिको हनों कठिन तलवार॥
जोगा भोगा की बातैं सुनि जूझनलागि शूर सरदार १०९
कटि कटि कल्ला गिरैं बछेड़ा मरि मरि होनलागखरिहान॥
धरि धरि धमकैं रण खेतन में क्षत्री बड़े लड़ैता ज्वान ११०
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार १११

सवैया॥


कौन शुमार करै ललिते अतिमार भई सो कहाँ लगगाई।
खून कि धार बहे नदि नार किनार परैं गज ऊंट दिखाई॥
नाच पिशाच करैं तहँ साँच लिये करखप्पर योगिनि आई॥
गावत भूत बजावत ताल तहाँ करतालनकी धुनिछाई ११२



ऊदन बोले मलखाने ते दादा मोहबे के सरदार॥
कठिन मवासी है नैनागढ़ ह्याँपर बहुत रहौ हुशियार ११३
मन्नागूजर मोहबे वाले जावो एक तरफ यहिबार॥
चाचा मालिक सब तुमहीं हौ राजा बनरस के सरदार ११४
तुम चलिजावो एक तरफको मारो ढूंढि ढूंढ़ि कै ज्वान॥
हाथिन करें तुम हौदापर दादा हनो बीर मलखान ११५
इतना कहिकै बघऊदन ने हौदा उपर नचावा घोड़॥
काहू मारा तलवारी सों काहू हना तडाका गोड़ ११६
बाइस हौदा खाली ह्वैगे अकसर ऊदन के मैदान॥
घोड़ी कबुतरी के ऊपरते बहुतन हना बीरमलखान ११७
जैसी जावै बनरसवाला आला समर धनी तलवार॥

भगैं सिपाही चौगिर्दा ते भारी होत चलै गलियार ११८
मन्नागूजर ऊजर कीन्ह्यों देवै कठिन कीन तलवार॥
को गति बरणै तहँ रुपनाकी रणमाँ मली मचाई मार ११९
पूरन राजा पटनावाला भाला लिये हनै दश पांच॥
को गति बरणै तहँ भोगाकै घोड़ा उपर रहा सो नाच १२०
हनि हनि मारै चौगिर्दा ते गई हाँक देय ललकार॥
इतना सुनिकै मलखे ठाकुर तुरतै खैंचिलीन तलवार १२१
ऊदन बोले तब मलखे ते दादा मोहबे के सरदार॥
सुनवाँ भौजी का भैयाहै आई मड़ये के त्यवहार १२२
इतना सुनिकै मलखे ठाकुर फौजन तरफ पहूंचाजाय॥
बहुतन मार्यो तलवारी सों बहुतनहन्यो ढालके घाय १२३
इतना कहिकै ऊदन चलिभे जोगा पास पहुंचे जाय॥
जोगा बोला तब ऊदनते मानो कही बनाफरराय १२४
बड़ी दूरिते चलिआयो है आपनि लोह दिखावो आय॥
सुनिकै बातैं ऊदन बोले ठाकुर सत्य देयँ बतलाय १२५
मोरे मोहोबे में किरिया भै जो करि डरी चँदेलोराय॥
कोऊ आवै समरभूमि में आपनिलोह दिखावैआय १२६
पहिले ल्वाहै वहिकी देखो पाछे आपनि देवदिखाय॥
मारो मारो समर भूमि में नहिंशककरोमनैकछुभाय१२७
इतना सुनिकै जोगाठाकुर तुरतै लीन्ह्यो साँग उठाय॥
मनाएक के सो अंदाजन ऊदन ऊपर दयोचलाय १२८
घोड़बेंदुला ऊपर उड़िगा नीचे सांगगिरी अरराय॥
बचा बेंदुलाका चढ़वैया आल्हाकेर लहुरवाभाय १२९
ऊदन बोले फिरि जोगा ते दूसरि बार करो सरदार॥

सुनिकै बातैं ये ऊदनकी तुरतै खैंचिलीन तलवार १३०
ऐंचिकै मारा बघऊदनको ऊदन लीन ढाल परवार॥
ऊदन बोल्यो फिरि जोगाते तीसरि वार करो सरदार १३१
बँचि तड़ाका धनुही लीन्ह्यो तामें दीन्ह्यो तीर लगाय॥
ऐंचिकै मारा सो ऊदनके ऊदनलीन्ह्यो वार बचाय १३२
खैंचि झड़ाका तलवारीको तुरतै हना उदयसिंहराय॥
मूड़ बिसानी सो घोड़ेके बिन शिर परै रूंड दिखराय १३३
कोतल घोड़ा जोगा बैठे सायंकाल पहूंचा आय॥
मारुबन्दर्भ दोनों दलमाँ फौजै चलीं थलनको धाय १३४
चरि चरि गौवैं घरका डगरीं उड़ि उड़ि पक्षिन लीन बसेर॥
तारागण सब चमकनलागे संतन रमा रामको टेर १३५
करों तरंग यहाँ सों पूरण तव पद सुमिरि भवानीकन्त॥
रामरमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त १३६

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई, ई) मुंशी नवलकिशोरात्मजबाबूप्रयागना-
रायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासिमिश्र
बंशोद्भवबुधकृपाशङ्करसूनुपण्डितललिताप्रसादकृतऊदनविजय
वर्णनोनामद्वितीयस्तरंगः २॥


सवैया॥

शेश महेश गणेश मनाय, सदा बरदान यही हम पावैं।
हाथगहे धनुबान सुजान, महान सदा ज्यहि बेद बतावें॥
कोटिन जन्म जहां उपजैं, रघुनन्दनके ढिगही तहँ आवैं।
बरदान यही ललितेकर जान, सुजान सदा रघुनन्दन भावैं १


सुमिरन॥

गोपी घूमैं नहिं गलियनमें नहिकहुँ नचत फिरतहैं श्याम॥
मानुष देही यह रहिहैना इकलो रही जगत में नाम १
नहीं भरोसा नर देहीको कैसे करै झूठ अभिमान॥
सदा इकेलो तर बिरवाके मनमें करै रामको ध्यान २
यह सहाई है दुनिया में गाई बेद पुराणन गाथ॥
ताते ज्वानो खुब यह समझो गुजरो फेरि न आवै हाथ ३
समय जो पावो कछु दुनियामें ध्यावो सदा राम रघुराज॥
बिगरी सुधरै तुरतै तुम्हरी पूरण होयँ तुम्हारे काज ४
छुटि सुमिरनी गै देवनकै शाका सुनो शूरमन क्यार॥
सुन्दरवन को चिट्ठी जाई लड़ि हैं बड़े बड़े सरदार ५

अथ कथाप्रसंग॥


उदय दिवाकर मे पूरब में किरणनकीन जगतउजियार॥
जोगा भोगा त्यहि समया में आये तुरत राज दरवार १
हाथ जोरिकै जोगा बोले बप्पा बचन करो परमान॥
पाँचलाख फौजै हम लैगे रहिगे तीनिलाख सब ज्वान २
सुनिकै बातैं ये जोगा की राजै कागज लीन उठाय॥
चिट्ठी लिखिकै अरिनन्दन को सुन्दरवन को दीन पठाय ३
पाती लैकै हरिकारा गो सुन्दर वनै पहूंचा जाय॥
पढ़िकै पाती अरिनन्दन ने गौरीनन्दन चरण मनाय ४
तुरत बुलायो सेनापति को तासों कह्यो हाल समुझाय॥
जितनी सेना सुन्दरवन की सवियाँ कूच देव करवाय ५
सुनिकै बातैं महराजा की कूचक डङ्का दीन बजाय॥
कूच कराये सुन्दरवन ते नद्दी निकट पहूँचे आय ६

तम्बू गड़िगे महराजन के डेरा गड़े सिपाहिन केर॥
आल्हा ऊदन के डेरे ते योजन एक कोस के नेर ७
किश्ती नावै तिहि नदिया में तामें नचैं कंचनी नाच॥
आल्हा पकरै के कारण में ज्ञानिन युक्ति कीन यह साँच ८
दिखैं तमाशा तहँ नदिया में इत उत दोऊ दिशाके ज्वान॥
आल्हा ठाकुर त्यहि समया में तहँ पर करै गये असनान ९
होनी होवै सो सच होवै ज्ञानी ध्यानी को दिखलाय॥
कौन गुमानी अरमानी अस जानी मौत नहीं ज्यहिभाय १०
फिरि अभिमानी नर देही के नेही चरणशरण नहिंजायँ॥
बिना पियारे रघुनन्दन के चन्दन कौन परै दिखराय ११
बन्दन करिकै रघुनन्दन को आल्हा नदी अन्हाने जाय॥
चन्दन अक्षत सों पूजन करि प्रातःकृत्य कीन हर्षाय १२
मेला दीख्यो फिरि नदिया में दोउदिशि रहे नारि नर हेर॥
नावै किश्तिन के ऊपर में होवै नाच पतुरियन केर १३
दिखै तमाशा तहँ ठाढ़े भे ठाकुर मोहबे के सरदार॥
नावै आई अरिनन्दन की तिनमाँ होवै अधिक बहार १४
तहँ हरिकारा नैनागढ़ को बोला अरिनन्दन सों बात॥
नामी कुर मोहबे वाले आये आल्हा क्यरी बरात १५
सुनिकै बातैं हरिकारा की बोल्यो अरिनन्दन त्यहिकाल॥
रहै सगाई देशराज सों आल्हा बड़े पियारे बाल १६
अयो बरातै का तिनके हौ पैदल नाच दिखौ महिपाल॥
सुनिकै बातैं अरिनन्दन की बोले देशराज के लाल १७
कौनि सगाई देशराज सों साँचे हाल देव बतलाय॥
सुनिकै बातैं ये आल्हा की कहअरिनन्दनबचन सुनाय १८

तुम चढ़िआवो अब नावन में देखो नाच यहाँ पर आय॥
कह सगाई हम साँची फिरि तुम सो हाल देयँ बतलाय १९
सुनिकै बातैं आल्हाठाकुर नावन उपर पहूंचे जाय॥
किह्यो इशारा अरिनन्दन ने खेवट दीन्ह्यो नाव चलाय २०
डाटिकै बोल्यो आल्हाठाकुर खेई नाव अबै ना जाय॥
सुनिकैबोल्यो अरिनन्दन फिरि आल्है बार बार समुझाय २१
सोला मिनटन के अर्सा में आवो फेरि यहां पर भाय॥
लहरा नदिया के तानन में बानन सरिस पहूंचैं जायँ २२
सो मन भावे महराजन के जे शिरताजन के समुदाय॥
लहरा नदिया के तानन सों बानन सरिस पर दिखराय २३
इतना कहतै अरिनन्दन के पहुंची नाव किनारे आय॥
उतरी उतरा भा नावनते आल्हा उतरि परे हर्षाय २४
तम्बूलैगे अरिनन्दन तब बन्दन कैकै शीश नवाय॥
द्यावलि नन्दन तहॅ बैठतमे चन्दन सरिस परैं दिखराय २५
कही हकीकति अरिनन्दनतब तुमको कैद कीन हम आय॥
देखैं हम सों बुद्धिमान कोउ मोहबै और परै दिखराय २६
इतना कहिकै अरिनन्दन ने तुरतै कूच दीन करवाय॥
चढ़िकै हाथी आल्हाठाकुर सुन्दरवनै पहूंचे जाय २७
गा हरिकारा नैनागढ़ का राजै खबरि सुनाई जाय॥
ऊटन ढ़ूढ़ें ह्याँ आल्हा को दादा नहीं परें दिखराय २८
आज्ञा लैकै मलखाने की सोनवाँ पास पहुंचे जाय॥
भेद बतायो सब सोनवाँ ने फौजन फेरि पहूंचे आय २९
घोड़ा लैकै बयपारी बनि सुन्दरवने पहुंचे जाय॥
द्वार पहुंचे अरिनन्दन के ऊदन बेंदुल दीन नचाय ३०

देखि तमाशा द्वारपाल तहँ ऊदन निकट पहूंचे आय॥
साथ तुम्हारे द्वै घोड़ा हैं औ असवार एक तुम भाय ३१
रूप तुम्हारो बयपारी को आयो कौन देश ते भाय॥
घोड़ा लायेते काबुलते बेचे सबै कनौजै जाय ३२
एक इकेलो यह बाकी है राजै खबरि सुनावै जाय॥
इतना सुनिकै द्वारपाल फिरि राजै दीन्ह्यो खबरि बताय ३३
खबरि पायकै अरिनन्दन फिरि द्वारे पौंरि पहूंचे आय॥
घोड़ पपीहा मोहबेवाला राजा देखिगये हरषाय ३४
राजा बोले बघऊदन ते याकी कीमति देवबताय॥
ऊदन बोले अरिनन्दनते साँचे बचन देयँ बतलाय ३५
पहिले चढ़िकै यहि घोड़ेपर कोऊ ज्वान नचावै आय॥
हाल देखिल्यो यहि घोड़ेका तब मैं कीमति देउँ बताय ३६
सुनिकै बातैं सौदागरकी राजै हुकुम दीन फर्माय॥
बैठे क्षत्री जो कोउ जावै घोड़ा टापन देय हटाय ३७
होय मोहबिया कोउ मोहबेका घोड़ा देखि सीध ह्वैजाय॥
टेढ़े घोड़ेके चढ़वैया मोहबे बसैं बनाफरराय ३८
सुनिकै बातैं सौदागरकी तुरतै आल्है लीन बुलाय॥
हुकुम लगायो अरिनन्दनने घोड़ा बैठि नचावोभाय ३९
हुकुम पायकै अरिनन्दनको घोड़ा चढ़े बनाफरराय॥
घोड़ नचायो भल आल्हाने ऊदन बोल्यो बचन सुनाय ४०
जल्दी चलिये अब लश्करको दादा काह रह्यो पछिताय॥
नाम हमारो उदयसिंह है ओ अरिनन्दन बात बनाय ४१
इतना कहिकै बघऊदनने आपन घोड़ दीन दौड़ाय॥
आल्हौ चलिभे फिरिजल्दीसों लश्कर दोऊ पहुंचेभाय ४२

१०

मलखे बोले फिरि आल्हाते लश्कर कूच देव करवाय॥
यह मन भाई तब आल्हा के डङ्का तुरत दीन बजवाय ४३
हाथी सजिगा पचशब्दा तब आल्हा तुरत भयो असवार॥
हरनागर घोड़े के ऊपर मैने चढ़ा चँदेले क्यार ४४
घोड़ मनोहर देबा बैठा सिरगा बनरसका सरदार॥
सोहे कबुतरी पर मलखे भल ऊदन बेंदुलपर असवार ४५
मन्नागूजर रूपन बारी दोऊ बेगि भये तय्यार॥
झीलमबखतर पहिरिसिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार ४६
कूचके डङ्गा बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान॥
घोड़ी कबुतरी के ऊपरमाँ आगे फिरैं बीर मलखान ४७
खर खर खर खर कै रथ दौरैं रब्बा चलैं पवनकी चाल॥
मारु मारु के मौहरि बाजै बाजै हाव हाव करनाल ४८
इतते लश्कर गा आल्हाका जोगा उतै पहूंचा आय॥
बम्बके गोला छूटन लागे हाहाकारी शब्द सुनाय ४९
जौने हाथी के गोला लागै मानों गिरा महल अरराय॥
जौने क्षत्री के गोला लागै साथै उड़ा चील्हनमजाय ५०
जौने बछेड़ा के गोला लागै धुनकन रुईसरिस उड़िजाय॥
गोला लागै ज्यहि सँड़िया के सो मुहभरा गिरै अललाय ५१
जौने बैलके गोला लागै तरवर पात ऐस गिरिजाय॥
दुनो गोल आगे को बढ़िगे तोपन मारु बन्द ह्वैजाय ५२
मारू बॅदूखै मो मालाकी बलछी कड़ाबीन की मार॥
चलैं कटारी वूंदीवाली ऊना चलै विलाइत क्यार ५३
कति कटि क्षत्री गिरैं खेतमें उठि उठि रुण्ड करें तलवार॥
मड़न करे मुड़चौरा मे औ रुण्डन के लगे पहार ५४

सूँढ़ि लपेटा हाथी भिड़िगे ऊपर करैं महावत मार॥
पैदर पैदर कै बरनी भै औ असवार साथ असवार ५५
जौने हौदा ऊदन ताकैं बेंदुल तहाँ पहूँचै जाय॥
हनिकै मारै असवारे को औ हौदा ते देयँ गिराय ५६
अकसर ऊदन के मारुन में काहू धरा धीर ना जाय॥
पूरन राजा औ जगनाका परिगासमर बरोबरि आय ५७
मलखे जोगा का संगरहै भोगा बेंदुल का असवार॥
बिजिया ठाकुर देबा ठाकुर दूनों खूब करैं तलवार ५८
अपने अपने सब मुर्चन में क्षत्री नेक न मानैं हार॥
मलखे जोगा के मुर्चा में होवै कड़ाबीन की मार ५९
ऊदन भोगा के मुर्चा में कोताखानी चलै कटार॥
बिजिया देबा के मुर्चा में दोऊ हाथ चलै तलवार ६०
को गति बरणै जगनायक की पूरन पटना को सरदार॥
मारु बरोबरि दोऊ करिकै गरुई हाँक देयँ ललकार ६१
बड़ी लड़ाई भै नैनागढ़ नदिया बही रक्त की धार॥
बहीं लहासैं तहँ क्षत्रिनकी पक्षी मानों ख्यलैं नेवार ६२
जाँघ औ बाहू रजपूतन की तामें गोह सरिस उतरायँ॥
छुरी कटारी मछली मानों ढालैं कछुवा सम दिखरायँ ६३
घोड़ा हींसैं हाथी चिघरैं ठाढ़े ऊंट तहाँ अललायँ॥
बड़ बड़ राजा उमरायन को रणमास्यारकागमिलिखायँ ६४
जोगा ठाकुर के मुर्चापर गरूई हांक दीन मलखान॥
सँभरिकै बैठो अब घोड़ापर की अब लौटि जाव घरज्वान ६५
सुनिकै बातैं मलखाने की तुरतै खैंचि लीन तलवार॥
ऐंचिकै मारा मलखाने को मलखे लीन ढालपर वार ६६

ढाल फाटिगै फाटिग गेंड़ावाली रणमाँ टूटि गिरी तलवार॥
उतरि कबुतरी ते मलखाने तुरतै बाँधि लीन सरदार ६७
बंधन ह्वैगा जब जोगाका भोगा लीन्ह्यो सांग उठाय॥
ताकिकै मारा बघऊदन का ऊदन लीन्ह्यो वार बचाय ६८
ऊदन बोले फिरि भोगाते औ बिसिआने बात बनाय॥
बार दूसरी अब तुम मारै ठाकुर तोरि आहिरहिजाय ६९
बातैं सुनिकै बघऊदन की भोगा भालालीन उठाय॥
दूनों अँगुरिन भाला तौले कालीनाग ऐस मन्नाय ७०
तारा टूटै आसमानते तो हिरगास भुई ना जाय॥
छूटिग भाला जो अँगुरिनते कम्मर मचा ठनाका आय ७१
बचा दुलरुवा द्यावलिवाला आला देशराज को लाल॥
ढालकि औझड़ ऊदनमारा भोगा गिरा तहाँ ततकाल ७२
भोगा बँधिगा रणखेतन में बिजिया बड़ा लड़ैया ज्वान॥
अपने मुर्चा में सो हार्यो बांध्यो मैनपुरी चवहान ७३
पूरनराजा जगनायक का मुर्चापरा बरोबरि आय॥
गुर्ज चलायो पूरन राजा जगना लीन्ह्यो वार बचाय ७४
एँड़ा मसक्यो हरनागरके हाथी उपर पहुंचा जाय॥
खैंचिकै मारा तलवारी को हाथी सूंढ़गिरी अरराय ७५
गिरामहावत तब मस्तकते हाथी बैठिगयो त्यहि ठायँ॥
बंधन कीन्ह्यो फिरि पूरन को जीतिक डंका दिह्यो बजाय ७६
मग सिपाही नेनागद के काहू धराधीर ना जाय॥
बंधन टेगे चारिउ योधा एकते एक बली अधिकाय ७७
जना तम्बू रहे आल्हाका तहँना गये सकल सरदार॥
माद्दिल बन्धन सबको दीख्यो घोड़ी तुरत भये असवार ७८

जहाँ कचहरी नयपाली की माहिल पहुंचिगये त्यहिबार॥
दीख्यो माहिलको नयपाली राजै बड़ाकीन सतकार ७६
माहिल बोले तब राजाते तुम सुनिलेउ बिसेनेराय॥
तीनों लड़िका तुम्हरे बँधिगे चौथो पूरन लये बँधाय ८०
सुनवाँ ब्याहीगय आल्हा को तौ रजपूती जाय नशाय॥
पानी पी है कोउ क्षत्री ना तुमको सत्य दीन बतलाय ८१
राजा बोले तब माहिलते ठाकुर उरई के सरदार॥
काह कलङ्की देशराज भे सो तुम कथा कहो यहिबार ८२
माहिल बोले नयपाली ते सुनिल्यो बचन मोर महराज॥
चले शिकारै देशराज बन दूसर बच्छराज शिरताज ८३
देवलि बिरमा दूनों बहिनी बेंचनदही जायँ त्यहिराह॥
मार्ग सँकोचो त्यहि बनजानो अरनालड़ैं तहाँ नरनाह ८४
पकरिके सींगैं इक भैंसाकी देवलि दीन्ह्यो दूरि हटाय॥
दूसर बिरमाने पकरा तहँ पाछे सोऊ पछेलति जाय ८५
दूनों अरना मारग हटिगे दूनों जोड़ भये इकठोर॥
देशराज कह बच्छराज सों दूनों बड़ी बली इकजोर ८६
इनको लेकै घरको चलिये होवैं पूत सुपूते भाय॥
तिनहिन अहिरिन के पेटे ते चारो भये बनाफरराय ८७
बाप छत्तिरी माता अहिरिनि बेटा कैसे होयँ कुलीन॥
ब्याह न कीन्ह्यो तुमसुनवाँ का जानोंजातिपांति अकुलीन ८८
पूजन कीन्ह्यो तब माहिल का राजै फेरि कीन सतकार॥
बड़े पियारे तुम माहिल हौ ठाकुर उरई के सरदार ८९
बहिनि बियाही चंदेले घर जिनको कही रजा परिमाल॥
किह्योमुलहिजानहिंतिनकोतुम हमसों सत्य कह्यो सबहाल ९०

युक्ति बतावो अब तुमहीं म्बहिं जासों धर्म रहै यहिकाल॥
सुनवाँ ब्याही फिरि जावैना औ मरिजायँ दुष्ट ततकाल ९१
सुनिकै बातैं नयपाली की माहिल बोले वचन उदार॥
बाना तजिकै रजपूती का अब धरि देव ढाल तलवार ९२
नाई बारी सँगमें लैकै पायँन परोजाय ततकाल॥
जो कछु बोलैं सो कछु मान्यो मड़ये तरे लैआवो हाल ९३
घरमें लैकै चारो भाई चारो भाई मारो नृपति आय ततकाल॥
इतना कहिकै माहिल चलिभे आदरकीन बहुत नरपाल ९४
भुजा उखारी गइँ अभई की माहिल हृदय परी सो शाल॥
लड़ै भिड़ैकी सरवरि नाहीं निन्दाकरत फिरैं सबकाल ९५
जैसे राजै भानुप्रतापी मार्यो रहै तपस्वी ज्वान॥
यह है गाथा बालकाण्ड में तुलसी राम समर मैदान ९६
तैसे ऊदनके मरिवेमें माहिल चुगुल बने सबदार॥
धर्मसे निन्दा नहिं माहिलकी यामें दिहे शास्त्र अधिकार ९७
औरो गाथा कहु पुराणकी यामें आनि घटावों ज्वान॥
पै नहिं समया यहि समया में ऐसी परीं व्यवस्था आन ९८
माहिल पहुंचे फिरि तम्बुनमें राजै नेगी लीन बुलाय॥
जहँना तम्बू रहै आल्हा का राजा वहाँ पहूँचे जाय ९९
बड़े प्यार सों राजै लीन्ह्यो आल्हा बैठिगये हर्षाय॥
मलखे बोले तब राजाते आपन हालदेउ बतलाय १००
कौने मतलब को आयो है सो हम करैं चारिहू भाय॥
सुनिकै बातैं मलखाने की राजा बोले बचन बनाय १०१
हॅसी खुशी सों सुनवॉ ब्याहै हमरे मनै गई यह आय॥
सिंहन घर में कन्या ब्याही स्यारन हँसीकिये का भाय १०२

धन्य बखानों द्वउ रानिनको जिनके पूत सुपूते चार॥
धन्य बखानों मलखाने को माड़ो भलीकीन तलवार १०३
भुजा उखार्यो ज्यहि अभईके आल्हाकेर लहुरवा भाय॥
तीनों चलिये अब मड़ये को भौंरी तुरत देयँ करवाय १०४
इतना सुनिकै मलखे बोले फौजन डंका देउ बजाय॥
कह नयपाली सुन मलखाने इकलो दूलह देउ पठाय १०५
कह मलखाने सुन नैपाली तुमसों सत्य देयँ बतलाय॥
किरिया करलो श्रीगंगाकी ब्याहन तबै तुम्हारे जायँ १०६
यह मनमाई नयपाली के किरिया तुरत कीन सरदार॥
तीनों लड़िका मलखे छोंड़े आपौ फाँदिभये असवार १०७
देबा ऊदन मन्नागूजर सय्यद बनरस का सरदार॥
सजि जगनायक मोहबेवाला रूपन बारी भयो तयार १०८
आल्हा बैठे फिरि पलकी में मनमें श्रीगणेशपद ध्याय॥
सबियाँ चलिभे नैनागढ़ को महलन तुरत पहूंचे जाय १०९
खम्भा गड़िगा तहँ चन्दन का मालिन माड़ो कीन तयार॥
सखियाँ आईं नयपाली घर गावन लगीं मंगलाचार ११०
चढ़ो चढ़उवा जब सुनवाँ का फाटक बन्द लीन करवाय॥
क्षत्री आये जे लड़ने को ते कोठेपर रखे छिपाय १११
भो गठिबन्धन जब आल्हा को थाल्हा गड़ा शूरमन क्यार॥
प्रथमै पूज्यो श्रीगणेश को गौरीनन्दन शम्भु कुमार ११२
भाँवरि पहिली के परतैखन पण्डित कीन बेद उच्चार॥
जोगा मार्यो तलवारी को ऊदन लीन ढालपर वार ११३
भाँवरि दूसरिके परतैखन भोगा हनी तुरत तलवार॥
मलखे ठाढ़े रहैं दहिने पर सो लै लई ढालपर वार ११४

भाँवरि तीसरि के परतैखन बिजिया मारी गुर्ज उठाय॥
वार बचाई त्यहि देबाने राजा रंगमहल को जाय ११५
भाँवरि चौथी के परतैखन राजा जादू दीन चलाय॥
जवाँ वन्द भै सब कुँवरन के सबकी नजरबन्द ह्वैजाय ११६
सुनवाँ सोची अपने मनमाँ बैरी ह्वैगा बाप हमार॥
बीर महम्मद की पुरिया को सुनवाँछोंडिदीनत्यहिबार ११७
भई लड़ाई तहँ जादुनकी सातों भावरि लई कराय॥
आल्हा वाली फिरि पलकी में तुरतै सुनवाँ लीन बिठाय ११८

सवैया॥


भूप दुवार चली तलवार अपार बही तहँ शोणित धारा।
वीर बली मलखान सुजान तहाँ बहु क्षत्रिनको हनिडारा॥
पूतजुझार महाहुशियार लड़ै तहँ भीषम केर कुमारा।
कौनकहै बघऊदनको रिपुसूदनसों ललिते त्यहि बारा ११९



सुन्दरवन को अरिनन्दन जो सोऊ आयगयो त्यहि द्वार॥
आठकोसलों चले सिरोही नदिया बही रक्त की धार १२०
आगे डोलाहै सुनवाँ को पाछे होय भड़ाभड़ मार॥
ऊदनमलखे की मारुन में जूझे बड़े बड़े सरदार १२१
आल्हा बँधुवामे नैनागढ़ जोगा भवगा बँधे मलखान॥
कूच करायो बघऊदन ने लश्कर प्रागराजनियरान १२२
ऊदन बोले तब सुनवाँ ते भौजी मानों कहीं हमार॥
दादा बांधेगे नैनागढ़ कैसी युक्तिकरी यहिबार १२३
सुनिकै बातैं बघऊदन की सुनवाँ युक्ति कही समुझाय॥
सम्मत करिकै दूनों चलिमे नैनागढ़ै पहूंचे आय १२४
पुहपा मालिनि के घर बैठे सुनवाँ सहित लहुरवा भाय॥

सुनवाँ पूछ्यो जो मालिनि ते मालिनिखबरिदीनबतलाय१२५
रूप गुजरियाको सुनवाँ करि पहुंची नाह निकट सो जाय॥
रूप देखिकै त्यहि गूजरिको मोहित भयो बनाफरराय १२६
जस बतलान्यो ये गूजरिसों गूजरि तैस दीन समुझाय॥
मुंदरी दीन्ह्यो फिरि गूजरिको मालिनिघरै पहूंची आय १२७
सब समुझायो फिरि ऊदन को सांचे हाल दीन बतलाय॥
घोड़ करिलिया औ रसबेंदुल लैकै गयो लहुरवाभाय १२८
खबरि पायकै बयपारी के द्वारे नृपति पहूंचा आय॥
बनो कबुलिहा बघऊदन है सांचो आगा परै दिखाय १२६
राजा पूछयो बयपारी सों सांची कीमत देव बताय॥
ऊदन बोल्यो नयपाली सों चढ़िकैदेखिलेयकोउआय १३०
चाल देखिल्यो इन घोड़नकी पाछे कीमत देय बताय॥
सुनिकै बातैं ब्योपारी की राजे हुकुमदीन फर्माय १३१
जावैं क्षत्री जो घोड़न ढिग ताको टापन देयँ हटाय॥
मुखसों काटैं ऊपर उलरैं कोउरजपूतपास नाजाय १३२
देखि तमाशा यहु महराजा तुरतै आल्हा लीन बुलाय॥
घोड़ा फेरो तुम फाटक में इनकीचाल देव दिखराय १३३
किह्यो इशारा बघऊदन ने घोड़ा चढ़े बनाफरराय॥
बैठ बेंदुलापर बघऊदन आपननामदीन बतलाय १३४
बाग उठायो द्वउ घोड़न की फाटक पार पहूंचे आय॥
मालिनि घरते सुनवाँ चलिभै तुरतै पलकी लीन मँगाय १३५
तीनों पहुंचे फिरि लश्कर में डंका बजन लाग घहराय॥
चलि मैं फौजैं मलखाने की पहुंचीं प्रागराज में आय १३६
जितने क्षत्री रहैं लश्कर में सबियाँ करनगये असनान॥

हनवन करिके तिरवेनीको दीन्ह्योद्विजनदांनसबज्वान १३७
बृक्ष अक्षयवटको पूजन करि पहुंचे भरद्वाज अस्थान॥
बेनीमाधो के दर्शन करि दीन्ह्योद्विजनसूबरणदान १३८
हाथी घोड़ा रथ कपड़ा औ गहना दीन द्विजन बुलवाय॥
भये अयाचक सब याचकगण जय जयरहे बनाफरराय १३९
बैठिकै गंगा के तट ऊपर क्षत्रिन हवनकीन हरपाय॥
स्वाहा स्वाहा बहुद्विज बोलैं कहुँ २ स्वधास्वधागाछाय १४०
स्वधा औ स्वाहा ते छुट्टीकरि बिप्रन भोजन दीन कराय॥
भोजन करिकै सब द्विज तहँते अपने घरनगये सुखपाय १४१
कूच करायो फिरि मलखाने डंका बजत फौज में जाय॥
देवलि बिरमा द्वारे ठाढ़ी देखैं बाट बनाफरराय १४२
राह निहारैं नित पुत्रन की कबधों ऐहैं पुत्र हमार॥
जौन मुसाफिर आवत देखैं ताको करैं बड़ा सतकार १४३
हाल न पावैं जब पुत्रन को तब फिरि जावैं घरै निराश॥
रानी मल्हना महलन ऊपर नितप्रतिकरैमिलनकीआश १४४
तबलों रुपना आगे आयो पाछे फौज पहूंची आय॥
बड़ी खुशाली भै मोहने माँ दौरे सबै नारिनर धाय १४५
मल्हना देवलि बिरमातीनों पलकी पास पहूँचीं जाय॥
मनियादेवन को पलकी गै पूजनकीन बहुरियाआय १४६
आल्हा मलखे देबा ऊदन अक्षत चन्दन फूल चढ़ाय॥
मनियादेवन की परिकरमा क्षत्रिन सबन कीन हर्षाय १४७
तहँते आये फिरि द्वारे को तुरतै पण्डित लीन बुलाय॥
आरति लैकै फिरि सोने की तामें चौमुख दिया बराय १४८
वर परछौनी मल्हना कीन्ह्यो भीतर गये बनाफर राय॥

उतरिकै पलकी ते सुनवाँफिरि महलन तुरत पहूंचीजाय १४९
मुहँ दिखलाई रानी मल्हना गलको दीन नौलखाहार॥
पायँ लागेकै सुनवाँ तहँपर करको कंकण दीन उतार १५०
बाजन बाजे चौगिर्दा ते घर घर भये मंगलाचार॥
फिरिपरिमालिक की ड्योढ़ीमाँ पहुंचे सबै शूर सरदार १५१
राजा पूंछैं मलखाने ते ओ बिरमा के राजकुमार॥
अमरढोल रहै नयपाली के कैसे किह्यो तहाँपर मार १५२
इतना सुनिकै मलखे बोले तुम सुनिलेउ रजापरिमाल॥
दया तुम्हारी जापर होवै ताकीबिजयहोयसबकाल १५३
हृदय लगायो सब कुँवरन को सबको कीन बड़ा सतकार॥
जीतिके डंका बाजन लागे नौबति झरै रजा के द्वार १५४
सौ सौ तोपैं दीगीं सलामीं चकरन पाई खूब इनाम॥
पिता हमारे किरपाशंकर कीन्हेनिसबैद्धिजनकेकाम९५५
माथ नवाबों पितु अपने को जिनबल पूरिकीन यह गाथ॥
मोर सहायी जग एकै हैं स्वामी अवधनाथ रघुनाथ १५६
आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
सुखसों जीवो तुम दुनियामें दिनदिनहोउधनीअधिकाय १५७
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलौं रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलोंतुम यशसों रही सदाभरपूर १५८

इति श्रीलखनऊ निवासि (सी, आई, ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकी आज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पँड़रीकलां
निवासि मिश्रवंशोद्भवबुधकृपाशङ्करसनु पं॰ललिताप्रसाद कृत
आल्हापाणिग्रहणवर्णनोनाम तृतीयस्तरंगः ॥३॥

नैनागढ़आल्हाबिवाहसम्पूर्ण
इति॥


राषौ गति अद्भुत दर्शानी २॥

निशि दिन पापकर्मरत प्राणी सत्यासत्य भुलानी॥
हत्यालाख धरत शिर ऊपर मोह बेदना ठानी ॥१॥
नाती पूत शोच बश परकर आतमज्ञान हिरानी॥
अहं अहं डहकत दरवाजे देखत नारि बिरानी ॥२॥
अभिमानी नित देखत आंखिन मरतजात बहुप्रानी॥
तबहूं तनक चेत मननाहीं रटै रामगुणखानी ॥३॥
हटै अकाल सुकाल बढ़ै जग नाशय रोग निशानी॥
सो नहिं होनहार हम देखत होयँ बहुतनरज्ञानी ॥४॥
अभिमानी लाखन हम देखत ज्ञानी दशहु न जानी॥
होत प्रपंच साधु सन्तनमें पंचन नाहि ठिकानी ॥५॥
तजि दुर्गा अर्चन नर पामर गति मुर्गाकी आनी॥
लेहॅडिपुत्र पौत्र उपजावत अनशिक्षित अभिमानी ॥६॥
तेइ मर्य्याद धर्मकी नाशत भाषत झूंठ गुमानी॥
मात पिताको मूरख कहिकै देवत कष्ट महानी ॥७॥
यह कलियुगकी देखि बड़ाई कहत ललित यहभानी॥
राघौ राम और रघुनन्दन इन बन्दन दुखहानी ॥८॥
चलो मन जहॉ बसैं रघुराज । चलो मन जहाँ बसैं रघुराज॥
यहि दुनिया में कौन हमारो हम क्यहिके क्यहिकाज॥
देखत जो कछु रहत न सो कछु ढहत काल शिरताज ॥१॥
गहत कौनके रहत कौन नर सोइ कहत हम आज॥
रघुनन्दन जगवन्दन ज्यहि सुत त्यहि शिरपर दुखभ्राज ॥२॥
सेयो यशोदा नन्द कृष्णको सोऊ न आये काज॥
बैरिनि बिपति सबहिं शिरऊपर देखिलेहु महराज ॥३॥
जो मन फॅसे जगत के अन्दर बन्दरसम बिनलाज॥
द्वारद्वार नट तिन्है नचावत ललित पेट के काज ॥४॥