अद्भुत आलाप/१४—बंदरों की भाषा

लखनऊ: गंगा ग्रंथागार, पृष्ठ १२० से – १२२ तक

 
१४---बंदरों की भाषा

संयुक्त राज्य, अमेरिका, के रहनेवाले अध्यापक गार्नर ने अपनी प्रायः सारी की सारी उम्र बंदरों की भाषा का ज्ञान-संपादन करने में खर्च कर डाली। जिस समय आप आफ्रिका के जंगलों में बंदरों की बोली सीखने का प्रयत्न कर रहे थे, उस समय कुमारी सिमोल्टन नामक एक अमेरिकन महिला ने वहीं जाकर आपसे भेंट की। उस समय अध्यापक महाशय को अपने उद्योग में बहुत कुछ सफलता हो गई थी। वह मज़े में बंदरों के साथ बातचीत कर सकते थे। पीछे से तो आप बंदरों की बोली बोलने और समझने में पूर्ण पंडित हो गए; और एक बहुत बड़ी पुस्तक भी लिख डाली।

गार्नर साहब का पूरा नाम है डॉक्टर रिचर्ट एल्० गार्नर। जब से आपको बंदरों की भाषा सीखने की इच्छा हुई, तब से आप अपना सब काम छोड़कर उसी के पीछे पड़ गए। इसीलिये आफ्रिका के जंगलों में वर्षों घूमते रहे, मनुष्यों का संपर्क छोड़कर आप बंदरों के साथी बने। गोरीला और चिंपैंजी नाम के बंदर बड़े भयानक होते हैं। उनके साथ रहना अपने प्राणों को संकट में डालना है। फिर भी आप अपने काम में लगे ही रहे। उद्योग और अध्यवसाय से क्या नहीं होता। अंत में आपका मनोरथ पूर्ण हुआ, और आप बंदरों की भाषा सीख गए। अपने काम में सफलता प्राप्त कर लेने के बाद आप परलोकांतरित हुए। जब से आपको बंदरों की भाषा सीखने की इच्छा हुई, तब से आप उनकी आवाज़ पर ध्यान देने लगे। वे लोग आपस में जैसी आवाज़ करते थे, उसका ठीक-ठीक उच्चारण आप लिख लेते थे। फिर आप दूसरे बंदरों के पास जाकर उन्हीं शब्दों का उच्चारण किया करते थे। उसे सुनकर बंदर जो कुछ करते थे, उसे भी आप लिख लेते थे। इस तरह करते-करते आपने यह निश्चय किया कि बंदरों की भी भाषा है, और वे एक दूसरे की बातें समझ भी सकते हैं।

इसके बाद आपने दो बंदरों को अलग-अलग कमरों में बंद कर दिया। फिर आपने एक बंदर की आवाज़ को ग्रामोफ़ोन के रिकार्ड में भर लिया। तब आप दूसरे बंदर के कमरे में गए। वहाँ आपने ग्रामोफ़ोन पर उसी रिकार्ड को लगा दिया। उसे सुनकर वह बंदर अस्थिर हो उठा, और चारो तरफ़ अपने साथी को खोजने लगा। फिर इस बंदर की आवाज भरकर आए पहले बंदर के पास ले गए। उसे सुनकर वह और भी अधिक बोलने लगा। चोंगे में हाथ डालकर अपने साथी को ढूढ़ने भी लगा।

जब कोई बंदर किसी दूसरे बंदर को युद्ध के लिये ललकारता है, तब वह एक विशेष प्रकार की आवाज़ करता है। गार्नर साहब ने उसको भी भरकर एक दूसरे बंदर को सुनाया। ललकार सुनते ही वह बंदर क्रुद्ध हो उठा, और वह भी वैसा ही शब्द करने तथा अपने प्रतिद्वंद्वी को ढूँढ़ने लगा। इस प्रकार एक शब्द से सब बंदरों को एक ही प्रकार का काम करते देखकर गार्नर साहब ने उस शब्द का अर्थ ढूँढ़ निकाला। इसी उपाय से उन्होंने बंदरों की भाषा के वाक्य और उसके अर्थ निश्चित किए।

डॉक्टर गार्नर ने जिस तरह बंदरों की भाषा सीखी, उसी तरह उन्होंने बंदरों को मनुष्यों की भाषा सिखलाने का भी प्रयत्न किया। उनका एक पाला हुआ बंदर था। उसका नाम था मोज़ेज़। उसने अँगरेज़ी का 'मामा', जर्मन का 'बी' और फ्रेंच का 'फ़्य' उच्चारण करना सीख लिया था। फ्रेंच-भाषा में 'फ़्य' आग को कहते हैं। गार्नर साहब उस बंदर को आग दिखा-दिखाकर बार-बार 'फ़्य' कहा करते थे। इसका फल यह हुआ कि मोजेज़ जब कभी आग देखता, तब 'फ़्य' कहकर चिल्ला उठता।

बंदरों की भाषा सीख लेने पर गार्नर साहब उनसे बराबर बातें किया करते थे। एक बार आप जंतुशाला में चिंपैंज़ी नाम के बंदरों के कठघरे में गए। सब बंदर सो रहे थे। आपने जाकर उनकी भाषा में कहा---ऊ: ऊः। सब एकदम जाग पड़े, और आकर गार्नर साहब को उत्तर देने लगे। एक दूसरी जाति के प्राणी से अपनी जाति की भाषा सुनकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। ऐसी घटनाएँ कई बार हुई हैं।

सितंबर, १९२०