अद्भुत आलाप/१५—ग्रहों पर जीवनधारियों के होने का अनुमान

अद्भुत आलाप
महावीर प्रसाद द्विवेदी

लखनऊ: गंगा ग्रंथागार, पृष्ठ १२३ से – १२६ तक

 
१५--ग्रहों पर जीवधारियों के होने का अनुमान

हम सब लोग पृथ्वी पर रहते हैं। पृथ्वीको गणना ग्रहों में है। पृथ्वी पर जब अनेक प्रकार के प्राणी रहते हैं, और वनस्पति उगते हैं, तब और-और ग्रहों पर भी उनका होना संभव है। दूरबीन और स्पेकटास्कोप-नामक यंत्रों के सहारे विद्वानों ने इस बात का अनुमान किया है कि मंगल और शुक्र आदि ग्रहों पर भी प्राणी रह सकते हैं। दूरबीन एक ऐसा यंत्र है, जिसके द्वारा दूर दूर के पदार्थ दिखलाई देते हैं। फ्रांस की राजधानी पेरिस में, कुछ दिन हुए, एक बहुत बड़ी दूरबीन बनी है। उससे देखने से चंद्रमा केवल २० मील की दूरी पर आ गया-सा दिखाई देता है। दूरबीन के नाम ही से यह सूचित होता है कि उससे दूर की वस्तु दिखाई पड़ती है; परंतु स्पेकटास्कोप का उपयोग उसके नाम से नहीं सूचित होता। इस यंत्र के द्वारा आकाश से आए हुए प्रकाश की किरणों की परीक्षा करके इस बात का पता लगाया जाता है कि जिन ग्रहों से प्रकाश की किरणें आई हैं, वे किन-किन पदार्थों से बने हुए हैं। ग्रहों को दूरबीन से देखकर और स्पेकटास्कोप से उनकी परीक्षा करके विद्वानों ने यह अनुमान किया है कि ग्रहों पर बस्ती का होना संभव है।

प्राणियों के जीवन के लिये जल, वायु और उष्णता की अपेक्षा होती है। उनके बिना कोई प्राणी जीता नहीं रह सकता।
मिट्टी, लोहा, कोयला और चूना इत्यादि पदार्थों का होना भी आवश्यक है, क्योंकि जितने प्राणी हैं, उनके शरीर में प्रायः ये ही पदार्थ पाए जाते हैं, स्पेकट्रास्कोप से यह जाना गया है कि ग्रहों में ये सब पदार्थ हैं, इसलिये उनमें जीवधारी रह सकते हैं। ग्रहों में जल, वायु और उष्णता का होना भी विद्वानों ने सिद्ध किया है। इस बात को कुछ अधिक विस्तार से हम लिखते हैं। जितने ग्रह हैं, सबमें दो प्रकार की उष्णता रहती है। एक तो स्वयं उनकी उष्णता और दूसरी वह जो उन्हें सूर्य से मिलती है। पहले जैसे पृथ्वी जलते हुए लोहे के गोले के समान उष्ण थी, वैसे ही और-और ग्रह भी थे। पृथ्वी का ऊपरी भाग धीरे-धीरे शीतल हो जाने से प्राणियों के रहने योग्य हो गया है; परंतु बृहस्पति, शनैश्चर, यूरेनस और नेपच्यून अभी तक अत्यंत उष्ण बने हुए हैं। इसलिये उन पर जीवधारियों का होना कम संभव जान पड़ता है। शेष ग्रहों में से शुक्र, मंगल और बुध का ऊपरी भाग शीतल हो गया है। उनकी दशा वैसी ही है, जैसी पृथ्वी की है। इसलिये उन पर जीवधारी और वनस्पति रह सकते हैं। सूर्य से जो उष्णता इन तीन ग्रहों को मिलती है, उसका परिमाण न्यारा-न्यारा है। पृथ्वी की अपेक्षा मंगल को आधी उष्णता मिलती है; परंतु शुक्र को उसकी दूनी और बुध को उसकी सातगुनी मिलती है। उष्णता के संबंध में एक बात और विचार करने योग्य है। वह यह कि जहाँ जितनी वायु अधिक होती है, वहाँ उतनी ही

कम उष्णता रहती है। मंगल में पृथ्वी की अपेक्षा वायु कम है; उसमें सूर्य की उष्णता भी कम है; इसलिये उसमें अधिक वायु की आवश्यकता नहीं। शुक्र में भी वायु होने का पता लगा है। परंतु उसका परिमाण नहीं जाना गया। सूर्य के बहुत निकट होने के कारण बुध दूरबीन से अच्छी तरह देखा नहीं जा सकता। इसलिये यह नहीं जाना गया कि उसमें वायु है, अथवा नहीं। तथापि ज्योतिष-विद्या के जाननेवालों ने कई कारणों से यह अनुमान किया है कि उसमें भी वायु अवश्य होगी।

उष्णता और वायु के सिवा प्राणियों के लिये जल की भी आवश्यकता होती है। दूरबीन से देखने से यह जाना जाता है कि शुक्र और मंगल में पानी है, क्योंकि इन ग्रहों में बर्फ़ के पहाड़-के-पहाड़ गलते हुए देखे गए हैं। जहाँ बर्फ़ है, वहाँ पानी होना ही चाहिए। इसका पता ठीक-ठीक नहीं लगा कि बुध में पानी है अथवा नहीं; परंतु जब उसमें वायु का होना अनुमान किया गया है, तब पानी होने का भी अनुमान हो सकता है।

इन बातों से सूचित होता है कि यदि बुध जीवधारियों के रहने योग्य नहीं, तो शुक्र और मंगल आवश्य हैं। अब इस बात का निश्चय करना कठिन है कि इन दो ग्रहों में किस प्रकार के प्राणी और किस प्रकार के वनस्पति होंगे। जैसा देश होता है, उसमें वैसे ही मनुष्य, पशु, पक्षी और वनस्पति होते हैं। जिन देशों में सर्दी अधिक पड़ती है, उनमें वैसे ही जीव उत्पन्न

होते हैं, जो सर्दी सहन कर सकें। जो देश उष्ण हैं, उनमें ईश्वर उनके जल-वायु के अनुकूल प्राणी उत्पन्न करता है। इसलिये मंगल और शुक्र पर जो जीव और जो वनस्पति होंगे, वे उनके जल-वायु के अनुकूल होंगे। इस विषय में एक बात ध्यान में रखने योग्य यह है कि प्राणियों की छुटाई-बड़ाई ग्रहों की छुटाई-बड़ाई के अनुसार होनी चाहिए। जो ग्रह जितना बड़ा होगा, उसमें उतनी ही अधिक आकर्षण-शक्ति होगी। आकर्षण-शक्ति उसे कहते हैं, जिसके द्वारा जड़ पदार्थ ग्रहों की ओर खिंच जाते हैं। पृथ्वी पर जो पदार्थ गिरते हुए दिखाई देते हैं, व पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति से खिंच आते हैं। इसी खिंच आने को गिरना कहते हैं। इस नियम के कारण बड़े ग्रहों में छोटे जीव नहीं रह सकते, क्योंकि उनमें शक्ति कम होने के कारण वे चल-फिर न सकेंगे, ग्रहों की आकर्षण-शक्ति से खिंचे हुए जहाँ-के-तहाँ ही पड़े रहेंगे। इसीलिये विद्वानों ने यह निश्चय किया है कि बड़े ग्रहों में बड़े और छोटे ग्रहों में छोटे जीवों की बस्ती होगी।

ग्रहों की बस्ती के विषय में अभी इतनी ही बातें जानी गई हैं। आशा है, विद्या और विज्ञान के बल से विद्वान् लोग किसी दिन मंगल और शुक्र आदि के निवासियों के रूप, रंग और आकार इत्यादि का भी पता लगा लेंगे।

जनवरी, १६०३