अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ ४९ से – ५० तक

 

आर्य--आर्य सस्कृत शब्द है और वेदो मे इसका उल्लेख कई स्थलों पर मिलता है। भारतवर्ष के वैदिक साहित्य के अध्धयन से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि आर्य शब्द आर्यवर्त्त के लोगो के लिये प्रयुक्त किया जाता था। वर्त्तमान समय में हिमालय से विन्ध्याचल तक तथा भारत की पश्चिमी सीमा से ब्रह्म्पुत्र नदी तक का प्रदेश आर्यवर्त्त के नाम से प्राचीन काल में प्रसिद्ध था। कुछ लोगो के मत से सृष्टि के आदि मे तिब्बत में सबसे प्रथम मानव सृष्टि हुई और वहाॅ से मानव भारत के उत्तरी भाग मे आकर बस गये। यही आर्य कहलाये।

कुछ यूरोपीय विद्वानो का यह मत है कि 'आर्य' वास्त्व मे भाषा विज्ञान का शब्द है, उसका जाति, रक्त या वंश से कोई सबंध नही है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि 'आर्य-जाति' एक कल्पना है--इसमे ऐतिहासिक सत्य नही है।

दूसरी ओर कुछ भारतीय विद्वानो और इतिहास-वेत्ताओ ने यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि आर्य एक प्राचीन जाति है और इसका जन्म-स्थान मध्य एशिया या तिब्ब्त है। लोकमान्य तिलक के अनुसार 'आर्य' जाति का आदिस्थान उत्तरी ध्रुव है।

वर्त्तमान समय मे जर्मनी के सर्वेसर्वा हर हिटलर ने, संसार के सामने जर्मन जाति की विशुद्धता का प्रमाण देने का प्रयत्न करते हुए, यह स्पष्ट

शब्दो मे कहा है कि जर्मन विशुद्ध आर्य जाति है। आर्य जाति ने ही सबसे प्रथम संसार मे सभ्यता को जन्म दिया और संस्कृति की रक्षा भी उसी ने की। यदि हिटलर का तात्पर्य आर्यवर्त्त के आर्यो से होता, तो इस कथन में सार भी होता, क्योंकि संसार में सबसे प्राचीन धर्म वैदिक धर्म है। वेद अपौरुषेय हैं और यूरोपीय विद्वान् भी यह मानते हैं कि वेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। इससे यह स्पष्ट है कि वेदो के माननेवाले आर्य भी प्राचीन हैं। परन्तु हिटलर ऐसा नही मानता। वह केवल जर्मन को ही श्रष्ठ आर्य जाति मानता है। यह वास्तव मे भारी भ्रम है। आज वस्तुत: यूरोप में कोई भी जाति आर्य कहलाने का दावा करे तो यह एक प्रकार की विडम्बना ही होगी। भारत में भी नस्लो और जातियो का इतना मिश्रण हो गया है कि आज यह नहीं कहा जा सकता कि सभी हिन्दू कहलानेवाले प्राचीन आर्य जाति के अंग हैं।