अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/आयरिश स्वतंत्र राष्ट्र

अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ ४६ से – ४९ तक

 

आयरिश स्वतंत्र राष्ट्र--यह इँगलैण्ड के पश्चिम मे एक द्वीप है। पहले यह महान् ब्रिटेन का अंग और उसके आधिपत्य में था। इसका क्षेत्रफल ३१,८०० वर्गमील तथा आबादी ४३,००,००० है। जब सन् ११५२ में अँगरेजो की सत्ती आयरलैण्ड में स्थापित हो गई, तब से आयरिश जनता तथा अँगरेजो में संघर्ष होने लगा। आयरिश अँगरेज़ी आधिपत्य के शुरू से विरोधी रहे। इसके दो कारण थे, एक जातीयता तथा दूसरा धार्मिक मतभेद।

आयरिश रोमन कैथलिक तथा अँगरेज प्रोटेस्टेट थे। क्रॉमवेल की अधीनता में इन दोनो में घोर संघर्ष हुआ और उत्तरी आयरलैण्ड से, जो अब अल्स्टर कहलाता है, आयरिश जनता को निकाल दिया गया और इस प्रदेश मे अँगरेज प्रोटेस्टेट तथा स्कॉच लोग बसा दिये गये। सन् १८०० तक आयरलैण्ड में अधीनस्थ पार्लमेण्ट काम करती रही। इसी वर्ष आयरलैण्ड को सयुक्त-राज्य ग्रेट ब्रिटेन (United Kingdom of Great Britain) में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार आयरलैण्ड का अँगरेजी-करण तो हुआ परन्तु आयरिश जनता में राष्ट्रीय भावना का पुनर्जागरण होगया। अँगरेज़ ज़मीदारो तथा सम्पत्तिशालियो ने आयरिश जनता को न केवल सामाजिक दमन ही किया प्रत्युत् उसका आर्थिक शोषण भी। वह ख़ुद भूमि के स्वामी बन गये और आयरिश केवल काश्तकार ही रह गये। १९वी सदी मे आयरिश जनसंख्या कम हो गई। आयरलैण्ड की आधी पैदावार इँगलैण्ड के ज़मीदारो

को जाती थी। सन् १८८६ तथा १८९३ में प्रथम आयरिश होमरूल मसविदे (Bills) ब्रिटिश पार्लमेट में प्रस्तुत किये गये। यद्यपि वे स्वीकृत तो नहीं हुए, तथापि तत्कालीन प्रधान मंत्री ग्लेड्स्टन ने आयरिश-समस्या को सुलझाने का प्रयत्न किया और उसमे उसे सफलता भी मिली। सरकार ने आयरलैण्ड के अँगरेज़ ज़मीदारो से ज़मीने ख़रीदकर आयरिश प्रजा को देदी। सन् १९१२ मे होमरूल का नया मसविदा प्रस्तुत किया गया। अल्स्टर में इसका प्रबल विरोध हुआ। अल्स्टर में स्वयसेवको की भर्ती की गई और दक्षिणी आयरलैण्ड में होमरूल के लिए आयरिश स्वयसेवक भर्ती किये गये। इन दोनो में संघर्ष शुरू हो जाने की पूर्ण संभावना थी। लार्ड-सभा में दो बार होमरूल बिल अस्वीकार कर दिया गया। सन् १९१४ मे विश्व-युद्व आरम्भ हो गया। इस बीच मे मसविदा (Bill) तो स्वीकार होगया, परन्तु उस पर अमल करना स्थगित कर दिया गया। उत्तरी तथा दक्षिणी आयरिश सैनिको ने ब्रिटेन की ओर से युद्ध मे भाग लिया। परन्तु क्रान्तिकारी राष्ट्रीय आयरिश दल (जो शिन-फीन (Sinn Fein) दल के नाम से प्रसिद्ध है) युद्ध से अलग रहा। ‘सिन-फीन' का अर्थ है "स्वयं अपने लिए"। सन् १९१६ मे आयरिश-विद्रोह हो गया। आयरिश स्वतंत्र प्रजातंत्र की घोषणा कर दी गई; किन्तु आयरिश नेता पकड़ लिये गये और उनका वध कर दिया गया। इस विद्रोह में आयरिश जनता को जर्मनी का सहयोग भी प्राप्त था। जर्मनी से सर रौजर केसमेट यू-बोट में बैठकर आयरलैण्ड मे विद्रोहियों को सहायता देने के लिये आये।

जब युद्ध समाप्त हो गया तब पुनः एक होमरूल बिल पेश किया गया और स्वीकार कर लिया गया। उसके अनुसार उत्तरी तथा दक्षिणी आयरलैण्ड में दो पार्लमेट बनाने का निश्चय किया गया। क्रान्तिकारी राष्ट्रवादी आयरिश जनता ने गृह-युद्ध आरम्भ कर दिया। उसने आयरलैण्ड में घोर आतंक फैला दिया। ब्रिटेन ने क्रान्तिकारी आयरिश राष्ट्रवादियो के दमन के लिये एक विशेष पुलिस भेजी जो ब्लैक-एन्ड-टैन्स के नाम से मशहूर है। इस प्रकार शिन-फील दल और ब्लैक-एन्ड-टैन्स में बड़ा भयंकर युद्ध होता रहा। राष्ट्रवादियों ने फौजो पर भी आक्रमण किया। ब्रिटिश पार्लमेट के

कुल १०५ आयरिश सदस्यो मे से ७३ शिन-फीन सदस्य डबलिन में एकत्रित हुए और आयरिश राष्ट्रीय परिषद् (Dail Eireann) का अधिवेशन किया। इस प्रकार अन्त मे, सन् १९२१ मे, ब्रिटिश-सरकार और आयरिश राष्ट्रीय परिषद् के बीच सन्धि हो गई। सन् १९२२ मे आयरिश स्वतंत्र-राज्य-क़ानून ब्रिटिश पार्लमेट ने स्वीकार किया। इसके अनुसार दक्षिणी आयरलैण्ड में स्वतंत्र राज्य (Irish Free State) स्थापित हो गया। उत्तरी आयरलैण्ड (अल्स्टर) ब्रिटेन के अधिकार में रह गया। उसे मर्यादित स्वराज्य दे दिया गया।

क्रान्तिकारी आयरिश प्रजातत्रवादियों के नेता डी वेलरा ने सन्धि को ठुकरा दिया और आयरिश स्वतंत्र राज्य की सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया। फिर गृह-युद्ध आरम्भ हो गया और सन् १९२३ तक चलता रहा। अन्त में सरकार की विजय हुई।

सन् १९३२ मे आयरिश स्वतंत्र राज्य की पार्लमेट मे फियन्ना-फेल दल का बहुमत हो गया और इस दल का नेता डी वेलरा प्रधान-मंत्री नियुक्त किया गया। शासन-विधान (१९२२) में कई बड़े परिवर्तन किये गये। राजभक्ति की शपथ लेना बन्द कर दिया गया। गवर्नर-जनरल के अधिकार कम कर दिये गये। सन् १९३७ में नया शासन-विधान तैयार किया गया। यह विधान पूर्ण स्वाधीनता के आधार पर बनाया गया। १ जुलाई १९३७ को ५४ प्रतिशत के बहुमत से यह विधान स्वतंत्र राज्य की जनता ने स्वीकार किया। २९ दिसम्बर सन् १९३७ से इसके अनुसार शासन होने लगा।

विधान में आयरलैण्ड को पूर्ण स्वाधीन, प्रभुत्व-युक्त-प्रजातत्र, कैथलिक राज्य घोषित किया गया है। आयरलैण्ड की राष्ट्रीय पताका हरे, सफेद और नारंगी रंग की निर्धारित की गई है। यूनियन जैक (ब्रिटिश पताका) का बहिष्कार किया गया है तथा क्राउन (सम्राट्-सत्ता) का उल्लेख भी नहीं किया गया है। अब गवर्नर जनरल का पद नहीं है। राष्ट्रपति का चुनाव होता है और वही राज्य का प्रमुख शासक है।

राष्ट्रपति ७ साल के लिए चुना जाता है। वह पार्लमेट के अधिवेशन

आमंत्रित करता है तथा उसे भग करता है। वह कानूनों पर स्वीकृति देता

तथा उन्हे जारी करता है। वह सेना

का प्रधान सचालक है तथा क्षमादान का भी उसे अधिकार है। आजकल प्रोफेसर डगलस हाइड आयरलैण्ड के राष्ट्रपति है।आयरलैंड मे दो धारा सभाये हैं। प्रधान मन्त्री राष्ट्रपति द्वारा पार्लमेट से मनोनीत हो जाने पर नियुक्त किया जाता है। ग्रेट ब्रिटेन ने न तो आयरलैण्ड के नये शासन-विधान को स्वीकार किया है और न अस्वीकार ही।