साहित्य सीकर/१९—खुदाबख्श-लाइब्रेरी

प्रयाग: तरुण भारत ग्रंथावली, पृष्ठ १३५ से – १३८ तक

 
१९—खुदाबख्श लाइब्रेरी

बाँकीपुर में एक नामी पुस्तकालय है। उसका नाम है खुदाबख्श-लाइब्रेरी। १९०३ ईसवी तक उसे बहुत कम लोग जानते थे। परन्तु पूर्वोक्त वर्ष लार्ड कर्ज़न ने उसका मुलाहजा किया तब से गवर्नमेंट के अनेक बड़े-बड़े अफसर उसे देखने के लिए आने लगे। फ़ल यह हुआ कि इस पुस्तकालय की प्रसिद्धि हो गई। बात यह है कि हम लोग अपनी आँखों देखना नहीं जानते। जब और कोई हमें कोई चीज़ दिखा देता है और उसके गुण बता देता है तब हम लोगों ने इस पुस्तकालय को पहचाना। अब तो इसका नाम देश देशान्तरों तक में हो गया है। इस पुस्तकालय में कुछ पुस्तकें—हस्त-लिखित—ऐसी भी हैं जो अन्यत्र कहीं नहीं। लन्दन, बर्लिन, पेरिस, न्यूयार्क और सेन्ट पिटर्सवर्ग में भी उनकी कापियाँ नहीं।

गत एप्रिल में बाँकीपुर से "एक्सप्रेस" नामक अँगरेज़ी भाषा के समाचार पत्र ने अपना एक विशेष अङ्क निकाला। उसमें इस पुस्तकालय पर एक सचित्र लेख है। उसी से लेकर, कुछ बातें इसकी पुस्तकों के सम्बन्ध की, नीचे लिखी जाती हैं।

इनमें जो पुस्तकें हैं वे खुदाबख्श नामक एक पुस्तक प्रेमी विद्वान् की एकत्र की हुई हैं। उनको पुस्तकें एकत्र करने का व्यसन सा था। मरते दम तक उन्होंने दूर-दूर से पुस्तक मँगाकर और हज़ारों रुपया खर्च करके उन्हें इसमें रक्खा। पुस्तकालय के लिये उन्होंने एक अच्छी इमारत भी बनवा दी। उसमें विशेष करके अरबी फारसी ही की पुस्तकें अधिक हैं। ये पुस्तकें बड़े ही महत्व की हैं; कोई कोई तो अनमोल और दुष्प्राप्य भी कही जा सकती हैं। उनमें से कितनी ही ऐसी हैं जो देद्दली के बादशाहों की लिखाई हुई हैं। अरब, फारिस और तुर्किस्तान तक के नामी नामी लेखकों की वे लिखी हुई हैं। लाखों रुपये उनके लिखने में खर्च हुए हैं।

पुस्तकें अनेक विषयों की है। इतिहास, दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, साहित्य, वेदान्त, आयुर्वेद आदि कोई विषय ऐसा नहीं जिस पर अनेक अनेक पुस्तकें न हों। पर हैं वे सब मुसलमानों ही की रची और लिखी हुई। जिनका सम्बन्ध धर्म से है वे सब की सब प्रायः मुसलमानी ही धर्म की हैं। डाक्टर डेनिसन रास ने इस पुस्तकालय की पुस्तकों की एक बहुत बड़ी सूची प्रकाशित की है। उससे इस पुस्तकालय के अनमोल रत्नों का ज्ञान सर्व साधारण को होने में बहुत सुभीता हो गया है। इस पुस्तकालय में हज़ारों अलभ्य ग्रन्थ-रत्न ही नहीं, किन्तु कितने ही पुराने ग्रन्थकारों के हाथ से लिखी हुई, उनके ग्रन्थों की असल कापियाँ, भी हैं। उनमें उन्हीं के हाथ से किये गये संशोधन, परिशोधन, टिप्पणियाँ और काट-छाँट, जैसे के तैसे, देखने को मिलते हैं। अरब में जब से विद्या-दीपक की ज्योति जली तब से जितने उत्तमोत्तम ग्रन्थ प्रकाशित हुये उनमें से अधिकांश की कापियाँ इस पुस्तकागार में संगृहीत हैं। इस पुस्तकागार को देख लिया मानो मुसलमानों के विद्या-विकाश का मूर्त्तिमान रूप देख लिया।

इसमें शाहनामा की एक कापी है। उसे काबुल और काश्मीर के गवर्नर, अली मरदान खाँ, ने शाहजहाँ बादशाह को नजर किया था। उसकी लिपि बड़ी ही सुन्दर है। हाशिये पर सुनहरा काम है। ९४२ हिज़री की लिखी हुई है। ६१२ पृष्ठ पर अली मरदन ही के हाथ का एक जेल है, जिसमें लिखा है कि यह पुस्तक मैंने बादशाह को भेंट में दी। एक कापी शाहिन्शाहनामे की है। उसमें रूम के सुलतान मुहम्मद तीसरे का चरित, पद्य में है। इस पुस्तक की दूसरी कापी आज तक और कहीं नहीं मिली। यह कापी शायद खुद सुल्तान के लिए कुस्तुनतुनिया ही में लिखी गई थी। किसी प्रकार यह देहली पहुँची और शाही पुस्तकालय में रखी गई। इस पर तैमूरी घराने के कितने ही बादशाहों और अमीरों की मुहरें और दस्तखत हैं। शाहेजहाँ की बड़ी लड़की, जहानआरा बेगम, की भी मुहर इस पुस्तक पर है। यह लड़की विदुषी थी। इसकी मुहर बहुत कम देखने में आई है। हाफिज के दीवान की कई कापियाँ, इस पुस्तक में, हैं। उनमें एक कापी बड़े महत्व की है। उस पर हुमायूँ और जहाँगीर के हाथ से लिखे गये कितने ही टिप्पण, हाशिये पर हैं। तुलसीदास की रामायण की तरह दीवानेहाफिज से भी शकुन या प्रश्न पूछे जाते हैं। यथाविधि पुस्तक खोलकर उस शेर का मतलब देखा जाता है जो खोलने पर निकलता है! उसी के अनुसार प्रश्न करने वाला अपने प्रश्न का फलाफल का उल्लेख; पूर्वोक्त दोनों बादशाहों ने इस कापी के हाशिये पर अपने हाथ से किया है।

कुरान की तो न मालूम कितनी कापियाँ इस पुस्तकालय में हैं। वे इतनी सुन्दर हैं और उनकी लिपि इतनी मनोहर है कि देखकर चित्त प्रसन्न हो जाता है।

खान-खाना अब्दुर्रहीम ने यूसुफ जूलेखा की एक कापी लिखाई थी। उसके लिखाने में उसने एक हज़ार मुहरें खर्च की थीं। यह कापी उसने जहाँगीर बादशाह की नज़र की थी। यही कापी बाँकीपुर के इस पुस्तकागार की शोभा बढ़ा रही। यह ९३० हिजरी की लिखी हुई है। हुमायूँ के भाई मिर्जा कामरान के दीवान की भी एक कापी दर्शनीय है। यह एक नामी लेखक की लिखी हुई है। जहाँगीर और शाहेजहाँ के दस्तखतों के सिवा और भी कितने ही बड़े-बड़े अमीरों के दस्तखत इस कापी पर हैं।

इस पुस्तकालय में कुछ पुस्तकें बहुत पुरानी हैं। ६०० हिजरी तक की पुस्तकें इसमें हैं। जहरवी नामक एक अरब-निवासी हकीम की पुस्तक, ५८४ हिज़री की लिखी हुई, यहाँ है। यह शल्य-चिकित्सा अर्थात् सर्जरी (Surgery) पर है। इस पुस्तक में चीर-फाड़ के शस्त्रों के चित्र भी हैं, जिनमें से कितने ही शस्त्र आजकल के डाक्टरी शस्त्रों से मिलते-जुलते हैं। कुछ पुरानी पुस्तकें ऐसी भी हैं जिनमें औषधियों और पशुओं के रंगीन चित्र भी हैं।

मुहम्मद साहब के जीवन-चरित और कुरान शरीफ़ के इतिहास से संबन्ध रखनेवाली भी कितनी ही पुस्तकें इस संग्रहालय में हैं। इतिहास और नामी-नामी पुरुषों के जीवनचरित तो न मालूम कितने होंगे।

जहाँ तक हम जानते हैं, भारत में, एक भी विद्याव्यसनी हिन्दू ने हिन्दुओं की बनाई हुई प्राचीन पुस्तकों का इतना बड़ा संग्रह अकेले ही नहीं किया। संग्रह करके सर्वसाधारण के लाभ के लिए उन्हें पुस्तकालय में रखना तो दूर की बात है।

[अगस्त, १९१४