साहित्य सीकर/१४—संपादकीय योग्यता

प्रयाग: तरुण भारत ग्रंथावली, पृष्ठ १०६ से – १०९ तक

 
१४—सम्पादकीय योग्यता

ग्रेड मैगजीन नाम की एक मासिक पत्रिका अँगरेजी में निकलतीं है? उसमें एक लेख निकला है। उस लेख में वर्तमान समय के विद्वानों और मुख्य मुख्य समाचार-पत्रों के सम्पादकों की इस विषय में सम्मतियाँ प्रकाशित हुई हैं कि समाचार-पत्रों को कामयाबी के लिये सम्पादक में कौन कौन गुण होने चाहिएँ। विषय बड़े महत्व का है। इससे कुछ सम्मतियों का संक्षिप्त भावार्थ हम यहाँ पर प्रकाशित करते हैं। आशा है, हिन्दी के समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के सम्पादकों के लिये ये सम्मतियाँ उपदेशजनक नहीं, तो मनोरञ्जक जरूर होंगी—

सर ड्यू गिलजीन रीड कहते—"सम्पादक का पद पाना सौभाग्य की बात है। सम्पादकों के कर्तव्य एक नहीं, अनेक हैं। उन्हें पूरी-पूरी स्वाधीनता रहती है। जिम्मेदारी भी उन पर कम नहीं रहती। जिसने एक दफे यह काम किया उसे उसमें कुछ ऐसा आनन्द मिलता है कि उसका उत्साह बढ़ता ही जाता है। इस काम के लिये लड़कपन ही से सम्पादकीय शिक्षा की जरूरत होती है। इसके लिये धैर्य्य दरकार है। जल्दीं करने से कामयाबी नहीं होती।"

"मुख्य बात तो यह है कि सम्पादक बनाने से नहीं बनता, उसके लिये जिन गुणों की अपेक्षा होती है वे जन्म ही से पेदा होंते हैं। साहित्य का उत्तम ज्ञान, दूरदर्शिता और व्यापक दृष्टि आदि बातें तजुर्बे और अध्ययन से प्राप्त हो सकती हैं, पर सम्पादकीय कार्य में कामयाबी की कुञ्जी मनुष्य माँ के पेट ही से लाता है"। रिब्यू आफ रिव्यूज के सम्पादक स्टीड साहब, कहते हैं—"सम्पादक का पहला गुण यह होना चाहिये कि प्रत्येक विषय का उसे अच्छा परिज्ञान हो, चाहे जो विषय हो उस पर लेख लिखने में उसे आनन्द मिले और जिस विषय की वह चर्चा करे जी-जान होम कर करे; किसी बात की कसर न रक्खे।"

'दूसरा गुण सम्पादक में यह होना चाहिये कि जिस विषय पर उसे कुछ लिखना हो उस विषय का उसे पूरा-पूरा ज्ञान हो¡ तत्सम्बन्धी अपने विचारों को खूब अच्छी तरह, निश्चयपूर्व, अपने मन में स्थिर कर ले। इसके बाद वह उन विचारों को इस प्रकार साफ़-साफ प्रकट करें कि महामूर्ख आदमी भी उसकी बातें सुन कर उसके दिली मतलब को समझ जाय। ऐसा न हो कि उसका मतलब कुछ हो पर पढ़नेवाले कुछ और ही समझे।"

"सम्पादक के लिये एक और बात की भी जरूरत है। वह यह कि उसे सोना अच्छी तरह चाहिये। यदि किसी कारण किसी रात को कम नींद आवे तो मौका पाते ही उस कमी को किसी और रात को पूरा कर लेना चाहिये।"

इसके कहने की मैं कोई जरूरत नहीं समझता कि सम्पादक के लिये अच्छे स्वास्थ्य, विशेष परिश्रम और उत्तम बुद्धिमता आदि की भी आवश्यकता है। ये गुण तो होने ही चाहिएँ। हाँ, एक बात की मैं सब से अधिक जरूरत समझता हूँ। सम्पादक की विचारशक्ति इतनी तीव्र होनी चाहिये कि सूक्ष्म से सूक्ष्म बात भी उसके ध्यान में आ जाय"।

व्यलफास्ट न्यूज लेटर के सम्पादक, सर जेम्स हेंडरसन, कहते हैं—'समालोचना करने की शक्ति, जिस विषय का विचार चला हो उसे ऐसी चित्ताकर्षक भाषा में लिखना, जिसे पढ़ते ही पढ़नेवाले का चित्त उस तरफ खिंच जाय और उसे पढ़े बिना उससे न रहा जाय, किसी वक्तृता अथवा किसी विशेष घटना पर विचार करते समय उसकी सब से अधिक महत्वपूर्ण बातों का ध्यान में आ जाना, उत्तम शिक्षा, और विद्या की प्रत्येक शाखा का जहाँ तक हो अधिक ज्ञान—इन्हीं गुणों की सम्पादक के लिये सब से अधिक आवश्यकता है; इसके बिना सम्पादक का काम अच्छी तरह नहीं चल सकता।"

व्यस्ट मिनिस्टर गैजट के सम्पादक, जे॰ ए॰ स्पेंडर, की राय है—"लिखने की अच्छी योग्यता, दृढ़प्रतिज्ञ, जिस समाचार-पत्र से उसका सम्बन्ध हो, अथवा जिसके लिये उसे लेख लिखने पड़ते हों, उसके सिद्धान्तों के अनुसार अपनी बुद्धि से काम लेने की शक्ति और व्यवसाय तथा व्यवहार-सम्बन्धी बातों का यथेष्ट ज्ञान। जीवन-सम्बन्धी और सामाजिक बातों में तजरिब का होना तथा साहस। नये सम्पादक के लिये इन्हीं गुणों की आवश्यकता होती है। इनके होने से वह अपने व्यवसाय में कामयाब हो सकता है"।

पालमाल गैजट के सम्पादक, सर डगलस स्ट्रेट, कहते हैं—"और मामूली बातों के सिवा, नये सम्पादक, को सख्त काम और नाउम्मेदी का सामना करने के लिए भी हमेशा तैयार रहना चाहिये। उसे अपने कर्तव्य का सबसे अधिक ख़याल होना चाहिये। जिस काम में वह हाथ डाले उसे जी जान से करना चाहिये"।

पीपुल के सम्पादक, गोजे हटन, अपनी सम्मति में सर एडविन आर्नल्ड से ये वाक्य उद्धृत करते हैं—

"सम्पादक के लिये सब प्रकार की विद्या, ज्ञान और तजरिबे की जरूरत होती है। कोई बात ऐसी नहीं जिसका उपयोग उसे न होता हो"। हटन साहब की निज की राय यह है कि सब प्रकार की शिक्षा—विशेष करके व्यापार विषयक—सम्पादक के बड़े काम आती है। इन की भी राय है कि सम्पादकीय गुण मनुष्य को जन्म ही से प्राप्त होते हैं; उपार्जन करने से नहीं मिलते।

एक विद्वान् का नाम है एम॰ एच॰ स्पीलमम। आप ललित कलाओं का अच्छा ज्ञान रखते हैं और उनकी समालोचना करने में सिद्धहस्त हैं। आपको सम्पादकीय बातों का भी उत्तम अनुभव है। आप सम्पादक के लिये इन बातों की आवश्यकता समझते हैं—"अच्छा स्वास्थ्य, अच्छा चाल-चलन, शिष्टाचार, सब से मेल-जोल, सब बातों में विश्वसनीयता, किसी बात पर कुछ लिखने की योग्यता और समझ-बूझकर उत्साह-पूर्वक अपना काम करने की शक्ति"।

स्कादस्मैन के भूतपूर्व सम्पादक, सी॰ ए॰ कूपर, की राय है—"सम्पादकीय काम करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति, इतिहास और प्रसिद्ध-प्रसिद्ध काव्य-ग्रन्थों का ज्ञान, प्रकृत विषय में बुद्धि को संलग्न करने की शक्ति, हर एक बात की आलोचना करने की योग्यता, यथार्थ कथन की आदत, तर्कशास्त्रनुमोदित विचार-परम्परा और परिश्रम"।

मैनचेस्टर गार्जियन के सम्पादक, सी॰ पी॰ स्काट कहते हैं कि सिर्फ एक ही बात ऐसी है जिसके बिना कोई आदमी सम्पादकीय काम नहीं कर सकता। यह बात है "दिमाग"। अर्थात् अच्छे ही दिमाग का आदमी सम्पादकीय काम को योग्यता से कर सकता है।

जितने मुँह उतनी बातें! फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जो एक दूसरे की राय से मिलती भी हैं। कुछ हो। इन बड़े-बड़े सम्पादकों की बातें हम लोगों के विचार करने लायक जरूर हैं। इसी से हमने इनके कथन का स्थूल भावार्थ प्रकाशित करना उचित समझा।

[जून, १९०७