साहित्य सीकर/१३—समाचार-पत्रों का विराट् रूप

प्रयाग: तरुण भारत ग्रंथावली, पृष्ठ १०१ से – १०५ तक

 

१३—समाचार-पत्रों का विराट रूप

१—हे विराट् स्वरूपिन् समाचारपत्र! आप सर्वान्तर्य्यामी साक्षात्ना रायण हैं। वृत्तपत्र, वर्त्तमानपत्र, समाचार-पत्र, गैजट, अखबार आदि आपके अनेक नाम और रूप हैं। अतः—"अनेकरूपरूपाय विष्णवे प्रभविष्णवे"—आपका प्रणाम।

२—पत्र-व्यवहार अथवा चिट्ठी-पत्री आपके पादस्थान में हैं। आप अपने विराट् पाद प्रहार से उसका मर्दन किया करते हैं; अथवा रद्दी कागजों की टोकरी में फेंका करते हैं। पत्र-व्यवहार करनेवालों, या चिट्ठी-पत्री लिखने वालों का उत्तर देना या न देना, आपके बाद ही की कृपा या अनकृपा पर अवलम्बित रहता है।

३—चुटकुले और हँसी-ठट्‌ठे की बातें आपके जंघास्थान में हैं। क्यों? इसे आप खुद समझ जाइए।

४—समाचार, नये नये समाचार, विचित्र समाचार और स्फुट समाचार आपके उदरस्थान में है। इन्हीं से आपका प्रकाण्ड, प्रलम्ब और प्रसूत पेट अकसर भरा रहता है। यदि और कुछ भी न हो तो भी आपका विराट् रूप इन्हीं के सहारे थँमा रहता है।

५—किसी तरह रुपया कमाने के लिये किताबें और दवाइयाँ बेचने, घड़ियाँ मरम्मत करने और ऐजन्सी इत्यादि खोलने की युक्तियाँ निकालते रहना आपके हृदय-स्थान में है।

६—छोटे बड़े, तरह-तरह के लीडर (टिप्पणियाँ) आपके पृष्ठ-स्थान में हैं। उन्हें आपकी पीठ की रीढ़ कहना चाहिये। जो वे न हों तो आपका विराट् रूप कुबड़ा हो जाय।

७—विज्ञापन की छपाई और अपने मूल्य आदि के नियम आपके बाहुस्थान में हैं, क्योंकि उनकी घोषणा आप से पहले ऊर्ध्वबाहु होकर करते हैं।

८—स्थानीय समाचार आपके कण्ठ-स्थान में हैं।

९—मुख्य लेख आपके मुख-स्थान में है।

१०—अपने प्रेस की पुस्तकों के विज्ञापन आपके नेत्र-स्थान में है, क्योंकि उनकी तरफ आपकी हमेशा निगाह रहती है।

११—अँगरेजी अखबारों से लेख, खबरें और तसवीरें नकल कर लेना आपके शीर्ष स्थान में है। इस काम को आप सिर के बल करते हैं।

१२—अग्रिम मूल्य आपके परमानन्द स्थान है।

१३—पश्चात् मूल्य आपके क्लेश स्थान में है।

१४—प्रेस (छापाखाना) आपके मन्दिर स्थान में है।

१५—छापने की कल या मैशीन आपके मातृ-स्थान में है।

१६—छापनेवाले, प्रेस मैन, मैशीनमैन आपके पितृ स्थान में हैं।

१७—टाइप आपके अस्थि-स्थान में है।

१८—स्याही आपके शोणित-स्थान में है।

१९—कागज आपका स्थूल और लेख, आपका सूक्ष्म शरीर है।

२०—अन्तरात्मा आपका धर्म्म, अथवा धर्म के नाम से जो कुछ आप समझते हैं, वह है। उसके खिलाफ किसी के कुछ कहने या उस पर दोषों का आरोप करने, से आपकी आत्मा तड़पने लगती है; जलते हुए अङ्गारों से भुन-सी जाती है। कुछ शान्त होने पर जो आप सन्निपात की जैसी कल्पना (Delirium) शुरू करते हैं तो बरसों आपका मुँह नहीं बन्द होता। धर्म्म मर आघात, व्याघात, प्रतिघात और प्रत्याघात का शोर मचाते हुये लेख लेख लेख—लेख पर लेख, आप लिखते ही चले जाते हैं।

२१—नीति (पालिसी) आपको घोर अन्धकार में पड़े रहना; पर दूसरों को उजेले में खींच लाने के लिये जी-जान से उतारू रहना; मजमून पर मजमून लिखते जाना; भारत के गारत होने, पुराने रीति-रवाज के डूबने और अँगरेजी शिक्षा के पेड़ में कड़वे फल लगने की आठ पहर चौंसठ घड़ी पुकार मचाना; और समुद्र-यात्रा का नाम सुनते ही जाल में फँसे हुये हिरन की तरह घबरा उठना है।

२२—विद्वत्व आपका यह है जिसे दत्त, तिलक और टीवी वगैरह के, आपकी समझ के खिलाफ, कुछ कर डालने पर, आप प्रकट करते हैं। फिर चाहे आप वेद का एक मंत्र भी सही-सही न पढ़ सकें अथवा दर्शनों, पुरानों, स्मृतियों और उपनिषदों की एक सतर का भी मतलब न समझ सकें, पर आप ऐसी-ऐसी तर्कना, बितर्कना और कुतर्कनायें करते हैं और ऐसी ऐसी आलोचनायें, पर्य्यालोचनायें और समालोचनायें लिखकर इन लोगों के धुर्रे उड़ाते हैं कि आपकी पंडित प्रभा संसार के सारे संस्कृत पंडितों की आँखों में चकाचौंध पैदा कर देती हैं।

२३—अन्नदाता! आपके लुधियाना, लाहौर, अलीगढ़, मुरादाबाद और झाँसी आदि के मित्र, गुप्त और प्रसुप्त इत्यादि, प्रकट, अप्रकट और प्रकटाप्रकट नामधारी विज्ञापनबाज हैं। इन कोकशास्त्री, रतिशास्त्री और कामशास्त्री जीवों के दर्शन अन्धी खोपड़ी के आदमियों को बहुत ही दुर्लभ हैं। कई वर्ष हम मुरादाबाद में रहे और झाँसी में भी हमने अनेक चक्कर लगाये; परन्तु इन पुण्यात्माओं का दर्शन हमें नसीब न हुआ।

२४—जीवनी शक्ति आपकी सैकड़ों तरह के ताम्बूल-बिहार के; हज़ारों तरह के उपदंशहारक, प्रमेहमारक, शुककारक दवाओं के; लाखों तरह के बीस, पच्चीसा, तीसा यन्त्र और उड्डीस, साबर वृहत्साबर, महावृहत्साबर ग्रन्थों के अजीब अजीव विज्ञापन हैं।

२५—बल आपका उपहार है। अगर आप उपहार को बाँट कर अपने बल को कायम रखने या बढ़ाने की चेष्टा पर चेष्टा न करते रहें तो शीघ्र ही आपको घुटने थामकर उठने, या खड़े रहने की जरूरत पड़े। इसलिये आपका उपहार का बहुत बड़ा ख्याल रहता है और उसकी तारीफ जिखने में आप सहस्त्रबाहु हो जाते हैं।

२६—खेल आपका टेबल, आलमारी, ताक, सन्दूक और चारपाई पर पड़े हुए सामयिक साहित्य, पुस्तक, ग्रंथ, किताब, अखबार वगैरह की समालोचना है। खेल क्या यह तो आपकी एक अद्भुत लीला है। कभी आप किसी किताब की छपाई की तारीफ करते हैं; कभी उसके कागज की; और कभी उसके लिखनेवाले की। भूल से कभी आप उसके गुण-दोष की भी एक आध बात कह डालते हैं। एक बात आप में अजीब है। वह यह कि अँगरेजी चाहे आप राम का नाम ही जानते हो, पर जरूरत पड़ने पर बैकन, बाइथन, कारलाइज, मिल्टन और शेक्सपियर के ग्रन्थों का भी मर्म आप खूब समझ लेते हैं और समझा भी देते हैं। वदों पर भी आप व्याख्यान दे डालते हैं; दर्शन शास्त्रों का सिद्धान्त भी आप समझ लेते हैं; इंगलैंड तथा हिन्दुस्तान के बड़े बड़े विद्वानों की पोजिटिकल वक्तृताओं को भी आप अपने आलोचना कुठार से काट कर छिन्न-भिन्न कर डालते हैं।

२७—देशोपकार आपका पुत्र, धर्म्मरक्षा आपकी कन्या; अच्छी-अच्छी पुस्तकों की प्राप्ति आपकी पत्नी; और ऐसी-वैसी पुस्तकें और ओपधियाँ आपकी दासियाँ हैं।

२८—सम्पादक आपके दोस्त और मुफ़्त पढ़ने वाले आपके जानी दुश्मन हैं।

२९—पताका आपकी हिन्दुस्तान की हित-चिन्ता, नक्कारा आपका अज्ञान की गहरी नींद में सोये हुओं को जगाना, पराक्रम आपका सनातन-धर्म्म की साफ सड़क से भटके हुओ को रास्ता बतलाना है।

३०—ऐसे आपके इस व्यापक विराट् रूप का हम त्रिकाल ध्यान करते हैं। आपकी तीन त्रिगुणात्म मूर्तियाँ हैं—प्रत्याहिक, साप्ताहिक और पाक्षिक। मासिक और त्रैमासिक आपके लीलावतार हैं। ऐसे लीलामय आपके विकट विराट रूप को छोड़ कर हम—"कस्मै देवाय हविषा विधेम?"

स्तावकास्तव चतुर्मुखादयो
भाधुकाश्च भगवन् भवादयः।
सेवकाः शतमखादयः सुरा
वृत्तपत्र! यदि, के तदा वयम्?

[नवम्बर, १९०४