साहित्य का उद्देश्य
प्रेमचंद

पृष्ठ १३५ से – १४० तक

 

समकालीन अंग्रेजी ड्रामा

 

बीसवीं सदी के अंग्रेजी ड्रामा के विषय में अगर यह कहा जाय कि वह मौजूदा साहित्य का सबसे प्रभावशाली अंग है, तो वेजा न होगा। एलिजाबीथन युग का ड्रामा अधिकतर अमीरों और रईसों के मनोरंजन के लिए ही लिखा जाता था। शेक्सपियर, बेन जानसन और कई अन्य गुमनाम नाटककार उस युग को अमर कर गये हैं। यद्यपि उनके ड्रामे में भी गौण रूप से समाज का चित्र खींचा गया है, और भाव, भाषा तथा विचार की दृष्टि से वे बहुत ही बड़ा महत्व रखते है। लेकिन यह निर्विवाद है कि उनका लक्ष्य समाज का परिष्कार नहीं, वरन् ऊँची सोसाइटी का दिल बहलाव था। उनके कथानक अधिकतर प्राचीन काल के महान पुरुषों का जीवन या प्राचीन इतिहास की घटनाओं अथवा रोम और यूनान की पौराणिक गाथाओं से लिये जाते थे। शेक्सपियर आदि के नाटकों में भिन्न भिन्न मनावृत्तियों के पात्रों का अत्यन्त सजीव चित्रण और बड़ा ही मार्मिक विश्लेषण अवश्य है। और उनके कितने ही चरित्र तो साहित्य में ही नहीं साधारण जीवन में भी अपना अमर प्रभाव डाल रहे हैं। लेकिन यथार्थ जीवन की आलोचना उनमें नहीं की गई है। उस समय ड्रामा का यह उद्देश्य नहीं समझा जाता था। तीन सदियों तक अंग्रेजी ड्रामा इसी लीक पर चलता रहा। बीच में शेरिडन ही एक ऐसा नाटककार पैदा हुआ, जिसके ड्रामे अधिकतर व्यंग्यात्मक हैं, अन्यथा साहित्य का यह विभाग कुछ आगे न बढ़ सका। यकायक उन्नीसवीं सदी की पिछली शताब्दी में रंग बदला और विज्ञान तथा व्यवसाय ने समाज में क्रान्ति पैदा कर दी उसका प्रतिबिम्ब एक मौलिक प्रकाश के साथ साहित्य में उदय हो गया और नवीन निर्णयात्मक विचारों से भरे हुए नाटककारों का एक नक्षत्र-समूह साहित्य के आकाश में चमक उठा जिसकी दीप्ति आज भी अंग्रेजी साहित्य को प्रकाशमान कर रही है। नए ड्रामा का ध्येय अब बिलकुल बदल गया है। वह केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं है, वह केवल घड़ी दो घड़ी हंसाना नहीं चाहता, वह समाज का परिष्कार करना चाहता है, उसकी रूढ़ियों के बन्धनों को ढीला करना चाहता है और उसके प्रमाद या भ्रान्ति को दूर करने का इच्छुक है। समाज की किसी न किसी समस्या पर निष्पक्ष रूप से प्रकाश डालना ही उसका मुख्य काम है और वह इस दुस्तर कार्य को इस खूबी से पूरा कर रहा है कि नाटक की मनोरंजकता में कोई बाधा न पड़े, फिर भी वह जीवन की सच्ची आलोचना पेश कर सके।

लेकिन विचित्र बात यह है कि नवीन ड्रामा के प्रवर्तकों में एक भी अंग्रेज नहीं है। इबसेन, माटरलिंक, और स्ट्रिडबर्ग, स्वेडेन, बेलजियम और जर्मनी के निवासी हैं, पर अंग्रेजी ड्रामा ने इन्हें इतना अपनाया है कि आज ये तीनों महान पुरुष अंग्रेजी साहित्य के उपास्य बने हुए हैं। इबसेन को तो नए ड्रामा का जन्मदाता ही कहना चाहिए। वह पहला व्यक्ति था जिसने ड्रामा को समाज की आलोचना का साधन बनाया। नए समाज में स्त्रियों का स्थान ऊँचा करने में उसने जो कीर्ति प्राप्त की है, वह अन्य किसी साहित्यकार को नहीं मिल सकी। और माटरलिंक अपने ड्रामों में उन सत्यों का पर्दा खोलने की चेष्टा करता है, जो वर्तमान जड़वाद की व्यापकता के कारण विस्मृत से हो गये हैं। उसके पात्र हाड़-मास के मनुष्य नहीं, मनोभावों या आध्यात्मिक अनुभूतियों ही के नाम होते हैं। अंग्रेज नाटककारों में बर्नार्ड शा का नाम सब से मशहूर है, यहाँ तक कि अंग्रेजी-साहित्य में उसी का डंका बज रहा है। वह आयरलैंड का निवासी है, और व्यंग परिहास और चुटकियाँ लेने की जो प्रतिभा आयरिश बुद्धि की विशेषता है, वह उसमें कूट-कूट कर
भरी हुई है । अग्रेजी समाज की कमजोरियो और कृत्रिमताओ का उसने ऐसा पर्दा फाश किया है कि अग्रेजो जैसा स्वार्थान्ध राष्ट्र भी कुनमुना उठा है। सदियो की प्रभुता ने अग्रेज जाति मे जो अहमन्यता, जो बनावटी शिष्टता, जो मक्कारी और ऐयारी, जो नीच स्वार्थपरता ठूस दी है, वही शा के ड्रामो के विषय है । उसकी अमीरजादियो को देखिए, या धर्माचार्यों को, या राष्ट्र के उच्च पदाधिकारियो को, सब नकली जीवन का स्वाग भरे नजर आएँगे । उनका बहुरूप उतार कर उनको नग्न रूप मे खडा कर देना शा का काम है। समाज का कोई अग उसके कलम कुठार से नहीं बचा । वह आत्मा की तह मे प्रतिष्ठित रूढियों की भी परवाह नहीं करता । वह सत्य का उपामक है और असत्य को किसी भी रूप मे नहीं देख सकता।

गाल्जवर्दी भी उपन्यासकार और कवि होते हुए भी नाटककार के रूप मे अधिक सफल हुअा है। उसके ड्रामों में समाजवाद के सिद्धान्तो का ऐसा कलापूर्ण उपयोग किया गया है कि सामाजिक विषमता का चित्र ऑखों के सामने आ जाता है, और पाठक उनसे बिना असर लिये नहीं रह सकता। उसके तीन नाटकों के अनुवाद हिन्दी मे हो चुके है, जिन्हे प्रयाग की हिन्दुस्तानी एकाडेमी ने प्रकाशित किया है । 'चादी की डिबिया' में दिखाया गया है कि धन के बल पर न्याय की कितनी हत्या हो सकती है । 'न्याय' मे उसने एक ऐसे चरित्र की रचना की है, जो सहानुभूति और उदारता के भावो से प्रेरित होकर गबन करता है और अपना कर्मफल भोगने के बाद जब वह जेल से निकलता है, तब समाज उसे ठोकरे मारता है और अन्त मे वह विवश होकर आत्म- हत्या कर लेता है । 'हडताल' मे उसने मालिकों और मजदूरो की मना- वृत्तियो का बड़ा ही मर्मस्पर्शी चित्र खींचा है । उसने और भी कई ड्रामे लिखे है, पर ये तीनो रचनाएँ उसकी कीर्ति को अमर बनाने के लिए काफी हैं । मेसफील्ड, वार्फर, सिंज, सर जेम्स बैरी, पेटर आदि भी सफल नाटककार हैं । और सब के रंग अपनी अपनी विशेषताएँ लिये
हुए है। मेसफील्ड ने मानव जीवन के काले दागो पर प्रकाश डालने मे खूब ख्याति पाई है। वह घोर वास्तविकतावादी है और मानव जीवन मे जो क्षुद्रता धूर्तता, और लम्पटता व्याप्त हो रही है, इसकी अोर से वह ऑखे नही बन्द कर सकता । मनुष्य मे स्वभावतः कितनी पशुता है, इसका उसने बड़ी बारीकी से निरीक्षण किया है । पेटर के ड्रामो मे धर्म और नीति की प्रधानता है । वह नए युग की अश्रद्धा से दुखी है और ससार का कल्याण, धर्म और विश्वास के पुनर्जीवन मे ही समझता है । उसका अपना एक स्कूल है, जो ड्रामा मे काव्यमय प्रसगो को लाना आवश्यक समझता है, जिससे मनुष्य कुछ देर के लिए तो इस छल-कपट से भरे हुए ससार के जलवायु से निकलकर कविता के स्वच्छन्द लोक मे विचर सके । ड्रिंकवाटर, सिंज, आदि ड्रामेटिस्टो का भी यही रग है ।

सबसे बडी नवीनता जो वर्तमान ड्रामा मे नजर आती है, वह उसका प्रेम चित्रण है। नवीन ड्रामा मे प्रेम का वह रूप बिलकुल बदल गया है, जब कि वह भीषण मानसिक रोग से कम न था और नाटककार की सारी चतुराई प्रेमी और प्रेमिका के संयोग मे ही खर्च हो जाती थी। प्रेमिका किमी न किसी कारण से प्रेमी के हाथ नहीं पा रही है, और प्रेमी है कि प्रेमिका से मिलने के लिए जमीन और आसमान के कुलाबे मिलाये डालता है । प्रेमिका की सहेलियाँ नाना विधि से उसकी विर- हाग्नि को शान्त करने का प्रयत्न कर रही है और प्रेमी के मित्र-वृन्द इस दुर्गम समस्या को हल करने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। सारे ड्रामे मे मिलन-चेष्टा और उसके मार्ग मे आने वाली बाधाओ के सिवा और कुछ न होता था । नवीन ड्रामे ने प्रेम को व्यावहारिकता के पिंजड़े मे बन्द कर दिया है । रोमास के लिए जीवन मे गुञ्जायश नहीं रही और न साहित्य मे ही है। प्राचीन ड्रामा जीवन अनुभूतियो के अभाव को रोमास से पूरा किया करता था । नया ड्रामा अनुभूतियो से मालामाल है । फिर वह क्यो रोमास का श्राश्रय ले । मनुष्य को जिस वस्तु मे सबसे ज्यादा अनुराग है वह मनुष्य है, और खयाली, आकाश
गामी मनुष्य नहीं,बल्कि अपना ही जैसा,साधारण बल और बुद्धि वाला मनुष्य । नवीन ड्रामा ने इस सत्य को समझा है और सफल हुआ है। आज के नायक और नायिकानो मे बहुत कुछ परिवर्तन हो गया है। नवीन ड्रामा का नायक वीरता और शिष्टता का पुतला नही होता और न नायिका लज्जा और नम्रता और पवित्रता की देवी है । ड्रामेटिस्ट उसी चरित्र के नायक और नायिका को सृष्टि करता है, जिससे वह अपने विषय को स्वाभाविक और सजीव बनाने में कामयाब हो सके। नवीन ड्रामा के पात्र केवल व्यक्ति नहीं होते, वरन् अपने समुदाय के प्रतिनिधि होते है और उस समुदाय की सारी भलाइया और बुराइया उनमे कुछ उग्र रूप मे प्रकट होती है। शा की नायिकाए आम तौर पर त्वन्छन्द और तेजमयी होती है। वे कठिन से कठिन परिस्थितियो मे भी हिम्मत नहीं छोडती। प्रेम अपने व्यावहारिक रूप मे बहुधा कामुकता का रूप धारण कर लेता है। नये डामे मे प्रेम का यही रूप दर्शाया गया है । साराश यह कि आज का नायक कोई आदर्श चरित्र नही है और न नायिका ही। नायक केवल वह चरित्र है जिस पर ड्रामा का आधार हो ।

नई ट्रेजेडी का रूप भी बहुत कुछ बदल गया है। अब वही ड्रामा ट्रेजेडी नही समझा जाता, जो दुखान्त हो । सुखान्त ड्रामा भी ट्रेजेडी हो सकता है, अगर उसमे ट्रेजेडी का भाव मौजूद हो अर्थात्-समाज के विभिन्न अगो का सघर्ष दिखाया गया हो। कितनी ही बाते जो दुःख- जनक समझी जाती थीं, इस समय साधारण समझी जाती है, यहाँ तक कि कभी कभी तो स्वाभाविक तक समझी जाने लगी है । फिर नाटककार ट्रेजेडी कहाँ से उत्पन्न करे । पुरुष का पत्नी त्याग ट्रेजेडी का एक अच्छा विषय था, लेकिन आज की हीरोइन, जाते समय पति के मुंह पर थूककर हंसती हुई चली जायगी और पतिदेव भी मुंह पोछ पाछकर अपनी नई प्रेमिका के तलवे सहलाते नजर आयेंगे । काम प्रसंगो का ऐसा वीभत्स चित्रण भी किसी के कान नहीं खडे करता, जिस पर पहले लोग आखें बन्द कर लेते थे । तीन अंक के ड्रामों का भी धीरे धीरे बहिष्कार हो
रहा है । आज ड्रामे तो एक ही अंक के होते हैं। उपन्यास की मूरत उसके लघुरूप कहानी से कुछ मिलती है । ड्रामे भी अब एक ऐक्ट के हाने लगे है, जो दो ढाई घण्टो मे समाप्त हो जाते है ।

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