सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय/३७/३ शुद्ध व्यवहार
३. शुद्ध व्यवहार
बम्बई खादी-भण्डारसे भाई विठ्ठलदास जेराजाणी लिखते है:[१]
ऐसे बहुतसे दृष्टान्त दिये जा सकते हैं जिनसे यह सिद्ध करके दिखाया जा सकता है कि ऐसे व्यवहारसे अन्तमें व्यापारीको फायदा ही होता है। फिर भी बहुतसे व्यापारी अनीतिके मार्गको ही अपनाते हैं। इसका कारण धनी बननेकी जल्दबाजीके सिवाय दूसरा नहीं है। किन्तु खादी-सेवक या खादी बेचनेवाले को तो अटूट धैर्य रखना है। सत्य, धैर्य और श्रद्धाके सिवाय खादीका दूसरा सहारा नहीं है। इसलिए खादी-भण्डारोंको भाई जेराजाणीका सुझाव याद रखना चाहिए।
[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १-७-१९२८
- ↑ पत्रका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। कोई मराठा मजदूर भण्डारसे खादीका कुर्ता खरीदकर ले गया था किन्तु वह एक महीने में ही फट गया इसलिए उसे दूसरा नया कुर्ता दे दिया गया था। इससे भण्डारपर उस मजदूरका विश्वास जमा और फलत: वह बादमें आकर एक कोट खरीदकर ले गया।