सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

[ ३५७ ]________________

-कई : भार ४ माना थिन बर्ण है । उता दूरे अन्य का यह ह ४ प्रभंगपर दाजुत्ता विचार करने योग्य -- অজস্ব বন্দি দিয়ে খ্রি:।। হংকা ? ঘ হাতি। उपवाली के विषय { कि ) शमन हो जाते हैं; परंतु उनका र नहीं जाता। रस त श्र दशन से ही-ईश्वर प्रसादसे ही इसन होते हैं। इससे हम इस नतीजेपर ये कि उस दि मकै भगक एक सावके रूप झाश्यक है; परंतु ही कुछ नहीं है। और यदि शारीरिक उपवार साथ मनः उपवास न हो तो की परिणति में हो सकती है और ब्लू हानिकारक साबित हो सकती है । ट' हा सत्याग्रहके इतिहास जो बात नहीं आ सकी अथवा अांशिक रूपमें आई है वही इन अध्याय लिखी जा रही है। इस वातको पाठक याद रखेंगे तो इन अध्यायका पूर्वापर संबंध ये समझ सकेंगे । टॉलस्टाय-प्राश्रये लड़कों और लड़कियों के लिए कुछ शिक्षण-प्रबंध अवश्य था । मेरे साथ हिंदू, मुसलमान, पारसी और ईई नवयुवक थे, औ६ कुछ हिंदू लड़कियां भी थीं । इनके लिए डाल शिक्षक रखना असंभव था और नुको शव भी मालूम हुआ । असंभव तो इसलिए था कि सुयोग्य हिंदुस्तानी शिक्षकों का व्हां अभाब था, और मिले भी तो का ये बिना इनसे २१ मत र न्वा ने लगा ? रे पास रुपयोंकी बहुतायत नहीं की और वाहनसे शिक्षक जुलर अलावश्यक छान; क्योंकि वर्तमान शिक्षा-प्रणाली मुझे पसंद न ई और बाविक पद्धति क्या है, इसका मैंने अनुभव नहीं कर देखा था । इतना जानता था कि आदर्श स्थिति सच्ची शिक्षा क्षा-दिन देलरेखमें ही मिल सकती है। शादर्श स्थिति बाह्य सहायता कम-से-कम होनी । चाहिए। टॉल्स्टाय-श्रम एक कुटुंब था और में उसमें पिताके स्थानपर था। [ ३५८ ]________________

३ ३

१ का ३४१ इल इन् । इन भुके - उधा-२ : । । । । | *

  • * द ? है । ३ । भुः । * * * * * * * * * बि ए- * हीं ।

- थे उ त ? ३ ३ ॐ ॐ ४ ३ ३ । । ? रेलु । हु कि विपक्ष छ । * दिया है, जिसे दे दिया कि कि उ र हे नै बन्ने र पालिका थोड़ाबनु ' । उता है, इ कि मैं दिन के ने । । । । । । शि - न झा । कुद यदि ३ : इ न पर शवः । हाथ मिल हैं। कि ? * उह - - । जन और रूर । इए पई शुरू की है कि नक र प्रा ३ । । । में शारीरिक शिक्षा ः २ झ ; दुई छि तो उन्हें भने- भिल रही थ; र अन दक्षर हो रहें ही न गये थे । क क ान के

ते थे । * * * * * * । नई चैत । र ! - दि ० - *

२२ खेती । उद्धे हुए है । कुछ यः । ॐ ॐ लोय, को कई कार में लगे न होते, में ले जा पता : । इ लका एक व मग । अड़े ) , क न, अ ा ा इत्यादि का। उनका : सुसि होता है उसमें उन लंद भी आता था, दिरा उन्हें दूसरी बात था वेल की श्रदश्कता नहीं रहती । करने में कुल कि कभी कि , हित र जाते ।। बहुत बार में इन बातोंकी और आंखें मूंद लिया करतः । न ही बार उनसे सख्तीसे भी कम लेता है जब सली' करता और उन्हें देखना चिक ' उन्कला उके. [ ३५९ ]________________

तो भी मुझे नहीं याद पड़ता कि सीकर विरोध कभी उन्होंने किया हो । जव-- जव में उपर न करता तभी तब उन्हें समझाता और उन्हींसे कबूल करता कि कामके भन्न खेलना अच्छी आदत नहीं । वे उस समय तो समझ जाते; पर दूसरे ही क्षर भूल जाते । इस तरह काम चलता रहता; परंतु उनके शरीर बनते जाते थे । । | इसमें शायद ही कोई बीमार होता । कहना होगा कि इसका बड़ा कारण था यहाँकी बका अौर अच्छा लय नियमित भोजन । शारीरिक शिक्षाके लसिलेमें ही झारिक व्यायकी शिक्षा का भी सर कर लेता हैं । इदा यह था कि वो कुछ-न-कुछ उपयोगी धंधा सिखाना चाहिए । इसलिए नि० केलवे ट्रैफिट अठ' चप्पल गांठना सीख आये थे । उनसे मैंने सीख श्रौर मैंने उन बालकको सिखाया, जो इस हुनरको सीखनेके लिए तैयार थे । সি০ লক্ষী লখী হস্কা স্বী সুস্থ স্বামৰ দ্বা স্ত্রী আন্দল কান जानेवाला एक साथी भी था। इसलिए यह काम भी थोड़े-बहुत अंशमें सिखाया जा । रसोई बनाना तो लगभग सब ही लड़के सीख गये थे । ये सब काम इन बालकों के लिए नये थे । उन्होंने तो कभी स्वप्नमें । भी यह न होबा हा कि ऐसा काम सीता पड़ेगा, दक्षिण अफ्रीका में हिंदुस्तानी बालकों केदले प्राथमिक अक्षर ज्ञानकी ही शिक्षा दी जाती थी । टॉल्स्टाय : शमसे पहले ही यह रिवाज़ डाला था कि जिन कामको हम शिक्षित लोग न करे वह बालकोंसे न कराया जाय और हमेशा उनके साथ-साथ कोई-न-कोई : शिक्षक का करती हैं इससे ३ बड़ी उसके साथ सीख सके । ग्य र " इ इ अा इसके बाद । अक्षर-शिक्षा * में हमने अह दे लिया कि शारीरिक शिक्षा और उसके साथ छ र सिखानेका काम टॉल्स्टाग-प्रथम किस तरह शुरू हुआ है. यद्यपि इस काम में इस तरह नहीं कर सका कि जिससे मुझे संतोष होता फिर

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।