काशी: भारतीय भंडार, पृष्ठ १२९ से – १३४ तक

 

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स्वेज़ नहर

योरप और एशिया का सम्बन्ध जिन कारणों से घनिष्ट हो गया है, उनमें से स्वेज़ नहर मुख्य है। पहले जो जहाज़ योरप से एशिया आते थे, उनको यहाँ तक पहुँचने में कई महीने लगते थे। पर जब से यह नहर बन गई, तब से लन्दन से बम्बई आने में सिर्फ़ दो सप्ताह लगते हैं। इस तरह महीनों का रास्ता हफ्तों में तै होने से योरप को एशिया पर व्यापारिक और राजनैतिक प्रभुत्व जमाने में जो सुविधा हुई है, वह अकथनीय है। यह नहर लाल-सागर (Red Sea) और भूमध्य-सागर (Mediterranean Sea) के बीच में है। इसकी लम्बाई स्वेज़ से सईद बन्दर तक कोई सौ मील है। १८६९ ईसवी में इसको एक फ़रासीसी इञ्जिनियर ने बनाया था। जब यह बनी थी, तब इसकी चौड़ाई पानी की सतह पर डेढ़ सौ से लेकर तीन सौ फुट तक थी और पेदे में कोई बहत्तर फुट; तथा गहराई छब्बीस फुट थी।

सन् १८६९ में जितने बड़े जहाज़ बनते थे, उनकी अपेक्षा बड़े जहाज़ आज-कल बनते हैं। इसलिए जहाज़ों का आकार
बढ़ने के साथ साथ नहर को और भी चौड़ा और गहरा बनाने की आवश्यकता हुई। नहर की चौड़ाई और गहराई जितनी शुरू में रक्खी गई थी, उतने से बृहदाकार जहाज़ों को आने जाने में कठिनता पड़ने लगी । इसलिए नहर के अधिकारी उसे बढ़ाने की तजवीज़ बहुत दिनों से कर रहे थे। अन्त में निश्चय हुआ कि नहर का आकार दूना कर दिया जाय और काम इस तरह किया जाय जिसमें जहाज़ों के आने जाने में कोई असुविधा न हो। इसके लिए १९०१ ईसवी में डेढ़ करोड़ रुपये की मंजूरी हुई। कोई दस बारह वर्ष में यह काम ख़तम हुआ।

३१ दिसम्बर १९०६ तक इस नहर के बनाने में कुल ३६,७४,९०,५२० रुपये ख़र्च हुए थे। पर जहाँ इसके बनाने का ख़र्च इतना बढ़ा है, वहाँ इससे आमदनी भी खूब बढ़ी है और हर साल बढ़ती जाती है। १८७६ में इससे १,८७,०४,८१४ रुपये की आमदनी हुई थी। वही बढ़कर १९०६ में ६,७१,९३,४७२ रुपये हो गई। अर्थात् तीस वषौं में चौगुनी के लगभग हो गई। जिस कम्पनी के अधिकार में यह नहर है, उसके हिस्सेदार इससे खूब लाभ उठाते हैं। पहले की अपेक्षा उनका लाभ पाँच छः गुना अधिक हो गया है। इस अधिक आमदनी का कारण यह है कि इस नहर के रास्ते बहुत जहाज़ निकलते हैं। अकेले १९०६ ईसवी में ३९७५ जहाज़ इससे होकर निकले थे।

अरब का रेगिस्तान संसार में प्रसिद्ध है। यह नहर उससे बहुत दूर नहीं है। इसलिए नहर के अधिकारियों को सदा
डर लगा रहता है कि ऐसा न हो कि रेगिस्तान की बालू उड़ कर नहर को तोप दे। इसलिए नहर के पेंदे की खुदाई और सफ़ाई का काम बारहों महीने जारी रहता है। १९०४ से ०६ तक, तीन वर्षौं में, कितनी मिट्टी खोद कर बाहर फेंक दी गई, यह नीचे लिखे हुए अङ्कों से स्पष्ट हो जायगा—

१९०४ १३,५३,४९७ घन गज़
१९०५ १७,६०,८६४ घन गज़
१९०६ १९,१९,५१५ घन गज़

सन् १९०४ में नहर की कम से कम गहराई अट्ठाईस फुट थी। इससे वे जहाज़ जो पानी के नीचे अधिक से अधिक छब्बीस फुट तक रहते थे, आसानी से आ जा सकते थे। इसी साल बारह नाके नये बनाये गये, जिनसे आमने-सामने आने जानेवाले जहाज़ एक दूसरे को अच्छी तरह पार कर सकें। इसी तरह के इक्कीस नाके और बनाने की तजवीज़ है। इनमें से हर एक नाका २४६० फुट लम्बा होगा।

१९०४ में जब नहर की चौड़ाई पचास फुट बढ़ाई गई थी, ता कि उसके पेंदे की चौड़ाई १४७ फुट की जा सके, तब १८८९,२७५ घन गज़ ज़मीन, और १८,६३,६४६ घन गज़ पेंदा खोदा गया था।

जब कभी जहाज़ डूब या धँस जाते हैं, तब नहर के अधिकारियों को बड़ी मुशकिल पड़ती है; क्योंकि रास्ता रुक जाता है और इधर-उधर के जहाज़ आ जा नहीं सकते। जर्मनी ने अभी हाल में जहाज़ डुबो कर इस नहर से अँगरेज़ों के जहाज़ों का आवागमन बन्द करने की केष्टा की थी, पर वह निष्फल हो गई। पहले की अपेक्षा इस नहर में अब दुर्घटनायें कम होती हैं। इसका कारण यह है कि नहर की चौड़ाई और गहराई बढ़ गई है और जहाज़ों के आने जाने का प्रबन्ध भी पहले से अच्छा हो गया है। १८०५ ईसवी में एक ऐसी ही दुर्घटना हुई थी जिस से कम्पनी को बड़ी हानि उठानी पड़ी थी। चेथम नामक जहाज़, एक दूसरे जहाज़ से लड़ जाने से, नहर के बीचों-बीच डूब गया। इससे कई दिन तक जहाज़ों का आना जाना बन्द रहा। सब मिलाकर १०९ जहाज़ चार दिन तक रुके रहे। इनमें से ५३ उत्तर की तरफ के थे और ५६ दक्षिण की तरफ़ के। बड़ी मुशकिल से बड़ी बड़ी पर्वताकार कलों के द्वारा जहाज़ जब हटाया गया, तब कहीं निकलने का रास्ता हुआ।

नहर को चौड़ी और गहरी करने का काम १९०४ से कई वर्ष तक बराबर जारी रहा। हर साल लाखों गज़ मिट्टी खोद खोद कर बाहर फेंकी गई। पहली जनवरी १९०९ तक नहर की गहराई साढ़े चौंतीस फुट हो गई थी। अब वे जहाज़ भी, जो पानी के नीचे २८ फुट तक रहते हैं, इस नहर से आ जा सकते हैं। इस गहराई को कम न होने देने के लिए खुदाई का काम बराबर जारी रहेगा। इसके लिए नई तरह के खोदने- वाले यन्त्र काम में लाये जायँगे। जब से ईजिपृ की राजधानी केरो से सईद बन्दर तक रेल बन गई है, तबसे सईद बन्दर पर काम बहुत बढ़ गया है। क्योंकि ईजिपृ का सब माल वहीं उतरता-चढ़ता हैं। इसलिए कई नये बन्दरगाह बनाने की जरूरत पड़ी है। इनमें से एक तो शीघ्र ही तैयार होनेवाला है। बाक़ी इसके बाद बनाये जायँगे। इसके लिए ईजिपृ की गवर्नमेंट ने ३५८ एकड़ ज़मीन नहर के अधिकारियों को दी है। दूसरी ओर अर्थात् एशिया की तरफ़ भी, कई बन्दरगाह, कोठियाँ और गोदाम बननेवाले हैं, क्योंकि योरप और एशिया की आमद-रफ्त़ दिन पर दिन बढ़ती जाती है।

नहर की उन्नति का काम धड़ाधड़ जारी है। १८९६ से अब तक २,१६,००,००० रुपये नहर को चौड़ा और गहरा करने में लगे हैं। नहर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक बीस से अधिक स्टेशन बन गये हैं। टेढ़ी मेढ़ी और ऊँची नीची जगह बराबर कर दी गई है। तीन तीन मील की दूरी पर जहाज़ों के एक दूसरे को पार करने के लिए नाके बनाये गये हैं। इस बीच में नहर के नौकरों की दशा भी बहुत सुधर गई है। वहाँ मच्छड़ और बुख़ार की इतनी अधिकता थी कि लोग उन के मारे बारहों मास तङ्ग रहते थे। पर अब उनका कहीं नामो- निशान नहीं। पहले की अपेक्षा अब वहाँ सफ़ाई भी खूब रहती है। एक बड़ा भारी अस्पताल और कई औषधालय भी खोले गये हैं। वहाँ लोगों की चिकित्सा मुफ्त़ की जाती है। नहर के अधिकारियों की आमदनी जैसे जैसे बढ़ती जाती है, वैसे ही वैसे महसूल भी कम होता जाता है। शुरू में जब नहर खुली थी, तब भरे हुए माल के जहाज़ों का महसूल छ: रुपये फ़ी टन ( सवा सत्ताईस मन ) था। सन् १८८० में तीन आने टन कम हो गया; अर्थात् पाँच रुपये तेरह आने टन रह गया। कुछ दिनों बाद महसूल और भी घटा कर साढ़े चार रुपये टन कर दिया गया, जो इस समय तक बना हुआ है। मुसाफ़िरी जहाज़ों का महसूल छः रुपये टन जैसा पहले था, वैसा ही अब भी है। कम्पनी का रिज़र्व फण्ड ( अलग रख दिया गया धन ) इस समय २,५०,००,००० रुपये है। इसके सिवा एक विशेष फण्ड और भी है, जिससे नहर की मरम्मत और उन्नति के लिए यन्त्र आदि ख़रीदे जाते हैं। इस फण्ड में इस समय १,८०,००,००० रुपये हैं।

ब्रिटिश गवर्नमेंट के लिए यह नहर बड़े ही काम की चीज़ है। इसी से इसकी रक्षा प्राण-पण से की जा रही है।

[जनवरी १९१५.
 

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