संगीत-परिचय भाग १/१५: राग भूपाली
भूपाली
- इस राग में पांच स्वर होते हैं इसमें 'म' और 'नी' यह
दो स्वर नहीं लगाये जाते
- इस राग में सब स्वर शुद्ध लगते हैं।
- इस राग का वादी स्वर 'ग' है।
- इस राग का संवादी स्वर "ध" है।
- इस राग के गाने बजाने का समय रात्रि का प्रथम पहर है।
- आरोही = स रे ग प ध सं
- अवरोही = सं ध प ग रे स
- पकड़ = ग रे स ͎ध, स रे ग प ग ध प ग रे म
( ताल तीन मात्रा १६ )
समतालीखालीताली
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अन्तरा
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ताल तीन मात्रा १६
शब्द गुरु नानक(श्री गुरू ग्रन्थसाहब)
जोगी जती तपी 'पच हारे, अरु बहुलोक सियाने ॥
छिन में राओ रंक को करियो, राओ रंक कर डारे।
रीते भरे-भरे सखनावें, यह तांको बिवहारे ।।
अपनी माया आप पसारी, आपे देखन हारा ।
नाना रूप धरे बहुरंगी, सब ते रहे न्यारा ।।
अगनत अपार, अलख निरंजन, जे सब जग भरमायो।
सगल भरम तजे 'नानक' प्राणी, चरण ताहे चित लायो।।
राग भूपाली
स्थाई
समतालीखालीताली
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अन्तरा
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शब्द गुरु नानक (श्री गुरू ग्रन्थसाहब)
- सकल जगत अपने सुख लाग्यो,
- दुखः में संग न होई ।।
- दारा मीत, पूत सम्बन्धी,
- सगरे धन सों लागे।
- जब ही निरधन देख्यो नर को,
- संग छांडि सब भागे ।।
- कहा कहूँ या मन बौरे कों,
- इन सों नेह लगया।
- दीनानाथ सकल भय भंजन,
- जस ता को बिसराया ।
- स्वान पूंछ ज्यों भयो न सूधो ,
- बहुत जतन मैं कीन्हौ ।
- 'नानक' लाज बिदुर की राखौ
- नाम तिहारा लीन्हौं ।।
- सकल जगत अपने सुख लाग्यो,
राग भूपाली
स्थाई
समतालीखालीताली
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अन्तरा
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( ताल तीन मात्रा १६)
भजन कबीर
- भजो रे भैया राम गोविन्द हरी ।
- जप तप साधन कछु नहीं लागत, खरचत नहीं गठरी।
- संतत संपत सुख के कारण , जासों भूल परी ।
- कहत 'कबीर' राम न जा मुख, ता मुख धूल भरी ।।
( ताल तीन मात्रा १६ )
समतालीखालीताली
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अन्तरा
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