संगीत-परिचय भाग १/१४: राग काफी
राग काफी
- इस राग में सात स्वर लगते हैं।
- इस राग में 'ग', 'नी' कोमल सब स्वर शुद्ध लगते हैं।
- इस राग का वादी स्वर "प" है।
- इस राग का संवादी स्वर "स" है।
- इस राग के गाने बजाने का समय आधी रात का है।
- आरोही = स रे ग॒ म प ध नी॒ सं
- अवरोही = सं नी॒ ध प म ग॒ रे स
- पकड़ = सस रेरे ग॒, मम प
( ताल तीन मात्रा १६ )
समतालीखालीताली
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अन्तरा
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ताल तीन
शब्द गुरु नानक(श्री गुरू ग्रन्थसाहब)
सीख सिखाय रह्यो अपनी सी।
दुरमति तें न टरे॥
मद माया बस भयो बांवरौ,
हरी जस नहीं उचरे॥
करि परपंच जगत के डहकै,
अपनौ उदर भरे॥
स्वान-पूंछ ज्यों होय न सूधौ,
कह्यो न कान धरै॥
कह 'नानक' भजु राम नाम नित,
जातें काज सरे॥
( ताल तीन मात्रा १६ )
समतालीखालीताली
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अन्तरा
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[ ४९ ]
राग काफी
- शब्द गुरु नानक(श्री गुरू ग्रन्थसाहब)
प्रीतम जान लेहु मन माहीं।
अपने सुख सों ही जग फांदियो , को काहू को नाहीं॥
सुख में आन बहुत मिल बैठत, रहत चहूँ दिस घेरे।
बिपत पड़ी सब ही संग छाड़त, कोऊ न आवत नेरे॥
घर की नार बहुत हित जा स्यों सदा रहत संग लागी।
जब ही हंस तजि एह काया, प्रेत-प्रेत कर भागी॥
एह बिधि को ब्योहार बनियो है ,जांसों नेहु लगायो।
अंत बार 'नानक' बिन हर जी,कोऊ काम न आयो॥
स्थाई
समतालीखालीताली
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अन्तरा
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( ताल तीन मात्रा १६)
भजन कबीर
- मन तोहे कहि विधि मैं समझाऊँ।
- सोना होय तो सुहाग मँगाऊँ , वंक नाल रस लाऊँ ।
- ज्ञान शब्द की फूंक चलाऊं, पानी कर पिंघलाऊँ ॥
- घोड़ा होय तो लगाम लगाऊँ, ऊपर जीन कसाऊं।
- होय सवार तेरे पर बैठूं , चाबुक देके चलाऊं ॥
- हाथी होय तो जंजीर गढ़ाऊ चारों पैर बंधाऊ।
- होय महावत तेरे पर बैठूं ,अंकुश लेके चलाऊं ॥
- लोहा होय तो अहरण मंगाऊ, ऊपर धुवन धुवाऊं।
- धूवन की घनघोर मचाऊं, जंतर तार खिचाऊं ॥
- ज्ञानी न होय ज्ञान सिखलाऊं, सत्य की राह चलाऊं।
- कहत 'कवीर' सुनों भई साधो, अमरा पुर पहुँचाऊं ॥ [ ५१ ]
राग काफी
( ताल तीन मात्रा १६ )
समतालीखालीताली
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