वैशाली की नगरवधू
आचार्य चतुरसेन शास्त्री

दिल्ली: राजपाल एंड सन्ज़, पृष्ठ १५५

 

40. चम्पा का पतन

दुर्ग के दक्षिण बुर्ज पर मागध तुरही बजते ही दुर्ग के सिंह-द्वार पर आघात हुआ। प्रहरी मद्य से अचेत थे। एक-दो कुछ सचेत थे, उन्होंने कहा—"कौन है?"

बाहुक ने कहा—"पिशाच होगा। एक चषक मद्य मांगने आया है। वह मैं नहीं दूंगा। तुम पियो मित्र।" उसने भाण्ड प्रहरी के मुंह से लगा दिया। परन्तु भाण्ड में एक बूंद भी मद्य न था। प्रहरी को भी पूरा होश न था। उसने भाण्ड में हाथ डालकर कहा—"तुम गधे हो सामन्त! मद्य यहां कहां है?"

"क्या मैं गधा हूं? ठहर पाजी, बाहुक ने उसकी गर्दन में बांह डालकर गला दबोच लिया। प्रहरी दम घुटने से छटपटाने लगा। इसी समय पेट के बल रेंगते आकर एक आदमी ने खड्ग उसके कलेजे में पार कर दिया। उसी क्षण तीन-चार आदमी इधर-उधर से निकल आए और उन्होंने प्रहरी के वस्त्रों से चाभी निकालकर द्वार खोल दिया। जो एक-दो प्रहरी अब भी होश में थे, उन्होंने कुछ बोलने की चेष्टा की, पर वे तुरन्त मार डाले गए। फाटक खुल गया और सेनापति धड़धड़ाते हुए दुर्ग में घुस गए। उन्होंने दौड़कर दक्षिण बुर्ज पर मागध झंडा फहरा दिया। क्षण-भर ही में मार-काट मच गई। परन्तु ज्योंही महाराज दधिवाहन का मृत शरीर लाकर चौगान में डाला गया, चम्पा के सैनिकों के छक्के छूट गए। इसी समय पूर्व में सफेदी दिखाई दी और उसी के साथ चम्पा में विद्रोह के लक्षण दीख पड़ने लगे। सूर्योदय होते ही विद्रोहाग्नि फूट पड़ी। सैकड़ों नागरिक जलती मशालें और खड्ग लेकर नगर में आग लगाने और लोगों को मारने-काटने लगे। हाट, वीथी और जनपद सभी बन्द हो गए। चम्पा जय हो गया। एक दिन व्यतीत होते-होते दुर्ग और नगर सर्वत्र मगध सेनापति चण्डभद्रिक का अधिकार हो गया। उन्होंने एक ढिंढोरा पिटवाकर प्रजा को अभय दिया, तथा नई व्यवस्था कायम की। अब उन्हें सोम का स्मरण हुआ। उन्होंने सोमप्रभ को बहुत ढूंढ़ा, परन्तु सोमप्रभ का उन्हें पता नहीं लगा। कुमारी चन्द्रप्रभा का भी कोई पता नहीं लगा। राजकुल की अन्य स्त्रियों का समुचित प्रबन्ध कर दिया गया। महाराज दधिवाहन का मर्यादा के अनुरूप अग्नि-संस्कार किया गया।