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भारतेंदु-नाटकावली
दोनों-गायो सब मिल प्रेम बधाई ।
<Br>दोनों-गाओ सब मिल प्रेम बधाई।
प्रेमहि सुखसागर अरु प्रेमहि तीन लोक को राई ॥
{{Gap}}प्रेमहि सुखसागर अरु प्रेमहि तीन लोक को राई॥
प्रेम-रज्जु में बँध्यो सकल जग याकी फिरत दुहाई ।
{{Gap}}प्रेम-रज्जु में बँध्यो सकल जग याकी फिरत दुहाई।
प्रेमनाथ ही की स्वर्गहु मैं एकछत्र ठकुराई ॥
{{Gap}}प्रेमनाथ ही की स्वर्गहु मैं एकछत्र ठकुराई॥
प्रेमहि जग को जीवन-प्रान ।
{{Gap}}प्रेमहि जग को जीवन-प्रान।
प्रेमहि सगरो काम करावत प्रेम बढ़ावत मान ॥
{{Gap}}प्रेमहि सगरो काम करावत प्रेम बढ़ावत मान॥
बिना प्रेम के जो नर जग में सेा नर पसू समान ।
{{Gap}}बिना प्रेम के जो नर जग में सो नर पसू समान।
प्रेमहि सुख संपति रत्नन को अति अनुपमतर खान ॥
{{Gap}}प्रेमहि सुख संपति रत्नन को अति अनुपमतर खान॥
प्रेम मैं निसि दिन बसत मुरारी।
{{Gap}}प्रेम मैं निसि दिन बसत मुरारी।
बिना प्रेम पैये नहिं पीतम लाख संपदा बारी ॥
{{Gap}}बिना प्रेम पैये नहिं पीतम लाख संपदा बारी॥
बिना प्रेम रीझत नहिं प्यारो बृंदाबिपिन बिहारी।
{{Gap}}बिना प्रेम रीझत नहिं प्यारो बृंदाबिपिन बिहारी।
प्रेमहि जग को तारन कारन प्रेमहि भवभय-हारी॥
{{Gap}}प्रेमहि जग को तारन कारन प्रेमहि भवभय-हारी॥</poem>{{poem end}}
बनदेवी-( नेपथ्य की ओर देखकर ) प्यारे ! देखो वह सती-
<Br>बनदेवी--(नेपथ्य की ओर देखकर) प्यारे ! देखो वह सती-सिरोमनि सावित्री देवी शोभा को बढ़ावती बन को हँसाती अपने प्राणपति के साथ इसी कुंज में पधारती हैं।

सिरोमनि सावित्री देवी शोभा को बढ़ावती बन को
<Br>बनदेवता--और देखो सत्यवान भी प्रेम में मग्न अपनी प्यारी का मुख एक टक देखता और कोमल पुष्पकली की वर्षा करता मदोन्मत्त झूमता कैसा शोभायमान है। आहा! इन दोनों नव किशोरों को तापसी वेष कैसा सजा है जैसे साक्षात् शिव पार्वती का जोड़ा हो।
हँसाती अपने प्राणपति के साथ इसी कुंज में पधारती हैं।
घनदेवता-और देखो सत्यवान भी प्रेम में मन अपनी प्यारी
का मुख एक टक देखता और कोमल पुष्पकली की वर्षा
करता मदोन्मत्त झूमता कैसा शोभायमान है। आहा!
इन दोनों नव किशोरों को तापसी वेष कैसा सजा है जैसे
साक्षात् शिव पार्वती का जोड़ा हो ।
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