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नर्मदा के दक्षिण दंडकारण्य का एक देश दक्षिण कोशल नाम से प्रसिद्ध है-
नर्मदा के दक्षिण दंडकारण्य का एक देश दक्षिण कोशल नाम से प्रसिद्ध है-

याही मग है, कै गए दंढ़कवन श्री राम ।
<poem><center>याही मग है, कै गए दंढ़कवन श्री राम ।
तासे पावन देस वह विंध्याटवी ललाम ।
तासे पावन देस वह विंध्याटवी ललाम ।</center></poem>


मैं कहाँ तक इस सुंदर देश का वर्णन करू ?.... जहाँ की निर्झरिणी-- जिनके तीर घानीर से भिरे, मदकल-कूजित विहंगमो से शोभित हैं, जिनके मूल से स्वच्छ और शीतल जलधारा बहती है और जिनके किनारे के श्याम जवू के निकुंज फलभार से नमित जनाते हैं—शब्दायमान होकर झरती है। × × × जहाँ के शल्लकी-वृक्षै की छाल, में हाथी अपना बदन रगड़ रगड़ खुजली मिटाते हैं और उनमें से निकला क्षीर सन वन के शीतल समीर को सुरभित करता है । मंजु वंजुलकी लत और नील निचुले के निकुञ्ज जिनके पत्ते ऐसे सघन जो सूर्य की किरने की भी नहीं निकलने-देते, इस नदी के तट पर शोभित हैं ।
मैं कहाँ तक इस सुंदर देश का वर्णन करू ?.... जहाँ की निर्झरिणी-- जिनके तीर घानीर से भिरे, मदकल-कूजित विहंगमो से शोभित हैं, जिनके मूल से स्वच्छ और शीतल जलधारा बहती है और जिनके किनारे के श्याम जवू के निकुंज फलभार से नमित जनाते हैं—शब्दायमान होकर झरती है। × × × जहाँ के शल्लकी-वृक्षै की छाल, में हाथी अपना बदन रगड़ रगड़ खुजली मिटाते हैं और उनमें से निकला क्षीर सन वन के शीतल समीर को सुरभित करता है । मंजु वंजुलकी लत और नील निचुले के निकुञ्ज जिनके पत्ते ऐसे सघन जो सूर्य की किरने की भी नहीं निकलने-देते, इस नदी के तट पर शोभित हैं ।