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ऊधो! मन की मन ही माँझ रही।
भ्रमरगीत-सार
कहिए जाय कौन सों, ऊधो! नाहिंन परति सही॥
, ऊधो! मनं की मन ही माँझ रही। ......
अवधि अधार आवनहि की तन, मन ही विथा सहीं।
कहिए जाय कौन सों, ऊधो ! नाहिंन परति सही ॥
चाहति हुती गुहार जहाँ तें तहँहि तें धार वही॥
अवंधि अधार आवनहि की तन, मन ही विथा सहीं ।
अब यह दसा देखि निज नयनन सब मरजाद ढही।
चाहति हुती गुहार' जहाँ तें तहँहि तें धार वही ॥ ..
सूरदास प्रभु के बिछुरे ते दुसह वियोग-दही॥३४३॥
अब यह दसा देखि निज नयनन सब मरजाद ढही। ।।
राग मलार
सूरदास प्रभु के बिछुरे ते दुसह . वियोग-दहो ॥३४३॥
स्याम को यहै परेखो आवै।
: राग मलार . . :
कत वह प्रीति चरन जावक कृत, अब कुब्जा मन भावै॥
स्याम को यहै परेखो आवै ।
तब कत पानि धयो गोबर्द्धन, कत ब्रजपतिहि छड़ावै?
कत वह प्रीति चरन जावक कृत, अब कुब्जा मन भावै ।।
कत वह वेनु अधर मोहन धरि लै लै नाम बुलावै?
तब कत पानि धयो गोबर्द्धन, कत ब्रजपतिहि छड़ावै ?
तब कत लाड़ लड़ाय लड़ैते हँसि हँसि कण्ठ लगावै?
कत वह वेनु अधर मोहन धरि लै लै नाम बुलावै ?
अब वह रूप अनूप कृपा करि नयनन हू न दिखावै॥
तब कत: लाड़ लड़ाय लड़ते हँसि हँसि कण्ठ लगावै ?.
जा मुख-सँग समीप रैनि-दिन सोइ अब जोग सिखावै।
अब वह रूपः अनूप कृपा करि नयनन हू न दिखावै ।। ..:'.
जिन मुख दए अमृत रसना भरि सो कैसे विष प्यावै?
जा मुख-सँग समीप रैनि-दिन सोइ अब जोग सिखावै ।
कर मीड़ति पछताति हियो भरि, क्रम क्रम मन समुझावै।
जिन मुख दए अमृत रसना भरि सो कैसे विष प्यावै ? .
सूरदास यहि भाँति वियोगिनी तातें अति दुख पावै॥३४४॥
कर मीड़ति पछताति हियो भरि, क्रम क्रम मन समुझावै ।
सखी री! मो मन धोखे जात।
सूरदास यहि भाँति चियोगिनी तातें अति दुख पावै ।।३४४॥
ऊधो कहत, रहत हरि मधुपुरि, गत आगत न थकात॥
...सखी री ! मो मन धोखे जात ।
ऊधो कहत, रहत हरि मधुपुरि, गत आगत'थकात ॥
. .(१) गुहार = रक्षा के लिए दौड़ । (२) देखि = देख तू । (३) यहै परेखो
. .(१) गुहार = रक्षा के लिए दौड़ । (२) देखि = देख तू । (३) यहै परेखो
आवै = यही बात मन में सोचती हूँ। (४) कृत = किया, बनाया। (५)
आवै = यही बात मन में सोचती हूँ। (४) कृत = किया, बनाया। (५)