|
|
पन्ने का उपरी पाठ (noinclude): | पन्ने का उपरी पाठ (noinclude): |
पंक्ति १: |
पंक्ति १: |
|
|
{{rh|भ्रमरगीत-सार||१३४}} |
पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा): | पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा): |
पंक्ति १: |
पंक्ति १: |
|
⚫ |
ऊधो! मन की मन ही माँझ रही। |
|
भ्रमरगीत-सार |
|
|
⚫ |
कहिए जाय कौन सों, ऊधो! नाहिंन परति सही॥ |
⚫ |
, ऊधो! मनं की मन ही माँझ रही। ...... |
|
|
⚫ |
अवधि अधार आवनहि की तन, मन ही विथा सहीं। |
⚫ |
कहिए जाय कौन सों, ऊधो ! नाहिंन परति सही ॥ |
|
|
⚫ |
चाहति हुती गुहार जहाँ तें तहँहि तें धार वही॥ |
⚫ |
अवंधि अधार आवनहि की तन, मन ही विथा सहीं । |
|
|
⚫ |
अब यह दसा देखि निज नयनन सब मरजाद ढही। |
⚫ |
चाहति हुती गुहार ' जहाँ तें तहँहि तें धार वही ॥ .. |
|
|
⚫ |
सूरदास प्रभु के बिछुरे ते दुसह वियोग- दही॥३४३॥ |
⚫ |
अब यह दसा देखि निज नयनन सब मरजाद ढही। ।। |
|
|
⚫ |
|
⚫ |
सूरदास प्रभु के बिछुरे ते दुसह . वियोग- दहो ॥३४३॥ |
|
|
⚫ |
|
⚫ |
|
|
|
⚫ |
कत वह प्रीति चरन जावक कृत, अब कुब्जा मन भावै॥ |
⚫ |
|
|
|
⚫ |
तब कत पानि धयो गोबर्द्धन, कत ब्रजपतिहि छड़ावै? |
⚫ |
कत वह प्रीति चरन जावक कृत, अब कुब्जा मन भावै ।। |
|
|
⚫ |
कत वह वेनु अधर मोहन धरि लै लै नाम बुलावै? |
⚫ |
तब कत पानि धयो गोबर्द्धन, कत ब्रजपतिहि छड़ावै ? |
|
|
⚫ |
तब कत लाड़ लड़ाय लड़ैते हँसि हँसि कण्ठ लगावै? |
⚫ |
कत वह वेनु अधर मोहन धरि लै लै नाम बुलावै ? |
|
|
⚫ |
अब वह रूप अनूप कृपा करि नयनन हू न दिखावै॥ |
⚫ |
तब कत : लाड़ लड़ाय लड़ते हँसि हँसि कण्ठ लगावै ? . |
|
|
⚫ |
जा मुख-सँग समीप रैनि-दिन सोइ अब जोग सिखावै। |
⚫ |
अब वह रूपः अनूप कृपा करि नयनन हू न दिखावै ।। ..:'. |
|
|
⚫ |
जिन मुख दए अमृत रसना भरि सो कैसे विष प्यावै? |
⚫ |
जा मुख-सँग समीप रैनि-दिन सोइ अब जोग सिखावै । |
|
|
⚫ |
कर मीड़ति पछताति हियो भरि, क्रम क्रम मन समुझावै। |
⚫ |
जिन मुख दए अमृत रसना भरि सो कैसे विष प्यावै ? . |
|
|
⚫ |
सूरदास यहि भाँति वियोगिनी तातें अति दुख पावै॥३४४॥ |
⚫ |
कर मीड़ति पछताति हियो भरि, क्रम क्रम मन समुझावै । |
|
|
⚫ |
|
⚫ |
सूरदास यहि भाँति चियोगिनी तातें अति दुख पावै ।।३४४॥ |
|
|
⚫ |
ऊधो कहत, रहत हरि मधुपुरि, गत आगत न थकात॥ |
⚫ |
...सखी री ! मो मन धोखे जात । |
|
⚫ |
ऊधो कहत, रहत हरि मधुपुरि, गत आगत ' न थकात ॥ |
|
|
. .(१) गुहार = रक्षा के लिए दौड़ । (२) देखि = देख तू । (३) यहै परेखो |
|
. .(१) गुहार = रक्षा के लिए दौड़ । (२) देखि = देख तू । (३) यहै परेखो |
|
आवै = यही बात मन में सोचती हूँ। (४) कृत = किया, बनाया। (५) |
|
आवै = यही बात मन में सोचती हूँ। (४) कृत = किया, बनाया। (५) |