विदेशी विद्वान्/११―डाक्टर हर्मन जी॰ जैकोबी

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११―डाक्टर हर्मन जी० जैकोबी

मम्मट, विश्वनाथ, अप्पय-दीक्षित, जगन्नाथराय आदि बड़े-बड़े अलङ्कार-शास्त्रियों की जन्मभूमि, भारत, के बी० ए०, एम० ए० पास युवकों को अलङ्कारशास्त्र पढ़ाने के लिए एक विदेशी विद्वान् बुलाये गये हैं। इनका नाम है―डाक्टर हर्मन जी० जैकोबी। ये जर्मनी के रहनेवाले हैं। जर्मनी मे एक जगह बान है। वहाँ के विश्वविद्यालय मे आप संस्कृत का अध्यापन-कार्य करते हैं। कलकत्ते के विश्वविद्यालय के अधि- कारियों ने, कुछ समय के लिए, आपको कलकत्ते बुलाया है। वहाँ आप उस विश्वविद्यालय के ग्रेजुएटों को अलङ्कारशास्त्र पढ़ावेगे―अलङ्कारशास्त्र पर आप लेक्चर देगे। कलकत्ते मे संस्कृत के अनेक बड़े-बड़े विद्वान्, शास्त्री और आचार्य हैं। क्या ही अच्छा हो यदि उनमें से कोई इस बात पर एक लेख प्रकाशित करने की कृपा करे कि डाक्टर महाशय के अलङ्कार- शास्त्र-विषयक लेक्चरो में क्या विशेषता है। अथवा यदि उनके लेक्चर ही छपाकर प्रकाशित कर दिये जायँ तो और भी अच्छी बात हो। इससे इस देश के आलङ्कारिक पण्डितों की ऑखें तो खुले कि इस तरह नहीं, इस तरह यह शास्त्र पढ़ाया जाता है। [ १२८ ]सुनते हैं, डाक्टर जैकोबी संस्कृत के बड़े भारी पण्डित हैं। उनका जो चित्र दिसम्बर की "सरस्वती" में निकल चुका है उसके परिचयदाता ने जो नोट लिखा है उसमें डाक्टर साहब की विद्वत्ता का उल्लेख हो चुका है। "कालेजियन" नामक एक शिक्षाविषयक पाक्षिक पत्र के सम्पादक ने भी आपकी बड़ी प्रशंसा प्रकाशित की है। इस पाक्षिक पत्र के सम्पादक का कथन है कि संस्कृत में जितने शास्त्र हैं प्रायः सभी मे डाक्टर जैकोबी की अबाध गति है। संस्कृत का साधारण साहित्य, संस्कृत का छन्दःशास्त्र, संस्कृत का काव्यशास्त्र, संस्कृत का न्याय, वैशेषिक और वेदान्त-शास्त्र―सभी आपके करतल के आमलक हो रहे हैं। ज्योतिषशास्त्र में भी आप निष्णात हैं। प्राकृत भाषायें भी आप जानते हैं; और इस देश की वर्तमान- कालिक भाषायें भी। जैन और बौद्ध-शास्त्रो के ज्ञान के तो आप महासागर ही हैं। आपने अनेक नई-नई बातें ढूँढ़ निकाली हैं। आपकी विद्वत्ता को देखकर देश-विदेश, सभी कही, के पण्डित आश्चर्य करते हैं। "कालेजियन" के सम्पा- दक का यही मत है।

जैन-साहित्य से तो डाक्टर साहब का बहुत ही अधिक परिचय है। उस दिन बनारस मे जैनों का जो महोत्सव हुआ उसमे डाक्टर साहब भी निमन्त्रित हुए थे। वहीं आपका बड़ा आदर-सत्कार हुआ। जैनों ने आपकी स्तुति और प्रशंसा

से पूर्ण एक अभिनन्दनपत्र भी आपको दिया। [ १२९ ]
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डाकृर हर्मन जी० जैकोबी

डाक्टर जैकोबी का जन्म १८५० ईसवी में हुआ। बर्लिन और बान के विश्वविद्यालयों में संस्कृत और तुलनामूलक भाषा- शास्त्र आपने पढ़ा। १८७२ में आपको दर्शनशास्त्र के आचार्य्य की पदवी मिली। इसके बाद एक वर्ष तक आप लन्दन में रहे। १८७३ मे आप डाक्टर बूलर के साथ हिन्दुस्तान आये। यहीं आपका परिचय जैन-धर्म्म और जैन-साहित्य से हुआ। तभी से आपने इन विषयों का अध्ययन आरम्भ कर दिया और धीरे-धीरे इनमें ख़ूब पारङ्गत हो गये। स्वदेश को लौट जाने पर कई विश्वविद्यालयों मे आप संस्कृत पढ़ाते रहे। १८८९ ईसवी में आपकी बदली बान के विश्वविद्यालय को हो गई। आपने जैनों के कल्पसूत्र नामक ग्रन्थ का सम्पादन करके उसे प्रकाशित किया और उसकी भूमिका में यह सिद्ध किया कि जैन-धर्म बौद्ध-धर्म की शाखा नहीं, वह बौद्ध-धर्म से बिल्कुल ही जुदा धर्म है। इसके बाद आप ने हेमचन्द्र-कृत परिशिष्ट-पर्व्व का प्रकाशन किया और कई जैन-ग्रन्थों का अनुवाद भी योग्यतापूर्वक निकाला। जर्मनी के विद्यार्थियों के लाभ के लिए प्राकृत-भाषा-विषयक एक पुस्तक भी आपने लिखी। ‛ध्वन्या- लोक’ तथा ‘अलङ्कारसर्वस्व’ का अनुवाद भी, जर्मन भाषा में आपने कर डाला। पण्डित बालगङ्गाधर तिलक की तरह आपकी भी राय है कि वैदिक सभ्यता बहुत पुरानी है। योरप के विद्वान् उसे जितनी पुरानी समझते हैं उससे भी वह बहुत पहले की है।

[मार्च १९१४
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