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हड़ताल जॉन गाल्सवर्दी का प्रेमचंद द्वारा अनूदित नाटक है जिसका प्रकाशन सन् १९३० ई॰ में प्रयाग के हिंदुस्तानी एकेडमी संयुक्त प्रांत द्वारा किया गया था।


"दोपहर का समय है, अन्डरवुड के भोजनालय में तेज़ आग जल रही है। आतिशदान के एक तरफ़ दुहरे दरवाज़े हैं, जो बैठक में जाते हैं। दूसरी तरफ़ एक दरवाज़ा है, जो बड़े कमरे में जाता है। कमरे के बीच में, एक लम्बी खाने की मेज़ है। उस पर कोई मेज़पोश नहीं है। वह लिखने की मेज़ बना ली गई है। उसके सिरे पर सभापति के स्थान पर जॉन ऐंथ्वनी बैठा हुआ वह एक बुड्ढा, बड़े डीलडौल का आदमी है। दाढ़ी मूँछ मुड़ी हुई, रंग लाल, घने सफ़ेद बाल और घनी काली भौंहें। चालढाल से वह सुस्त और कमज़ोर मालूम होता है, लेकिन उसकी आँखें बहुत तेज़ हैं। उसके पास पानी का एक गिलास रक्खा हुआ है। उसकी दाहिनी तरफ़ उसका बेटा एडगार बैठा अखबार पढ़ रहा है। उसकी उम्र ३० साल की होगी। सूरत से उत्साही मालूम होता है। उसके बाद वेंकलिन झुका हुआ दस्तावेज़ों को देख रहा है, उसकी भौंहें उभरी हुई हैं और बाल खिचड़ी हो गए हैं। टेंच जो मन्त्री है, खड़ा उसे मदद दे रहा है। वह छोटे कद का दुबला, और कुछ ग़रीब आदमी है।..."(पूरा पढ़ें)