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अंधेर नगरी चौपट्ट राजा भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा रचित प्रहसन है जिसे उन्होंने बनारस में हिन्दी भाषी और कुछ बंगालियों की संस्था नेशनल थियेटर के लिए एक दिन में सन् १८८१ में लिखा था और काशी के दशाश्वमेध घाट पर ही उसी दिन अभिनीत भी हुआ। भारतेन्दु जी इस संस्था के संरक्षक थे।


"घासीराम–– चने जोर गरम ––

चने बनावैं घासीराम। निज की झोली में दूकान॥
चना चुरमुर चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुँह खोलै॥
चना खावै तौकी मैना। बोलै अच्छा बना चबैना॥
चना खायं गफूरन मुन्ना। बोलै और नहीं कुछ सुन्ना॥
चना खाते सब बंगाली। जिन धोती ढीली ढाली॥
चना खाते मियां जुलाहे। डाढ़ी हिलती गाह बगाहे॥
चना हाकिम सब जो खाते। सब पर दूना टिकस लगाते॥
चने जोर गरम –– टके सेर।

नारंगीवाली–– नरंगी ले नरंगी –– सिलहट की नरंगी, बुटवल की नरंगी, रामबाग की नरंगी, आनन्दबाग की नरंगी। भई नींबू से नरंगी। मैं तो पिय के रंग न रंगी। मैं तो भूली लेकर संगी। नरंगी ले नरंगी। कंवला नीबू, मीठा नीबू, रंगतरा, संगतरा। दोनों हाथों लो –– नहीं पीछे हाथ ही मलते रहोगे। नरंगी ले नरंगी। टके सेर नरंगी।..."(पूरा पढ़ें)