रानी-सारन्धा प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी है जो १९४८ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित नव-निधि कहानी संग्रह में संकलित है।


"अँधेरी रात के सन्नाटे में धसान नदी चट्टानों से टकराती हुई ऐसी सुहावनी मालूम होती थी जैसे घुमुर घुमुर करती हुईं चक्कियाँ। नदी के दाहिने तट पर एक टीला है। उसपर एक पुराना दुर्ग बना हुआ है जिसको जंगली वृक्षों ने घेर रखा है। टोले के पूर्व की ओर छोटा-सा गाँव है। यह गढ़ी और गाँव दोनों एक बुंदेला सरदार के कीर्ति-चिन्ह हैं। शताब्दियाँ व्यतीत हो गईं, बुन्देलखण्ड में कितने ही राज्यों का उदय और अस्त हुआ, मुसलमान आये और गये, बुन्देला राजा उठे और गिरे,—कोई गाँव, कोई इलाका ऐसा न था जो इन दुर्व्यवस्थाओं से पीड़ित न हो, मगर इस दुर्ग पर किसी शत्रु की विजय पताका न लहराई और इस गाँव में किसी विद्रोह का भी पदार्पण न हुआ। यह उसका सौभाग्य था। अनिरुद्धसिंह वीर राजपूत था। वह जमाना ही ऐसा था जब मनुष्यमात्र को अपने बाहु-बल और पराक्रम ही का भरोसा था।..." (पूरा पढ़ें)