विकिस्रोत:आज का पाठ/४ जून
नेउर प्रेमचंद के कहानी-संग्रह मानसरोवर २ का एक अध्याय है जिसका प्रकाशन १९४६ ई॰ में सरस्वती प्रेस "बनारस" द्वारा किया गया था।
"आकाश में चाँदी के पहाड़ भाग रहे थे, टकरा रहे थे, गले मिल रहे थे, जैसे सूर्य-मेघ संग्राम छिड़ा हो। कभी छाया हो जाती थी, कभी तेज धूप चमक उठती थी। बरसात के दिन थे, उमस हो रही थी। हवा बन्द हो गई थी।
गाँव के बाहर कई मजूर एक खेत को मेंड़ बांध रहे थे। नंगे बदन, पसीने में तर, कछनी कसे हुए, सब-के-सब फावड़े से मिट्टी खोदकर मेंड़ पर रखते जाते थे। पानी से मिट्टी नरम हो गई थी।
गोबर ने अपनी कानी आंख मटकाकर कहा—अब तो हाथ नहीं चलता भाई। गोला भी छूट गया होगा, चबेना कर लें।..."(पूरा पढ़ें)