विकिस्रोत:आज का पाठ/३ नवम्बर
रसनिधि रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।
"(११) रसनिधि– इनका नाम पृथ्वीसिंह था और दतिया के एक जमींदार थे। इनका संवत् १७१७ तक वर्तमान रहना पाया जाता है । ये अच्छे कवि थे। इन्होंने बिहारी-सतसई के अनुकरण पर तनहजारा नामक दोहों का एक ग्रंथ बनाया । कहीं कहीं तो इन्होंने बिहारी के वाक्य तक रख लिए हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने और भी बहुत से दोहे बनाए जिनका संग्रह बाबू जगन्नाथप्रसाद (छत्रपुर ) ने किया है। अरिल्ल और सोझो का संग्रह भी खोज में मिला है। ये श्रृंगार-रस के कवि थे। अपने दोहों में इन्होने फारसी कविता के भाव भरने और चतुराई दिखाने का बडुत कुछ प्रयत्न किया है।..."(पूरा पढ़ें)