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आधुनिक काल (प्रकरण २) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।


"श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'-पहले कहा जा चुका है कि 'छायावाद' ने पहले बँगला की देखादेखी अँगरेजी ढंग की प्रगीत पद्धति का अनुसरण किया। प्रगीत पद्धति में नाद-सौंदर्य की ओर अधिक ध्यान रहने से संगीत-तत्व का अधिक समादेश देखा जाता है। परिणाम यह होता है कि समन्वित अर्थ की ओर झुकाव कम हो जाता है। हमारे यहाँ संगीत राग-रागिनियों में बँधकर चलता आया है; पर योरप में उस्ताद लोग तरह तरह की स्वर-लिपियों की अपनी नई नई योजनाओं का कौशल दिखाते हैं। जैसे और सब बातों की, वैसे ही संगीत के अँगरेजी ढंग की भी नकल पहले पहल बंगाल में शुरू हुई। इस नए ढंग की ओर निरालाजी सबसे अधिक आकर्षित हुए और अपने गीतों में इन्होंने उसका पूरा जौहर दिखाया।..."(पूरा पढ़ें)