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आधुनिक काल (प्रकरण २) सुमित्रानंदन पंत रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।


"श्री सुमित्रानंदन पंत की रचनाओं का आरंभ सं॰ १९७५ से समझना चाहिए। इनकी प्रारंभिक कविताएँ 'वीणा' में, जिसमें 'हृत्तंत्री के तार' भी संग्रहीत हैं। उन्हें देखने पर 'गीतांजलि' का प्रभाव कुछ लक्षित अवश्य होता है, पर साथ ही आगे चलकर प्रवर्द्धित चित्रमयी भाषा के उपयुक्त रमणीय कल्पना का जगह-जगह बहुत ही प्रचुर आभास मिलता है। गीतांजलि का रहस्यात्मकता प्रभाव ऐसे गीतों को देखकर ही कहा जा सकता है:-

हुआ था जब संध्या-आलोक
हँस रहे थे, तुम पश्चिम ओर
विहँगरव बन कर मैं, चितचोर!
गा रहा था गुण: किंतु कठोर
रहे तुम नहीं वहाँ भी, शोक।

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