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माँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी-संग्रह मानसरोवर १ का एक अंश है जिसका प्रकाशन अप्रैल १९४७ में बनारस के सरस्वती प्रेस बनारस द्वारा किया गया था।


"आज बंदी छुटकर घर आ रहा है। करुणा ने एक दिन पहले ही घर लीप-पोत रखा था। इन तीन वर्षों में उसने कठिन तपस्या करके जो दस-पाँच रुपये जमा कर रखे थे, वह सब पति के सत्कार और स्वागत की तैयारियों में खर्च कर दिये। पति के लिए धोतियों का नया जोड़ा लाई थी, नये कुरते बनवाये थे, बच्चे के लिए नये फोट और टोपी की योजना की थी। बार-बार बच्चे को गले लगाती, और प्रसन्न होती। अगर इस बच्चे ने सूर्य की भाँति उदय होकर उसके अँधेरे जीवन को प्रदीप्त न कर दिया होता तो कदाचित् ठोकरों ने उसके जीवन का अन्त कर दिया होता।.."(पूरा पढ़ें)