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प्रतापनारायण मिश्र रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।


"प्रतापनारायण मिश्र के पिता उन्नाव से आकर कानपुर में बस गए थे, जहाँ प्रतापनारायणजी का जन्म सं॰ १९१३ मे और मृत्यु सं॰ १९५१ में हुई है। ये इतने मनमौजी थे कि आधुनिक सभ्यता और शिष्टता की कम परवा करते थे। कभी लावनीबाजों में जाकर शामिल हो जाते थे, कभी मेलो और तमाशो में बंद इक्के पर बैठे जाते दिखाई देते थे।

प्रतापनारायण मिश्र यद्यपि लेखन-कला में भारतेंदु को ही आदर्श मानते थे पर उनकी शैली में भारतेंदु की शैली से बहुत कुछ विभिन्नता भी लक्षित होती है। प्रतापनारायणजी में विनोद-प्रियता विशेष थी इससे उनकी वाणी में व्यंग्यपूर्ण वक्रता की मात्रा प्रायः रहती है। इसके लिये वे पूरबीपन की परवा न करके अपने बैसवारे की ग्राम्य कहावतें और शब्द भी कभी कभी बेधड़क रख दिया करते थे।..."(पूरा पढ़ें)