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बनवारी रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।


बनवारी––ये संवत् १६९० और १७०० के बीच वर्तमान थे। इनका विशेष वृत्त ज्ञात नहीं। इन्होंने महाराज जसवंतसिंह के बड़े भाई अमरसिंह की वीरता की बड़ी प्रशंसा की है। यह इतिहास-प्रसिद्ध बात है कि एक बार शाहजहाँ के दरबार में सलावत खाँ ने किसी बात पर अमरसिंह को गँवार कह दिया, जिस पर उन्होंने चट तलवार खींचकर सलावत खाँ को वहीं मार डाला। इस घटना का बड़ा ओजपूर्ण वर्णन, इनके इन पद्यों में मिलता है––

"धन्य अमर छिति छत्रपति, अमर तिहारो मान।
साहजहाँ की गोद में, हन्यो सलावत खान॥
उत गवार मुख ते कढ़ी इतै कढ़ी जमधार।
'वार' कहन पायो नहीं, भई कटारी पार॥"

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