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रासो ग्रंथ परिचय रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई. में किया गया था।


"यहाँ पर वीर-काल के उन ग्रंथो का उल्लेख किया जाता है जिनकी या तो प्रतियाँ मिलती हैं या कहीं उल्लेख मात्र पाया जाता है। ये ग्रंथ 'रासो' कहलाते हैं। कुछ लोग इस शब्द का संबंध 'रहस्य” से बतलाते हैं। पर बीसलदेव रासो में काव्य के अर्थ मे रसायण' शब्द बार बार आया है । अतः हमारी समझ में इसी "रसायण" शब्द से होते होते रासो' हो गया है। (१) खुमानरासो-संवत् ८१० और १००० के बीच-में, चित्तौड़ के रावल खुमान नाम के तीन राजा हुए हैं । कर्नल टाड ने इनको एक मानकर इनके युद्धों का विस्तार से वर्णन किया है । उनके वर्णन का सारांश यह है कि कालभोज ( बापा') के पीछे खुम्माण गद्दी पर बैठा, जिसका नाम, मेवाड़ के [ ३३ ]इतिहास में प्रसिद्ध है और जिसके समय में बगदाद के खलीफा आलमामू ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की । खुम्माण की सहायता के लिये बहुत से राजा आए और चित्तौड़ की रक्षा हो गई । खुम्माण ने २४ युद्ध किए और वि० सं० ८६६ से ८८३ तक राज्य किया । यह समस्त वर्णन ‘दलपत विजय' नामक किसी कवि के रचित खुमानरासो के आधार पर लिया गया जान पड़ता है । पर इस समय खुमानरासो की जो प्रति प्राप्त है, वह अपूर्ण है..."(पूरा पढ़ें)