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शिकार प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी-संग्रह मानसरोवर १ का एक अंश है जिसका प्रकाशन अप्रैल १९४७ में बनारस के सरस्वती प्रेस बनारस द्वारा किया गया था।


"फटे वस्त्रोंवाली मुनिया ने रानी वसुधा के चाँद-से मुखड़े को ओर सम्मानभरी आँखों से देखकर राजकुमार को गोद में उठाते हुए कहा—हम ग़रीबों का इस तरह कैसे निबाह हो सकता है महारानी! मेरी तो अपने आदमी से एक दिन न पटे। मैं उसे घर में पैठने न दूँ। ऐसी-ऐसी गालियाँ सुनाऊँ कि छठी का दूध याद आ जाय।
रानी वसुधा ने गम्भीर विनोद के भाव से कहा—क्या, वह कहेगा नहीं, तू मेरे बीच में बोलनेवाली कौन है? मेरी जो इच्छा होगी वह करूँगा।..."(पूरा पढ़ें)