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आकाश में निराधार स्थिति महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा १९०५ ई॰ में रचित आलेख है जो १९४२ ई॰ में लखनऊ के गंगा-पुस्तकमाला द्वारा प्रकाशित अद्भुत आलाप निबंध संग्रह में संग्रहित है।


"हिंदोस्तान के उत्तर में, नवंबर के शुरू में, जाड़ा पड़ने लगता है। तब जिले के सिविलियन साहब दौरे पर निकलते हैं। मुझे भी हर साल की तरह दौरे पर जाना पड़ा। एक दिन एक पढ़े-लिखे हिंदोस्तानी जमींदार ने आकर मुझसे मुलाक़ात की। उसने कहा कि मैंने एक बड़ा ही आश्चर्यजनक तमाशा देखा है। आत्मविद्या के बल से एक लड़का ज़मीन से चार फ़ीट ऊपर, अधर में, बिना किसी आधार के ठहरा रहता है। इससे मिलते-जुलते हुए तमाशों का हाल मैंने सुन रक्खा था। मैंने सुना था कि मदारी लोग रस्सी को आकाश में फेककर उस पर चढ़ जाते हैं, और इसी तरह के अजीब-अजीब तमाशे दिखलाते हैं। पर मैंने यह न सुना था कि कोई आकाश में भी बिना किसी आधार के ठहर सकता है। इससे इस तमाशे की देखने को मुझे उत्कट अभिलाषा हुई। मेरे हिंदोस्तानी मित्र ने मुझसे वादा किया कि मैं आपको यह तमाशा दिखलाऊँगा।..."(पूरा पढ़ें)