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अपभ्रंश-काल (ग्रंथकार परिचय) रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई. में किया गया था।


"हेमचंद्र---गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह ( संवत् ११५०-११६६ ) और उनके भतीजे कुमारपाल ( ११६६-१२३० ) के यहाँ इनका बड़ा मान था। ये अपने समय के सबसे प्रसिद्ध जैन आचार्य्य थे। इन्होंने एक बड़ा भारी व्याकरण-ग्रंथ ‘सिद्ध हेमचंद्र शब्दानुशासन’ सिद्धराज के समय में बनाया, जिसमें संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों का समावेश किया। अपभ्रंश के उदाहरणों में इन्होने पूरे दोहे या पद्य उद्धृत किए हैं, जिनमें से अधिकांश इनके समय से पहले के हैं। कुछ दोहे देखिए---

भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि महारा कंतु।
लज्जेजं तु वयसिअहु जइ भग्गा घरु एंतु॥

...(पूरा पढ़ें)