विकिस्रोत:आज का पाठ/१६ अगस्त
विद्वान् घोड़े महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा अगस्त, १९१३ई. में रचित आलेख है जो १९४२ ई में लखनऊ के गंगा-पुस्तकमाला द्वारा प्रकाशित अद्भुत आलाप निबंध संग्रह में संग्रहित है।
"अमेरिका के एक ऐसे कुत्ते का हाल पाठक सुन चुके हैं, जो मनुष्य की बोली बोल सकता है। अब विद्वान् घोड़ों का भी वृत्तांत सुन लीजिए। यह वृत्तांत भी अमेरिका के प्रसिद्ध पत्र 'साईटिफ़िक् अमेरिकन' में प्रकाशित हुआ है। इसे सहस्र-रजनी चरित्र की कहानी या ग़प न समझिए। इन बातों की परीक्षा पंडितों ने की है, और इनके सच होने का सार्टिफ़िकेट भी दिया है। जिन लोगों ने इन बातों की सचाई में संदेह किया था, और इन घोड़ों का समझ और गणित-शक्ति की बात को इनके मालिकों की चालाकी बताई थी, उनकी आलोचनाओं का खंडन अनेक पंडितों ने अच्छी तरह किया है।...जर्मनी में एक महाशय रहते हैं। उनका नाम है हर वॉन आस्टिन। उन्होंने एक घोड़ा पाला और उसका नाम रक्खा हंस। इस बात को कई वर्ष हुए। उन्होंने उसे अन्यान्य बातों के सिवा जोड़, बाक़ी, गुणा आदि के प्रश्न हल करना भी सिखाया। इस प्रकार उन्होंने यह सिद्ध किया कि हंस में सोचने, समझने और याद रखने की शक्तियाँ विद्यमान हैं।..."(पूरा पढ़ें)